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भारत में कपास दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के आरम्भ के साथ ही बोयी जाती है, जबकि सिंचाई पर आश्रित कपास एक-दो महीने पूर्व ही बोयी जाती है। देश में 49 प्रतिशत कपास सिंचित क्षेत्रों में पैदा की जाती है। [[आन्ध्र प्रदेश]], [[महाराष्ट्र]] [[कर्नाटक]] राज्य के दक्षिणी भाग में कपास [[जून]] से [[अगस्त]] के अन्त तक बोयी जाती है और चुनाई [[जनवरी]] से [[अप्रैल]] तक की जाती है। [[तमिलनाडु]] में इसको बोना दोनों ही मानसूनों के अनुसार होता है। दक्षिणी प्रायद्वीप के बाहर यह [[मार्च]] से [[जुलाई]] तक बोयी जाती है और [[अक्टूबर]] से [[जनवरी]] तक इसकी चुनाई होती है। कपास [[भारत]] की सामान्यतः खरीफ की फ़सल है।  
 
भारत में कपास दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के आरम्भ के साथ ही बोयी जाती है, जबकि सिंचाई पर आश्रित कपास एक-दो महीने पूर्व ही बोयी जाती है। देश में 49 प्रतिशत कपास सिंचित क्षेत्रों में पैदा की जाती है। [[आन्ध्र प्रदेश]], [[महाराष्ट्र]] [[कर्नाटक]] राज्य के दक्षिणी भाग में कपास [[जून]] से [[अगस्त]] के अन्त तक बोयी जाती है और चुनाई [[जनवरी]] से [[अप्रैल]] तक की जाती है। [[तमिलनाडु]] में इसको बोना दोनों ही मानसूनों के अनुसार होता है। दक्षिणी प्रायद्वीप के बाहर यह [[मार्च]] से [[जुलाई]] तक बोयी जाती है और [[अक्टूबर]] से [[जनवरी]] तक इसकी चुनाई होती है। कपास [[भारत]] की सामान्यतः खरीफ की फ़सल है।  
 
