"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/3": अवतरणों में अंतर
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-[[गणेशशंकर विद्यार्थी]] | -[[गणेशशंकर विद्यार्थी]] | ||
||[[चित्र:Sardar-Vallabh-Bhai-Patel.jpg|right|80px|सरदार पटेल]]'सरदार पटेल' प्रसिद्ध भारतीय बैरिस्टर और राजनेता थे। वे [[भारत]] के [[स्वाधीनता संग्राम]] के दौरान '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' प्रमुख के नेताओं में से एक थे। [[1947]] में भारत की आज़ादी के बाद पहले तीन [[वर्ष]] वह [[उपप्रधानमंत्री]], गृह मंत्री, सूचना मंत्री और राज्य मंत्री रहे। [[1917]] से [[1924]] तक [[सरदार पटेल]] ने [[अहमदनगर]] के पहले 'भारतीय निगम आयुक्त' के रूप में सेवाएँ प्रदान कीं और [[1924]] से [[1928]] तक वह इसके निर्वाचित नगरपालिका अध्यक्ष भी रहे। [[1918]] में पटेल ने अपनी पहली छाप छोड़ी, जब भारी [[वर्षा]] से फ़सल तबाह होने के बावज़ूद [[बम्बई]] सरकार द्वारा पूरा सालाना लगान वसूलने के फ़ैसले के विरुद्ध उन्होंने [[गुजरात]] के [[कैरा|कैरा ज़िले]] में किसानों और काश्तकारों के जनांदोलन की रूपरेखा बनाई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वल्लभ भाई पटेल]] | ||[[चित्र:Sardar-Vallabh-Bhai-Patel.jpg|right|80px|सरदार पटेल]]'सरदार पटेल' प्रसिद्ध भारतीय बैरिस्टर और राजनेता थे। वे [[भारत]] के [[स्वाधीनता संग्राम]] के दौरान '[[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]' प्रमुख के नेताओं में से एक थे। [[1947]] में भारत की आज़ादी के बाद पहले तीन [[वर्ष]] वह [[उपप्रधानमंत्री]], गृह मंत्री, सूचना मंत्री और राज्य मंत्री रहे। [[1917]] से [[1924]] तक [[सरदार पटेल]] ने [[अहमदनगर]] के पहले 'भारतीय निगम आयुक्त' के रूप में सेवाएँ प्रदान कीं और [[1924]] से [[1928]] तक वह इसके निर्वाचित नगरपालिका अध्यक्ष भी रहे। [[1918]] में पटेल ने अपनी पहली छाप छोड़ी, जब भारी [[वर्षा]] से फ़सल तबाह होने के बावज़ूद [[बम्बई]] सरकार द्वारा पूरा सालाना लगान वसूलने के फ़ैसले के विरुद्ध उन्होंने [[गुजरात]] के [[कैरा|कैरा ज़िले]] में किसानों और काश्तकारों के जनांदोलन की रूपरेखा बनाई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[वल्लभ भाई पटेल]] | ||
{[[दिल्ली]] की राजगद्दी पर [[अफ़ग़ान]] शासकों के शासन का निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही कालानुक्रम है? (पृ.सं. 30 | |||
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-[[सिकन्दर शाह लोदी]], [[इब्राहीम लोदी]], [[बहलोल लोदी]] | |||
-[[सिकन्दर शाह लोदी]], [[बहलोल लोदी]], [[इब्राहीम लोदी]] | |||
+[[बहलोल लोदी]], [[सिकन्दर शाह लोदी]], [[इब्राहीम लोदी]] | |||
-इनमें से कोई नहीं | |||
||'बहलोल लोदी' [[दिल्ली]] में प्रथम [[अफ़ग़ान]] राज्य का संस्थापक था। वह [[अफ़ग़ानिस्तान]] के 'गिलजाई कबीले' की महत्त्वपूर्ण शाखा 'शाहूखेल' में पैदा हुआ था। [[19 अप्रैल]], 1451 को [[बहलोल लोदी]] 'बहलोल शाह गाजी' की उपाधि से दिल्ली के सिंहासन पर बैठा था। चूँकि वह लोदी कबीले का अग्रगामी था, इसलिए उसके द्वारा स्थापित वंश को '[[लोदी वंश]]' कहा जाता है। बहलोल अपने सरदारों को 'मसनद-ए-अली' कहकर पुकारता था। उसका राजत्व सिद्धान्त समानता पर आधारित था। वह [[अफ़ग़ान]] सरदारों को अपने समकक्ष मानता था। अपने सरदारों के खड़े रहने पर वह खुद भी खड़ा रहता था। बहलोल लोदी ने 'बहलोली सिक्के' का प्रचलन करवाया, जो [[अकबर]] के समय तक [[उत्तर भारत]] में विनिमय का प्रमुख साधन बना रहा।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बहलोल लोदी]], [[सिकन्दर शाह लोदी]], [[इब्राहीम लोदी]] | |||
