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*माध्यमिक आचार्य-परम्परा में आचार्य भावविवेक या भव्य का विशिष्ट स्थान है।  
 
*माध्यमिक आचार्य-परम्परा में आचार्य भावविवेक या भव्य का विशिष्ट स्थान है।  
 
*आचार्य [[चन्द्रकीर्ति बौद्धाचार्य|चन्द्रकीर्ति]] ने इन्हें प्रकाण्ड पण्डित एवं महान तार्किक कहा है।  
 
*आचार्य [[चन्द्रकीर्ति बौद्धाचार्य|चन्द्रकीर्ति]] ने इन्हें प्रकाण्ड पण्डित एवं महान तार्किक कहा है।  
*आचार्य [[नागार्जुन बौद्धाचार्य|नागार्जुन]] की मूलमाध्यमिककारिका की टीका प्रज्ञाप्रदीप, मध्यमकह्रदय एवं उसकी वृत्ति तर्कज्वाला तथा मध्यमकार्थसंग्रह आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।  
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*आचार्य [[नागार्जुन बौद्धाचार्य|नागार्जुन]] की मूलमाध्यमिककारिका की टीका प्रज्ञाप्रदीप, मध्यमकहृदय एवं उसकी वृत्ति तर्कज्वाला तथा मध्यमकार्थसंग्रह आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।  
 
*तर्कज्वाला इनकी विशिष्ट रचना है, जो विद्वानों में अत्यधिक चर्चित है।  
 
*तर्कज्वाला इनकी विशिष्ट रचना है, जो विद्वानों में अत्यधिक चर्चित है।  
 
*इसमें उन्होंने [[बौद्ध]] एवं बौद्धेतर सभी दर्शनों की स्पष्ट एवं विस्तृत आलोचना की है।  
 
*इसमें उन्होंने [[बौद्ध]] एवं बौद्धेतर सभी दर्शनों की स्पष्ट एवं विस्तृत आलोचना की है।  

14:43, 5 दिसम्बर 2010 का अवतरण

  • माध्यमिक आचार्य-परम्परा में आचार्य भावविवेक या भव्य का विशिष्ट स्थान है।
  • आचार्य चन्द्रकीर्ति ने इन्हें प्रकाण्ड पण्डित एवं महान तार्किक कहा है।
  • आचार्य नागार्जुन की मूलमाध्यमिककारिका की टीका प्रज्ञाप्रदीप, मध्यमकहृदय एवं उसकी वृत्ति तर्कज्वाला तथा मध्यमकार्थसंग्रह आदि इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
  • तर्कज्वाला इनकी विशिष्ट रचना है, जो विद्वानों में अत्यधिक चर्चित है।
  • इसमें उन्होंने बौद्ध एवं बौद्धेतर सभी दर्शनों की स्पष्ट एवं विस्तृत आलोचना की है।
  • दुर्भाग्य से आज भावविवेक की कोई भी रचना संस्कृत में उपलब्ध नहीं है।
  • भावविवेक परमार्थत: शून्यवादी होते हुए भी व्यवहार में बाह्यार्थवादी हैं- यह उनकी रचनाओं के अनुशीलन से स्पष्ट है।

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