====मिट्टी====
 
====मिट्टी====
कपास का उत्पादन विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में किया जा सकता है, किन्तु आर्द्रतापूर्ण दक्षिणी भारत की चिकनी और काली मिट्टी अधिक लाभप्रद मानी जाती है। सामान्यतः भारत में कपास तीन प्रकार की मिट्यिों में पैदा की जाती है - (क) भारी काली दोमट मिट्टी जो गुजरात व महाराष्ट्र राज्यों में मिलती है। भारत में कपास का सर्वोत्कृष्ट क्षेत्र भरुच, अहमदाबाद तथा खानदेश जिलों में फैला है। (ख) लाल और काली चट्टानी मिट्टी जो दक्कन, बरार और मालवा के पठार पर फैली है। (ग) सतलज-गंगा के हल्की कछारी मिट्टी के क्षेत्र में। दक्षिण भारत की काली मिट्टी कपास के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है, इसलिए इसे रेगुर मिट्टी के नाम से भी जाना जाता है।  
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कपास का उत्पादन विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में किया जा सकता है, किन्तु आर्द्रतापूर्ण दक्षिणी भारत की चिकनी और काली मिट्टी अधिक लाभप्रद मानी जाती है। सामान्यतः भारत में कपास तीन प्रकार की मिट्टियों में पैदा की जाती है-
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#भारी काली दोमट मिट्टी, जो गुजरात व महाराष्ट्र राज्यों में मिलती है। भारत में कपास का सर्वोत्कृष्ट क्षेत्र भरुच, [[अहमदाबाद]] तथा [[ख़ानदेश]] ज़िलों में फैला है।
कपास की खेती में बोने, निराने और डीडियां चुनने के लिए सस्ते मजदूरों की आवश्यकता पड़ती है। ज्यों ही पौधे पर डोडे निकलकर बड़े होने लगे त्यों ही उनकों चुन लेना आवश्यक होता है अन्यथ वह खराब होकर गिरने लगतें हैं और कपास की किस्म बिगड़ जाती है। खेत में ही कपास की फसल 3-4 बार में इकट्ठी की जाती है। इसका फूल अधिकतर स्त्रियों द्वारा ही चुना जाता है। दिन भर में एक श्रमिक 15 से 20 किलोग्राम तक कपास चुन सकता है।
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#[[सतलुज]] और [[गंगा]] के हल्की कछारी [[मिट्टी]] के क्षेत्र में। [[दक्षिण भारत]] की काली मिट्टी कपास के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है, इसलिए इसे 'रेगुर मिट्टी' के नाम से भी जाना जाता है।
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कपास की खेती में बोने, निराने और डीडियां चुनने के लिए सस्ते मजदूरों की आवश्यकता पड़ती है। ज्यों ही पौधे पर डोडे निकलकर बड़े होने लगे त्यों ही उनकों चुन लेना आवश्यक होता है अन्यथ वह खराब होकर गिरने लगतें हैं और कपास की किस्म बिगड़ जाती है। खेत में ही कपास की फसल 3-4 बार में इकट्ठी की जाती है। इसका फूल अधिकतर स्त्रियों द्वारा ही चुना जाता है। दिन भर में एक श्रमिक 15 से 20 किलोग्राम तक कपास चुन सकता है। इसकी [[कृषि]] के लिए [[दक्षिण भारत]] की जलवायु उत्तरी भारत की अपेक्षा अनुकूल है, क्योंकि यहाँ जाड़े में भी तापमान ऊँचा रहता है। उत्तरी पश्चिमी भारत में कोहरा, बादल, [[वर्षा]] व ओले के प्रभाव एवं कभी-कभी पाले से फ़सल को क्षति पहुँचती है। इसकी डोडियों में कीड़ा लग सकता है।
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====कृषि====
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भारत में कपास के साथ कई अन्य फ़सलें भी बोयी जाती है। इसके साथ सबसे अधिक [[मूंगफली]] बोते हैं। [[पंजाब]] में अमेरीकन और देशी कपास मिलाकर बोते हैं। उत्तर प्रदेश में इसे मेथी, मूंगी, बरसीम, तोरिया, क्लोवर आदि फ़सलों के साथ बोते हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु में इसके साथ [[ज्वार]] बोयी जाती है। लाल मिट्टी वाले क्षेत्रों में कपास के साथ अरण्डी, तिल, ज्वार या [[बाजरा]] बोया जाता है। मध्य महाराष्ट्र और पश्चिमी महाराष्ट्र के काली मिट्टी वाले क्षेत्र में कपास और [[मक्का]] तथा गुजरात में कपास और अरण्डी तथा धान और आन्ध्र प्रदेश के दक्षिणी भाग में कपास और मूंगफली तथा रागी साथ-साथ बोए जाते है। उत्तरी भारत में कपास का पौधा तैयार होने में 6 महीने लग जाते हैं, जबकि दक्षिणी भारत में 8 महीने तक लगते हैं।
 
