"प्रयोग:कविता सा.-2": अवतरणों में अंतर
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{पौराणिक रूप से प्रथम [[चित्रकार]] किसको माना जाता हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-196,प्रश्न-84 | |||
|type="()"} | |||
+[[ब्रह्मा]] | |||
-[[विष्णु]] | |||
-[[महेश]] | |||
-[[नारद]] | |||
||पौराणिक ग्रंथों में [[ब्रह्मा]] को सृष्टि के निर्माणकर्ता के रूप में माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि [[ब्रह्मा]] के [[मानव शरीर|शरीर]] से चारों वर्णों की उत्पत्ति हुई है। अत: पौराणिक रूप में प्रथम चित्रकार 'ब्रह्मा' को माना जा सकता है। [[विष्णु]] को 'सृष्टि पालक' तथा [[महेश]] को 'सृष्टि का संहारक' कहते हैं। | |||
{मनुष्य निर्मित सर्वाधिक प्राचीन स्थापत्य कौन है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-234,प्रश्न-359 | |||
|type="()"} | |||
-द रेनडियर | |||
+द वीनस ऑफ़ विलेन्डार्फ | |||
-द हेड ऑफ़ वार्का | |||
-द डांसिंग गर्ल | |||
||'द वीनस ऑफ़ विलेन्डार्फ' एक स्त्री की मूर्ति है, जिसका निर्माण 2800 ई.पू. से 25000 ई.पू. के मध्य किया गया जबकि द हेड ऑफ़ वार्का (3100 ई.पू.) तथा द डांसिंग गर्ल (2500 ई.पू.) इसके बाद की स्थापत्य हैं। | |||
{प्रागैतिहासिक चित्र सामान्यतया किसके द्वारा निर्मित किए गए हैं?(कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-6,प्रश्न-11 | |||
|type="()"} | |||
-तैल-पेस्टल्स | |||
-जल रंग | |||
-स्याही | |||
+[[गेरू]] व चारकोल | |||
||आदिमानव चित्रांकन के लिए कई तरह के [[रंग|रंगों]] का उपयोग करता था। अधिकतर रंग [[गेरू]] से बनाए जाते थे जिनकी अलग-अलग रंगते होती थीं। [[खड़िया|खड़िया मिट्टी]] और कई तरह की रंगीन मिट्टी का उपयोग वे चित्र बनाने के लिए करते थे। आग जलाना सीखने के बाद वे हड्डी को जलाकर [[काला रंग]] भी बना लेते थे। वे लकड़ी के [[कोयला|कोयले]] का प्रयोग भी कभी-कभी करते थे। बाद में स्थायित्व लाने के लिए वे जानवरों की चर्बी में रंग मिलाकर उसका प्रयोग करने लगे थे। | |||
{'वृषभों वाला कक्ष' किस गुफ़ा में स्थित है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-18,प्रश्न-1 | |||
|type="()"} | |||
-तीन भाइयों की गुफ़ा | |||
-नियो की गुफ़ाएं | |||
+लासकाक्स की गुफ़ाएं | |||
-अल्टामीरा की गुफ़ाएं | |||
||[[फ़्राँस]] के लासकाक्स की गुफ़ाओं की खोज ब्रुइल ने वर्ष [[1940]] में की थी। दक्षिणी फ़्राँस में स्थित यह गुफ़ा फैंको-कैंटेब्रियन क्षेत्र में उपलब्ध गुफ़ा चित्रों में सर्वश्रेष्ठ है। यहाँ के चित्र आश्चर्यजनक रूप से सुरक्षित भी हैं और इनमें बड़ी चमक भी है। यहाँ के 'विशाल कक्ष' का एक नाम 'जंगली वृषमों वाला कक्ष' भी है। इसके चित्र बड़े मार्मिक हैं, जिनमें तीन पूर्ब तथा एक अपूर्ण आकृति अंकित है। इसी वर्ग में वह आकृति है जिसे एक सींग वाला अश्व कहा गया है। यहाँ हरिण तथा दो महिष (Bison-बाइसन) की आकृतियां भी प्राप्त होती हैं। लगभग अठारह फ़ीट लंबाई में अंकित ये चित्र हिमयुगीन कला का एक विशिष्ट पक्ष हैं। | |||
{ | {[[गोथिक कला]] की मूर्तिकला का उच्चतम शास्त्रीय रूप कहाँ पाया जाता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-39,प्रश्न-16 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -नाट्रेडम गिर्जा | ||
+ | +रीम्स गिर्जा | ||
- | -एमिएंस गिर्जाज | ||
- | -बूर्जेस गिर्जा | ||
|| | ||उच्च गोथिक काल में 'रीम्स गिर्जा' अपने संतुलित अनुपात से आंतरिक साह-सज्जा के शास्त्रीय युग का प्रतिनिधित्व करता हैं। | ||
{ | {इनमें से कौन असंबद्ध है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-48,प्रश्न-11 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-आगरा शैली | |||
