मुंशी दयानारायण निगम

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मुंशी दयानारायण निगम
मुंशी दयानारायण निगम
पूरा नाम मुंशी दयानारायण निगम
जन्म 22 मार्च, 1882
जन्म भूमि कानपुर, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 1942
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र उर्दू के प्रसिद्ध पत्रकार और समाज सुधारक
विद्यालय 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय', उत्तर प्रदेश
प्रसिद्धि 'ज़माना' के सम्पादक
विशेष योगदान दयानारायण निगम ने मासिक पत्र 'ज़माना' के माध्यम से 'उर्दू साहित्य' की अभूतपूर्व सेवा की।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी 'नवाबराय' के नाम से लिखने वाले 'धनपतराय श्रीवास्तव' को 'प्रेमचन्द' का नाम भी दयानारायण निगम जी ने ही दिया था।

मुंशी दयानारायण निगम (अंग्रेज़ी: Munshi Dayanarain Nigam, जन्म- 22 मार्च, 1882, कानपुर, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 1942) उर्दू के प्रसिद्ध पत्रकार और समाज सुधारक थे। वे बीसवीं सदी के प्रारंभ में कानपुर से प्रकाशित होने वाली उर्दू पत्रिका 'ज़माना' के संपादक थे। इन्होंने प्रसिद्ध लेखक मुंशी प्रेमचन्द की पहली कहानी 'दुनिया का सबसे अनमोल रतन' प्रकाशित की थी। मोहम्मद इक़बाल की प्रसिद्ध रचना 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' भी 'ज़माना' में ही पहली बार प्रकाशित हुई थी। भारत के विश्वविख्यात लेखक मुंशी प्रेमचन्द और दयानारायण निगम में बहुत गहरी मित्रता थी। 'नवाबराय' के नाम से लिखने वाले धनपतराय श्रीवास्तव को 'प्रेमचन्द' का नाम भी दयानारायण निगम जी ने ही दिया था।

जन्म तथा शिक्षा

मुंशी दयानारायण निगम का जन्म 22 मार्च, 1882 को उत्तर प्रदेश राज्य के कानपुर शहर में हुआ था। उन्होंने 'इलाहाबाद विश्वविद्यालय', उत्तर प्रदेश से शिक्षा पाई थी। निगम जी विद्वान् व्यक्तित्व के धनी थे। वे अंग्रेज़ी, उर्दू, फ़ारसी के साथ-साथ ये बंगला, गुजराती और मराठी भाषाओं के भी ज्ञाता थे।

सम्पादक व समाज सुधारक

दयानारायण निगम ने मासिक पत्र 'ज़माना' के माध्यम से 'उर्दू साहित्य' की अभूतपूर्व सेवा की। यद्यपि निगम जी राष्ट्रीय विचारों के व्यक्ति थे, किन्तु संघर्ष की राजनीति से वे प्राय: अलग ही रहे। समाज सुधार उनका प्रिय विषय था, और वे अंतर्जातीय और 'विधवा विवाह' पर बड़ा बल देते थे। कहते हैं कि उनके आग्रह पर ही मुंशी प्रेमचन्द एक विधवा स्त्री से विवाह करने के लिए तैयार हुए थे। मुंशी प्रेमचन्द की अधिकांश उर्दू रचनाएँ 'ज़माना' में ही छपती थीं। मोहम्मद इक़बाल की प्रसिद्ध रचना 'सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा' भी 'ज़माना' में ही पहली बार प्रकाशित हुई थी।

प्रेमचन्द से मित्रता

विश्व प्रसिद्ध लेखक प्रेमचन्द की मुंशी दयानारायण निगम से बड़ी घनिष्ठ मित्रता थी। प्रेमचन्द जी ने अपने जीवन-काल में हज़ारों पत्र लिखे थे, लेकिन उनके जो पत्र काल का ग्रास बनने से बच गये और जो सम्प्रति उपलब्ध हैं, उनमें से सर्वाधिक पत्र वे हैं, जो उन्होंने अपने समय की मशहूर उर्दू मासिक पत्रिका 'ज़माना' के यशस्वी सम्पादक मुंशी दयानारायण निगम को लिखे थे। यद्यपि दयानारायण निगम प्रेमचन्द से दो वर्ष छोटे थे, लेकिन प्रेमचन्द उनको सदा अपने बड़े भाई जैसा सम्मान देते थे।[1]

