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रामकृष्ण परमहंस की जीवन संगिनी शारदा देवी का जन्म [[22 सितंबर]], 1853 ई. को हुआ था। उनका बचपन का नाम शारदामणि था। उनके पिता रामचंद्र मुखोपाध्याय पुरोहिताई करने वाले साधारण [[ब्राह्मण]] थे। रामकृष्ण परमहंस [[कोलकाता]] के [[दक्षिणेश्वर मंदिर कोलकाता|दक्षिणेश्वर मंदिर]] में भक्ति में इतने मग्न रहते थे कि लोग उन्हें पागल समझने लगे। उनकी वृद्ध माता चंद्रमणि [[पुत्र]] की यह दशा देखकर चिंतित हुईं। वह यह सोच कर उन्हें अपने गांव कामारपुकुर ले आईं कि [[विवाह]] हो जाने से पुत्र की मानसिक स्थिति बदल जाएगी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=836|url=}}</ref> | रामकृष्ण परमहंस की जीवन संगिनी शारदा देवी का जन्म [[22 सितंबर]], 1853 ई. को हुआ था। उनका बचपन का नाम शारदामणि था। उनके पिता रामचंद्र मुखोपाध्याय पुरोहिताई करने वाले साधारण [[ब्राह्मण]] थे। रामकृष्ण परमहंस [[कोलकाता]] के [[दक्षिणेश्वर मंदिर कोलकाता|दक्षिणेश्वर मंदिर]] में भक्ति में इतने मग्न रहते थे कि लोग उन्हें पागल समझने लगे। उनकी वृद्ध माता चंद्रमणि [[पुत्र]] की यह दशा देखकर चिंतित हुईं। वह यह सोच कर उन्हें अपने गांव कामारपुकुर ले आईं कि [[विवाह]] हो जाने से पुत्र की मानसिक स्थिति बदल जाएगी।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=836|url=}}</ref> | ||
==वैवाहिक जीवन== | ==वैवाहिक जीवन== | ||
− | शारदा देवी का जिस समय विवाह हुआ था उस वक्त शारदा देवी की उम्र 6 वर्ष और रामकृष्ण परमहंस की 23 वर्ष थी। 14 वर्ष की उम्र में शारदा का द्विरागमन हुआ और वे अपनी ससुराल गईं। रामकृष्ण ज्यादातर दक्षिणेश्वर मंदिर में भक्ति में ही लीन रहते थे। शारदा वापिस अपने पिता के गांव जयरामबारी आ जातीं थीं। किसी तरह 4 वर्ष गुजर गए। एक बार शारदा देवी रामकृष्ण की अस्वस्थता का समाचार सुनकर सीधे दक्षिणेश्वर मंदिर पहुंच गईं। वे स्वयं भी बीमार | + | शारदा देवी का जिस समय विवाह हुआ था, उस वक्त शारदा देवी की उम्र 6 वर्ष और रामकृष्ण परमहंस की 23 वर्ष थी। 14 वर्ष की उम्र में शारदा का द्विरागमन हुआ और वे अपनी ससुराल गईं। रामकृष्ण ज्यादातर दक्षिणेश्वर मंदिर में [[भक्ति]] में ही लीन रहते थे। शारदा वापिस अपने पिता के [[गांव]] जयरामबारी आ जातीं थीं। किसी तरह 4 वर्ष गुजर गए। एक बार शारदा देवी रामकृष्ण की अस्वस्थता का समाचार सुनकर सीधे दक्षिणेश्वर मंदिर पहुंच गईं। वे स्वयं भी बीमार थीं। स्वामीजी ने उनकी सेवा सुश्रुषा की और शारदा के रहने की व्यवस्था अलग कमरे में की गई। |
==आध्यात्मिक ज्ञान== | ==आध्यात्मिक ज्ञान== | ||
