"चित्रकूट": अवतरणों में अंतर
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*[[वाल्मीकि रामायण]] तथा अन्य रामायणों में वर्णित प्रसिद्ध स्थान जहाँ श्री[[राम]], [[लक्ष्मण]] और [[सीता]] वनवास के समय कुछ दिनों तक रहे थे। <ref>[[अयोध्या काण्ड वा. रा.|अयोध्या काण्ड]] 84,4-6</ref> से प्रतीत होता है कि अनेक रंग की धाताओं से भूषित होने के कारण ही इस पहाड़ को चित्रकूट कहते थे— | *[[वाल्मीकि रामायण]] तथा अन्य रामायणों में वर्णित प्रसिद्ध स्थान जहाँ श्री[[राम]], [[लक्ष्मण]] और [[सीता]] वनवास के समय कुछ दिनों तक रहे थे। <ref>[[अयोध्या काण्ड वा. रा.|अयोध्या काण्ड]] 84,4-6</ref> से प्रतीत होता है कि अनेक [[रंग]] की धाताओं से भूषित होने के कारण ही इस पहाड़ को चित्रकूट कहते थे— | ||
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‘पश्येयमचलं भद्रे नाना द्विजगणायुतम् शिखरै: खमिवोद्विद्धैर्धातुमद्भिर्विभूषितम्। | ‘पश्येयमचलं भद्रे नाना द्विजगणायुतम् शिखरै: खमिवोद्विद्धैर्धातुमद्भिर्विभूषितम्। | ||
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पुष्पार्क केतकाभाश्च केचिज्ज्योतिरस प्रभा:, विराजन्तेऽचलेन्द्रस्य देशा धातुविभूषिता:’। | पुष्पार्क केतकाभाश्च केचिज्ज्योतिरस प्रभा:, विराजन्तेऽचलेन्द्रस्य देशा धातुविभूषिता:’। | ||
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*निम्न वर्णन से यह स्पष्ट है कि चित्रकूट रामायण-काल में प्रयागस्थ भारद्वाजाश्रम से केवल दसकोस पर स्थित था। | *निम्न वर्णन से यह स्पष्ट है कि चित्रकूट रामायण-काल में प्रयागस्थ भारद्वाजाश्रम से केवल दसकोस पर स्थित था। | ||
:‘दशकोशइतस्तात गिरिर्यस्मिन्निवत्स्यसि, महर्षि सेवित: पुण्य: पर्वत: शुभदर्शन:’<ref>[[अयोध्या काण्ड वा. रा.|अयोध्या काण्ड]] 54, 28।</ref> | |||
*आजकल [[प्रयाग]] से चित्रकूट लगभग चौगुनी दूरी पर स्थित है। इस समस्या क समाधान यह मानने से हो सकता है कि वाल्मीकि के समय का प्रयाग अथवा [[गंगा नदी|गंगा]]-[[यमुना नदी|यमुना]] का संगम स्थान आज के संगम से बहुत दक्षिण में था। उस समय प्रयाग में केवल मुनियों के आश्रम थे और इस स्थान ने तब तक जनाकीर्ण नगर का रूप धारण न किया था। चित्रकूट की पहाड़ी के अतिरिक्त इस क्षेत्र के अन्तर्गत कई ग्राम हैं, जिनमें सीतापुरी प्रमुख है। पहाड़ी पर बाँके सिद्ध, देवांगना, हनुमानधारा, सीता रसोई और अनुसूया आदि [[पुण्य]] अथान हैं। दक्षिण पश्चिम में गुप्त [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] नामक सरिता एक गहरी गुहा से निस्सृत होती है। सीतापुरी [[पयोष्णी नदी]] के तट पर सुन्दर स्थान है और वहीं स्थित है जहाँ श्री[[राम]]-[[सीता]] की पर्ण कुटी थी। इसे पुरी भी कहते हैं। पहले इनका नाम जयसिंहपुर था और यहाँ कोलों का निवास था। | *आजकल [[प्रयाग]] से चित्रकूट लगभग चौगुनी दूरी पर स्थित है। इस समस्या क समाधान यह मानने से हो सकता है कि वाल्मीकि के समय का प्रयाग अथवा [[गंगा नदी|गंगा]]-[[यमुना नदी|यमुना]] का संगम स्थान आज के संगम से बहुत दक्षिण में था। उस समय प्रयाग में केवल मुनियों के आश्रम थे और इस स्थान ने तब तक जनाकीर्ण नगर का रूप धारण न किया था। चित्रकूट