==उत्पादन==
 
==उत्पादन==
[[चित्र:Cotton-1.jpg|thumb|250px|कपास का फूल]]संयुक्त राज्य अमेरिका  कपास उत्पादन का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का लगभग 22% कपास पैदा किया जाता है। चीन में विश्व का 17% कपास का उत्पादन किया जाता है। चीन में यांग्टसी नदी की निचली घाटी तथा ह्वांग-हो नदी का ऊपरी डेल्टा प्रमुख कपास के उत्पादक क्षेत्र हैं। भारत में  8% कपास का उत्पादन किया जाता है। कपास उत्पादन की [[दृष्टि]] से भारत का विश्व में तीसरा स्थान है। कपास उत्पादन के प्रमुख राज्यों में क्रमशः [[महाराष्ट्र]], [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[पंजाब]], [[हरियाणा]] तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश प्रमुख हैं। अन्य उत्पादक देशों में ब्राजील का साओपोलो क्षेत्र, मिस्र का नील डेल्टा, सूडान का जजीरा व सफ़ेद नील की घाटी तथा [[पाकिस्तान]] आदि महत्त्वपूर्ण हैं।  
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[[चित्र:Cotton-1.jpg|thumb|250px|कपास का फूल]]संयुक्त राज्य अमेरिका  कपास उत्पादन का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का लगभग 22% कपास पैदा किया जाता है। चीन में विश्व का 17% कपास का उत्पादन किया जाता है। चीन में यांग्टसी नदी की निचली घाटी तथा ह्वांग-हो नदी का ऊपरी डेल्टा प्रमुख कपास के उत्पादक क्षेत्र हैं। भारत में  8% कपास का उत्पादन किया जाता है। कपास उत्पादन की [[दृष्टि]] से भारत का विश्व में तीसरा स्थान है। कपास उत्पादन के प्रमुख राज्यों में क्रमशः [[महाराष्ट्र]], [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[पंजाब]], [[हरियाणा]] तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश प्रमुख हैं। अन्य उत्पादक देशों में ब्राजील का साओपोलो क्षेत्र, मिस्र का नील डेल्टा, सूडान का जजीरा व सफ़ेद नील की घाटी तथा [[पाकिस्तान]] आदि महत्त्वपूर्ण हैं।
==निर्यातक देश==  
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==कपास के क़िस्म==
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व्यापारिक दृष्टिकोण से भारत में मुख्यतः 14 क़िस्मों की कपास पैदा की जाती है। इनकी अच्छाई या बुराई, उनकी मजबूती, धागे, सूक्ष्मता, [[रंग]], चमक और मोटाई की प्रतिशतता पर निर्भर करती है। ये क़िस्में इस प्रकार हैं- बंगाल, अमरीकन, धौलेरा, उमरा, भड़ौच, सूरती, कम्पना, कम्बोडिया, जयवंत, कोमिल, दक्षिणी झेलम, मद्रास-यूगेंडा और तिरुनलवेली।
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*रेशे की लम्बाई के अनुसार कपास तीन प्रकार की होती है-
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#'''छोटे रेश वाली कपास''' - इसका धागा 19 मिमी. से कम होता है। इसकी मुख्य क़िस्में चिन्नापथी, मुगरा, उमरा, कोमिला, उत्तर प्रदेश देशी, पंजाब देशी, राजस्थान देशी तथा मेथिओं है। इसका उत्पादन अधिकतर [[असम]], [[मणिपुर]], [[त्रिपुरा]], [[आन्ध्र प्रदेश]], [[उत्तर प्रदेश]], [[हरियाणा]], [[राजस्थान]], [[पंजाब]] और [[मेघालय]] में किया जाता है। कुल उत्पादन का 15 प्रतिशत इसी प्रकार की कपास का होता है।
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#'''मध्यम रेशे वाली कपास''' - इसका धागा 20 मिमी. से 24 मिमी. तक लम्बा होता है। इसकी मुख्य क़िस्में प्रभानी, गोरानी, पंजाब, अमेरिकन, दिग्विजय, विजल्प, संजय, इन्दौर-2, बूडी एल-147, खानदेश, गिरनार जयधर, काकीनाडा, कल्याण, उत्तरी, जरीला, बीरम, मालवी, राजस्थान अमरीकन हैं। कुल उत्पादन का लगभग 45 प्रतिशत इस प्रकार की कपास का होता है।
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#'''लम्बे रेशे वाली कपास''' - इसका धागा 24.5 मिमी. से 27 मिमी. तक लम्बा होता हैं। इसकी मुख्य क़िस्में गुजरात, देवीराज, समुद्री कपास, बदनावार-1, मद्रास, कम्बोडिया, सुजाता, बूडी और लक्ष्मी हैं। कुल उत्पादन का 40 प्रतिशत इस क़िस्म का होता है।
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==निर्यातक देश==
 
संयुक्त राज्य अमेरिका, उज्बेकिस्तान, यूक्रेन, पाकिस्तान, मिस्र, सूडान, ब्राजील, पेरू, मैक्सिको, तुर्की, भारत, सीरिया, कोलम्बिया आदि।  
 
