"अहिच्छत्र" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
'''अहिच्छत्र''' अथवा '''अहिक्षेत्र''' [[उत्तर प्रदेश]] के [[बरेली ज़िला|बरेली ज़िले]] की [[आंवला उत्तर प्रदेश|आँवला तहसील]] में स्थित है। [[दिल्ली]] से [[अलीगढ़]] 126 कि.मी. तथा अलीगढ़ से [[बरेली]] रेलमार्ग पर<ref>चन्दौसी से आगे</ref> आँवला स्टेशन 135 कि.मी. है। आँवला स्टेशन से अहिच्छत्र क्षेत्र सड़क द्वारा 18 कि.मी. है। आँवला से अहिच्छत्र तक पक्की सड़क है।
 
'''अहिच्छत्र''' अथवा '''अहिक्षेत्र''' [[उत्तर प्रदेश]] के [[बरेली ज़िला|बरेली ज़िले]] की [[आंवला उत्तर प्रदेश|आँवला तहसील]] में स्थित है। [[दिल्ली]] से [[अलीगढ़]] 126 कि.मी. तथा अलीगढ़ से [[बरेली]] रेलमार्ग पर<ref>चन्दौसी से आगे</ref> आँवला स्टेशन 135 कि.मी. है। आँवला स्टेशन से अहिच्छत्र क्षेत्र सड़क द्वारा 18 कि.मी. है। आँवला से अहिच्छत्र तक पक्की सड़क है।
 
==प्राचीनता==
 
==प्राचीनता==
आँवला नामक स्थान के निकट इस '''महाभारतकालीन नगर''' के विस्तीर्ण खण्डहर अवस्थित हैं। यह नगर [[महाभारत|महाभारत काल]] में तथा उसके पश्चात् पूर्व बौद्ध काल में भी काफ़ी प्रसिद्ध था। यहाँ उत्तरी [[पंचाल|पांचाल]] की राजधानी थी।  
+
आँवला नामक स्थान के निकट इस '''महाभारतकालीन नगर''' के विस्तीर्ण [[खंडहर]] अवस्थित हैं। यह नगर [[महाभारत|महाभारत काल]] में तथा उसके पश्चात् पूर्व बौद्ध काल में भी काफ़ी प्रसिद्ध था। यहाँ उत्तरी [[पंचाल|पांचाल]] की राजधानी थी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=57|url=}}</ref>
<blockquote><poem>'सोऽध्यावसद्दीनमना: काम्पिल्यं च पुरोत्तमम्।  
+
<blockquote><poem>'सोऽध्यावसद्दीनमना: काम्पिल्यं च पुरोत्तमम्।
 
दक्षिणांश्चापि पंचालान् यावच्चर्मण्वती नदी।  
 
दक्षिणांश्चापि पंचालान् यावच्चर्मण्वती नदी।  
 
द्रोणेन चैव द्रुपदं परिभूयाथ पातित:।  
 
द्रोणेन चैव द्रुपदं परिभूयाथ पातित:।  
 
पुत्रजन्म परीप्सन् वै पृथिवीमन्वसंचरत्,  
 
पुत्रजन्म परीप्सन् वै पृथिवीमन्वसंचरत्,  
अहिच्छत्रं च विषयं द्रोण: समभिपद्यत'।<ref>महा. आदि., 137, 73-74-76</ref></poem></blockquote>
+
अहिच्छत्रं च विषयं द्रोण: समभिपद्यत'।<ref>[[महाभारत आदिपर्व]], 137, 73-74-76</ref></poem></blockquote>
  
उपरोक्त उद्धरण से सूचित होता है कि [[द्रोणाचार्य]] ने पांचाल-नरेश [[द्रुपद]] को हरा कर [[पांचाल|दक्षिण पांचाल]] का राज्य उसके पास छोड़ दिया था और अहिच्छत्र नामक राज्य अपने अधिकार में कर लिया था। अहिच्छत्र [[कुरुदेश]] के पार्श्व में ही स्थित था-  
+
उपरोक्त उद्धरण से सूचित होता है कि [[द्रोणाचार्य]] ने पांचाल नरेश [[द्रुपद]] को हरा कर [[पांचाल|दक्षिण पांचाल]] का राज्य उसके पास छोड़ दिया था और अहिच्छत्र नामक राज्य अपने अधिकार में कर लिया था। अहिच्छत्र [[कुरुदेश]] के पार्श्व में ही स्थित था-
 
