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सारे देश में राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार-प्रसार कर देशवासियों में सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना जागृत करने के उद्वेश्य से समिति की स्थापना [[29 जुलाई]], [[1910]] को [[इन्दौर]], [[मध्य प्रदेश]] में हुई थी। [[मध्य भारत]] की विख्यात शिक्षण संस्था डेली कालेज के प्राध्यापक पं. कृष्णानन्द मिश्र और श्यामलाल शर्मा ने एक पुस्तकालय के रूप मे समिति का बीजारोपण किया था। [[महात्मा गांधी]] की प्रेरणा से स्थापित इस संस्था का पिछली एक शताब्दी का इतिहास राष्ट्रभाषा की सेवा के लिए किए गए विनम्र प्रयासों की गाथा कहता है। अपनी स्थापना से ही समिति की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर रही है।
 
सारे देश में राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार-प्रसार कर देशवासियों में सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना जागृत करने के उद्वेश्य से समिति की स्थापना [[29 जुलाई]], [[1910]] को [[इन्दौर]], [[मध्य प्रदेश]] में हुई थी। [[मध्य भारत]] की विख्यात शिक्षण संस्था डेली कालेज के प्राध्यापक पं. कृष्णानन्द मिश्र और श्यामलाल शर्मा ने एक पुस्तकालय के रूप मे समिति का बीजारोपण किया था। [[महात्मा गांधी]] की प्रेरणा से स्थापित इस संस्था का पिछली एक शताब्दी का इतिहास राष्ट्रभाषा की सेवा के लिए किए गए विनम्र प्रयासों की गाथा कहता है। अपनी स्थापना से ही समिति की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर रही है।
  
सन् [[1915]] में [[मुम्बई]] और फिर [[सूरत]] में हुए साहित्य सम्मेलनों में समिति के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. सरजूप्रसाद तिवारी और प्रोफेसर दुर्गाशंकर रावल ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने का संकल्प पारित कराया था। इसके पश्चात समिति ने देशी रियासतों और राज्यों में [[हिन्दी]] के प्रचार के लिए एक व्यापक जन-आन्दोलन खड़ा किया। डॉं. तिवारी और उनके सहयोगियों के प्रयास से [[रीवा]], [[दतिया]], झाबुआ, [[देवास]], सैलाना, रतलाम, पन्ना, चरखारी, अलीराजपुर, राजगढ़, प्रतापगढ़, नरसिंहगढ़, झालावाड़, डूंगरपुर, खिलचीपुर, मैहर, धार और बड़वानी सहित मध्य भारत और [[राजस्थान]] की लगभग तीस रियासतों के राजाओं ने हिन्दी को अपने राज्य मे राजकाज की भाषा घोषित कर दिया था। इनमें से कई राजाओं ने समिति के संरक्षक का दायित्व भी स्वीकार किया था।   
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सन् [[1915]] में [[मुम्बई]] और फिर [[सूरत]] में हुए साहित्य सम्मेलनों में समिति के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. सरजूप्रसाद तिवारी और प्रोफेसर दुर्गाशंकर रावल ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने का संकल्प पारित कराया था। इसके पश्चात समिति ने देशी रियासतों और राज्यों में [[हिन्दी]] के प्रचार के लिए एक व्यापक जन-आन्दोलन खड़ा किया। डॉं. तिवारी और उनके सहयोगियों के प्रयास से [[रीवा]], [[दतिया]], झाबुआ, [[देवास]], सैलाना, [[रतलाम]], [[पन्ना ज़िला|पन्ना]], चरखारी, अलीराजपुर, राजगढ़, प्रतापगढ़, नरसिंहगढ़, झालावाड़, [[डूंगरपुर]], खिलचीपुर, मैहर, [[धार]] और बड़वानी सहित मध्य भारत और [[राजस्थान]] की लगभग तीस रियासतों के राजाओं ने हिन्दी को अपने राज्य मे राजकाज की भाषा घोषित कर दिया था। इनमें से कई राजाओं ने समिति के संरक्षक का दायित्व भी स्वीकार किया था।   
  
