लाल पुल लखनऊ

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
मेघा (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:09, 2 मार्च 2014 का अवतरण ('उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर का लाल पुल जिसे ‘पक्का प...' के साथ नया पन्ना बनाया)
(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें

उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर का लाल पुल जिसे ‘पक्का पुल’ के नाम से भी जाना जाता है। यह पुल 10 जनवरी 1914 को बनकर तैयार हुआ था। इस पुल को बने 100 साल हो गये हैं।

निर्माण

अवध के नवाब आसिफुद्दौला के द्वारा निर्मित पुराने शाही पुल को 1911 में कमज़ोर बता कर तोड़ दिये जाने के बाद अंग्रेज अधिकारियों ने 10 जनवरी 1914 यह पुल बनाकर लखनऊ की जनता को सौंपा था।

स्थापत्य

उस समय का सबसे विशाल पुल माने जाने वाले पुल से गोमती नदी का अवलोकन करने के लिए भी लार्ड हडिंग ने इंतजाम किए थे। अधिकारियों और इंजीनियरों ने यहां पुल के दोनों ओर 6-6 नक्काशीदार अटारियां (बालकनी) भी बनवाई थीं। पुल के दोनों ओर लगभग 10 मीटर ऊंचाई केभारी भरकम कलात्मक स्तंभ भी बनवाए। इतिहासकार डॉ. योगेश प्रवीण का कहना है कि अंग्रेजों की यह कृति इस मायने में भी ख़ास है कि आज भी इसकी बनावट बेजोड़ है। ये कलात्मक रूप से मजबूत है।

इतिहास

डॉ. यागेश प्रवीण का कहना है कि पक्के पुल के स्थान पर पहले पत्थर का बना पुल था, जिसे शाही पुल कहा जाता था। इसे शाही पुल इसलिए कहा जाता था क्योंकि इस पुल पर से पार जाने का टोल टैक्स नवाब आसिफुद्दौला की बेगम शमशुन निशां लेती थीं। 1857 के गदर के बाद जब अंग्रेजों ने अवध संभाला तो उन्होंने पुल को कमजोर करार दे दिया, क्योंकि उनका मानना था कि सेना, तोपों के आने-जाने के बाद से ये कमजोर हो गया है। तब अंग्रेजों ने इसे तोड़ने का फैसला किया। पुराना पुल 1911 में तोड़ा गया और उसी केसाथ नए पुल की आधारशिला रखी गई। लार्ड हडिंग ने इसका 10 जनवरी 1914 को उद्घाटन किया। इसे चूंकि लालरंग से रंगा पोता गया था, इसलिए इसे लाल पुल या पक्का पुल केनाम से भी जाना जाता है।

आधुनिक निर्माण

पीडब्ल्यूडी की ओर से बनाए गए इस ऐतिहासिक पक्के पुल के कॉन्ट्रैक्टर गुरप्रसाद थे। अकेले वे ही नहीं पुल के निर्माण में कई अंग्रेज अधिकारियों की टीम भी लगी हुई थी। एचएस विब्लुड और आरजे पावेल दोनों सुपरिटेंडिंग इंजीनियर, मेजर एसडीए क्रुकशैंक, एसी वैरियर्स और कैप्टन जेए ग्रीम तीनों एग्जीक्यूटिव इंजीनियर रहे। जबकि सीएफ हंटर और एससी एडगर्ब पुल निर्माण केसमय असिस्टेंट इंजीनियर थे। अवध केनवाब वजीर आसिफुद्दौला केसमय में बनाए गए पुराने शाही पुल के स्थान पर बनाए गए इस पुल को बनाया गया। जो कि यहां से 50 डाउन स्ट्रीम पर मौजूद था।

फ़िल्मों में

शहर की शूट होने वाली फिल्मों में पक्का पुल खूब दिखता है। सनी देओल की गदर एक प्रेम कथा में तो बकायदा एक चेज सीन तक इस पर फिल्माया गया, जिसे देखने को शहरी खूब उमड़े। इसके अलावा हाल ही में शहर में शूट हुई यशराज बैनर की फिल्म दावत-ए-इश्क में भी कई सीन इसके आसपास फिल्माए गए। कई फिल्मों और टीवी धारावाहिकों में लखनऊ की पहचान दिखाते स्थलों में रूमी दरवाजे, घंटाघर के बाद इसी पुल का दिग्दर्शन होता है।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ


बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख