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'''भास्कराचार्य''' (जन्म- 1114 ई. मृत्यु-  1179 ई.) प्राचीन [[भारत]] के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे। भास्कराचार्य द्वारा लिखित [[ग्रन्थ|ग्रन्थों]] का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में किया जा चुका है।
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भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थों का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में किया जा चुका है। भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थों ने अनेक विदेशी विद्वानों को भी शोध का रास्ता दिखाया है। कई शताब्दी के बाद केपलर तथा [[न्यूटन]] जैसे यूरोपीय वैज्ञानिकों ने जो सिद्धान्त प्रस्तावित किए उन पर भास्कराचार्य द्वारा प्रस्तावित सिद्धान्तों की स्पष्ट छाप मालूम पड़ती है। ऐसा लगता है जैसे अपने सिद्धान्तों को प्रस्तुत करने के पूर्व उन्होंने अवश्य ही भास्कराचार्य के सिद्धान्तों का अध्ययन किया होगा।
 
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11:40, 17 मार्च 2018 के समय का अवतरण

सिद्धान्त शिरोमणि
सिद्धान्त शिरोमणि का आवरण पृष्ठ
लेखक भास्कराचार्य
प्रकाशक चौखम्बा सुरभारती प्रकाशन
ISBN 978938032177
देश भारत
पृष्ठ: 886
भाषा संस्कृत और हिन्दी
संस्करण 2016
टिप्पणी भास्कराचार्य ने ज्योतिषशास्त्र के प्रतिनिथि ग्रन्थ 'सिद्धान्त शिरोमणि' की रचना शक 1071 में की थी।

भास्कराचार्य (जन्म- 1114 ई. मृत्यु- 1179 ई.) प्राचीन भारत के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री थे। भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थों का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में किया जा चुका है। भास्कराचार्य ने ज्योतिषशास्त्र के प्रतिनिथि ग्रन्थ 'सिद्धान्त शिरोमणि' की रचना शक 1071 में की थी।

भास्कराचार्य की अवस्था मात्र बत्तीस वर्ष की थी तो उन्होंने अपने प्रथम ग्रन्थ की रचना की। उनकी इस कृति का नाम ‘सिद्धान्त शिरोमणि’ था। उन्होंने इस ग्रन्थ की रचना चार खंडों में की थी। इन चार खण्डों के नाम हैं-

  • 'पारी गणित'
  • बीज गणित'
  • 'गणिताध्याय'
  • 'गोलाध्याय'
  • पारी गणित नामक खंड में संख्या प्रणाली, शून्य, भिन्न, त्रैशशिक तथा क्षेत्रमिति इत्यादि विषयों पर प्रकाश डाला गया है।
  • जबकि बीज गणित नामक खंड में धनात्मक तथा ऋणात्मक राशियों की चर्चा की गई है तथा इसमें बताया गया है कि धनात्मक तथा ऋणात्मक दोनों प्रकार की संख्याओं के वर्ग का मान धनात्मक ही होता है।

अनुवाद

भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थों का अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में किया जा चुका है। भास्कराचार्य द्वारा लिखित ग्रन्थों ने अनेक विदेशी विद्वानों को भी शोध का रास्ता दिखाया है। कई शताब्दी के बाद केपलर तथा न्यूटन जैसे यूरोपीय वैज्ञानिकों ने जो सिद्धान्त प्रस्तावित किए उन पर भास्कराचार्य द्वारा प्रस्तावित सिद्धान्तों की स्पष्ट छाप मालूम पड़ती है। ऐसा लगता है जैसे अपने सिद्धान्तों को प्रस्तुत करने के पूर्व उन्होंने अवश्य ही भास्कराचार्य के सिद्धान्तों का अध्ययन किया होगा।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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