- | -लखनऊ शैली | ||
- | -दिल्ली शैली | ||
+कोटा शैली | |||
|| | ||प्रस्तुत विकल्पों में से 'कोटा शैली' [[चित्रकला]] की एक शैली है, जिसका संबंध [[राजस्थानी चित्रकला]] से है जबकि लखनऊ शैली, दिल्ली शैली तथा आगरा शैली का संबंध आधुनिक चित्रकला शैली से है। | ||
{ | {[[मुग़ल चित्रकला]] किन दो शैलियों के मिश्रण से बनी है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-57,प्रश्न-11 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -[[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी]]-दक्खिनी | ||
- | -कश्मीरी-पंजाबी | ||
- | -जैन-पाल | ||
+ | +भारतीय-पर्शियन | ||
|| | ||[[मुग़ल चित्रकला|मुग़ल शैली]] भारतीय ([[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी शैली]]) एवं पर्शियान (ईरानी) शैली के सम्मिश्रण से उत्पन्न हुई। चूंकि [[मुग़ल|मुग़लों]] का प्रभाव सबसे पहले [[उत्तरी भारत]] के क्षेत्रों पर हुआ जहाँ पर पहले से ही [[राजस्थानी चित्रकला]] प्रचलन में थी और मुग़लों ने ईरानी शैली के चित्रकारों को पहले से प्रश्रय दिया था। ऐसे में इन दोनों शैलियों के मिश्रण से इंडो-पर्शियन शैली आगे चलकर [[मुग़ल चित्रकला|मुग़ल शैली]] के रूप में विकसित हुई। | ||
{सबसे अधिक [[कृष्णलीला]] के चित्र किस शैली में बने? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-72,प्रश्न-12 | |||
|type="()"} | |||
-[[मुग़ल चित्रकला|मुग़ल शैली]] | |||
+[[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी शैली]] | |||
-[[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी शैली]] | |||
-[[अपभ्रंश चित्रकला|अपभ्रंश शैली]] | |||
||सबसे अधिक [[कृष्णलीला]] के चित्र [[पहाड़ी चित्रकला|पहाड़ी शैली]] में बने हैं। कमोवेश यह विशेषता पहाड़ी चित्र शैली की लगभग सभी शैलियों में पाई गई। कृष्णलीला चित्रकारी [[राजस्थानी चित्रकला|राजस्थानी चित्र शैली]] में भी प्राप्त होती है। | |||
{[[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] के पुनर्जागरण का श्रेय किसे जाता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-78,प्रश्न-1 | |||
|type="()"} | |||
-क्षेत्रीय [[मुग़ल चित्रकला|मुग़ल शैली]] | |||
-[[कंपनी शैली]] | |||
-यूरोपियन शैली | |||
+बंगाल शैली | |||
||[[चित्रकला|भारतीय चित्रकला]] के पुर्जागरण का श्रेय बंगाल शैली को दिया जाता है। इसी शैली को 'टैगोर शैली', वॉश शैली', 'पुनरुत्थान या पुनर्जागरण शैली' भी कहा जाता है, जो पूरे विश्व में प्रसिद्ध हुई और [[भारतीय चित्रकला]] ने पाश्चात्य के प्रभाव से मुक्ति पाई। यहीं से भारतीय आधुनिक चित्रकला का इतिहास आरंभ होता है। बंगाल पुनरुत्थान युग के प्रवर्तक अबनीन्द्रनाथ टैगोर थे। | |||
{[[ईसा मसीह]] के जीवन पर आधारित चित्र किस कलाकार ने बनाए? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-88,प्रश्न-81 | |||
|type="()"} | |||
-[[एम.एफ. हुसैन]] | |||
-बेंद्रे | |||
-[[जामिनी राय]] | |||
+[[गगनेन्द्रनाथ टैगोर]] | |||
||[[ईसा मसीह]] के जीवन (क्राइस्ट इन द चर्च) पर आधारित चित्र [[गगनेन्द्रनाथ टैगोर]] ने बनाया था। गगनेन्द्रनाथ के प्रमुख चित्र हैं- [[रबींद्रनाथ टैगोर]] की रचना 'जीवन स्मृति' पर चित्र शृंखला तथा चैतन्य चरित माला का चित्रण, द प्लेस ऑफ़ स्नो, द सैंड ऑफ़ हिमालय, क्लस्टर ऑफ़ पुरी टेंपल, टेंपल क्यूबिस्टिक, मीटिंग इन द स्टेयर केस, द कॉल टू प्रेयर आदि। | |||
</quiz> | </quiz> | ||
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12:01, 28 जनवरी 2018 का अवतरण
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