की पहाड़ी के अतिरिक्त इस क्षेत्र के अन्तर्गत कई ग्राम हैं, जिनमें सीतापुरी प्रमुख है। पहाड़ी पर बाँके सिद्ध, देवांगना, हनुमानधारा, सीता रसोई और अनुसूया आदि [[पुण्य]] अथान हैं। दक्षिण पश्चिम में गुप्त [[गोदावरी नदी|गोदावरी]] नामक सरिता एक गहरी गुहा से निस्सृत होती है। सीतापुरी [[पयोष्णी नदी]] के तट पर सुन्दर स्थान है और वहीं स्थित है जहाँ श्री[[राम]]-[[सीता]] की पर्ण कुटी थी। इसे पुरी भी कहते हैं। पहले इनका नाम जयसिंहपुर था और यहाँ कोलों का निवास था। | ||
*पन्ना के राजा अमानसिंह ने जयसिंहपुर को महंत चरणदास ने दान में दिया था। इन्होंने ही इसका सीतापुरी नाम रखा था। राघवप्रयाग, सीतापुरी का बड़ा तीर्थ है। इसके सामने मंदाकिनी नदी का घाट है। चित्रकूट के पास ही कामदगिरि है। इसकी परिक्रमा 3 मील की है। परिक्रमा-पथ को 1725 ई. में छत्रसाल की रानी चाँदकुंवरि ने पक्का करवया था। कामता से 6 मील पश्चिमोत्तर में भरत कूप नामक विशाल कूप है। | *पन्ना के राजा अमानसिंह ने जयसिंहपुर को महंत चरणदास ने दान में दिया था। इन्होंने ही इसका सीतापुरी नाम रखा था। राघवप्रयाग, सीतापुरी का बड़ा तीर्थ है। इसके सामने [[मंदाकिनी नदी]] का घाट है। चित्रकूट के पास ही कामदगिरि है। इसकी परिक्रमा 3 मील की है। परिक्रमा-पथ को 1725 ई. में छत्रसाल की रानी चाँदकुंवरि ने पक्का करवया था। कामता से 6 मील पश्चिमोत्तर में भरत कूप नामक विशाल कूप है। | ||
*[[रामचरितमानस|तुलसी-रामायण]] के अनुसार इस कूप में [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] ने सब तीर्थों का वह जल डाल दिया था जो वह श्री राम के [[अभिषेक]] के लिए चित्रकूट लाए थे। | *[[रामचरितमानस|तुलसी-रामायण]] के अनुसार इस कूप में [[भरत (दशरथ पुत्र)|भरत]] ने सब तीर्थों का वह जल डाल दिया था जो वह श्री राम के [[अभिषेक]] के लिए चित्रकूट लाए थे। | ||
*[[महाभारत]] <ref>[[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन पर्व]] 25, 29</ref> में चित्रकूट और मंदाकिनी का तीर्थ रूप में वर्णन किया गया है। | *[[महाभारत]] <ref>[[अनुशासन पर्व महाभारत|अनुशासन पर्व]] 25, 29</ref> में चित्रकूट और [[मंदाकिनी नदी|मंदाकिनी]] का [[तीर्थ]] रूप में वर्णन किया गया है। | ||
*[[कालिदास]] ने रघुवंश<ref>रघुवंश 12, 15 और 13, 47</ref> में चित्रकूट का वर्णन किया है—< | :‘चित्रकूट जनस्थाने तथा मंदाकिनी जले, विगाह्य वै निराहारो राजलक्ष्म्या निषेव्यते,। | ||
< | *[[कालिदास]] ने रघुवंश<ref>रघुवंश 12, 15 और 13, 47</ref> में चित्रकूट का वर्णन किया है— | ||
‘धारास्वनोद्गारिदरी मुखाऽसौ श्रृंगाग्रलग्नाम्बुदवप्रपंक:, बध्नाति मे बंधुरगात्रि चक्षुदृप्त: ककुद्मानिवचित्रकूट:’।</blockquote> | <blockquote><poem>‘चित्रकूटवनस्थं च कथित स्वर्गतिर्गुरो: लक्ष्म्या निमन्त्रयां चके तमनुच्छिष्ट संपदा’। | ||
*[[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत]]<ref> श्रीमद्भागवत 5, 19, 16</ref> में भी इसका उल्लेख | ‘धारास्वनोद्गारिदरी मुखाऽसौ श्रृंगाग्रलग्नाम्बुदवप्रपंक:, बध्नाति मे बंधुरगात्रि चक्षुदृप्त: ककुद्मानिवचित्रकूट:’।</poem></blockquote> | ||
