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*[[भारत]] में स्वामी प्राणनाथ ने कई प्रांतों में अपने मत का प्रचार-प्रसार किया। आज भी इनके अनुयायी बड़ी संख्या में पाये जाते हैं।
 
*[[भारत]] में स्वामी प्राणनाथ ने कई प्रांतों में अपने मत का प्रचार-प्रसार किया। आज भी इनके अनुयायी बड़ी संख्या में पाये जाते हैं।
*[[दक्षिण भारत]] में जो स्थान [[समर्थ गुरु रामदास]] का है, वही स्थान [[बुन्देलखंड]] में प्राणनाथ का रहा है।
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*[[दक्षिण भारत]] में जो स्थान [[समर्थ रामदास|समर्थ गुरु रामदास]] का है, वही स्थान [[बुन्देलखंड]] में प्राणनाथ का रहा है।
*प्राणनाथ छत्रसाल के मार्ग दर्शक, अध्यात्मिक गुरु और विचारक थे। जिस प्रकार समर्थ गुरु रामदास के कुशल निर्देशन में [[छत्रपति शिवाजी]] ने अपने पौरुष, पराक्रम और चातुर्य से [[मुग़ल|मुग़लों]] के छक्के छुड़ा दिए, ठीक उसी प्रकार गुरु प्राणनाथ के मार्गदर्शन में [[छत्रसाल]] ने अपनी वीरता, चातुर्यपूर्ण रणनीति और कौशल से विदेशियों को परास्त किया था।
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*प्राणनाथ छत्रसाल के मार्गदर्शक, अध्यात्मिक गुरु और विचारक थे। जिस प्रकार समर्थ गुरु रामदास के कुशल निर्देशन में [[शिवाजी|छत्रपति शिवाजी]] ने अपने पौरुष, पराक्रम और चातुर्य से [[मुग़ल|मुग़लों]] के छक्के छुड़ा दिए थे, ठीक उसी प्रकार गुरु प्राणनाथ के मार्गदर्शन में [[छत्रसाल]] ने अपनी वीरता, चातुर्यपूर्ण रणनीति और कौशल से विदेशियों को परास्त किया था।
 
*स्वामी प्राणनाथ आजीवन [[हिन्दू]]-[[मुस्लिम]] एकता का संदेश देते रहे। उनके द्वारा दिये गये उपदेश '[[कुलजम स्वरूप]]' में एकत्र किये गये।
 
*स्वामी प्राणनाथ आजीवन [[हिन्दू]]-[[मुस्लिम]] एकता का संदेश देते रहे। उनके द्वारा दिये गये उपदेश '[[कुलजम स्वरूप]]' में एकत्र किये गये।
*महात्मा प्राणनाथ जी मुसलमानों का 'मेहदी', [[ईसाई|ईसाईयों]] का 'मसीहा' और [[हिन्दू|हिन्दुओं]] का '[[कल्कि अवतार]]' कहते थे।
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*महात्मा प्राणनाथ जी मुस्लिमों का 'मेहदी', [[ईसाई|ईसाईयों]] का 'मसीहा' और [[हिन्दू|हिन्दुओं]] का '[[कल्कि अवतार]]' कहते थे।
*[[पन्ना मध्य प्रदेश|पन्ना]] में प्राणनाथ का समाधि स्थल है, जो उनके अनुयायियों का तीर्थ स्थल है। प्राणनाथ ने इस अंचल को रत्नगर्भा होने का वरदान दिया था।
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*[[पन्ना मध्य प्रदेश|पन्ना]] में प्राणनाथ का समाधि स्थल है, जो उनके अनुयायियों का [[तीर्थ स्थल]] है। प्राणनाथ ने इस अंचल को 'रत्नगर्भा' होने का वरदान दिया था।
*मुसलमानों से प्राणनाथ ने कई शास्त्रार्थ तथा वाद-विवाद भी किये थे। 'सर्वधर्मसमन्वय' की भावना को जागृत करना ही इनका प्रमुख लक्ष्य था।
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*मुस्लिमों से प्राणनाथ ने कई शास्त्रार्थ तथा वाद-विवाद भी किये थे। 'सर्वधर्मसमन्वय' की भावना को जागृत करना ही इनका प्रमुख लक्ष्य था।
*इनके द्वारा प्रतिपादित मत प्राय: निम्बार्कियों के जैसा था। प्राणनाथ गोलोकवासी [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के साथ सख्य भाव रखने की शिक्षा देते थे।
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*इनके द्वारा प्रतिपादित मत प्राय: [[निम्बार्क संप्रदाय|निम्बार्कियों]] के जैसा था। प्राणनाथ गोलोकवासी [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] के साथ सख्य भाव रखने की शिक्षा देते थे।
 
