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'''राम लिंगम चेट्टियार''' (जन्म- [[18 मई]], [[1881]], [[कोयंबटूर]], [[तमिलनाडु]]; मृत्यु- [[1952]]) एक वकील और राजनीतिज्ञ थे। वे [[संविधान सभा]] के सदस्य रहे और बाद में [[लोकसभा]] के सदस्य चुने गए।
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'''रामहरख सिंह सहगल''' (जन्म- [[28 सितम्बर]], [[1896]], [[लाहौर]], मृत्यु- [[1 फरवरी]], [[1952]]) पत्रकार और क्रांतिकारी भावनाओं के व्यक्ति थे। उस समय की अद्वितीय मासिक पत्रिका 'चांद' के संस्थापक और संपादक थे। [[भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन|राष्ट्रीय आंदोलन]] को गति देने के उद्देश्य से चांद का 'फांसी अंक' निकाल कर इस अंक की 10000 प्रतियां छापी गई थी जिसे सरकार ने जब्त कर लिया था।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
एक संपन्न परिवार में जन्मे रामलिंगम चेट्टियारका जन्म 18 मई 1881 ईस्वी को तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले में हुआ था। इनके पिता अंगप्पा चेट्टियार प्रसिद्ध व्यापारी और बेंकर
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रामहरख सिंह सहगल उस वक्त की अद्वितीय मासिक पत्रिका  'चांद' के संस्थापक और संपादक थे जिनका जन्म [[28 सितम्बर]], [[1896]] ई. को [[लाहौर]] के निकट एक गांव में हुआ था। उन्होंने पत्रकार का जीवन [[1923]] ई. में इलाहाबाद से 'चांद'  मासिक पत्रिका प्रकाशित करने के साथ शुरु किया। [[1927]] में 'भविष्य' [[1937]] में 'कर्मयोगी'  और [[1940]] में 'गुलदस्ता' अंक निकाला। उन्होंने अपने प्रकाशित 'चांद' अंक को जनचेतना और नारी-जागरण का माध्यम बना दिया। इस कार्य से उन्हें विदेशी सरकार का ही नहीं, समाज के कट्टरपंथियों के आक्रोश का भी सामना करना पड़ा था। <ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=739|url=}}</ref>
थे। वे [[मद्रास विश्वविद्यालय]] से [[1904]] ईस्वी में कानून की डिग्री लेकर वकालत करने लगे और बाद में उन्होंने राजनीति में भी भाग लेना आरम्भ कर दिया। वह नरम विचारों के व्यक्ति थे और अखिल भारतीय लिबरल फेडरेशन से जुड़ गये।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=738|url=}}</ref>  
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सहगल का हिंदी पत्रिकाओं के विशेषांक प्रकाशित करने की परंपरा चलाने में बड़ा ही योगदान रहा है। उन्होंने चांद के 'अचूक अंक' 'मारवाड़ी अंक' 'पत्रांक' 'राजपूताना अंक' और 'नारी अंक' निकालकर [[समाज]] का मार्गदर्शन किया। [[भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन|राष्ट्रीय आंदोलन]] को गति देने के उद्देश्य से प्रकाशित चांद का 'फांसी अंक' निकाल कर उन्होंने जो काम किया, उसे लोग आज भी भूले नहीं हैं। इस अंक की [[1931]] में 10000 प्रतियां छापी गई थींं। सूचना मिलने पर सरकार ने इसे जब्त कर लिया, पर तब तक यह देशभर में फैल चुका था। पंडित सुंदरलाल लिखित 'भारत में अंग्रेजी राज' का प्रकाशन भी चांद कार्यालय से आप ने ही किया था। यह पुस्तक प्रकाशित होते ही जब्त कर ली गई थी।
राम लिंगम चेट्टियार को [[1921]] में मद्रास लेजिस्लेटिव कॉउंसिल का सदस्य चुन लिया गया और [[1939]] तक वे लगातार इसके सदस्य रहे। [[1946]] में रामलिंगम [[संविधान सभा]] के सदस्य निर्वाचित हुए और [[1951]] में वे निर्विरोध प्रथम लोकसभा के सदस्य चुने गए। संविधान सभा में इन्होंने [[हिंदी]] को [[राजभाषा]] के रूप में स्वीकार किए जाने का कड़ा विरोध किया था।
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==मृत्यु==
 