*अध्यात्मरामायण<ref>अयोध्या काण्ड 9, 77</ref> में चित्रकूट में राम के निवास करने का उल्लेख इस प्रकार है— | *[[भागवत पुराण|श्रीमद्भागवत]]<ref>[[श्रीमद्भागवत]] 5, 19, 16</ref> में भी इसका उल्लेख है— | ||
‘नागराश्च सदा यान्ति रामदर्शनलालसा:, चित्रकूटस्थितं ज्ञात्वा सीतया लक्ष्मणेन च'। | :‘पारियात्रो द्रोणश्चित्रकूटो गोवर्धनो रैवतक:’। <br /> | ||
*अध्यात्मरामायण<ref>[[अयोध्या काण्ड वा. रा.|अयोध्या काण्ड]] 9, 77</ref> में चित्रकूट में राम के निवास करने का उल्लेख इस प्रकार है— | |||
:‘नागराश्च सदा यान्ति रामदर्शनलालसा:, चित्रकूटस्थितं ज्ञात्वा सीतया लक्ष्मणेन च'। | |||
*महाकवि [[तुलसीदास]] ने [[रामचरितमानस]] (अयोध्या काण्ड) में चित्रकूट का बड़ा मनोहारी वर्णन किया है। तुलसीदास चित्रकूट में बहुत समय तक रहे थे और उन्होंने जिस प्रेम और तादात्म्य की भावना से चित्रकूट के शब्द-चित्र खींचे हैं वे रामायण के सुन्दरतम स्थलों में हैं—<br /> | *महाकवि [[तुलसीदास]] ने [[रामचरितमानस]] (अयोध्या काण्ड) में चित्रकूट का बड़ा मनोहारी वर्णन किया है। तुलसीदास चित्रकूट में बहुत समय तक रहे थे और उन्होंने जिस प्रेम और तादात्म्य की भावना से चित्रकूट के शब्द-चित्र खींचे हैं वे रामायण के सुन्दरतम स्थलों में हैं—<br /> | ||
<blockquote>‘रघुवर कहऊ लखन भल घाटू, करहु कतहुँ अब ठाहर ठाटू। | <blockquote><poem>‘रघुवर कहऊ लखन भल घाटू, करहु कतहुँ अब ठाहर ठाटू। | ||
लखन दीख पय उतरकरारा, चहुँ दिशि फिरेउ धनुष जिमिनारा। | लखन दीख पय उतरकरारा, चहुँ दिशि फिरेउ धनुष जिमिनारा। | ||
नदीपनच सर सम दम दाना, सकल [[कलुष]] कलि साउज नाना। | नदीपनच सर सम दम दाना, सकल [[कलुष]] कलि साउज नाना। | ||
चित्रकूट जिम अचल अहेरी, चुकई न घात मार मुठभेरी’—आदि।< | चित्रकूट जिम अचल अहेरी, चुकई न घात मार मुठभेरी’—आदि।</poem></blockquote> | ||
*जैन साहित्य में भी चित्रकूट का वर्णन है। | *जैन साहित्य में भी चित्रकूट का वर्णन है। | ||
*भगवती टीका<ref> भगवती टीका | *भगवती टीका<ref>भगवती टीका 7,6</ref> में चित्रकूट को चित्रकुड़ कहा गया है। | ||
*बौद्धग्रंथ [[ललितविस्तर]] <ref> ललितविस्तर पृ.391</ref> में भी चित्रकूट की पहाड़ी का उल्लेख है। | *बौद्धग्रंथ [[ललितविस्तर]]<ref> ललितविस्तर पृ.391</ref> में भी चित्रकूट की पहाड़ी का उल्लेख है। | ||
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09:45, 4 फ़रवरी 2012 का अवतरण

- वाल्मीकि रामायण तथा अन्य रामायणों में वर्णित प्रसिद्ध स्थान जहाँ श्रीराम, लक्ष्मण और सीता वनवास के समय कुछ दिनों तक रहे थे। [1] से प्रतीत होता है कि अनेक रंग की धाताओं से भूषित होने के कारण ही इस पहाड़ को चित्रकूट कहते थे—
‘पश्येयमचलं भद्रे नाना द्विजगणायुतम् शिखरै: खमिवोद्विद्धैर्धातुमद्भिर्विभूषितम्।
केचिद् रजतसंकाशा: केचित् क्षतज संनिभा:, पीतमांजिष्ठ वर्णाश्च केचिन् मणिवरप्रभा:।
पुष्पार्क केतकाभाश्च केचिज्ज्योतिरस प्रभा:, विराजन्तेऽचलेन्द्रस्य देशा धातुविभूषिता:’।
- निम्न वर्णन से यह स्पष्ट है कि चित्रकूट रामायण-काल में प्रयागस्थ भारद्वाजाश्रम से केवल दसकोस पर स्थित था।
- ‘दशकोशइतस्तात गिरिर्यस्मिन्निवत्स्यसि, महर्षि सेवित: पुण्य: पर्वत: शुभदर्शन:’[2]
