"अमरनाथ यात्रा" के अवतरणों में अंतर

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'''अमरनाथ यात्रा''' को [[उत्तर भारत]] की सबसे पवित्र तीर्थयात्रा माना जाता है। यात्रा के दौरान [[भारत]] की विविध परंपराओं, [[धर्म|धर्मों]] और [[संस्कृति|संस्कृतियों]] की झलक देखी जा सकती है। अमरनाथ यात्रा में [[शिव]] भक्तों को कड़ी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। बेशक यह यात्रा थोड़ी कठिन है, लेकिन [[कश्मीर]] के मनोरम प्रकृति नजारों और धार्मिक तथा अध्यात्म का अनोखा पुट इससे जुड़ा है। रास्ते उबड़ - खाबड़ है, रास्ते में कभी बर्फ़ गिरने लग जाती है, कभी बारिश होने लगती है तो कभी बर्फीली हवाएं चलने लगती है। फिर भी भक्तों की आस्था और भक्ति इतनी मज़बूत होती है कि यह सारे कष्ट महसूस नहीं होते और बाबा अमरनाथ के दर्शनों के लिए एक अदृश्य शक्ति से खिंचे चले आते हैं। यह माना जाता है कि अगर तीर्थयात्री इस यात्रा को सच्ची श्रद्धा से पूरा कर तो वह भगवान शिव के साक्षात दर्शन पा सकते हैं। [[जून]] से लेकर [[अगस्त]] [[माह]] तक दर्शनों के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
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'''अमरनाथ यात्रा''' को [[उत्तर भारत]] की सबसे पवित्र तीर्थयात्रा माना जाता है। यात्रा के दौरान [[भारत]] की विविध परंपराओं, [[धर्म|धर्मों]] और [[संस्कृति|संस्कृतियों]] की झलक देखी जा सकती है। अमरनाथ यात्रा में [[शिव]] भक्तों को कड़ी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। बेशक यह यात्रा थोड़ी कठिन है, लेकिन [[कश्मीर]] के मनोरम प्रकृति नजारों और धार्मिक तथा अध्यात्म का अनोखा पुट इससे जुड़ा है। रास्ते उबड़-खाबड़ हैं, रास्ते में कभी बर्फ़ गिरने लग जाती है, कभी बारिश होने लगती है तो कभी बर्फीली हवाएं चलने लगती हैं। फिर भी भक्तों की आस्था और [[भक्ति]] इतनी मज़बूत होती है कि यह सारे कष्ट महसूस नहीं होते और बाबा अमरनाथ के दर्शनों के लिए एक अदृश्य शक्ति से खिंचे चले आते हैं। यह माना जाता है कि अगर तीर्थयात्री इस यात्रा को सच्ची श्रद्धा से पूरा करें तो वह भगवान शिव के साक्षात दर्शन पा सकते हैं। [[जून]] से लेकर [[अगस्त]] [[माह]] तक दर्शनों के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।
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==विद्वान मत==
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कई विद्वानों का मत है कि शंकर जी जब पार्वती जी को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को [[अनंतनाग]] में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के [[शेषनाग]] को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा। अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में एक [[मुसलमान]] गड़रिये को चला। आज भी चौथाई चढ़ावा मुसलमान गड़रिये के वंशजों को मिलता है। यह एक ऐसा तीर्थस्थल है, जहां फूल-माला बेचने वाले मुसलमान होते हैं। अमरनाथ गुफा एक नहीं है, बल्कि [[अमरावती नदी]] पर आगे बढ़ते समय और कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। सभी बर्फ से ढकी हैं। मूल अमरनाथ से दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग-अलग हिमखंड हैं।
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==यात्रा मार्ग व पड़ाव==
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अमरनाथ जाने के दो मार्ग हैं-
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*दूसरा [[सोनमर्ग श्रीनगर|सोनमर्ग]] बालटाल से
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[[जम्मू]] या [[श्रीनगर]] से पहलगाम या बालटाल बस या छोटे वाहन से पहुंचना पड़ता है। उसके बाद आगे पैदल ही जाना पड़ता है। कमज़ोर और वृद्धों के लिए खच्चर और घोड़े की व्यवस्था रहती है। पहलगाम से जाने वाला रास्ता सरल और सुविधाजनक है। बालटाल से पवित्र गुफा की दूरी हालांकि केवल 14 किलोमीटर है, परंतु यह सीधी चढ़ाई वाला बहुत दुर्गम रास्ता है, इसलिए सुरक्षा की नज़रिए से ठीक नहीं है, इसलिए इसे सुरक्षित नहीं माना जाता। लिहाज़ा, ज़्यादातर यात्रियों को पहलगाम से जाने के लिए कहा जाता है। हालांकि रोमांच और ख़तरे से खेलने के शौकीन इस मार्ग से जाना पसंद करते हैं। इस रास्ते से जाने वाले लोग अपने जोख़िम पर यात्रा करते हैं। किसी अनहोनी की ज़िम्मेदारी सरकार नहीं लेती है। दरअसल, श्रीनगर से पहलगाम 96 किलोमीटर दूर है। यह वैसे भी देश का मशहूर पर्यटन स्थल है। यहां का नैसर्गिक सौंदर्य देखते ही बनता है। लिद्दर और आरू नदियां इसकी ख़ूबसूरती में चार चांद लगाती हैं। पहलगाम का यात्री बेस केंप छह किलोमीटर दूर नुनवन में बनता है। पहली रात भक्त यहीं बिताते हैं। दूसरे दिन यहां से 10 किलोमीटर दूर चंदनबाड़ी पहुंचते हैं। चंदनबाड़ी से आगे इसी नदी पर बर्फ़ का पुल है। यहीं से पिस्सू घाटी की चढ़ाई शुरू होती है। कहा जाता है कि पिस्सू घाटी में देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान लड़ाई हुई थी, जिसमें राक्षसों की हार हुई। यात्रा में पिस्सू घाटी जोख़िम भरा स्थल है। यह समुद्रतल से 11120 फ़ीट की ऊंचाई पर है।
