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-[[कौशाम्बी]] | -[[कौशाम्बी]] | ||
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||[[वाराणसी]], बनारस या [[काशी]] भी कहलाता है। वाराणसी दक्षिण-पूर्वी [[उत्तर प्रदेश]] राज्य, उत्तरी-मध्य [[भारत]] में [[गंगा नदी]] के बाएँ तट पर स्थित है और [[हिन्दू|हिन्दुओं]] के [[सप्त पुरियां|सात पवित्र नगरों]] में से एक है। इसे मन्दिरों एवं घाटों का नगर भी कहा जाता है। वाराणसी का पुराना नाम काशी है। वाराणसी विश्व का प्राचीनतम बसा हुआ शहर है। यह गंगा नदी के किनारे बसा है और हज़ारों साल से उत्तर भारत का धार्मिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र रहा है। दो नदियों [[वरुणा नदी|वरुणा]] और [[असी नदी|असि]] के मध्य बसा होने के कारण इसका नाम वाराणसी पड़ा। बनारस या वाराणसी का नाम [[पुराण|पुराणों]], [[रामायण]], [[महाभारत]] जैसे अनेकानेक ग्रन्थों में मिलता है।{{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[वाराणसी]] | |||
{[[गुप्त काल]] को [[प्राचीन भारत]] का क्लासिकल युग क्यों कहा जाता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-230,प्रश्न-947 | {[[गुप्त काल]] को [[प्राचीन भारत]] का क्लासिकल युग क्यों कहा जाता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-230,प्रश्न-947 | ||
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-कुराल अथवा तिरुकुराल | -कुराल अथवा तिरुकुराल | ||
-पत्तप्पाट्टु | -पत्तप्पाट्टु | ||
||[[मणिमेखलै]] महाकाव्य की रचना [[मदुरा]] के एक [[बौद्ध धर्म]] को मानने वाले व्यापारी 'सीतलै सत्तनार' ने की थी। इस महाकाव्य की रचना '[[शिलप्पादिकारम]]' के बाद की गयी। ऐसी मान्यता है कि, जहाँ पर 'शिलप्पादिकारम' की कहानी ख़त्म होती है, वहीं से 'मणिमेखलै' की कहानी प्रारम्भ होती है।{{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[मणिमेखलै]] | |||
{तमिल काव्य में आगम वर्ग की कविताएँ हैं- (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-918 | {तमिल काव्य में आगम वर्ग की कविताएँ हैं- (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-918 | ||
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-[[मदुरै]] के [[पाण्ड्य राजवंश|पाण्ड्यों]] से | -[[मदुरै]] के [[पाण्ड्य राजवंश|पाण्ड्यों]] से | ||
-[[उड़ीसा]] के गंगों से | -[[उड़ीसा]] के गंगों से | ||
||[[चालुक्य वंश|चालुक्यों]]''' की उत्पत्ति का विषय अत्यंत ही विवादास्पद है। [[वराहमिहिर]] की 'बृहत्संहिता' में इन्हें 'शूलिक' जाति का माना गया है, जबकि [[पृथ्वीराजरासो]] में इनकी उत्पति [[आबू पर्वत]] पर किये गये यज्ञ के अग्निकुण्ड से बतायी गयी है। 'विक्रमांकदेवचरित' में इस वंश की उत्पत्ति भगवान ब्रह्म के चुलुक से बताई गई है। इतिहासविद् 'विन्सेण्ट ए. स्मिथ' इन्हें विदेशी मानते हैं। 'एफ. फ्लीट' तथा 'के.ए. नीलकण्ठ शास्त्री' ने इस वंश का नाम 'चलक्य' बताया है। 'आर.जी. भण्डारकरे' ने इस वंश का प्रारम्भिक नाम 'चालुक्य' का उल्लेख किया है। [[ह्वेनसांग]] ने चालुक्य नरेश [[पुलकेशी द्वितीय]] को क्षत्रिय कहा है। इस प्रकार चालुक्य नरेशों की वंश एवं उत्पत्ति का कोई अभिलेखीय साक्ष्य नहीं मिलता है।{{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[चालुक्य वंश]] | |||
