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'''लाल मिट्टी''' का निर्माण जलवायविक परिवर्तनों के परिणाम स्वरूप रबेदार एवं कायन्तरित शैलों के विघटन एवं वियोजन से होता है।  इस मिट्टी में [[कपास]], [[गेहूँ]], [[दाल|दालें]] तथा मोटे अनाजों की [[कृषि]] की जाती है।
 
'''लाल मिट्टी''' का निर्माण जलवायविक परिवर्तनों के परिणाम स्वरूप रबेदार एवं कायन्तरित शैलों के विघटन एवं वियोजन से होता है।  इस मिट्टी में [[कपास]], [[गेहूँ]], [[दाल|दालें]] तथा मोटे अनाजों की [[कृषि]] की जाती है।
==प्राप्ति स्थिति==
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==प्राप्ति स्थान==
 
इस मिट्टी का विस्तार लगभग 5.18 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में पाया जाता हे। लगभग 2 लाख वर्ग किमी क्षेत्र पर विस्तृत यह मिट्टी [[आन्ध्र प्रदेश]] एवं [[मध्य प्रदेश]] राज्यों के पूर्वी भागों, [[छोटा नागपुर पठार|छोटानागपुर का पठारी]] क्षेत्र, [[पश्चिम बंगाल]] के उत्तरी-पश्चिमी ज़िलों, [[मेघालय]] की [[खासी पहाड़ियाँ|खासी]], [[जैंतिया पहाड़ियाँ|जैंतिया]] तथा गारों के पहाडत्री क्षेत्रों, [[नागालैण्ड]], [[राजस्थान]] में [[अरावली पर्वत श्रृंखला|अरावली पर्वत]] के पूर्वी क्षेत्रों तथा [[महाराष्ट्र]], [[तमिलनाडु]] एवं [[कर्नाटक]] के कुछ क्षेत्रों में पायी जाती है।
 
इस मिट्टी का विस्तार लगभग 5.18 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में पाया जाता हे। लगभग 2 लाख वर्ग किमी क्षेत्र पर विस्तृत यह मिट्टी [[आन्ध्र प्रदेश]] एवं [[मध्य प्रदेश]] राज्यों के पूर्वी भागों, [[छोटा नागपुर पठार|छोटानागपुर का पठारी]] क्षेत्र, [[पश्चिम बंगाल]] के उत्तरी-पश्चिमी ज़िलों, [[मेघालय]] की [[खासी पहाड़ियाँ|खासी]], [[जैंतिया पहाड़ियाँ|जैंतिया]] तथा गारों के पहाडत्री क्षेत्रों, [[नागालैण्ड]], [[राजस्थान]] में [[अरावली पर्वत श्रृंखला|अरावली पर्वत]] के पूर्वी क्षेत्रों तथा [[महाराष्ट्र]], [[तमिलनाडु]] एवं [[कर्नाटक]] के कुछ क्षेत्रों में पायी जाती है।
 
==निर्माण==
 
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12:32, 23 अप्रैल 2012 का अवतरण

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लाल मिट्टी का निर्माण जलवायविक परिवर्तनों के परिणाम स्वरूप रबेदार एवं कायन्तरित शैलों के विघटन एवं वियोजन से होता है। इस मिट्टी में कपास, गेहूँ, दालें तथा मोटे अनाजों की कृषि की जाती है।

प्राप्ति स्थान

इस मिट्टी का विस्तार लगभग 5.18 लाख वर्ग किमी क्षेत्र में पाया जाता हे। लगभग 2 लाख वर्ग किमी क्षेत्र पर विस्तृत यह मिट्टी आन्ध्र प्रदेश एवं मध्य प्रदेश राज्यों के पूर्वी भागों, छोटानागपुर का पठारी क्षेत्र, पश्चिम बंगाल के उत्तरी-पश्चिमी ज़िलों, मेघालय की खासी, जैंतिया तथा गारों के पहाडत्री क्षेत्रों, नागालैण्ड, राजस्थान में अरावली पर्वत के पूर्वी क्षेत्रों तथा महाराष्ट्र, तमिलनाडु एवं कर्नाटक के कुछ क्षेत्रों में पायी जाती है।

निर्माण

ग्रेनाइट शैलों से निर्माण के कारण इसका रंग भूरा, चाकलेटी, पीला अथवा काला तक पाया जाता है। इसमें छोटे एवं बड़े दोनों प्रकार के कण पाये जाते हैं। छोटे कणों वाली मिट्टी काफी उपजाऊ होती है, जबकि बड़े कणों वाली मिट्टी प्रायः उर्वरताविहीन बंजरभूमि के रूप में पायी जाती है। इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस तथ जीवांशों की कम मात्रा मिलती है, जबकि लौह तत्व, एल्युमिना तथा चूना पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

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