सन [[1915]] मे समिति द्वारा उद्घोषित स्वर को अपना समर्थन देते हुए महात्मा गांधी ने सन् [[1918]] में समिति के इन्दौर स्थित परिसर से ही सबसे पहले हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का आह्वान् किया था। यहाँ हुए [[हिन्दी साहित्य सम्मेलन]] में तत्कालीन [[मद्रास]] प्रांत में हिन्दी प्रचार सभा की स्थापना का संकल्प लेकर उसके लिए धन एकत्रित किया गया। इस तरह [[दक्षिण भारत]] के राज्यों में हिन्दी भाषा के प्रचार के पहले प्रयास में श्री मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति ने अत्यंत उल्लेखनीय और प्रभावशाली भूमिका निभाई। वर्धा स्थित राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की स्थापना में भी समिति की ऐतिहासिक भूमिका रही है।
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सन [[1915]] मे समिति द्वारा उद्घोषित स्वर को अपना समर्थन देते हुए महात्मा गांधी ने सन् [[1918]] में समिति के इन्दौर स्थित परिसर से ही सबसे पहले हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का आह्वान् किया था। यहाँ हुए हिन्दी साहित्य सम्मेलन में तत्कालीन [[मद्रास]] प्रांत में हिन्दी प्रचार सभा की स्थापना का संकल्प लेकर उसके लिए धन एकत्रित किया गया। इस तरह [[दक्षिण भारत]] के राज्यों में हिन्दी भाषा के प्रचार के पहले प्रयास में श्री मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति ने अत्यंत उल्लेखनीय और प्रभावशाली भूमिका निभाई। वर्धा स्थित राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की स्थापना में भी समिति की ऐतिहासिक भूमिका रही है।
 
==उद्देश्य==
 
==उद्देश्य==
 
वर्तमान संदर्भो में समिति [[हिन्दी भाषा]] के संवर्द्वन के साथ-साथ भारतीय भाषाओं में समन्वयन तथा सूचना तकनीक में भारतीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य कर रही है। हिन्दी के विभिन्न आयामों पर शोध के लिए समिति में डॉ. परमेश्वरदत्त शर्मा शोध संस्थान की स्थापना की गई है। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त इस शोध केन्द्र में विभिन्न विषयों पर शोध कर रहे शोधार्थी हिन्दी भाषा और [[साहित्य]] को सम्रद्ध करने का प्रयास कर रहे है। देवभाषा [[संस्कृत]] के वैज्ञानिक आयामों पर शोध को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से समिति ने संस्कृत शोध केन्द्र की स्थापना भी की है। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त इस केन्द्र का शुभारंभ [[भारत]] की [[राष्ट्रपति]] [[प्रतिभा पाटिल]] ने किया था।​
 
वर्तमान संदर्भो में समिति [[हिन्दी भाषा]] के संवर्द्वन के साथ-साथ भारतीय भाषाओं में समन्वयन तथा सूचना तकनीक में भारतीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य कर रही है। हिन्दी के विभिन्न आयामों पर शोध के लिए समिति में डॉ. परमेश्वरदत्त शर्मा शोध संस्थान की स्थापना की गई है। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त इस शोध केन्द्र में विभिन्न विषयों पर शोध कर रहे शोधार्थी हिन्दी भाषा और [[साहित्य]] को सम्रद्ध करने का प्रयास कर रहे है। देवभाषा [[संस्कृत]] के वैज्ञानिक आयामों पर शोध को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से समिति ने संस्कृत शोध केन्द्र की स्थापना भी की है। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त इस केन्द्र का शुभारंभ [[भारत]] की [[राष्ट्रपति]] [[प्रतिभा पाटिल]] ने किया था।​

15:29, 9 अप्रैल 2020 का अवतरण

श्री मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति, राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार हेतु कार्यरत भारत की प्राचीनतम और शीर्षस्थ संस्थाओं में से एक है।

स्थापना तथा इतिहास

सारे देश में राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार-प्रसार कर देशवासियों में सामाजिक और राष्ट्रीय चेतना जागृत करने के उद्वेश्य से समिति की स्थापना 29 जुलाई, 1910 को इन्दौर, मध्य प्रदेश में हुई थी। मध्य भारत की विख्यात शिक्षण संस्था डेली कालेज के प्राध्यापक पं. कृष्णानन्द मिश्र और श्यामलाल शर्मा ने एक पुस्तकालय के रूप मे समिति का बीजारोपण किया था। महात्मा गांधी की प्रेरणा से स्थापित इस संस्था का पिछली एक शताब्दी का इतिहास राष्ट्रभाषा की सेवा के लिए किए गए विनम्र प्रयासों की गाथा कहता है। अपनी स्थापना से ही समिति की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर रही है।