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पिस्सू घाटी के बाद अगला पड़ाव 14 किलोमीटर दूर शेषनाग में पड़ता है। लिद्दर नदी के किनारे-किनारे पहले चरण की यात्रा बहुत कठिन होती है। यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और ख़तरनाक है। यात्री शेषनाग पहुंचने पर भयानक ठंड का सामना करता है। यहां पर्वतमालाओं के बीच नीले पानी की खूबसूरत [[झील]] है। इसमें झांकने पर भ्रम होता है कि आसमान झील में उतर आया है। झील करीब डेढ़ किलोमीटर व्यास में फैली है। कहा जाता है कि शेषनाग झील में शेषनाग का वास है। 24 घंटे में शेषनाग एक बार झील के बाहर निकलते हैं, लेकिन दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होता है। तीर्थयात्री यहां रात्रि विश्राम करते हैं और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं।
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शेषनाग से पंचतरणी 12 किलोमीटर दूर है। बीच में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे पार करने पड़ते हैं, जिनकी समुद्रतल से ऊंचाई क्रमश: 13500 फ़ीट व 14500 फ़ीट है। महागुणास चोटी से पंचतरणी का सारा रास्ता उतराई का है। यहां पांच छोटी-छोटी नदियों बहने के कारण ही इसका नाम पंचतरणी पड़ा। यह जगह चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची-ऊंची चोटियों से ढका है। ऊंचाई की वजह से ठंड भी बहुत ज़्यादा होती है। [[ऑक्सीजन]] की कमी की वजह से तीर्थयात्रियों को यहां सुरक्षा के इंतज़ाम करने पड़ते हैं। पवित्र अमरनाथ की गुफा यहां से केवल आठ किलोमीटर दूर रह जाती है। रास्ते में बर्फ ही बर्फ जमी रहती है। इसी दिन गुफा के नज़दीक पहुंचकर लोग रात बिता सकते हैं और दूसरे दिन सुबह पूजा-अर्चना कर पंचतरणी लौटा जा सकता है। कुछ यात्री शाम तक शेषनाग वापस पहुंच जाते हैं। रास्ता काफी कठिन है, लेकिन पवित्र गुफा में पहुंचते ही सफ़र की सारी थकान पल भर में छू-मंतर हो जाती है और अद्भुत आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है।
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दरअसल, जब चंदनवाड़ी या बालटाल से श्रद्धालु निकलते हैं, तो रास्ते भर उन्हें प्रतिकूल [[मौसम]] का सामना करना पड़ता है। पूरा बेल्‍ट यानी चंदनवाड़ी, पिस्‍सू टॉप, ज़ोली बाल, नागा कोटि, शेषनाग, वारबाल, महागुणास टॉप, पबिबाल, पंचतरिणी, संगम टॉप, अमरनाथ, बराड़ी, डोमेल, बालटाल, सोनमर्ग और आसपास का इलाक़ा साल के अधिकांश समय बर्फ़ से ढंका रहता है। इससे इंसानी गतिविधियां महज कुछ महीने रहती हैं। बाक़ी समय यहां का मौसम इंसान के रहने लायक नहीं होता। गर्मी शुरू होने पर यहां बर्फ पिघलती है और [[अप्रैल]] से यात्रा की तैयारी शुरू की जाती है। पवित्र गुफा की ओर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए चंदनवाड़ी से अमरनाथ और बालटाल के बीच ठहरने या विश्राम करने का कोई अच्छा ठिकाना नहीं है। 30 किलोमीटर से अधिक लंबे रास्‍ते में अकसर तेज़ हवा के साथ कभी हल़की तो कभी भारी बारिश होती रहती है और श्रद्धालुओं के पास भीगने के अलावा और कोई विकल्‍प नहीं होता। बचने के लिए कहीं कोई शेड नहीं है, इसीलिये बड़ी संख्‍या में लोग बीमार भी हो जाते हैं। यही वजह है कि कमज़ोर कद-काठी के यात्री शेषनाग की हड्डी ठिठुराने वाली ठंड सहन नहीं कर पाते और उनकी मौत तक हो जाती है, इसलिए मेडिकली अनफिट लोगों को अमरनाथ यात्रा पर नहीं जाने की सलाह दी जाती है।
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आतंकवाद और धमकियों के बावजूद शेष [[भारत]] से लोगों का [[जम्मू-कश्मीर]] आना-जाना कम होने की बजाय बढ़ता ही गया। वजह रहे [[वैष्णो देवी]], अमरनाथ, शिवखोड़ी, खीर भवानी और बुड्ढा अमरनाथ जैसे धार्मिक स्‍थल। पहले वैष्‍णोदेवी की चढ़ाई लो‍कप्रिय हुई, फिर अमरनाथ यात्रा। देश भर से अमरनाथ गुफा जाने वालो की संख्या लगातार बढ़ ही रही है। श्रद्धालुओं को हतोत्साहित करने के लिए कभी लिंग के पिघलने तो कभी कृत्रि‍म लिंग लगाने का विवाद खड़ा किया गया, परंतु श्रद्धा कम नहीं हुई। लोगों की बढ़ती भीड़ को देखकर सन् [[2000]] में श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड की भी स्‍थापना की गई। श्रद्धालुओं की इन कठिनाइयों को दूर करने के लिए केंद्र के आग्रह पर ग़ुलाम नबी आज़ाद सरकार ने [[26 मई]], [[2008]] को श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को बालटाल के पास डोमेल में वन विभाग की 800 कनाल यानी 40 हेक्‍टेयर ज़मीन आवंटित की थी, ताकि यात्रियों की सुविधा के लिए अस्थाई शिविर बनाए जा सकें। प्रस्‍तावित शेल्‍टर में नहाने, खाने और रात में ठहरने की सु‍विधा होती है। बदले में 2.5 करोड़ रुपए का मुआवजा भी तय किया गया था। हालांकि पहले मामला जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में गया, जहां अदालत ने साफ़ कहा कि यात्रियों की सुविधा के लिए प्रीफैब्रिकेटिड हट बनाए जाएं और अन्य सुविधाएं दी जाएं।
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==यातायात==
 
