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[[राजस्थान]], [[उदयपुर]] से 2७ किलोमीटर दूरी पर स्थित [[नागदा]] एक दर्शनीय स्थान है। यह [[उदयपुर एकलिंगजी|एकलिंगजी]] से कुछ पहले स्थित है। नागदा का प्राचीन शहर पहले [[रावल नागादित्‍य]] की राजधानी थी। वर्तमान में यह एक छोटा सा गाँव है। यह गाँव 11वीं शताब्‍दी में बने 'सास-बहू' मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का मूल नाम 'सहस्‍त्रबाहु' था जो कि विकृत होकर सास-बहू हो गया है। यह एक छोटा सा मंदिर है। लेकिन मंदिर की वास्‍तुशैली काफ़ी आकर्षक है।
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==प्राचीन मंदिर==
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नागदा के प्राचीन मंदिरों की संख्या 2112 कही जाती है, जो आस-पास की पहाड़ियों पर दूर-दूर तक दिखाई देते हैं। वर्तमान मंदिरों में अधिकांश [[हिन्दू]] शैली में बने हैं। कुछ [[जैन मंदि]]र भी बने हुए हैं। दो उल्लेखनीय जैन मंदिर खुमाण रावल तथा अद्भुतजी नाम के हैं। यह दूसरा मंदिर 1437 ई. में ओसवाल सारंग ने बनवाया था। सास-बहू के प्रसिद्ध मंदिर [[विष्णु]] के देवालय थे। ये 10वीं-11वीं शती ई. में बने थे। [[चित्र:Nagda.jpg|thumb|250px|left|नागदा मन्दिर, [[उदयपुर]]]] ये दोनों [[श्वेत रंग|श्वेत]] पत्थर के चौकोर चबूतरों पर बने हैं, जो 140 फुट लम्बे हैं। प्रवेश द्वार तोरण के रूप में निर्मित हैं।
  
नागदा पहले गुहिल शासकों की प्राचीन राजधानी रह चु्का है। 661 ई. (संवत् ७1८) का अभिलेख इस स्थान की प्राचीनता को प्रमाणित करता है, यह पुरातात्विक सामग्री की शैली के आधार पर उतना प्राचीन प्रतीत नहीं होता है। यहाँ के प्राचीन स्मारक समय के साथ नष्ट हो गये होंगे। यहाँ से प्राप्त 1०26 ई. के एक अभिलेख के अनुसार, गुहिल शासक श्रीधर ने यहाँ के कुछ मंदिरों का निर्माण करवाया था, वर्त्तमान का सास- बहू मंदिर इन्हीं मंदिरों में है। शैलीगत समानता के आधार पर भी ये मंदिर 1०वीं और 11 वीं शताब्दी में निर्मित प्रतीत होते हैं। कहा जाता है कि इन मंदिरों की स्थापना सहस्रबाहु नामक राजा के द्वारा करवाई गई थी, लेकिन चूँकि गुहिल वंश के इतिहास में इस नाम से किसी भी शासक की चर्चा नहीं की गई है। अतः यह तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता।
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'''सास के मंदिर''' का शिखर ईंटों का है और शेष मंदिर संगमरमर का बना हुआ है। ये विशाल संगमरमर के पत्थर इतने सुदृढ़ रूप से जुड़े हुए हैं कि सैकड़ों वर्षों के बाद आज भी अडिग हैं। शिखर अब जीर्ण अवस्था में है। सास के मंदिर के स्तम्भ, उत्कीर्ण शिलापट्ट एवं मूर्तियाँ सभी शिल्प के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। मंदिर के बाहरी भाग में भी सुंदर मूर्तिकारी प्रदर्शित है। पूर्वी व दक्षिणी भागों में कई प्रकार की चित्रविचित्र जालियां बनी हैं, जिनसे [[सूर्य]] का [[प्रकाश]] छन कर अंदर पहुँचता है। सभा मंडप विशाल है और अद्भुत शिल्पकारी से संपन्न है। इसकी छत में एक बृहत् कमल पुष्प उकेरा हुआ है, जिसकी विकसित पंखड़ियों पर चार नर्तकियाँ नृत्य मुद्रा में प्रदर्शित हैं। [[नृत्य]] की मुद्रा का अंकन अपूर्व भावगरिमा एवं कला लावण्य के साथ किया गया है। स्तम्भों पर भी अनेक कलामयी मूर्तियाँ उकेरी हुई हैं। इनमें से कई पर रास व भजन मंडलियों के दृश्यों का अंकन है। दूसरों पर नारी सौंदर्य के अप्रतिम मूर्तिचित्र केवल उच्च कला ही के नहीं वरन् तत्कालीन समाज के भी प्रतिदर्श हैं।
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'''बहू के मंदिर''' की कला भी कम विदग्धतापूर्ण नहीं। इसके सभा मंडप की मूर्तियों में मुख्यत: [[विष्णु]], [[शिव]], [[गरुड़]] आदि प्रदर्शित हैं। इसकी छत पर भी सुंदर तक्षण कला की अभिव्यंजना है। मंदिर का शिखर अब पूर्ण रूप से टूट चुका है। इन मंदिरों की शिल्पकला आबू के दिलवाड़ा मंदिरों की याद दिलाती है। नागदा या नागह्रद का नामोल्लेख जैन स्तोत्र तीर्थमाला चैत्यवंदन में इस प्रकार है-
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<blockquote>'वंदे श्री करणावती शिवपुरे नागद्रहे (नागह्रदे) नाणके।'</blockquote>
  