{वर्ष [[1947]] में [[भारत]] के पूर्ण स्वतंत्र होने के बाद किसे [[बंगाल]] का [[राज्यपाल]] नियुक्त किया गया था। | {वर्ष [[1947]] में [[भारत]] के पूर्ण स्वतंत्र होने के बाद किसे [[बंगाल]] का [[राज्यपाल]] नियुक्त किया गया था। | ||
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-[[महेन्द्र पाल|महेन्द पाल प्रथम]] | -[[महेन्द्र पाल|महेन्द पाल प्रथम]] | ||
||नरसिंह वर्मन द्वितीय का समय सांस्कृतिक उपलब्धियों का रहा है। उसके महत्त्वपूर्ण निर्माण कार्यो में [[महाबलीपुरम]] का समुद्र तटीय मंदिर, [[कैलाशनाथार मंदिर कांची|कांची का कैलाशनाथार मंदिर]] एवं 'ऐरावतेश्वर मंदिर' की गणना की जाती है। [[परमेश्वर वर्मन प्रथम]] के प्रताप और पराक्रम से [[पल्लव वंश|पल्लवों]] की शक्ति इतनी बढ़ गई थी, कि जब सातवीं [[सदी]] के अन्त में उसकी मृत्यु के बाद [[नरसिंह वर्मन द्वितीय]] [[कांची]] के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ, तो उसे किसी बड़े युद्ध में जुझने की आवश्यकता नहीं हुई। 'राजसिंह', 'आगमप्रिय' एवं 'शंकर भक्त' की सर्वप्रिय उपाधियाँ नरसिंह वर्मन द्वितीय ने धारण की थीं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नरसिंह वर्मन द्वितीय]] | ||नरसिंह वर्मन द्वितीय का समय सांस्कृतिक उपलब्धियों का रहा है। उसके महत्त्वपूर्ण निर्माण कार्यो में [[महाबलीपुरम]] का समुद्र तटीय मंदिर, [[कैलाशनाथार मंदिर कांची|कांची का कैलाशनाथार मंदिर]] एवं 'ऐरावतेश्वर मंदिर' की गणना की जाती है। [[परमेश्वर वर्मन प्रथम]] के प्रताप और पराक्रम से [[पल्लव वंश|पल्लवों]] की शक्ति इतनी बढ़ गई थी, कि जब सातवीं [[सदी]] के अन्त में उसकी मृत्यु के बाद [[नरसिंह वर्मन द्वितीय]] [[कांची]] के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुआ, तो उसे किसी बड़े युद्ध में जुझने की आवश्यकता नहीं हुई। 'राजसिंह', 'आगमप्रिय' एवं 'शंकर भक्त' की सर्वप्रिय उपाधियाँ नरसिंह वर्मन द्वितीय ने धारण की थीं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नरसिंह वर्मन द्वितीय]] | ||
{प्राचीन नगर [[तक्षशिला]] निम्नलिखित नदियों में से किनके बीच स्थित था? (पृ.सं. 30 | {प्राचीन नगर [[तक्षशिला]] निम्नलिखित नदियों में से किनके बीच स्थित था? (पृ.सं. 30 | ||
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+पकाई हुई [[मिट्टी]] | +पकाई हुई [[मिट्टी]] | ||
||[[चित्र:Mohenjo-Daro-Seal.gif|right|100px|मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर]]'मोहनजोदड़ो' के पश्चिमी भाग में स्थित दुर्ग टीले को 'स्तूप टीला' भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पर [[कुषाण]] शासकों ने एक [[स्तूप]] का निर्माण करवाया था। [[मोहनजोदड़ो]] से प्राप्त अन्य [[अवशेष|अवशेषों]] में, कुम्भकारों के 6 भट्टों के अवशेष, सूती कपड़ा, [[हाथी]] का कपाल खण्ड, गले हुए [[तांबा|तांबें]] के ढेर, सीपी की बनी हुई पटरी एवं [[कांसा|कांसे]] की नृत्यरत नारी की मूर्ति के अवशेष मिले हैं। मोहनजोदड़ो