प्रेमचन्द को साहित्यिक पहचान दिलाना

इन दोनों विभूतियों के पारस्परिक सम्बन्धों को परिभाषित करना तो अत्यन्त दुरूह कार्य है, लेकिन प्रेमचन्द के इस आदर भाव का कारण यह प्रतीत होता है कि प्रेमचन्द को साहित्यिक संसार में पहचान दिलाने का महान् कार्य निगम जी ने उनकी रचनाओं को 'ज़माना' में निरन्तर प्रकाशित करके ही किया था और उस काल की पत्रिकाओं में तो यहाँ तक प्रकाशित हुआ कि प्रेमचन्द को प्रेमचन्द बनाने का श्रेय यदि किसी को है तो मुंशी दयानारायण निगम को ही है। यह तथ्य उल्लेखनीय है कि 'नवाबराय' के लेखकीय नाम से लिखने वाले 'धनपतराय श्रीवास्तव' ने 'प्रेमचन्द' का लेखकीय नाम मुंशी दयानारायण निगम के सुझाव से ही अंगीकृत किया था, जिसकी छाया में उनका वास्तविक तथा अन्य लेखकीय नाम गुमनामी के अंधेरों में खो गये। मुंशी प्रेमचन्द और मुंशी दयानारायण निगम के घनिष्ठ आत्मीय सम्बन्ध ही निगम जी को सम्बोधित प्रेमचन्द के पत्रों को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बना देते हैं, क्योंकि इन पत्रों में प्रेमचन्द ने जहाँ सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं पर चर्चा की है, वहीं अपनी घरेलू तथा आर्थिक समस्याओं की चर्चा भी उन्होंने पूरी तरह खुल कर की है।

मुंशी प्रेमचन्द सादा एवं सरल जीवन के मालिक थे और वे सदैव मस्त रहते थे। वे जीवन में विषमताओं और कटुताओं से लगातार खेलते रहे। इस खेल को उन्होंने बाजी मान लिया, जिसको हमेशा जीतना चाहते थे। अपने जीवन की परेशानियों को लेकर उन्होंने एक बार मुंशी दयानारायण निगम को एक पत्र में लिखा था कि- "हमारा काम तो केवल खेलना है, खूब दिल लगाकर खेलना, खूब जी तोड़ खेलना, अपने को हार से इस तरह बचाना मानों हम दोनों लोकों की संपत्ति खो बैठेंगे। किन्तु हारने के पश्चात् पटखनी खाने के बाद, धूल झाड़ खड़े हो जाना चाहिए और फिर ताल ठोंक कर विरोधी से कहना चाहिए कि एक बार फिर। जैसा कि सूरदास कह गए हैं, "तुम जीते हम हारे। पर फिर लड़ेंगे।" कहा जाता है कि प्रेमचन्द हंसोड़ प्रकृति के मालिक थे। विषमताओं भरे जीवन में हंसोड़ होना एक बहादुर का काम है। इससे इस बात को भी समझा जा सकता है कि वह अपूर्व जीवनी-शक्ति का द्योतक थे। सरलता, सौजन्यता और उदारता के वह मूर्ति थे।[2]

'ज़माना' का प्रेमचन्द विशेषांक

प्रेमचन्द के मानस को समझने के लिए मुंशी दयानारायण निगम के नाम लिखे उनके पत्रों के महत्त्व का अनुमान इस तथ्य से लगा पाना सम्भव है कि जब 8 अक्टूबर, 1936 को प्रेमचन्द के देहावसान के उपरान्त 'ज़माना' का प्रेमचन्द विशेषांक दिसम्बर, 1937 में प्रकाशित होकर साहित्य-संसार के हाथ में आया तो उसमें 'ज़माना' के सम्पादक दयानारायण निगम के कई लेख प्रकाशित हुए, जिनमें सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण लेख था- प्रेमचन्द के खयालात। इस सुदीर्घ लेख में निगम साहब ने प्रेमचन्द की विचार-यात्रा का तथ्यपरक दिग्दर्शन कराया था। उल्लेखनीय है कि इस लेख में प्रेमचन्द की विचार-यात्रा को स्पष्ट करने के लिए निगम जी ने प्रेमचन्द के उन पत्रों में से 50 से अधिक पत्रों का सार्थक प्रयोग किया, जो उन्होंने समय-समय पर निगम साहब को लिखे थे और जो उन्होंने बड़े जतन से संभालकर रख छोड़े थे। प्रेमचन्द के देहावसान के अनन्तर मुंशी दयानारायण निगम ने प्रेमचन्द के वे सभी पत्र जिनका उपयोग वे अपने उपर्युक्त लेख में कर चुके थे, मदन गोपाल को सौंप दिए। [1]

निधन

वर्ष 1942 ई. में मुंशी दयानारायण निगम का देहान्त हो गया और वे पंचतत्त्व में विलीन हो गये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 प्रेमचन्द के पत्र (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 22 मार्च, 2013।
  2. प्रेमचन्द का जीवन परिचय (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 22 मार्च, 2013।

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