देश के सभी कोनों से तीर्थयात्री रेल, बस या हवाई जहाज़ के जरिए आसानी से [[जम्मू]] पहुंच सकते हैं। श्रद्धालुओं की तीर्थयात्रा जम्मू से शुरू होती है। अमरनाथ यात्रा पर जाने के भी दो रास्ते हैं। एक [[पहलगाम]] होकर और दूसरा सोनमर्ग बलटाल से। यानी कि पहलगाम और बलटाल तक किसी भी सवारी से पहुंचे, यहां से आगे जाने के लिए अपने पैरों का ही इस्तेमाल करना होगा। अशक्त या वृद्धों के लिए सवारियों का प्रबंध किया जा सकता है। हालांकि पवित्र गुफा सिंध घाटी में [[सिंध नदी]] की एक सहायक नदी अमरनाथ (अमरावती) के पास स्थित है तथापि इस तक परम्परागत रूप से बरास्ता लिदर घाटी पहुंचा जाता है। श्रद्धालु इस मार्ग पर दक्षिण कश्मीर में पहलगांव से होकर पवित्र गुफा पहुंचते हैं और [[चंदनवाड़ी]], पिस्सू घाटी, शेषनाग और पंचतरणी से गुजरते हुए लगभग 46 किलोमीटर की यात्रा करते हैं। पहलगाम से जाने वाले रास्ते को सरल और सुविधाजनक समझा जाता है। एक और छोटा रास्ता [[श्रीनगर]] - [[लेह]] राजमार्ग पर स्थित बालताल से है। बालताल से अमरनाथ गुफा की दूरी केवल 14 किलोमीटर है और यह बहुत ही दुर्गम रास्ता है और सुरक्षा की दृष्टि से भी संदिग्ध है। इसमें कुछ क्षेत्र सीधी चढ़ाई और गहरी ढलान वाले हैं। इसीलिए सरकार इस मार्ग को सुरक्षित नहीं मानती और अधिकतर यात्रियों को पहलगाम के रास्ते [[अमरनाथ]] जाने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन रोमांच और जोखिम लेने का शौक़ रखने वाले लोग इस मार्ग से यात्रा करना पसंद करते हैं। अतीत में यह मार्ग ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत में प्रयोग में आता था लेकिन कभी - कभी बर्फ़ के पिघलने के कारण इस मार्ग का प्रयोग असंभव हो जाता था। लेकिन समय के बीतने के साथ परिस्थितियों में सुधार हुआ है और दोनों ही मार्गों पर यात्रा काफ़ी आसान हो गई है।
 