<blockquote>'अहिच्छत्रं कालकूटं गंगाकूलं च भारत'।</blockquote>
 
<blockquote>'अहिच्छत्रं कालकूटं गंगाकूलं च भारत'।</blockquote>
 
==ऐतिहासिक तथ्य==
 
==ऐतिहासिक तथ्य==
 
*[[अशोक|सम्राट अशोक]] ने यहाँ अहिच्छत्र नामक विशाल [[स्तूप]] बनवाया था। जैनसूत्र 'प्रज्ञापणा' में अहिच्छत्र का कई अन्य [[जनपद|जनपदों]] के साथ उल्लेख है।
 
*[[अशोक|सम्राट अशोक]] ने यहाँ अहिच्छत्र नामक विशाल [[स्तूप]] बनवाया था। जैनसूत्र 'प्रज्ञापणा' में अहिच्छत्र का कई अन्य [[जनपद|जनपदों]] के साथ उल्लेख है।
*चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] जो यहाँ 640 ई. के लगभग आया था, नगर के नाम के बारे में लिखता है कि- "[[क़िला|क़िले]] के बाहर नागह्रद नामक एक ताल है, जिसके निकट नागराज ने [[बौद्ध धर्म]] स्वीकार करने के पश्चात् इस सरोवर पर एक छत्र बनवाया था।"
+
*चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] जो यहाँ 640 ई. के लगभग आया था, नगर के नाम के बारे में लिखता है कि- "[[क़िला|क़िले]] के बाहर नागह्नद नामक एक ताल है, जिसके निकट नागराज ने [[बौद्ध धर्म]] स्वीकार करने के पश्चात् इस सरोवर पर एक छत्र बनवाया था।"
*अहिच्छत्र के खण्डहरों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण ढूँह एक [[स्तूप]] है, जिसकी आकृति [[चक्की]] के समान होने से इसे स्थानीय लोग ''''पिसनहारी का छत्र'''' कहते हैं। यह स्तूप उसी स्थान पर बना है, जहाँ किंवदंती के अनुसार [[बुद्ध]] ने स्थानीय नाग राजाओं को [[बौद्ध धर्म]] की [[दीक्षा]] दी थी। यहाँ से मिली हुई मूर्तियाँ तथा अन्य वस्तुएं [[लखनऊ]] के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।
+
*अहिच्छत्र के खंडहरों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण ढूँह एक [[स्तूप]] है, जिसकी आकृति [[चक्की]] के समान होने से इसे स्थानीय लोग ''''पिसनहारी का छत्र'''' कहते हैं। यह स्तूप उसी स्थान पर बना है, जहाँ किंवदंती के अनुसार [[बुद्ध]] ने स्थानीय नाग राजाओं को [[बौद्ध धर्म]] की [[दीक्षा]] दी थी। यहाँ से मिली हुई मूर्तियाँ तथा अन्य वस्तुएं [[लखनऊ]] के [[लखनऊ संग्रहालय|संग्रहालय]] में सुरक्षित हैं।
*वेबर ने [[शतपथ ब्राह्मण]]<ref>शतपथ ब्राह्मण (13, 5, 4, 7</ref> में उल्लिखित '''परिवका या परिचका नगरी''' का अभिज्ञान [[महाभारत]] की [[एकचक्रा]] सम्भवत: अहिच्छत्र के साथ किया है।<ref>वैदिक इंडेक्स 1,494</ref> [[महाभारत]] में इसे 'अहिक्षेत्र' तथा 'छत्रवती' नामों से भी अभिहित किया गया है।
+
*वेबर ने '[[शतपथ ब्राह्मण]]'<ref>शतपथ ब्राह्मण (13, 5, 4, 7</ref> में उल्लिखित '''परिवका या परिचका नगरी''' का अभिज्ञान [[महाभारत]] की [[एकचक्रा]] सम्भवत: अहिच्छत्र के साथ किया है।<ref>वैदिक इंडेक्स 1,494</ref> [[महाभारत]] में इसे 'अहिक्षेत्र' तथा 'छत्रवती' नामों से भी अभिहित किया गया है।
*जैन-ग्रन्थ 'विविधतीर्थकल्प' में इसका एक अन्य नाम 'संख्यावती' भी मिलता है।<ref>संख्यावती</ref> एक अन्य प्राचीन जैन ग्रन्थ 'तीर्थमालाचैत्यवंदन' में अहिक्षेत्र का 'शिवपुर' नाम भी बताया गया है-
+
*जैन ग्रन्थ 'विविधतीर्थकल्प' में इसका एक अन्य नाम 'संख्यावती' भी मिलता है।<ref>संख्यावती</ref> एक अन्य प्राचीन जैन ग्रन्थ 'तीर्थमालाचैत्यवंदन' में अहिक्षेत्र का 'शिवपुर' नाम भी बताया गया है-
  
