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'''विष्णु सीताराम सुकथंकर''' (जन्म- [[1896]], मृत्यु- [[1942]]) प्रसिद्ध भाषाविज्ञानी थे। [[महाभारत]] के मूल पाठ को निर्धारित करने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी।  
 
'''विष्णु सीताराम सुकथंकर''' (जन्म- [[1896]], मृत्यु- [[1942]]) प्रसिद्ध भाषाविज्ञानी थे। [[महाभारत]] के मूल पाठ को निर्धारित करने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी।  
 
==परिचय==
 
==परिचय==
प्रसिद्ध भाषाविज्ञानी और [[महाभारत]] के मूल पाठ के निर्धारण में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले विष्णु सीताराम सुकथंकर का जन्म [[1896]] ईस्वी को हुआ था। [[भारत]] में शिक्षा पाने के बाद वे कैंब्रिज विश्वविद्यालय गये और वहां से गणित में स्नातकोत्तर डिग्री ली। उसके बाद उनके अध्ययन की दिशा बदल गई। उनका [[भाषाविज्ञान]] और [[संस्कृत]] की ओर रुझान हुआ और वर्लिन जाकर भाषाविज्ञान का विधिवत अध्ययन किया। भारत लौटकर आने पर उनकी नियुक्ति पुरातत्वीय पर्यवेक्षण विभाग में हुई। वहां रहते हुए सुकथंकर ने पूर्व मध्यकालीन के अनेक शिलालेखों का स्पष्टीकरण करने के साथ-साथ [[महाकवि भास]] आदि के संबंध में भी महत्वपूर्ण खोजें कीं। सुकथंकर के निधन के बाद उनकी रचनाओं का दो खंडों में प्रकाशन हुआ।
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प्रसिद्ध भाषाविज्ञानी और [[महाभारत]] के मूल पाठ के निर्धारण में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले विष्णु सीताराम सुकथंकर का जन्म [[1896]] ईस्वी को हुआ था। [[भारत]] में शिक्षा पाने के बाद वे कैंब्रिज विश्वविद्यालय गये और वहां से गणित में स्नातकोत्तर डिग्री ली। उसके बाद उनके अध्ययन की दिशा बदल गई। उनका [[भाषाविज्ञान]] और [[संस्कृत]] की ओर रुझान हुआ और वर्लिन जाकर भाषाविज्ञान का विधिवत अध्ययन किया। भारत लौटकर आने पर उनकी नियुक्ति पुरातत्वीय पर्यवेक्षण विभाग में हुई। वहां रहते हुए सुकथंकर ने पूर्व मध्यकालीन के अनेक शिलालेखों का स्पष्टीकरण करने के साथ-साथ [[महाकवि भास]] आदि के संबंध में भी महत्वपूर्ण खोजें कीं। सुकथंकर के निधन के बाद उनकी रचनाओं का दो खंडों में प्रकाशन हुआ।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=811|url=}}</ref>
 
==महाभारत के मूल पाठ में योगदान==
 
==महाभारत के मूल पाठ में योगदान==
 
विष्णु सीताराम सुकथंकर की [[महाभारत]] के मूल पाठ को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। महाभारत, मीमांसा के प्रधान संपादक के रूप में भांडारकर प्राच्य अनुसंधानशाला में उन्होंने [[1925]] ईस्वी में यह कार्य आरंभ किया था। उन्होंने मूल पाठ संबंधी विवेचन की नई विधाएं प्रस्तुत कीं। वह विभिन्न [[पांडुलिपि|पांडुलिपियों]] के आधार पर महाभारत का मूल पाठ निर्धारित करने में संलग्न रहे। उन्होंने [[आदिपर्व महाभारत|आदिपर्व]] और आरण्यकपर्व का स्वयं संपादन किया।  
 
विष्णु सीताराम सुकथंकर की [[महाभारत]] के मूल पाठ को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। महाभारत, मीमांसा के प्रधान संपादक के रूप में भांडारकर प्राच्य अनुसंधानशाला में उन्होंने [[1925]] ईस्वी में यह कार्य आरंभ किया था। उन्होंने मूल पाठ संबंधी विवेचन की नई विधाएं प्रस्तुत कीं। वह विभिन्न [[पांडुलिपि|पांडुलिपियों]] के आधार पर महाभारत का मूल पाठ निर्धारित करने में संलग्न रहे। उन्होंने [[आदिपर्व महाभारत|आदिपर्व]] और आरण्यकपर्व का स्वयं संपादन किया।  
 