देश के सभी कोनों से तीर्थयात्री रेल, बस या हवाई जहाज़ के जरिए आसानी से [[जम्मू]] पहुंच सकते हैं। श्रद्धालुओं की तीर्थयात्रा जम्मू से शुरू होती है। अमरनाथ यात्रा पर जाने के भी दो रास्ते हैं। एक [[पहलगाम]] होकर और दूसरा सोनमर्ग बलटाल से। यानी कि पहलगाम और बलटाल तक किसी भी सवारी से पहुंचे, यहां से आगे जाने के लिए अपने पैरों का ही इस्तेमाल करना होगा। अशक्त या वृद्धों के लिए सवारियों का प्रबंध किया जा सकता है। हालांकि पवित्र गुफा सिंध घाटी में [[सिंध नदी]] की एक सहायक नदी अमरनाथ (अमरावती) के पास स्थित है तथापि इस तक परम्परागत रूप से बरास्ता लिदर घाटी पहुंचा जाता है। श्रद्धालु इस मार्ग पर दक्षिण कश्मीर में पहलगांव से होकर पवित्र गुफा पहुंचते हैं और [[चंदनवाड़ी]], पिस्सू घाटी, शेषनाग और पंचतरणी से गुजरते हुए लगभग 46 किलोमीटर की यात्रा करते हैं। पहलगाम से जाने वाले रास्ते को सरल और सुविधाजनक समझा जाता है। एक और छोटा रास्ता [[श्रीनगर]] - [[लेह]] राजमार्ग पर स्थित बालताल से है। बालताल से अमरनाथ गुफा की दूरी केवल 14 किलोमीटर है और यह बहुत ही दुर्गम रास्ता है और सुरक्षा की दृष्टि से भी संदिग्ध है। इसमें कुछ क्षेत्र सीधी चढ़ाई और गहरी ढलान वाले हैं। इसीलिए सरकार इस मार्ग को सुरक्षित नहीं मानती और अधिकतर यात्रियों को पहलगाम के रास्ते [[अमरनाथ]] जाने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन रोमांच और जोखिम लेने का शौक़ रखने वाले लोग इस मार्ग से यात्रा करना पसंद करते हैं। अतीत में यह मार्ग ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत में प्रयोग में आता था लेकिन कभी - कभी बर्फ़ के पिघलने के कारण इस मार्ग का प्रयोग असंभव हो जाता था। लेकिन समय के बीतने के साथ परिस्थितियों में सुधार हुआ है और दोनों ही मार्गों पर यात्रा काफ़ी आसान हो गई है।
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07:06, 20 जून 2018 का अवतरण

