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18:22, 14 सितम्बर 2010 का अवतरण

  • ई.ए. सोलोमन द्वारा सम्पादित दूसरी पुस्तक है।
  • यह भी सांख्यसप्तति की टीका है।
  • इस पुस्तक का रचनाकाल भी प्राचीन माना गया।
  • संभावना यह व्यक्त की गई कि सांख्यवृत्ति के निकट परवर्ती काल की यह रचना होगी।
  • इसके रचयिता का पूरा नाम पाण्डुलिपि में उपलब्ध नहीं है। केवल 'मा' उपलब्ध है। यह माधव या माठर हो सकता है।
  • अनुयोग द्वार सूत्र में सांख्याचार्यों की सूची में माधव का उल्लेख मिलता है। यह माठर ही रहा होगा[1]
  • यह 5वीं शताब्दी से पूर्व रहा होगा।
  • सांख्यसप्तति वृत्ति 'माठरवृत्ति' के लगभग समान है।
  • सोलोमन के अनुसार वर्तमान माठरवृत्ति इसी सांख्यकारिकावृत्ति का विस्तार प्रतीत होता है।
  • माठरवृत्ति में पुराणों को अधिक उद्धृत किया गया है जबकि इस पुस्तक में आयुर्वेदीय ग्रंन्थों के उद्धरण अधिक हैं।
  • माठरवृत्ति की ही तरह इसमें भी 63 कारिकाएँ हैं[2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. एन्सायक्लोपीडिया पृष्ठ 168
  2. एन्सायक्लोपीडिया, पृष्ठ 193

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