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ब्रह्मानन्द सरस्वती मधुसूदन सरस्वती के समकालीन थे। ये उच्च तार्किकतापूर्ण 'अद्वैतसिद्धि ग्रन्थ' के टीकाकार हैं। इनका स्थितिकाल 17वीं शताब्दी है। इनके दीक्षागुरु परमानन्द सरस्वती और विद्यागुरु नारायणतीर्थ थे।

  • माध्व मतावलम्बी व्यासराज के शिष्य रामाचार्य ने मधुसूदन सरस्वती से अद्वैतसिद्धि का अध्ययन कर फिर उन्ही के मत का खण्डन करने के लिए 'तरगिंणी' नामक ग्रन्थ की रचना की थी।
  • इससे असन्तुष्ट होकर ब्रह्मनन्दजी ने अपने ग्रन्थ 'अद्वैतसिद्धि' पर 'लघुचन्द्रिका' नाम की टीका लिखकर तरगिंणीकार के मत का खण्डन किया।
  • अपने इस कार्य में उन्हें पूर्ण-रूपेण सफलता प्राप्त हुई।
  • ब्रह्मानन्द सरस्वती ने रामाचार्य की सभी आपत्तियों का बहुत ही सन्तोषजनक समाधान किया।
  • संसार का मिथ्यात्व, एकजीववाद, निर्गुणत्व, ब्रह्मनन्द, नित्यनिरतिशय आनन्दस्वरूप, मुक्तिवाद-इन सभी विषयों का इन्होंने दार्शनिक समर्थन किया है।
  • ब्रह्मानन्द सरस्वती को अद्वैतवाद का एक प्रधान आचार्य माना जाता हैं।
  • इनकी टीकावली के आधार पर द्वैत-अद्वैत वादों का तार्किक शास्त्रार्थ या परस्पर खण्डन-मण्डन अब तक चला आ रहा है, जो दार्शनिक प्रतिभा का एक मनोरंजन है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

हिन्दू धर्मकोश |लेखक: डॉ. राजबली पाण्डेय |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 459 |


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