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अमरनाथ यात्रा का मानचित्र

अमरनाथ यात्रा को उत्तर भारत की सबसे पवित्र तीर्थयात्रा माना जाता है। यात्रा के दौरान भारत की विविध परंपराओं, धर्मों और संस्कृतियों की झलक देखी जा सकती है। अमरनाथ यात्रा में शिव भक्तों को कड़ी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है। बेशक यह यात्रा थोड़ी कठिन है, लेकिन कश्मीर के मनोरम प्रकृति नजारों और धार्मिक तथा अध्यात्म का अनोखा पुट इससे जुड़ा है। रास्ते उबड़-खाबड़ हैं, रास्ते में कभी बर्फ़ गिरने लग जाती है, कभी बारिश होने लगती है तो कभी बर्फीली हवाएं चलने लगती हैं। फिर भी भक्तों की आस्था और भक्ति इतनी मज़बूत होती है कि यह सारे कष्ट महसूस नहीं होते और बाबा अमरनाथ के दर्शनों के लिए एक अदृश्य शक्ति से खिंचे चले आते हैं। यह माना जाता है कि अगर तीर्थयात्री इस यात्रा को सच्ची श्रद्धा से पूरा करें तो वह भगवान शिव के साक्षात दर्शन पा सकते हैं। जून से लेकर अगस्त माह तक दर्शनों के लिए लाखों की संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।

विद्वान मत

कई विद्वानों का मत है कि शंकर जी जब पार्वती जी को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने छोटे-छोटे अनंत नागों को अनंतनाग में छोड़ा, माथे के चंदन को चंदनबाड़ी में उतारा, अन्य पिस्सुओं को पिस्सू टॉप पर और गले के शेषनाग को शेषनाग नामक स्थल पर छोड़ा। अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में एक मुसलमान गड़रिये को चला। आज भी चौथाई चढ़ावा मुसलमान गड़रिये के वंशजों को मिलता है। यह एक ऐसा तीर्थस्थल है, जहां फूल-माला बेचने वाले मुसलमान होते हैं। अमरनाथ गुफा एक नहीं है, बल्कि अमरावती नदी पर आगे बढ़ते समय और कई छोटी-बड़ी गुफाएं दिखती हैं। सभी बर्फ से ढकी हैं। मूल अमरनाथ से दूर गणेश, भैरव और पार्वती के वैसे ही अलग-अलग हिमखंड हैं।