 
<blockquote>'वंदे श्री करणावती शिवपुरे नागद्रहे नाणके'।</blockquote>
 
<blockquote>'वंदे श्री करणावती शिवपुरे नागद्रहे नाणके'।</blockquote>
 
*जैन-ग्रन्थों में इसका एक अन्य नाम 'शिवनयरी' भी मिलता है।<ref>एंशेंट जैन हिम्स पृ. 56</ref>  
 
*जैन-ग्रन्थों में इसका एक अन्य नाम 'शिवनयरी' भी मिलता है।<ref>एंशेंट जैन हिम्स पृ. 56</ref>  
*[[टॉलमी]] ने अहिच्छत्र का ''''अदिसद्रा'''' नाम से उल्लेख किया है।<ref>ए क्लासिकल डिक्शनरी ऑफ़ हिन्दू माइथोलोजी एण्ड रिलीजन, ज्योग्रेफी, हिस्ट्री एण्ड लिटरेचर - सप्तम संस्करण</ref>
+
*[[टॉलमी]] ने अहिच्छत्र का ''''अदिसद्रा'''' नाम से उल्लेख किया है।<ref>ए क्लासिकल डिक्शनरी ऑफ़ हिन्दू माइथोलोजी एण्ड रिलीजन, ज्योग्रेफी, हिस्ट्री एण्ड लिटरेचर-सप्तम संस्करण</ref>
  
 +
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक= प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
*ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 57| विजयेन्द्र कुमार माथुर |  वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
 
*ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 57| विजयेन्द्र कुमार माथुर |  वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
 
 
 
<references/>
 
<references/>
 
==संवंधित लेख==
 
==संवंधित लेख==
 
{{उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान}}
 
{{उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान}}
[[Category:उत्तर प्रदेश]][[Category:उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:महाभारत]][[Category:ऐतिहासिक स्थल]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:इतिहास कोश]] [[Category:ऐतिहासिक स्थानावली]]
+
[[Category:उत्तर प्रदेश]][[Category:उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक स्थान]][[Category:महाभारत]][[Category:ऐतिहासिक स्थल]][[Category:ऐतिहासिक स्थान कोश]][[Category:इतिहास कोश]][[Category:ऐतिहासिक स्थानावली]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__

13:10, 16 मई 2018 का अवतरण

अहिच्छत्र अथवा अहिक्षेत्र उत्तर प्रदेश के बरेली ज़िले की आँवला तहसील में स्थित है। दिल्ली से अलीगढ़ 126 कि.मी. तथा अलीगढ़ से बरेली रेलमार्ग पर[1] आँवला स्टेशन 135 कि.मी. है। आँवला स्टेशन से अहिच्छत्र क्षेत्र सड़क द्वारा 18 कि.मी. है। आँवला से अहिच्छत्र तक पक्की सड़क है।