गुहिल शासकों के सूर्यवंशी होने के कारण बागदा के इस मंदिर को [[विष्णु]] जी को समर्पित किया गया है। गर्भगृह के पृष्ठभाग की प्रमुख ताख में एक चतुर्भुज विष्णु प्रतिमा प्रतिष्ठित है। दोनों मंदिरों के बाह्य भाग पर श्रृंगार-रत नर-नारियों का अंकन किया गया है। इस मंदिरों के दायीं ओर के कोने पर एक शक्ति मंदिर निर्मित है, जिस मंदिर में शक्ति के विविध रुपों का अंकन किया गया है।
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==दर्शनीय स्थल==
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गुहिल शासकों के सूर्यवंशी होने के कारण नागदा के इस मंदिर को विष्णु जी को समर्पित किया गया है। गर्भगृह के पृष्ठभाग की प्रमुख ताख में एक चतुर्भुज विष्णु प्रतिमा प्रतिष्ठित है। दोनों मंदिरों के बाह्य भाग पर श्रृंगार-रत नर-नारियों का अंकन किया गया है। इस मंदिरों के दायीं ओर के कोने पर एक शक्ति मंदिर निर्मित है, जिस मंदिर में शक्ति के विविध रुपों का अंकन किया गया है। नागदा के पास ही एक मंदिर समूह [[एकलिंग]] या कैलाशपुरी के नाम से जाना जाता है। यहाँ के लकुलीश मंदिर से प्राप्त [[शिलालेख]] 971 ई. का है और यह सर्वाधिक प्राचीन है। अन्य मंदिर 12वीं शताब्दी के हैं।
  
नागदा के पास ही एक मंदिर समूह एकलिंग या कैलाशपुरी के नाम से जाना जाता है। यहाँ के लकुलीश मंदिर से प्राप्त शिलालेख ९७1 ई. का है और यह सर्वाधिक प्राचीन है। अन्य मंदिर 12वीं शताब्दी के हैं।
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07:55, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

नागदा उदयपुर
नागदा उदयपुर
विवरण नागदा उदयपुर, राजस्थान से 13 मील

(लगभग 20.8 कि.मी.) उत्तर की ओर स्थित एक प्राचीन नगर है।

राज्य राजस्थान
ज़िला उदयपुर
Map-icon.gif गूगल मानचित्र
अन्य जानकारी प्राचीन काल के अनेक मंदिर, जिनका नष्टप्राय कलावैभव आज भी दर्शकों को मुग्ध कर देता है, एक झील के निकट बने हुए हैं। मेवाड़ के संस्थापक बप्पा रावल ने नागदा ही में अपनी राजधानी बनाई थी।
अद्यतन‎ 03:58, 22 जुलाई 2017 (IST)

नागदा उदयपुर, राजस्थान से 13 मील (लगभग 20.8 कि.मी.) उत्तर की ओर स्थित एक प्राचीन नगर है। यह प्राचीन नगर अधिकतर खंडहरों के रूप में पड़ा हुआ है। चारों ओर अरावली पहाड़ की चोटियाँ दिखाई देती हैं। प्राचीन काल के अनेक मंदिर, जिनका नष्टप्राय कलावैभव आज भी दर्शकों को मुग्ध कर देता है, एक झील के निकट बने हुए हैं। मेवाड़ के संस्थापक बप्पा रावल ने नागदा ही में अपनी राजधानी बनाई थी। 1226 ई. में दिल्ली के सुल्तान इल्तुतमिश ने आक्रमण करके इसे नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। नागदा में हिन्दू एवं जैन मन्दिरों के अनेक स्मारक हैं।

इतिहास

नागदा पहले गुहिल शासकों की प्राचीन राजधानी रह चु्का है। 661 ई. (संवत् 718) का अभिलेख इस स्थान की प्राचीनता को प्रमाणित करता है, यह पुरातात्विक सामग्री की शैली के आधार पर उतना प्राचीन प्रतीत नहीं होता है। यहाँ के प्राचीन स्मारक समय के साथ नष्ट हो गये होंगे। यहाँ से प्राप्त 1026 ई. के एक अभिलेख के अनुसार, गुहिल शासक श्रीधर ने यहाँ के कुछ मंदिरों का निर्माण करवाया था, वर्त्तमान का सास-बहू मंदिर इन्हीं मंदिरों में है। शैलीगत समानता के आधार पर भी ये मंदिर 10वीं और 11 वीं शताब्दी में निर्मित प्रतीत होते हैं। कहा जाता है कि इन मंदिरों की स्थापना सहस्रबाहु नामक राजा के द्वारा करवाई गई थी, लेकिन चूँकि गुहिल वंश के इतिहास में इस नाम से किसी भी शासक की चर्चा नहीं की गई है। अतः यह तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता।