यात्रा मार्ग व पड़ाव

अमरनाथ जाने के दो मार्ग हैं-

अमरनाथ जाने का रास्ता

जम्मू या श्रीनगर से पहलगाम या बालटाल बस या छोटे वाहन से पहुंचना पड़ता है। उसके बाद आगे पैदल ही जाना पड़ता है। कमज़ोर और वृद्धों के लिए खच्चर और घोड़े की व्यवस्था रहती है। पहलगाम से जाने वाला रास्ता सरल और सुविधाजनक है। बालटाल से पवित्र गुफा की दूरी हालांकि केवल 14 किलोमीटर है, परंतु यह सीधी चढ़ाई वाला बहुत दुर्गम रास्ता है, इसलिए सुरक्षा की नज़रिए से ठीक नहीं है, इसलिए इसे सुरक्षित नहीं माना जाता। लिहाज़ा, ज़्यादातर यात्रियों को पहलगाम से जाने के लिए कहा जाता है। हालांकि रोमांच और ख़तरे से खेलने के शौकीन इस मार्ग से जाना पसंद करते हैं। इस रास्ते से जाने वाले लोग अपने जोख़िम पर यात्रा करते हैं। किसी अनहोनी की ज़िम्मेदारी सरकार नहीं लेती है। दरअसल, श्रीनगर से पहलगाम 96 किलोमीटर दूर है। यह वैसे भी देश का मशहूर पर्यटन स्थल है। यहां का नैसर्गिक सौंदर्य देखते ही बनता है। लिद्दर और आरू नदियां इसकी ख़ूबसूरती में चार चांद लगाती हैं। पहलगाम का यात्री बेस केंप छह किलोमीटर दूर नुनवन में बनता है। पहली रात भक्त यहीं बिताते हैं। दूसरे दिन यहां से 10 किलोमीटर दूर चंदनबाड़ी पहुंचते हैं। चंदनबाड़ी से आगे इसी नदी पर बर्फ़ का पुल है। यहीं से पिस्सू घाटी की चढ़ाई शुरू होती है। कहा जाता है कि पिस्सू घाटी में देवताओं और राक्षसों के बीच घमासान लड़ाई हुई थी, जिसमें राक्षसों की हार हुई। यात्रा में पिस्सू घाटी जोख़िम भरा स्थल है। यह समुद्रतल से 11120 फ़ीट की ऊंचाई पर है।

पिस्सू घाटी के बाद अगला पड़ाव 14 किलोमीटर दूर शेषनाग में पड़ता है। लिद्दर नदी के किनारे-किनारे पहले चरण की यात्रा बहुत कठिन होती है। यह मार्ग खड़ी चढ़ाई वाला और ख़तरनाक है। यात्री शेषनाग पहुंचने पर भयानक ठंड का सामना करता है। यहां पर्वतमालाओं के बीच नीले पानी की खूबसूरत झील है। इसमें झांकने पर भ्रम होता है कि आसमान झील में उतर आया है। झील करीब डेढ़ किलोमीटर व्यास में फैली है। कहा जाता है कि शेषनाग झील में शेषनाग का वास है। 24 घंटे में शेषनाग एक बार झील के बाहर निकलते हैं, लेकिन दर्शन खुशनसीबों को ही नसीब होता है। तीर्थयात्री यहां रात्रि विश्राम करते हैं और यहीं से तीसरे दिन की यात्रा शुरू करते हैं।

