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शफात अहमद ख़ां (जन्म- 1893, मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 1948) प्रसिद्ध मुस्लिम राष्ट्रवादी नेता एवं इतिहास और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे थे। वे जिन्ना की पाकिस्तान नीति के खिलाफ थे।

परिचय

प्रसिद्ध मुस्लिम राष्ट्रवादी विद्वान नेता और नेहरु जी की अध्यक्षता में बनी केंद्रीय अंतरिम सरकार के मंत्री सर शफ़ात अहमद ख़ां का जन्म 1893 ईसवी में मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ। उन्होंने इंग्लैंड में शिक्षा पाई और डॉक्टरेट की डिग्री ली। 2 वर्ष तक लंदन में अध्यापन का काम करने के बाद वे पहले मद्रास विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के और बाद में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर नियुक्त हुए।[1]

जिन्ना विचारधारा के विरोधी

शफात अहमद ख़ां जिन्ना विचारधारा के विरोधी थे। जिन्ना की राजनीति से मतभेद के कारण वे कांग्रेस के निकट आए। वे मुसलमानों के लिए अलग से संरक्षण के समर्थक तो थे पर जिन्ना की पाकिस्तान की मांग के पक्ष में नहीं थे। जिन्ना की मुस्लिम लीग का प्रभाव बढ़ने के बाद उनकी राजनीतिक सक्रियता कम हो गई, यद्यपि मुस्लिम नेता के रूप में उन्होंने 1930 में लंदन के गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया था। शफ़ात अहमद 1924 में मुस्लिम निर्वाचन के क्षेत्र से प्रवेश की कौंसिल के सदस्य चुने गए।

योगदान

डॉक्टर शफ़ात अहमद सन 1941 से 1945 तक दक्षिण अफ्रीका में भारत के हाई कमिश्नर रहे। वह देश के लिए औपनिवेशक स्वराज की स्थिति को अधिक उपयोगी मानते थे। इतिहास के विद्वान शफात अहमद खान ने इस विषय में अनेक ग्रंथों की रचना की। इसलिए 1946 में जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अंतरिम सरकार में मंत्री के रूप में सम्मिलित करने का निश्चय किया। इससे मुस्लिम संप्रदायवादी कुपित होकर मंत्रिमंडल में सम्मिलित होने से पहले ही शफात अहमद खान पर छुरे से हमला कर दिया। वे मंत्री पद पर भी अधिक समय तक नहीं रहे। मुस्लिम लीग द्वारा मंत्रिमंडल में सम्मिलित होने का निर्णय करने के बाद उन्हें हटना पड़ा।

मृत्यु

इस राष्ट्रवादी विद्वान डॉक्टर शफ़ात अहमद ख़ां का छुरे की चोट के कारण 1948 में इंतकाल हो गया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 829 |

बाहरी कड़ियाँ

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प्रसिद्ध मुस्लिम नेता और नेहरु जी की अध्यक्षता में बनी केंद्रीय अंतरिम सरकार के मंत्री सर शफ़ात अहमद ख़ां का जन्म 1893 ईसवी में मुरादाबाद उत्तर प्रदेश में हुआ। उन्होंने इंग्लैंड में शिक्षा पाई और डॉक्टरेट की डिग्री ली। 2 वर्ष तक लंदन में अध्यापन का काम करने के बाद वे पहले मद्रास विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के और बाद में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर नियुक्त हुए।

डॉक्टर शफ़ात अहमद 1924 में  मुस्लिम निर्वाचन के क्षेत्र से प्रवेश की कौंसिल के सदस्य चुने गए। वे मुसलमानों के लिए अलग से संरक्षण की मांग करते थे पर जिन्ना की पाकिस्तान की मांग के पक्ष में नहीं थे।  जिन्ना की मुस्लिम लीग का प्रभाव बढ़ने के बाद उनकी राजनीतिक सक्रियता कम हो गई, यद्यपि मुस्लिम नेता के रूप में उन्होंने 1930 में लंदन के गोलमेज सम्मेलन में भाग लिया। 
सन 1941 से 1945 तक सर शफ़ात दक्षिण अफ्रीका में भारत के हाई कमिश्नर रहे।  वह देश के लिए ओपनिवेशक स्वराज की स्थिति को अधिक उपयोगी मानते थे।  मूलतः इतिहास के विद्वान शफात अहमद खान ने इस विषय में अनेक ग्रंथों की रचना की।  जिन्ना की राजनीति से मतभेद के कारण वे कांग्रेस के निकट आए।  इसलिए 1946 में जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें अंतरिम सरकार में मंत्री के रूप में सम्मिलित करने का निश्चय किया।  इससे मुस्लिम संप्रदायवादी बड़े कुपित हुए और मंत्रिमंडल में  सम्मिलित होने से पहले ही उन पर छुरे से हमला किया गया था।  मंत्री पद पर भी अधिक समय तक नहीं रहे। मुस्लिम लीग द्वारा मंत्रिमंडल में सम्मिलित होने का निर्णय करने के बाद उन्हें हट जाना पड़ा।  छुरे की चोट के कारण ही  इस राष्ट्रवादी विद्वान का 1948 में देहांत हो गया।

भारतीय चरित्र कोश 829