- आजकल प्रयाग से चित्रकूट लगभग चौगुनी दूरी पर स्थित है। इस समस्या क समाधान यह मानने से हो सकता है कि वाल्मीकि के समय का प्रयाग अथवा गंगा-यमुना का संगम स्थान आज के संगम से बहुत दक्षिण में था। उस समय प्रयाग में केवल मुनियों के आश्रम थे और इस स्थान ने तब तक जनाकीर्ण नगर का रूप धारण न किया था। चित्रकूट की पहाड़ी के अतिरिक्त इस क्षेत्र के अन्तर्गत कई ग्राम हैं, जिनमें सीतापुरी प्रमुख है। पहाड़ी पर बाँके सिद्ध, देवांगना, हनुमानधारा, सीता रसोई और अनुसूया आदि पुण्य अथान हैं। दक्षिण पश्चिम में गुप्त गोदावरी नामक सरिता एक गहरी गुहा से निस्सृत होती है। सीतापुरी पयोष्णी नदी के तट पर सुन्दर स्थान है और वहीं स्थित है जहाँ श्रीराम-सीता की पर्ण कुटी थी। इसे पुरी भी कहते हैं। पहले इनका नाम जयसिंहपुर था और यहाँ कोलों का निवास था।
- पन्ना के राजा अमानसिंह ने जयसिंहपुर को महंत चरणदास ने दान में दिया था। इन्होंने ही इसका सीतापुरी नाम रखा था। राघवप्रयाग, सीतापुरी का बड़ा तीर्थ है। इसके सामने मंदाकिनी नदी का घाट है। चित्रकूट के पास ही कामदगिरि है। इसकी परिक्रमा 3 मील की है। परिक्रमा-पथ को 1725 ई. में छत्रसाल की रानी चाँदकुंवरि ने पक्का करवया था। कामता से 6 मील पश्चिमोत्तर में भरत कूप नामक विशाल कूप है।
- तुलसी-रामायण के अनुसार इस कूप में भरत ने सब तीर्थों का वह जल डाल दिया था जो वह श्री राम के अभिषेक के लिए चित्रकूट लाए थे।
- महाभारत [3] में चित्रकूट और मंदाकिनी का तीर्थ रूप में वर्णन किया गया है।
- ‘चित्रकूट जनस्थाने तथा मंदाकिनी जले, विगाह्य वै निराहारो राजलक्ष्म्या निषेव्यते,।
‘चित्रकूटवनस्थं च कथित स्वर्गतिर्गुरो: लक्ष्म्या निमन्त्रयां चके तमनुच्छिष्ट संपदा’।
‘धारास्वनोद्गारिदरी मुखाऽसौ श्रृंगाग्रलग्नाम्बुदवप्रपंक:, बध्नाति मे बंधुरगात्रि चक्षुदृप्त: ककुद्मानिवचित्रकूट:’।
- श्रीमद्भागवत[5] में भी इसका उल्लेख है—
- ‘पारियात्रो द्रोणश्चित्रकूटो गोवर्धनो रैवतक:’।
- अध्यात्मरामायण[6] में चित्रकूट में राम के निवास करने का उल्लेख इस प्रकार है—
- ‘नागराश्च सदा यान्ति रामदर्शनलालसा:, चित्रकूटस्थितं ज्ञात्वा सीतया लक्ष्मणेन च'।
- महाकवि तुलसीदास ने रामचरितमानस (अयोध्या काण्ड) में चित्रकूट का बड़ा मनोहारी वर्णन किया है। तुलसीदास चित्रकूट में बहुत समय तक रहे थे और उन्होंने जिस प्रेम और तादात्म्य की भावना से चित्रकूट के शब्द-चित्र खींचे हैं वे रामायण के सुन्दरतम स्थलों में हैं—
‘रघुवर कहऊ लखन भल घाटू, करहु कतहुँ अब ठाहर ठाटू।
लखन दीख पय उतरकरारा, चहुँ दिशि फिरेउ धनुष जिमिनारा।
नदीपनच सर सम दम दाना, सकल कलुष कलि साउज नाना।
चित्रकूट जिम अचल अहेरी, चुकई न घात मार मुठभेरी’—आदि।
- जैन साहित्य में भी चित्रकूट का वर्णन है।
- भगवती टीका[7] में चित्रकूट को चित्रकुड़ कहा गया है।
- बौद्धग्रंथ ललितविस्तर[8] में भी चित्रकूट की पहाड़ी का उल्लेख है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ अयोध्या काण्ड 84,4-6
- ↑ अयोध्या काण्ड 54, 28।
- ↑ अनुशासन पर्व 25, 29
- ↑ रघुवंश 12, 15 और 13, 47
- ↑ श्रीमद्भागवत 5, 19, 16
- ↑ अयोध्या काण्ड 9, 77
- ↑ भगवती टीका 7,6
- ↑ ललितविस्तर पृ.391