शेषनाग से पंचतरणी 12 किलोमीटर दूर है। बीच में बैववैल टॉप और महागुणास दर्रे पार करने पड़ते हैं, जिनकी समुद्रतल से ऊंचाई क्रमश: 13500 फ़ीट व 14500 फ़ीट है। महागुणास चोटी से पंचतरणी का सारा रास्ता उतराई का है। यहां पांच छोटी-छोटी नदियों बहने के कारण ही इसका नाम पंचतरणी पड़ा। यह जगह चारों तरफ से पहाड़ों की ऊंची-ऊंची चोटियों से ढका है। ऊंचाई की वजह से ठंड भी बहुत ज़्यादा होती है। ऑक्सीजन की कमी की वजह से तीर्थयात्रियों को यहां सुरक्षा के इंतज़ाम करने पड़ते हैं। पवित्र अमरनाथ की गुफा यहां से केवल आठ किलोमीटर दूर रह जाती है। रास्ते में बर्फ ही बर्फ जमी रहती है। इसी दिन गुफा के नज़दीक पहुंचकर लोग रात बिता सकते हैं और दूसरे दिन सुबह पूजा-अर्चना कर पंचतरणी लौटा जा सकता है। कुछ यात्री शाम तक शेषनाग वापस पहुंच जाते हैं। रास्ता काफी कठिन है, लेकिन पवित्र गुफा में पहुंचते ही सफ़र की सारी थकान पल भर में छू-मंतर हो जाती है और अद्भुत आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है।

दरअसल, जब चंदनवाड़ी या बालटाल से श्रद्धालु निकलते हैं, तो रास्ते भर उन्हें प्रतिकूल मौसम का सामना करना पड़ता है। पूरा बेल्‍ट यानी चंदनवाड़ी, पिस्‍सू टॉप, ज़ोली बाल, नागा कोटि, शेषनाग, वारबाल, महागुणास टॉप, पबिबाल, पंचतरिणी, संगम टॉप, अमरनाथ, बराड़ी, डोमेल, बालटाल, सोनमर्ग और आसपास का इलाक़ा साल के अधिकांश समय बर्फ़ से ढंका रहता है। इससे इंसानी गतिविधियां महज कुछ महीने रहती हैं। बाक़ी समय यहां का मौसम इंसान के रहने लायक नहीं होता। गर्मी शुरू होने पर यहां बर्फ पिघलती है और अप्रैल से यात्रा की तैयारी शुरू की जाती है। पवित्र गुफा की ओर जाने वाले श्रद्धालुओं के लिए चंदनवाड़ी से अमरनाथ और बालटाल के बीच ठहरने या विश्राम करने का कोई अच्छा ठिकाना नहीं है। 30 किलोमीटर से अधिक लंबे रास्‍ते में अकसर तेज़ हवा के साथ कभी हल़की तो कभी भारी बारिश होती रहती है और श्रद्धालुओं के पास भीगने के अलावा और कोई विकल्‍प नहीं होता। बचने के लिए कहीं कोई शेड नहीं है, इसीलिये बड़ी संख्‍या में लोग बीमार भी हो जाते हैं। यही वजह है कि कमज़ोर कद-काठी के यात्री शेषनाग की हड्डी ठिठुराने वाली ठंड सहन नहीं कर पाते और उनकी मौत तक हो जाती है, इसलिए मेडिकली अनफिट लोगों को अमरनाथ यात्रा पर नहीं जाने की सलाह दी जाती है।