संयुक्त राज्य अमेरिका, उज्बेकिस्तान, यूक्रेन, पाकिस्तान, मिस्र, सूडान, ब्राजील, पेरू, मैक्सिको, तुर्की, भारत, सीरिया, कोलम्बिया आदि।  
 
==आयातक देश==  
 
==आयातक देश==  

13:37, 6 मार्च 2012 का अवतरण

कपास के फूल

कपास एक नकदी फ़सल है। इससे रूई तैयार की जाती है। भारत में कपास को 'सफ़ेद सोना' भी कहा जाता है। लम्बे रेशे वाले कपास सबसे सर्वोत्तम प्रकार के होते हैं, जिसकी लम्बाई 5 सें.मी. से अधिक होती है। इससे उच्च कोटि का कपड़ा बनाया जाता है। तटीय क्षेत्रों में पैदा होने के कारण इसे 'समुद्र द्वीपीय कपास' भी कहते हैं। मध्य रेशे वाला कपास, जिसकी लम्बाई 3.5 से 5 सें.मी. तक होती है, 'मिश्रित कपास' कहलाता है। तीसरे प्रकार का कपास छोटे रेशे वाला होता है, जिसके रेशे की लम्बाई 3.5 सें.मी. तक होती है।

इतिहास

कपास भारत की आदि फ़सल है, जिसकी खेती बहुत ही बड़ी मात्रा में की जाती है। यहाँ आर्यावर्त में ऋग्वैदिक काल से ही इसकी खेती की जाती रही है। भारत में इसका इतिहास काफ़ी पुराना है। हड़प्पा निवासी कपास के उत्पादन में संसार भर में प्रथम माने जाते थे। कपास उनके प्रमुख उत्पादनों में से एक था। भारत से ही 327 ई.पू. के लगभग यूनान में इस पौधे का प्रचार हुआ। यह भी उल्लेखनीय है कि भारत से ही यह पौधा चीन और विश्व के अन्य देशों को ले जाया गया। विश्व में प्रतिवर्ष लगभग 150 लाख मीट्रिक टन कपास पैदा होता है। संयुक्त राज्य अमरीका, चीन, भारत, ब्राजील, मिस्र, सूडान आदि कपास के प्रमुख उत्पादक देश हैं।

भौगोलिक दशाएँ

वर्तमान समय में कपास की खेती एक बहुत बड़े क्षेत्रफल में हो रही है। मानव जीवन में इसका बहुत ही महत्त्व है। इसीलिए कपास की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। कपास की खेती के लिए निम्न भौगोलिक अवस्थाएँ आवश्यक होती हैं-

तापमान

कपास के पौधे के लिए उच्च तापमान, साधारणतः 20° सेंटीग्रेट से 30° सेंटीग्रेट तक, की आवश्यकता पड़ती है, किन्तु यह 40° तक की गर्मी में भी पैदा किया सकता है। पाला अथवा ओला इसकी फ़सल के लिए घातक है। अतः इस पौधे के विकास के लिए कम-से-कम 210 दिन पाला-रहित ऋतु चाहिए। डोडी खिलने के समय स्वच्छ आकाश, तेल और चमकदार धूप का होना आवश्यक है, जिससे रेशे में पर्याप्त चमक आ सके और डोडिया पूरी तरह खिल सकें। समुद्री पवनों के प्रभाव में उगने वाली कपास का रेशा लम्बा और चमकदार होता है।

कपास का पौधा

वर्षा

कपास के लिए साधरणतः 50 से 100 से.मी. तक की वर्षा पर्याप्त होती है। यह मात्रा थोड़े-थोड़े दिनों के अन्तर से प्राप्त होनी चाहिए। 100 से.मी. से अधिक वर्षा वाले भागों में इसकी खेती नहीं हो सकती। जहाँ वर्षा कम होती है, वहाँ सिंचाई के सहारे कपास पैदा की जाती है। शुष्क प्रदेशों में कीड़ा कम लगने के कारण ही सिंचित क्षेत्रों में कपास अधिक पैदा की जाती है।

