तंबूरा ले मंच पर बैठे प्रेमप्रताप। साज़ मिले पंद्रह मिनट. घंटाभर आलाप॥ घंटाभर आलाप, राग में मारा गोता। धीरे-धीरे खिसक चुके थे सारे श्रोता॥ कहें 'काका', सम्मेलन में सन्नाटा छाया। श्रोताओं में केवल हमको बैठा पाया॥ कलाकार जी ने कहा, होकर भाव-विभोर। काका ! तुम संगीत के प्रेमी हो घनघोर॥ प्रेमी हो घनघोर, न हमने सत्य छिपाया। अपने बैठे रहने का कारण बतलाया॥ 'कृपा करें' श्रीमान ! मंच का छोड़ें पीछा। तो हम घर ले जाएं अपने फर्श-गलीचा॥