आतंकवाद और धमकियों के बावजूद शेष भारत से लोगों का जम्मू-कश्मीर आना-जाना कम होने की बजाय बढ़ता ही गया। वजह रहे वैष्णो देवी, अमरनाथ, शिवखोड़ी, खीर भवानी और बुड्ढा अमरनाथ जैसे धार्मिक स्‍थल। पहले वैष्‍णोदेवी की चढ़ाई लो‍कप्रिय हुई, फिर अमरनाथ यात्रा। देश भर से अमरनाथ गुफा जाने वालो की संख्या लगातार बढ़ ही रही है। श्रद्धालुओं को हतोत्साहित करने के लिए कभी लिंग के पिघलने तो कभी कृत्रि‍म लिंग लगाने का विवाद खड़ा किया गया, परंतु श्रद्धा कम नहीं हुई। लोगों की बढ़ती भीड़ को देखकर सन् 2000 में श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड की भी स्‍थापना की गई। श्रद्धालुओं की इन कठिनाइयों को दूर करने के लिए केंद्र के आग्रह पर ग़ुलाम नबी आज़ाद सरकार ने 26 मई, 2008 को श्री अमरनाथ श्राइन बोर्ड को बालटाल के पास डोमेल में वन विभाग की 800 कनाल यानी 40 हेक्‍टेयर ज़मीन आवंटित की थी, ताकि यात्रियों की सुविधा के लिए अस्थाई शिविर बनाए जा सकें। प्रस्‍तावित शेल्‍टर में नहाने, खाने और रात में ठहरने की सु‍विधा होती है। बदले में 2.5 करोड़ रुपए का मुआवजा भी तय किया गया था। हालांकि पहले मामला जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट में गया, जहां अदालत ने साफ़ कहा कि यात्रियों की सुविधा के लिए प्रीफैब्रिकेटिड हट बनाए जाएं और अन्य सुविधाएं दी जाएं।

यातायात

देश के सभी कोनों से तीर्थयात्री रेल, बस या हवाई जहाज़ के जरिए आसानी से जम्मू पहुंच सकते हैं। श्रद्धालुओं की तीर्थयात्रा जम्मू से शुरू होती है। अमरनाथ यात्रा पर जाने के भी दो रास्ते हैं। एक पहलगाम होकर और दूसरा सोनमर्ग बलटाल से। यानी कि पहलगाम और बलटाल तक किसी भी सवारी से पहुंचे, यहां से आगे जाने के लिए अपने पैरों का ही इस्तेमाल करना होगा। अशक्त या वृद्धों के लिए सवारियों का प्रबंध किया जा सकता है। हालांकि पवित्र गुफा सिंध घाटी में सिंध नदी की एक सहायक नदी अमरनाथ (अमरावती) के पास स्थित है तथापि इस तक परम्परागत रूप से बरास्ता लिदर घाटी पहुंचा जाता है। श्रद्धालु इस मार्ग पर दक्षिण कश्मीर में पहलगांव से होकर पवित्र गुफा पहुंचते हैं और चंदनवाड़ी, पिस्सू घाटी, शेषनाग और पंचतरणी से गुजरते हुए लगभग 46 किलोमीटर की यात्रा करते हैं। पहलगाम से जाने वाले रास्ते को सरल और सुविधाजनक समझा जाता है। एक और छोटा रास्ता श्रीनगर - लेह राजमार्ग पर स्थित बालताल से है। बालताल से अमरनाथ गुफा की दूरी केवल 14 किलोमीटर है और यह बहुत ही दुर्गम रास्ता है और सुरक्षा की दृष्टि से भी संदिग्ध है। इसमें कुछ क्षेत्र सीधी चढ़ाई और गहरी ढलान वाले हैं। इसीलिए सरकार इस मार्ग को सुरक्षित नहीं मानती और अधिकतर यात्रियों को पहलगाम के रास्ते अमरनाथ जाने के लिए प्रेरित करती है। लेकिन रोमांच और जोखिम लेने का शौक़ रखने वाले लोग इस मार्ग से यात्रा करना पसंद करते हैं। अतीत में यह मार्ग ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत में प्रयोग में आता था लेकिन कभी - कभी बर्फ़ के पिघलने के कारण इस मार्ग का प्रयोग असंभव हो जाता था। लेकिन समय के बीतने के साथ परिस्थितियों में सुधार हुआ है और दोनों ही मार्गों पर यात्रा काफ़ी आसान हो गई है।


इन्हें भी देखें: अमरनाथ


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