भारत में कपास दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के आरम्भ के साथ ही बोयी जाती है, जबकि सिंचाई पर आश्रित कपास एक-दो महीने पूर्व ही बोयी जाती है। देश में 49 प्रतिशत कपास सिंचित क्षेत्रों में पैदा की जाती है। आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र कर्नाटक राज्य के दक्षिणी भाग में कपास जून से अगस्त के अन्त तक बोयी जाती है और चुनाई जनवरी से अप्रैल तक की जाती है। तमिलनाडु में इसको बोना दोनों ही मानसूनों के अनुसार होता है। दक्षिणी प्रायद्वीप के बाहर यह मार्च से जुलाई तक बोयी जाती है और अक्टूबर से जनवरी तक इसकी चुनाई होती है। कपास भारत की सामान्यतः खरीफ की फ़सल है।

मिट्टी

कपास का उत्पादन विभिन्न प्रकार की मिट्टियों में किया जा सकता है, किन्तु आर्द्रतापूर्ण दक्षिणी भारत की चिकनी और काली मिट्टी अधिक लाभप्रद मानी जाती है। सामान्यतः भारत में कपास तीन प्रकार की मिट्टियों में पैदा की जाती है-

  1. भारी काली दोमट मिट्टी, जो गुजरात व महाराष्ट्र राज्यों में मिलती है। भारत में कपास का सर्वोत्कृष्ट क्षेत्र भरुच, अहमदाबाद तथा ख़ानदेश ज़िलों में फैला है।
  2. लाल और काली चट्टानी मिट्टी, जो दक्कन, बरार और मालवा के पठार पर फैली है।
  3. सतलुज और गंगा के हल्की कछारी मिट्टी के क्षेत्र में। दक्षिण भारत की काली मिट्टी कपास के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है, इसलिए इसे 'रेगुर मिट्टी' के नाम से भी जाना जाता है।

श्रम

कपास की खेती में बोने, निराने और डीडियां चुनने के लिए सस्ते मजदूरों की आवश्यकता पड़ती है। ज्यों ही पौधे पर डोडे निकलकर बड़े होने लगे त्यों ही उनकों चुन लेना आवश्यक होता है अन्यथ वह खराब होकर गिरने लगतें हैं और कपास की किस्म बिगड़ जाती है। खेत में ही कपास की फसल 3-4 बार में इकट्ठी की जाती है। इसका फूल अधिकतर स्त्रियों द्वारा ही चुना जाता है। दिन भर में एक श्रमिक 15 से 20 किलोग्राम तक कपास चुन सकता है। इसकी कृषि के लिए दक्षिण भारत की जलवायु उत्तरी भारत की अपेक्षा अनुकूल है, क्योंकि यहाँ जाड़े में भी तापमान ऊँचा रहता है। उत्तरी पश्चिमी भारत में कोहरा, बादल, वर्षा व ओले के प्रभाव एवं कभी-कभी पाले से फ़सल को क्षति पहुँचती है। इसकी डोडियों में कीड़ा लग सकता है।

कृषि

भारत में कपास के साथ कई अन्य फ़सलें भी बोयी जाती है। इसके साथ सबसे अधिक मूंगफली बोते हैं। पंजाब में अमेरीकन और देशी कपास मिलाकर बोते हैं। उत्तर प्रदेश में इसे मेथी, मूंगी, बरसीम, तोरिया, क्लोवर आदि फ़सलों के साथ बोते हैं। राजस्थान, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आन्ध्र प्रदेश और तमिलनाडु में इसके साथ ज्वार बोयी जाती है। लाल मिट्टी वाले क्षेत्रों में कपास के साथ अरण्डी, तिल, ज्वार या बाजरा बोया जाता है। मध्य महाराष्ट्र और पश्चिमी महाराष्ट्र के काली मिट्टी वाले क्षेत्र में कपास और मक्का तथा गुजरात में कपास और अरण्डी तथा धान और आन्ध्र प्रदेश के दक्षिणी भाग में कपास और मूंगफली तथा रागी साथ-साथ बोए जाते है। उत्तरी भारत में कपास का पौधा तैयार होने में 6 महीने लग जाते हैं, जबकि दक्षिणी भारत में 8 महीने तक लगते हैं।