{जिस समय [[महमूद गज़नवी]] ने आक्रमण किया, उस समय [[हिन्दू शाही वंश]] की राजधानी थी- (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-247,प्रश्न-1172 | {जिस समय [[महमूद गज़नवी]] ने आक्रमण किया, उस समय [[हिन्दू शाही वंश]] की राजधानी थी- (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-247,प्रश्न-1172 | ||
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+[[ | +[[उद्भांडपुर]] | ||
-[[पेशावर]] | -[[पेशावर]] | ||
-[[काबुल]] | -[[काबुल]] | ||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
||[[उद्भांडपुर]] वर्तमान ओहिंद ([[पाकिस्तान]]) में है। प्राचीन समय में उत्तरी-पश्चिमी भाग में '[[हिन्दू शाही वंश]]' [[भारत]] का महत्त्वपूर्ण हिन्दू राज्य था। इसकी राजधानी उद्भांडपुर ही थी। यह राज्य [[मुस्लिम]] आक्रमण का प्रथम शिकार हुआ था। उद्भांडपुर [[सिंधु नदी]] के तट पर स्थित [[अटक]] से 16 मील उत्तर की ओर स्थित है। जब [[अलक्षेन्द्र]] ने भारत पर आक्रमण किया, तब उस समय 327 ई. पू. में [[तक्षशिला]] के नरेश [[आम्भि]] ने यवनराज के पास संधि की वार्ता करने के लिए जो दूत भेजा था, वह इसी स्थान पर अलक्षेन्द्र से मिला था।{{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[उद्भांडपुर]] | |||
{जातक | {[[जातक कथा|जातक कथाएँ]] किस धर्म से सम्बंधित हैं? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-202,प्रश्न-489 | ||
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+ | +[[बौद्ध धर्म]] | ||
- | -[[जैन धर्म]] | ||
- | -[[हिंदू धर्म]] | ||
- | -[[पारसी धर्म]] | ||
||[[जातक कथा|जातक कथाएँ]] [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] के पूर्वजन्मों की बेहद लोकप्रिय [[कहानी|कहानियाँ]] हैं, जिन्हें [[बौद्ध धर्म]] के सभी मतों में संरक्षित किया गया है। कुछ जातक कहानियाँ [[पालि भाषा|पालि]] बौद्ध लेखों की विभिन्न शाखाओं में हैं। इनमें वे 35 कहानियाँ भी हैं, जिनका संकलन उपदेश देने के लिए किया गया था। इनकी रचना का समय तीसरी [[शताब्दी]] ई. पूर्व से पहले का माना जाता है।{{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[जातक कथा]] | |||
{[[मौर्य काल]] में दुर्भिक्ष काल में राहत कार्य के लिए कोष्ठागारों के अस्तित्व का प्रमाण निम्नांकित किससे ज्ञात हुआ है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-212,प्रश्न-657 | {[[मौर्य काल]] में दुर्भिक्ष काल में राहत कार्य के लिए कोष्ठागारों के अस्तित्व का प्रमाण निम्नांकित किससे ज्ञात हुआ है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-212,प्रश्न-657 | ||
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-सासाराम का लघु शिलालेख | -सासाराम का लघु शिलालेख | ||
+सोहगौरा पट्ट अभिलेख | +सोहगौरा पट्ट अभिलेख | ||
||[[मौर्य वंश|मौर्य राजवंश]] (322-185 ईसा पूर्व) [[प्राचीन भारत]] का एक राजवंश था। ईसा पूर्व 326 में [[सिकन्दर]] की सेनाएँ [[पंजाब]] के विभिन्न राज्यों में विध्वंसक युद्धों में व्यस्त थीं। [[मध्य प्रदेश]] और [[बिहार]] में [[नंद वंश]] का राजा [[धनानंद|धननंद]] शासन कर रहा था। [[सिकन्दर]] के आक्रमण से देश के लिए संकट पैदा हो गया था। धननंद का सौभाग्य था कि वह इस आक्रमण से बच गया। यह कहना कठिन है कि देश की रक्षा का मौक़ा पड़ने पर नंद सम्राट यूनानियों को पीछे हटाने में समर्थ होता या नहीं।{{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[मौर्य काल]] | |||
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11:52, 16 नवम्बर 2017 का अवतरण
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