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*पाणिनि कृत अष्टाध्यायी वैसे तो व्याकरण का ग्रंथ माने जाते हैं किन्तु इन गंथों में कहीं-कहीं राजाओं-महाराजाओं एवं जनतंत्रों के घटनाचक्र का विवरण भी मिलता हैं।
 
*पाणिनि कृत अष्टाध्यायी वैसे तो व्याकरण का ग्रंथ माने जाते हैं किन्तु इन गंथों में कहीं-कहीं राजाओं-महाराजाओं एवं जनतंत्रों के घटनाचक्र का विवरण भी मिलता हैं।
  
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10:34, 3 मार्च 2013 का अवतरण

  • पाणिनि रचित संस्कृत व्याकरण का प्रसिद्ध ग्रन्थ ।
  • इसमें आठ अध्याय हैं ।
  • इसका भारतीय भाषाओं पर बहुत बड़ा प्रभाव है । साथ ही इसमें यथेष्ट इतिहास विषयक सामग्री भी उपलब्ध है ।
  • वैदिक भाषा को ज्ञेय , विश्वस्त, बोधगम्य एवं सुन्दर बनाने की परम्परा में पाणिनी अग्रणी हैं ।
  • संस्कृत भाषा का तो यह ग्रन्थ आधार ही है । उनके समय तक संस्कृत भाषा में कई परिवर्त्तन हुए थे, किन्तु अष्टाध्यायी के प्रणयन से संस्कृत भाषा में स्थिरता आ गयी तथा यह प्राय: अपरिवर्त्तनशील बन गयी ।
  • अष्टाध्यायी में कुल सूत्रों की संख्या 3996 है । इसमें सन्धि, सुबन्त, कृदन्त, उणादि, आख्यात, निपात,उपसंख्यान, स्वरविधि, शिक्षा और तद्धित आदि विषयों का विचार है ।
  • अष्टाध्यायी के पारिभाषिक शब्दों में ऐसे अनेक शब्द हैं जो पाणिनि के अपने बनाये हैं और बहुत से ऐसे शब्द हैं जो पूर्वकाल से प्रचलित थे ।
  • पाणिनि ने अपने रचे शब्दों की व्याख्या की है और पहले के अनेक पारिभाषिक शब्दों की भी नयी व्याख्या करके उनके अर्थ और प्रयोग का विकास किया है । आरम्भ में उन्होंने चतुर्दश सूत्र दिये हैं । इन्हीं सूत्रों के आधार पर प्रत्याहार बनाये गये हैं, जिनका प्रयोग आदि से अन्त तक पाणिनि ने अपने सूत्रों में किया है । प्रत्याहारों से सूत्रों की रचना में अति लाघव आ गया है ।
  • गणसमूह भी इनका अपना ही है । सूत्रों से ही यह भी पता चलता है कि पाणिनि के समय में पूर्व-अंचल और उत्तर-अंचलवासी दो श्रेणी वैयाकरणों की थीं जो पाणिनि की मण्डली से अतिरिक्त रही होंगी ।
  • पाणिनि कृत अष्टाध्यायी वैसे तो व्याकरण का ग्रंथ माने जाते हैं किन्तु इन गंथों में कहीं-कहीं राजाओं-महाराजाओं एवं जनतंत्रों के घटनाचक्र का विवरण भी मिलता हैं।


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