सन् 1915 में मुम्बई और फिर सूरत में हुए साहित्य सम्मेलनों में समिति के तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. सरजूप्रसाद तिवारी और प्रोफेसर दुर्गाशंकर रावल ने हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्थापित करने का संकल्प पारित कराया था। इसके पश्चात समिति ने देशी रियासतों और राज्यों में हिन्दी के प्रचार के लिए एक व्यापक जन-आन्दोलन खड़ा किया। डॉं. तिवारी और उनके सहयोगियों के प्रयास से रीवा, दतिया, झाबुआ, देवास, सैलाना, रतलाम, पन्ना, चरखारी, अलीराजपुर, राजगढ़, प्रतापगढ़, नरसिंहगढ़, झालावाड़, डूंगरपुर, खिलचीपुर, मैहर, धार और बड़वानी सहित मध्य भारत और राजस्थान की लगभग तीस रियासतों के राजाओं ने हिन्दी को अपने राज्य मे राजकाज की भाषा घोषित कर दिया था। इनमें से कई राजाओं ने समिति के संरक्षक का दायित्व भी स्वीकार किया था।

सन 1915 मे समिति द्वारा उद्घोषित स्वर को अपना समर्थन देते हुए महात्मा गांधी ने सन् 1918 में समिति के इन्दौर स्थित परिसर से ही सबसे पहले हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का आह्वान् किया था। यहाँ हुए हिन्दी साहित्य सम्मेलन में तत्कालीन मद्रास प्रांत में हिन्दी प्रचार सभा की स्थापना का संकल्प लेकर उसके लिए धन एकत्रित किया गया। इस तरह दक्षिण भारत के राज्यों में हिन्दी भाषा के प्रचार के पहले प्रयास में श्री मध्य भारत हिन्दी साहित्य समिति ने अत्यंत उल्लेखनीय और प्रभावशाली भूमिका निभाई। वर्धा स्थित राष्ट्रभाषा प्रचार समिति की स्थापना में भी समिति की ऐतिहासिक भूमिका रही है।

उद्देश्य

वर्तमान संदर्भो में समिति हिन्दी भाषा के संवर्द्वन के साथ-साथ भारतीय भाषाओं में समन्वयन तथा सूचना तकनीक में भारतीय भाषाओं के प्रयोग को बढ़ावा देने की दिशा में कार्य कर रही है। हिन्दी के विभिन्न आयामों पर शोध के लिए समिति में डॉ. परमेश्वरदत्त शर्मा शोध संस्थान की स्थापना की गई है। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त इस शोध केन्द्र में विभिन्न विषयों पर शोध कर रहे शोधार्थी हिन्दी भाषा और साहित्य को सम्रद्ध करने का प्रयास कर रहे है। देवभाषा संस्कृत के वैज्ञानिक आयामों पर शोध को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से समिति ने संस्कृत शोध केन्द्र की स्थापना भी की है। देवी अहिल्या विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त इस केन्द्र का शुभारंभ भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने किया था।​

समिति भाषा और साहित्य के साथ-साथ अब कला, संगीत और संस्कृति के क्षेत्रों में सृजनशीलता को प्रोत्साहित करने का दायित्व निभा रही है। दरअसल भाषा और साहित्य के क्षेत्र में समिति की दीर्घकालीन राष्ट्रीय सेवा में मिले अनुभवों को अब राष्ट्रीय संस्कृति के विकास और विस्तार के लिए नियोजित कर समिति को भाषा, साहित्य, कला और संस्कृति का सृजन केन्द्र बनाने की प्रक्रिया शुरू की गई है।

पुस्तकालय

समिति का पुस्तकालय मध्य प्रदेश के सबसे समृद्व और प्राचीन पुस्तकालयों में से एक है। वर्तमान में यहा लगभग 22 हजार पुस्तकें हैं। पुस्तकालय का कम्प्यूटीकरण हो चुका है। इस पुस्तकालय को नेशनल लायब्रेरी नेटवर्क से जोड़ने तथा ई-लायब्रेरी के रूप में विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। समिति की योजना यहाँ पर एक ऑडियो विज्युअल लायब्रेरी स्थापित करने की है। इन्दौर के रंगकर्मी और कलाकर्मियों को एक नया मंच देने के लिए समिति परिसर में एक आर्ट गैलरी और मासिक नाट्य शिविर शुरू करने की भी योजना बनाई जा रही है।


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टीका-टिप्पणी और संदर्भ

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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