उत्पादन

कपास का फूल

संयुक्त राज्य अमेरिका कपास उत्पादन का विश्व में सबसे बड़ा उत्पादक देश है। यहाँ विश्व का लगभग 22% कपास पैदा किया जाता है। चीन में विश्व का 17% कपास का उत्पादन किया जाता है। चीन में यांग्टसी नदी की निचली घाटी तथा ह्वांग-हो नदी का ऊपरी डेल्टा प्रमुख कपास के उत्पादक क्षेत्र हैं। भारत में 8% कपास का उत्पादन किया जाता है। कपास उत्पादन की दृष्टि से भारत का विश्व में तीसरा स्थान है। कपास उत्पादन के प्रमुख राज्यों में क्रमशः महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश प्रमुख हैं। अन्य उत्पादक देशों में ब्राजील का साओपोलो क्षेत्र, मिस्र का नील डेल्टा, सूडान का जजीरा व सफ़ेद नील की घाटी तथा पाकिस्तान आदि महत्त्वपूर्ण हैं।

कपास के क़िस्म

व्यापारिक दृष्टिकोण से भारत में मुख्यतः 14 क़िस्मों की कपास पैदा की जाती है। इनकी अच्छाई या बुराई, उनकी मजबूती, धागे, सूक्ष्मता, रंग, चमक और मोटाई की प्रतिशतता पर निर्भर करती है। ये क़िस्में इस प्रकार हैं- बंगाल, अमरीकन, धौलेरा, उमरा, भड़ौच, सूरती, कम्पना, कम्बोडिया, जयवंत, कोमिल, दक्षिणी झेलम, मद्रास-यूगेंडा और तिरुनलवेली।

  • रेशे की लम्बाई के अनुसार कपास तीन प्रकार की होती है-
  1. छोटे रेश वाली कपास - इसका धागा 19 मिमी. से कम होता है। इसकी मुख्य क़िस्में चिन्नापथी, मुगरा, उमरा, कोमिला, उत्तर प्रदेश देशी, पंजाब देशी, राजस्थान देशी तथा मेथिओं है। इसका उत्पादन अधिकतर असम, मणिपुर, त्रिपुरा, आन्ध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और मेघालय में किया जाता है। कुल उत्पादन का 15 प्रतिशत इसी प्रकार की कपास का होता है।
  2. मध्यम रेशे वाली कपास - इसका धागा 20 मिमी. से 24 मिमी. तक लम्बा होता है। इसकी मुख्य क़िस्में प्रभानी, गोरानी, पंजाब, अमेरिकन, दिग्विजय, विजल्प, संजय, इन्दौर-2, बूडी एल-147, खानदेश, गिरनार जयधर, काकीनाडा, कल्याण, उत्तरी, जरीला, बीरम, मालवी, राजस्थान अमरीकन हैं। कुल उत्पादन का लगभग 45 प्रतिशत इस प्रकार की कपास का होता है।
  3. लम्बे रेशे वाली कपास - इसका धागा 24.5 मिमी. से 27 मिमी. तक लम्बा होता हैं। इसकी मुख्य क़िस्में गुजरात, देवीराज, समुद्री कपास, बदनावार-1, मद्रास, कम्बोडिया, सुजाता, बूडी और लक्ष्मी हैं। कुल उत्पादन का 40 प्रतिशत इस क़िस्म का होता है।

निर्यातक देश

संयुक्त राज्य अमेरिका, उज्बेकिस्तान, यूक्रेन, पाकिस्तान, मिस्र, सूडान, ब्राजील, पेरू, मैक्सिको, तुर्की, भारत, सीरिया, कोलम्बिया आदि।

आयातक देश

जापान (15%), कोरिया (8%), चीन (7%), इटली (6%), जर्मनी (5%), फ्रांस (4%), पोलैण्ड (3%), स्लोवाकिया, इण्डोनेशिया, आस्ट्रेलिया, भारत आदि।


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