प्राचीन मंदिर

नागदा के प्राचीन मंदिरों की संख्या 2112 कही जाती है, जो आस-पास की पहाड़ियों पर दूर-दूर तक दिखाई देते हैं। वर्तमान मंदिरों में अधिकांश हिन्दू शैली में बने हैं। कुछ जैन मंदिर भी बने हुए हैं। दो उल्लेखनीय जैन मंदिर खुमाण रावल तथा अद्भुतजी नाम के हैं। यह दूसरा मंदिर 1437 ई. में ओसवाल सारंग ने बनवाया था। सास-बहू के प्रसिद्ध मंदिर विष्णु के देवालय थे। ये 10वीं-11वीं शती ई. में बने थे।

नागदा मन्दिर, उदयपुर

ये दोनों श्वेत पत्थर के चौकोर चबूतरों पर बने हैं, जो 140 फुट लम्बे हैं। प्रवेश द्वार तोरण के रूप में निर्मित हैं।

सास के मंदिर का शिखर ईंटों का है और शेष मंदिर संगमरमर का बना हुआ है। ये विशाल संगमरमर के पत्थर इतने सुदृढ़ रूप से जुड़े हुए हैं कि सैकड़ों वर्षों के बाद आज भी अडिग हैं। शिखर अब जीर्ण अवस्था में है। सास के मंदिर के स्तम्भ, उत्कीर्ण शिलापट्ट एवं मूर्तियाँ सभी शिल्प के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। मंदिर के बाहरी भाग में भी सुंदर मूर्तिकारी प्रदर्शित है। पूर्वी व दक्षिणी भागों में कई प्रकार की चित्रविचित्र जालियां बनी हैं, जिनसे सूर्य का प्रकाश छन कर अंदर पहुँचता है। सभा मंडप विशाल है और अद्भुत शिल्पकारी से संपन्न है। इसकी छत में एक बृहत् कमल पुष्प उकेरा हुआ है, जिसकी विकसित पंखड़ियों पर चार नर्तकियाँ नृत्य मुद्रा में प्रदर्शित हैं। नृत्य की मुद्रा का अंकन अपूर्व भावगरिमा एवं कला लावण्य के साथ किया गया है। स्तम्भों पर भी अनेक कलामयी मूर्तियाँ उकेरी हुई हैं। इनमें से कई पर रास व भजन मंडलियों के दृश्यों का अंकन है। दूसरों पर नारी सौंदर्य के अप्रतिम मूर्तिचित्र केवल उच्च कला ही के नहीं वरन् तत्कालीन समाज के भी प्रतिदर्श हैं।

नागदा मन्दिर, उदयपुर

बहू के मंदिर की कला भी कम विदग्धतापूर्ण नहीं। इसके सभा मंडप की मूर्तियों में मुख्यत: विष्णु, शिव, गरुड़ आदि प्रदर्शित हैं। इसकी छत पर भी सुंदर तक्षण कला की अभिव्यंजना है। मंदिर का शिखर अब पूर्ण रूप से टूट चुका है। इन मंदिरों की शिल्पकला आबू के दिलवाड़ा मंदिरों की याद दिलाती है। नागदा या नागह्रद का नामोल्लेख जैन स्तोत्र तीर्थमाला चैत्यवंदन में इस प्रकार है-

'वंदे श्री करणावती शिवपुरे नागद्रहे (नागह्रदे) नाणके।'

इन्हें भी देखें: सास बहू का मंदिर, उदयपुर

दर्शनीय स्थल

गुहिल शासकों के सूर्यवंशी होने के कारण नागदा के इस मंदिर को विष्णु जी को समर्पित किया गया है। गर्भगृह के पृष्ठभाग की प्रमुख ताख में एक चतुर्भुज विष्णु प्रतिमा प्रतिष्ठित है। दोनों मंदिरों के बाह्य भाग पर श्रृंगार-रत नर-नारियों का अंकन किया गया है। इस मंदिरों के दायीं ओर के कोने पर एक शक्ति मंदिर निर्मित है, जिस मंदिर में शक्ति के विविध रुपों का अंकन किया गया है। नागदा के पास ही एक मंदिर समूह एकलिंग या कैलाशपुरी के नाम से जाना जाता है। यहाँ के लकुलीश मंदिर से प्राप्त शिलालेख 971 ई. का है और यह सर्वाधिक प्राचीन है। अन्य मंदिर 12वीं शताब्दी के हैं।


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