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09:24, 7 जुलाई 2018 का अवतरण

विष्णु सीताराम सुकथंकर (जन्म- 1896, मृत्यु- 1942) प्रसिद्ध भाषाविज्ञानी थे। महाभारत के मूल पाठ को निर्धारित करने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही थी।

परिचय

प्रसिद्ध भाषाविज्ञानी और महाभारत के मूल पाठ के निर्धारण में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले विष्णु सीताराम सुकथंकर का जन्म 1896 ईस्वी को हुआ था। भारत में शिक्षा पाने के बाद वे कैंब्रिज विश्वविद्यालय गये और वहां से गणित में स्नातकोत्तर डिग्री ली। उसके बाद उनके अध्ययन की दिशा बदल गई। उनका भाषाविज्ञान और संस्कृत की ओर रुझान हुआ और वर्लिन जाकर भाषाविज्ञान का विधिवत अध्ययन किया। भारत लौटकर आने पर उनकी नियुक्ति पुरातत्वीय पर्यवेक्षण विभाग में हुई। वहां रहते हुए सुकथंकर ने पूर्व मध्यकालीन के अनेक शिलालेखों का स्पष्टीकरण करने के साथ-साथ महाकवि भास आदि के संबंध में भी महत्वपूर्ण खोजें कीं। सुकथंकर के निधन के बाद उनकी रचनाओं का दो खंडों में प्रकाशन हुआ।[1]

महाभारत के मूल पाठ में योगदान

विष्णु सीताराम सुकथंकर की महाभारत के मूल पाठ को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। महाभारत, मीमांसा के प्रधान संपादक के रूप में भांडारकर प्राच्य अनुसंधानशाला में उन्होंने 1925 ईस्वी में यह कार्य आरंभ किया था। उन्होंने मूल पाठ संबंधी विवेचन की नई विधाएं प्रस्तुत कीं। वह विभिन्न पांडुलिपियों के आधार पर महाभारत का मूल पाठ निर्धारित करने में संलग्न रहे। उन्होंने आदिपर्व और आरण्यकपर्व का स्वयं संपादन किया।

मृत्यु

विष्णु सीताराम सुकथंकर का 1942 ई. में निधन हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 811 |

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख




प्रसिद्ध भाषावैज्ञानी और महाभारत के मूल पाठ के निर्धारण में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले विष्णु सीताराम सुकंथकर का जन्म 1896 ईस्वी को हुआ था। भारत में शिक्षा पाने के बाद कैंब्रिज विश्वविद्यालय गये और वहां से गणित में स्नातकोत्तर डिग्री ली। फिर उनके अध्ययन की दिशा बदल गई। भाषा विज्ञान और संस्कृत की ओर प्रवृत्त हुए और वर्लिन जाकर भाषा विज्ञान का विधिवत अध्ययन किया। भारत वापस आने पर उनकी नियुक्ति पुरातत्वीय सर्वेक्षण विभाग में हुई। वहां रहते हुए सुकंथकर ने पूर्व मध्यकालीन अनेक शिलालेखों का स्पष्टीकरण करने के साथ-साथ महाकवि भास आदि के संबंध में भी महत्वपूर्ण खोजें की। उनका सबसे महत्वपूर्ण काम महाभारत मीमांसा के प्रधान संपादक के रूप में भांडारकर प्राच्य अनुसंधानशाला में उन्होंने 1925 ईस्वी में यह कार्य आरंभ किया उन्होंने मूल पाठ संबंधी विवेचन की नई विधाएं प्रस्तुत की।वह विभिन्न पांडुलिपियों के आधार पर महाभारत का मूल पाठ निर्धारित करने में संलग्न रहे आदि पर्व और आरण्यक पर्व का उन्होंने स्वयं संपादन किया। 1942 ईस्वी में सुकंथकर के निधन के बाद उनकी रचनाओं का दो खंडों में प्रकाशन हुआ। भारतीय चरित्र कोश 811