*प्राणनाथ ने अपने जीवन में अनेक रचनाएँ भी कीं। [[भारत]] में इनकी शिष्य परम्परा का भी एक अच्छा साहित्य है।
 
*प्राणनाथ ने अपने जीवन में अनेक रचनाएँ भी कीं। [[भारत]] में इनकी शिष्य परम्परा का भी एक अच्छा साहित्य है।
 
*इनके अनुयायी [[वैष्णव]] हैं और [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[बुंदेलखण्ड]] में अधिक पाये जाते हैं।
 
*इनके अनुयायी [[वैष्णव]] हैं और [[गुजरात]], [[राजस्थान]], [[बुंदेलखण्ड]] में अधिक पाये जाते हैं।

13:36, 10 मई 2015 का अवतरण

स्वामी प्राणनाथ महाराज छत्रसाल के गुरु थे। विक्रम संवत 1744 में योगीराज प्राणनाथ के निर्देशन में ही छत्रसाल का राज्याभिषेक किया गया था। प्राणनाथ ने प्रणामी सम्प्रदाय अथवा परिणामी सम्प्रदाय, जो वैष्णवों का एक उपसम्प्रदाय है, की स्थापना की थी।

  • भारत में स्वामी प्राणनाथ ने कई प्रांतों में अपने मत का प्रचार-प्रसार किया। आज भी इनके अनुयायी बड़ी संख्या में पाये जाते हैं।
  • दक्षिण भारत में जो स्थान समर्थ गुरु रामदास का है, वही स्थान बुन्देलखंड में प्राणनाथ का रहा है।
  • प्राणनाथ छत्रसाल के मार्गदर्शक, अध्यात्मिक गुरु और विचारक थे। जिस प्रकार समर्थ गुरु रामदास के कुशल निर्देशन में छत्रपति शिवाजी ने अपने पौरुष, पराक्रम और चातुर्य से मुग़लों के छक्के छुड़ा दिए थे, ठीक उसी प्रकार गुरु प्राणनाथ के मार्गदर्शन में छत्रसाल ने अपनी वीरता, चातुर्यपूर्ण रणनीति और कौशल से विदेशियों को परास्त किया था।
  • स्वामी प्राणनाथ आजीवन हिन्दू-मुस्लिम एकता का संदेश देते रहे। उनके द्वारा दिये गये उपदेश 'कुलजम स्वरूप' में एकत्र किये गये।
  • महात्मा प्राणनाथ जी मुस्लिमों का 'मेहदी', ईसाईयों का 'मसीहा' और हिन्दुओं का 'कल्कि अवतार' कहते थे।
  • पन्ना में प्राणनाथ का समाधि स्थल है, जो उनके अनुयायियों का तीर्थ स्थल है। प्राणनाथ ने इस अंचल को 'रत्नगर्भा' होने का वरदान दिया था।
  • मुस्लिमों से प्राणनाथ ने कई शास्त्रार्थ तथा वाद-विवाद भी किये थे। 'सर्वधर्मसमन्वय' की भावना को जागृत करना ही इनका प्रमुख लक्ष्य था।
  • इनके द्वारा प्रतिपादित मत प्राय: निम्बार्कियों के जैसा था। प्राणनाथ गोलोकवासी श्रीकृष्ण के साथ सख्य भाव रखने की शिक्षा देते थे।
  • प्राणनाथ ने अपने जीवन में अनेक रचनाएँ भी कीं। भारत में इनकी शिष्य परम्परा का भी एक अच्छा साहित्य है।
  • इनके अनुयायी वैष्णव हैं और गुजरात, राजस्थान, बुंदेलखण्ड में अधिक पाये जाते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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