से लगभग 1398 मुहरें (मुद्राएँ) प्राप्त हुयी हैं, जो कुल लेखन सामग्री का 56.67 प्रतिशत अंश है। कूबड़ वाले बैल की आकृति युक्त मुहरे, बर्तन पकाने के छः भट्टे, एक बर्तन पर नाव का बना चित्र था। जालीदार अलंकरण युक्त [[मिट्टी]] का बर्तन, गीली मिट्टी पर कपड़े का साक्ष्य, [[शिव]] की मूर्ति, [[ध्यान]] की आकृति वाली मुद्रा उल्लेखनीय हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मोहनजोदड़ो]] | ||[[चित्र:Mohenjo-Daro-Seal.gif|right|100px|मोहनजोदड़ो से प्राप्त मुहर]]'मोहनजोदड़ो' के पश्चिमी भाग में स्थित दुर्ग टीले को 'स्तूप टीला' भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ पर [[कुषाण]] शासकों ने एक [[स्तूप]] का निर्माण करवाया था। [[मोहनजोदड़ो]] से प्राप्त अन्य [[अवशेष|अवशेषों]] में, कुम्भकारों के 6 भट्टों के अवशेष, सूती कपड़ा, [[हाथी]] का कपाल खण्ड, गले हुए [[तांबा|तांबें]] के ढेर, सीपी की बनी हुई पटरी एवं [[कांसा|कांसे]] की नृत्यरत नारी की मूर्ति के अवशेष मिले हैं। मोहनजोदड़ो से लगभग 1398 मुहरें (मुद्राएँ) प्राप्त हुयी हैं, जो कुल लेखन सामग्री का 56.67 प्रतिशत अंश है। कूबड़ वाले बैल की आकृति युक्त मुहरे, बर्तन पकाने के छः भट्टे, एक बर्तन पर नाव का बना चित्र था। जालीदार अलंकरण युक्त [[मिट्टी]] का बर्तन, गीली मिट्टी पर कपड़े का साक्ष्य, [[शिव]] की मूर्ति, [[ध्यान]] की आकृति वाली मुद्रा उल्लेखनीय हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मोहनजोदड़ो]] | ||
{[[मराठा|मराठों]] से पूर्व 'गुरिल्ला युद्ध पद्धति' का प्रयोग किसने किया था?(यूनीक इतिहास, भाग-1, पृ.सं. सी352) | |||
|type="()"} | |||
-[[महावत ख़ाँ]] | |||
+[[मलिक अम्बर]] | |||
-[[राणा प्रताप]] | |||
-[[मलिक काफ़ूर]] | |||
||'मलिक अम्बर' एक हब्शी ग़ुलाम था। वह तरक्की करके वज़ीर के महत्त्वपूर्ण पद तक पहुँचा था। उसने पहली बार 1601 ई. में उस समय नाम क़माया, जब एक भीषण युद्ध में [[मुग़ल]] सेना को हरा दिया। [[मलिक अम्बर]] एक 'अबीसीनियायी' था और उसका जन्म 'इथियोपिया' में हुआ था। अम्बर 'गुरिल्ला युद्ध पद्धति' में निपुण था, उसने [[मराठा|मराठों]] को भी इस युद्ध पद्धति में निपुणता प्रदान कर दी थी। 'गुरिल्ला युद्ध प्रणाली' [[दक्कन सल्तनत|दक्कन]] के मराठों के लिए परम्परागत थी और [[मलिक अम्बर]] के सहयोग से वे इसमें और भी निपुण हो गए, लेकिन मुग़ल इससे अपरिचित थे। मराठों की सहायता से मलिक अम्बर ने मुग़लों को [[बरार]], [[अहमदनगर]], और [[बालाघाट]] में अपनी स्थिति सुदृढ़ करना कठिन कर दिया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मलिक अम्बर]] | |||
{[[हुमायूँ]] के मक़बरे एवं [[ख़ानख़ाना का मक़बरा|ख़ानख़ाना]] के मक़बरे की वास्तुकला से प्रेरित होने वाला '[[ताजमहल]]' का वास्तुकार कौन था?(यूनीक इतिहास, भाग-1, पृ.सं. सी350) | {[[हुमायूँ]] के मक़बरे एवं [[ख़ानख़ाना का मक़बरा|ख़ानख़ाना]] के मक़बरे की वास्तुकला से प्रेरित होने वाला '[[ताजमहल]]' का वास्तुकार कौन था?(यूनीक इतिहास, भाग-1, पृ.सं. सी350) | ||