प्राचीनता

आँवला नामक स्थान के निकट इस महाभारतकालीन नगर के विस्तीर्ण खंडहर अवस्थित हैं। यह नगर महाभारत काल में तथा उसके पश्चात् पूर्व बौद्ध काल में भी काफ़ी प्रसिद्ध था। यहाँ उत्तरी पांचाल की राजधानी थी।[2]

'सोऽध्यावसद्दीनमना: काम्पिल्यं च पुरोत्तमम्।
दक्षिणांश्चापि पंचालान् यावच्चर्मण्वती नदी।
द्रोणेन चैव द्रुपदं परिभूयाथ पातित:।
पुत्रजन्म परीप्सन् वै पृथिवीमन्वसंचरत्,
अहिच्छत्रं च विषयं द्रोण: समभिपद्यत'।[3]

उपरोक्त उद्धरण से सूचित होता है कि द्रोणाचार्य ने पांचाल नरेश द्रुपद को हरा कर दक्षिण पांचाल का राज्य उसके पास छोड़ दिया था और अहिच्छत्र नामक राज्य अपने अधिकार में कर लिया था। अहिच्छत्र कुरुदेश के पार्श्व में ही स्थित था-

'अहिच्छत्रं कालकूटं गंगाकूलं च भारत'।

ऐतिहासिक तथ्य

  • सम्राट अशोक ने यहाँ अहिच्छत्र नामक विशाल स्तूप बनवाया था। जैनसूत्र 'प्रज्ञापणा' में अहिच्छत्र का कई अन्य जनपदों के साथ उल्लेख है।
  • चीनी यात्री युवानच्वांग जो यहाँ 640 ई. के लगभग आया था, नगर के नाम के बारे में लिखता है कि- "क़िले के बाहर नागह्नद नामक एक ताल है, जिसके निकट नागराज ने बौद्ध धर्म स्वीकार करने के पश्चात् इस सरोवर पर एक छत्र बनवाया था।"
  • अहिच्छत्र के खंडहरों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण ढूँह एक स्तूप है, जिसकी आकृति चक्की के समान होने से इसे स्थानीय लोग 'पिसनहारी का छत्र' कहते हैं। यह स्तूप उसी स्थान पर बना है, जहाँ किंवदंती के अनुसार बुद्ध ने स्थानीय नाग राजाओं को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। यहाँ से मिली हुई मूर्तियाँ तथा अन्य वस्तुएं लखनऊ के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।
  • वेबर ने 'शतपथ ब्राह्मण'[4] में उल्लिखित परिवका या परिचका नगरी का अभिज्ञान महाभारत की एकचक्रा सम्भवत: अहिच्छत्र के साथ किया है।[5] महाभारत में इसे 'अहिक्षेत्र' तथा 'छत्रवती' नामों से भी अभिहित किया गया है।
  • जैन ग्रन्थ 'विविधतीर्थकल्प' में इसका एक अन्य नाम 'संख्यावती' भी मिलता है।[6] एक अन्य प्राचीन जैन ग्रन्थ 'तीर्थमालाचैत्यवंदन' में अहिक्षेत्र का 'शिवपुर' नाम भी बताया गया है-

'वंदे श्री करणावती शिवपुरे नागद्रहे नाणके'।

  • जैन-ग्रन्थों में इसका एक अन्य नाम 'शिवनयरी' भी मिलता है।[7]
  • टॉलमी ने अहिच्छत्र का 'अदिसद्रा' नाम से उल्लेख किया है।[8]


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 57| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार
  1. चन्दौसी से आगे
  2. ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 57 |
  3. महाभारत आदिपर्व, 137, 73-74-76
  4. शतपथ ब्राह्मण (13, 5, 4, 7
  5. वैदिक इंडेक्स 1,494
  6. संख्यावती
  7. एंशेंट जैन हिम्स पृ. 56
  8. ए क्लासिकल डिक्शनरी ऑफ़ हिन्दू माइथोलोजी एण्ड रिलीजन, ज्योग्रेफी, हिस्ट्री एण्ड लिटरेचर-सप्तम संस्करण

संवंधित लेख