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        रामलिंगम चिट्ठियार का जन्म 18 मई 1881 ईस्वी को तमिलनाडु के कोयंबटूर जिले में एक संपन्न परिवार में हुआ था। इनके पिता अंगप्पा चिट्ठियार प्रसिद्ध व्यापारी और बेंकर थे। राम लिंगम ने मद्रास विश्वविद्यालय से 1904 ईस्वी में कानून की डिग्री ली और वकालत करने लगे। बाद में उन्होंने राजनीति में भी रुचि लेना आरंभ किया।  वह नरम विचारों के व्यक्ति थे और अखिल भारतीय लिबरल फेडरेशन से जुड़ गये। 1921 में उन्हें मद्रास लेजिस्लेटिव कॉउंसिल का सदस्य चुन लिया गया और 1939 तक लगातार इसके सदस्य रहे।
 
      1946 में रामलिंगम संविधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए और 1951 में निर्विरोध प्रथम लोकसभा के सदस्य चुने गए।  संविधान सभा में इन्होंने हिंदी को राजभाषा के रूप मेंस्वीकार किए जाने का कड़ा विरोध किया था। 1952 में रामलिंगम  चेट्टियार का देहांत हो गया।
 
भारतीय चरित कोश 738
 

10:10, 14 जून 2018 का अवतरण

रामहरख सिंह सहगल (जन्म- 28 सितम्बर, 1896, लाहौर, मृत्यु- 1 फरवरी, 1952) पत्रकार और क्रांतिकारी भावनाओं के व्यक्ति थे। उस समय की अद्वितीय मासिक पत्रिका 'चांद' के संस्थापक और संपादक थे। राष्ट्रीय आंदोलन को गति देने के उद्देश्य से चांद का 'फांसी अंक' निकाल कर इस अंक की 10000 प्रतियां छापी गई थी जिसे सरकार ने जब्त कर लिया था।

परिचय

रामहरख सिंह सहगल उस वक्त की अद्वितीय मासिक पत्रिका 'चांद' के संस्थापक और संपादक थे जिनका जन्म 28 सितम्बर, 1896 ई. को लाहौर के निकट एक गांव में हुआ था। उन्होंने पत्रकार का जीवन 1923 ई. में इलाहाबाद से 'चांद' मासिक पत्रिका प्रकाशित करने के साथ शुरु किया। 1927 में 'भविष्य' 1937 में 'कर्मयोगी' और 1940 में 'गुलदस्ता' अंक निकाला। उन्होंने अपने प्रकाशित 'चांद' अंक को जनचेतना और नारी-जागरण का माध्यम बना दिया। इस कार्य से उन्हें विदेशी सरकार का ही नहीं, समाज के कट्टरपंथियों के आक्रोश का भी सामना करना पड़ा था। [1]

योगदान

सहगल का हिंदी पत्रिकाओं के विशेषांक प्रकाशित करने की परंपरा चलाने में बड़ा ही योगदान रहा है। उन्होंने चांद के 'अचूक अंक' 'मारवाड़ी अंक' 'पत्रांक' 'राजपूताना अंक' और 'नारी अंक' निकालकर समाज का मार्गदर्शन किया। राष्ट्रीय आंदोलन को गति देने के उद्देश्य से प्रकाशित चांद का 'फांसी अंक' निकाल कर उन्होंने जो काम किया, उसे लोग आज भी भूले नहीं हैं। इस अंक की 1931 में 10000 प्रतियां छापी गई थींं। सूचना मिलने पर सरकार ने इसे जब्त कर लिया, पर तब तक यह देशभर में फैल चुका था। पंडित सुंदरलाल लिखित 'भारत में अंग्रेजी राज' का प्रकाशन भी चांद कार्यालय से आप ने ही किया था। यह पुस्तक प्रकाशित होते ही जब्त कर ली गई थी।

कारावास

आपके पत्र 'भविष्य' की राष्ट्रीय गतिविधियों के कारण इसके छह संपादकों को कारावास की यातनाएं भुगतनी पड़ी थीं।

मृत्यु

रामहरख सिंह सहगल ने घोर अर्थ-संकट का सामना करते हुए 1 फरवरी, 1952 को दुनिया को अलविदा कह दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 739 |

बाहरी कड़ियाँ

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