− | रामकृष्ण परमहंस ने शारदा देवी को आध्यात्मिक ज्ञान | + | रामकृष्ण परमहंस ने शारदा देवी को आध्यात्मिक ज्ञान दिया। एक दिन स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने 'दिव्य माता दुर्गा' की [[पूजा]] का अनुष्ठान किया और [[दुर्गा]] के लिए बने आसन पर शारदा देवी को बैठाकर उन्हें दंडवत प्रणाम किया। फिर बोले- "आज से तुम मेरी पत्नी नहीं मेरी दिव्य माता की प्रतिमूर्ति हो।" इस प्रकार शारदा देवी मां शारदा बन गईं। उन्होंने अपने स्वामी का मार्ग अपनाया। 1888 ई. में परमहंस के स्वर्गारोहण के समय तक वे उनके रिक्त स्थान की पूर्ति करने में समर्थ हो गईं। |
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10:54, 17 जुलाई 2018 का अवतरण
शारदा देवी (जन्म- 22 सितंबर, 1853, मृत्यु- 20 जुलाई, 1920) रामकृष्ण परमहंस की जीवन संगिनी थीं। 6 वर्ष की शारदामणि का 23 वर्ष के रामकृष्ण के साथ विवाह हुआ था। कुछ वर्ष बाद रामकृष्ण परमहंस अपनी पत्नी शारदा देवी को दिव्य माता की प्रतिमूर्ति मानने लगे।
परिचय
रामकृष्ण परमहंस की जीवन संगिनी शारदा देवी का जन्म 22 सितंबर, 1853 ई. को हुआ था। उनका बचपन का नाम शारदामणि था। उनके पिता रामचंद्र मुखोपाध्याय पुरोहिताई करने वाले साधारण ब्राह्मण थे। रामकृष्ण परमहंस कोलकाता के दक्षिणेश्वर मंदिर में भक्ति में इतने मग्न रहते थे कि लोग उन्हें पागल समझने लगे। उनकी वृद्ध माता चंद्रमणि पुत्र की यह दशा देखकर चिंतित हुईं। वह यह सोच कर उन्हें अपने गांव कामारपुकुर ले आईं कि विवाह हो जाने से पुत्र की मानसिक स्थिति बदल जाएगी।[1]
वैवाहिक जीवन
शारदा देवी का जिस समय विवाह हुआ था, उस वक्त शारदा देवी की उम्र 6 वर्ष और रामकृष्ण परमहंस की 23 वर्ष थी। 14 वर्ष की उम्र में शारदा का द्विरागमन हुआ और वे अपनी ससुराल गईं। रामकृष्ण ज्यादातर दक्षिणेश्वर मंदिर में भक्ति में ही लीन रहते थे। शारदा वापिस अपने पिता के गांव जयरामबारी आ जातीं थीं। किसी तरह 4 वर्ष गुजर गए। एक बार शारदा देवी रामकृष्ण की अस्वस्थता का समाचार सुनकर सीधे दक्षिणेश्वर मंदिर पहुंच गईं। वे स्वयं भी बीमार थीं। स्वामीजी ने उनकी सेवा सुश्रुषा की और शारदा के रहने की व्यवस्था अलग कमरे में की गई।
आध्यात्मिक ज्ञान
रामकृष्ण परमहंस ने शारदा देवी को आध्यात्मिक ज्ञान दिया। एक दिन स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने 'दिव्य माता दुर्गा' की पूजा का अनुष्ठान किया और दुर्गा के लिए बने आसन पर शारदा देवी को बैठाकर उन्हें दंडवत प्रणाम किया। फिर बोले- "आज से तुम मेरी पत्नी नहीं मेरी दिव्य माता की प्रतिमूर्ति हो।" इस प्रकार शारदा देवी मां शारदा बन गईं। उन्होंने अपने स्वामी का मार्ग अपनाया। 1888 ई. में परमहंस के स्वर्गारोहण के समय तक वे उनके रिक्त स्थान की पूर्ति करने में समर्थ हो गईं।
मृत्यु
दिव्य माता की प्रतिमूर्ति शारदा देवी ने 20 जुलाई, 1920 ई. को देह त्याग दी।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 836 |
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