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विशाखा एक प्रबुद्ध बौद्ध महिषी, योग्य और एक संस्कारवान महिला थी।

परिचय

एक प्रबुद्ध बौद्ध महिषी जिसका जन्म श्रावस्ती के निकट साकेत नगर में धनंजय नाम के सेठ के घर में हुआ था। उसका विवाह श्रावस्ती के सेठ भिगार के बेटे पूर्ववर्धन के साथ हुआ था। एक बार जब सेठ भिगार खाना खा रहे थे और विशाखा अपने ससुर को पंखा से हवा कर रही थी उसी समय एक भिखारी द्वार पर भिक्षा के लिये आ गया। भिखारी को देखकर विशाखा बोली कि इस समय मेरे ससुर बासी भोजन कर रहे हैं अतः आज आप आगे जाकर भिक्षा लें। विशाखा की बात सुनकर सेठ बहुत नाराज हो गया और विशाखा को घर से बाहर निकाल देने का आदेश दे दिया। विशाखा इस बात से विचलित नहीं हुई। उसने कहा पहले विवाह की शर्त के अनुसार मेरे पिता को बताए हुए 8 ब्राह्मणों के सामने मेरा अपराध सिद्ध कीजिए।[1]

योग्यता

विशाखा एक योग्य प्रबुद्ध बौद्ध महिषी थी यह बात इस निर्णय से स्पष्ट हो जाती है कि जब अपराध सिद्ध करने के लिये ब्राह्मण बुलाए गए तो विशाखा ने स्पष्ट किया कि मेरे कहने का तात्पर्य यह था कि मेरे ससुर पुण्य का कोई नया काम न करके अपने पिछले पुण्यों का ही भोग कर रहे हैं इसलिए मैंने इसे बासी खाना बताया। बिशाखा ने यह भी कहा कि मुझे अपने पिता की दी हुई शिक्षा भी याद है कि घर की आग बाहर न ले जाई जाए और बाहर की आग अंदर न लाई जाए। बिशाखा ने सुखी जीवन के लिए पिता द्वारा बताए गये अन्य उपदेशों की भी जानकारी दी। उक्त बातों को सुनकर उपस्थित विद्वानों ने सेठ को ही इतनी योग्य बहू को प्रताड़ित करने का दोषी ठहराया। सेठ अपनी गलती समझ गया और उसने बुद्ध के चरणों में सिर झुकाकर क्षमा याचना की और कहा यदि विशाखा मेरे घर न आती तो मैं अंधेरे में पड़ा रहता। विशाखा ने पूर्वाराम नामक उद्यान में 'भिक्षु संघ' के लिए 'भिगार माता प्रसाद' नाम से एक भव्य भवन का निर्माण कराया था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 805 |

बाहरी कड़ियाँ

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एक प्रबुद्ध बौद्ध महिषी जिसका जन्म श्रावस्ती के निकट साकेत नगर में धनंजय नाम के सेठ के घर में हुआ था। उसका विवाह श्रावस्ती के सेठभिगार के बेटे पूर्ववर्धन के साथ हुआ था एक दिन जब सेठ भिगार भोजन कर रहे थे और विशाखा अपने ससुर को पंखा झल रही थी तभी एक भिखारी द्वार पर आ खड़ा हुआ। उसे देखकर विशाखा बोली इस समय मेरे ससुर बासी भोजन कर रहे हैं अतः आज आप आगे जाकर भिक्षा ग्रहण करें। उसका इतना कहना था कि सेठ का पारा आसमान पर चढ़ गया और विशाखा को घर से निकाल देने का आदेश दे डाला। विशाखा इससे विचलित नहीं हुई। उसने कहा पहले विवाह की शर्त के अनुसार मेरे पिता को बताए हुए 8 ब्राह्मणों के सामने मेरा अपराध सिद्ध कीजिए। ब्राह्मण बुलाए गए विशाखा ने स्पष्ट किया कि मेरे कहने का आशय यह था कि मेरे ससुर पुण्य का कोई नया काम न करके अपने पिछले पुण्यों का ही भोग कर रहे हैं इसलिए मैंने इसे बासी खाना कहा उसने यह भी बताया कि मुझे अपने पिता की दी हुई है शिक्षा भी याद है कि घर की आग बाहर न ले जाई जाए और बाहर की आग अंदर न लाई जाए। उसने सुखी जीवन के लिए पिता द्वारा बताए हुए अन्य उपदेशों का भी उल्लेख किया इस पर उपस्थित विद्वानों ने सेठ को ही इतनी विदुषी बहू को प्रताड़ित करने का दोषी बताया। सेठ अपनी गलती समझ गया उसने बुद्ध के चरणों में सिर नवाकर क्षमा मांगी और कहा यदि विशाखा मेरे घर न आती तो मैं अंधकार में पड़ा रहता। बाद में विशाखा ने पूर्वाराम नामक उद्यान में 'भिक्षु संघ' के लिए 'भिगार माता प्रसाद' नाम से एक भव्य भवन का निर्माण कराया। भारतीय चरित्र कोश 805