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||'हेमू' या 'हेमचन्द्र' का [[पिता]] राय पूरनमल [[राजस्थान]] के [[अलवर ज़िला|अलवर ज़िले]] से आकर [[रेवाड़ी ज़िला|रेवाड़ी]] के कुतुबपुर में बस गया था। इस समय [[हेमू]] अल्प आयु ही था। युवा होने पर वह भी अपने [[पिता]] के व्यवसाय में जुट गया। हेमू [[शेरशाह सूरी]] की सेना को शोरा की आपूर्ति किया करता था। शेरशाह उसके व्यक्तित्व से काफ़ी प्रभावित था। उसने हेमू को अपनी सेना में उच्च पद दे दिया। सेना में आने के बाद हेमू ने अपने रणकौशल से 22 युद्ध जीते और '[[दिल्ली सल्तनत]]' का सम्राट बना। [[मुग़ल|मुग़लों]] से हुए युद्ध में [[हेमू]] को [[बैरम ख़ाँ]] की रणनीति पर छल से मारा गया। हेमचंद्र शेरशाह सूरी का योग्य [[दीवान]], कोषाध्यक्ष और सेनानायक था। शेरशाह की सफलता में उसकी प्रबंध कुशलता और वीरता का हाथ सबसे बड़ा हाथ रहा था। आर्थिक सूझ−बूझ में उसके समान कोई दूसरा व्यक्ति नहीं था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हेमू]], [[शेरशाह सूरी]] | ||'हेमू' या 'हेमचन्द्र' का [[पिता]] राय पूरनमल [[राजस्थान]] के [[अलवर ज़िला|अलवर ज़िले]] से आकर [[रेवाड़ी ज़िला|रेवाड़ी]] के कुतुबपुर में बस गया था। इस समय [[हेमू]] अल्प आयु ही था। युवा होने पर वह भी अपने [[पिता]] के व्यवसाय में जुट गया। हेमू [[शेरशाह सूरी]] की सेना को शोरा की आपूर्ति किया करता था। शेरशाह उसके व्यक्तित्व से काफ़ी प्रभावित था। उसने हेमू को अपनी सेना में उच्च पद दे दिया। सेना में आने के बाद हेमू ने अपने रणकौशल से 22 युद्ध जीते और '[[दिल्ली सल्तनत]]' का सम्राट बना। [[मुग़ल|मुग़लों]] से हुए युद्ध में [[हेमू]] को [[बैरम ख़ाँ]] की रणनीति पर छल से मारा गया। हेमचंद्र शेरशाह सूरी का योग्य [[दीवान]], कोषाध्यक्ष और सेनानायक था। शेरशाह की सफलता में उसकी प्रबंध कुशलता और वीरता का हाथ सबसे बड़ा हाथ रहा था। आर्थिक सूझ−बूझ में उसके समान कोई दूसरा व्यक्ति नहीं था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[हेमू]], [[शेरशाह सूरी]] | ||
{[[ | {[[1 अगस्त]], [[1920]] को कौन-सा आन्दोलन [[महात्मा गाँधी]] द्वारा प्रारम्भ किया गया? | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[ | -[[सविनय अवज्ञा आन्दोलन]] | ||
-[[सत्याग्रह आन्दोलन]] | |||
-[[ | -[[भारत छोड़ो आन्दोलन]] | ||
+[[असहयोग आन्दोलन]] | |||
||' | ||[[चित्र:Gandhistatue.jpg|right|100px|गाँधीजी की प्रतिमा]]'असहयोग आन्दोलन' स्वराज की माँग को लेकर चलाया गया था। इस आन्दोलन को शुरू करने से पहले [[गाँधीजी]] ने "कैसर-ए-हिन्द" पुरस्कार को लौटा दिया था। अन्य सैकड़ों लोगों ने भी गाँधीजी के पदचिह्नों पर चलते हुए अपनी पदवियों एवं उपाधियों को त्याग दिया। 'रायबहादुर' की उपाधि से सम्मानित जमनालाल बजाज ने भी यह उपाधि वापस कर दी। '[[असहयोग आन्दोलन]]' महात्मा गाँधी ने [[1 अगस्त]], [[1920]] को आरम्भ किया। [[पश्चिमी भारत]], [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] तथा [[उत्तरी भारत]] में 'असहयोग आन्दोलन' को अभूतपूर्व सफलता मिली। विद्यार्थियों के अध्ययन के लिए अनेक शिक्षण संस्थाएँ, जैसे- '[[काशी विद्यापीठ]]', 'बिहार विद्यापीठ', 'गुजरात विद्यापीठ', 'बनारस विद्यापीठ', 'तिलक महाराष्ट्र विद्यापीठ' एवं '[[अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय]]' आदि स्थापित की गईं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[असहयोग आन्दोलन]], [[महात्मा गाँधी]] | ||
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05:32, 17 जून 2013 का अवतरण
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