आर. सी. बोराल

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आर. सी. बोराल
आर. सी. बोराल
पूरा नाम राय चन्द बोराल
जन्म 19 अक्टूबर, 1903
जन्म भूमि कलकत्ता, ब्रिटिश भारत
मृत्यु 25 नवम्बर, 1981
मृत्यु स्थान कोलकाता (भूतपूर्व कलकत्ता)
अभिभावक लालचन्द बोराल
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र संगीत निर्देशन
मुख्य फ़िल्में 'मोहब्बत के आँसू', 'धूप छाँव', 'डाकू मंसूर', 'चंडीदास', 'पूरन भगत', 'विद्यापति', 'अभागिन', 'प्रेसिडेंट' आदि।
पुरस्कार-उपाधि 'सारस्वत महामंडल उपाधि' (1930), 'संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार' (1978), 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' (1979)
प्रसिद्धि फ़िल्म संगीतकार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी आर. सी. बोराल, नितिन बोस और पंकज मलिक ने मिलकर भारतीय फ़िल्मी संगीत में पार्श्वगायन की शुरुआत की थी।

राय चन्द बोराल (अंग्रेज़ी: R. C. Boral; जन्म- 19 अक्टूबर, 1903, कलकत्ता, ब्रिटिश भारत; मृत्यु- 25 नवम्बर, 1981) हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध संगीतकार थे। उन्हें भारतीय सिनेमा में 'पार्श्वगायन' की शुरुआत करने का श्रेय दिया जाता है। इसके साथ ही बोराल जी को पहली संगीतमय कार्टून फ़िल्म बनाने का भी श्रेय प्राप्त है। उनके द्वारा निर्मित तीन कार्टून कथाचित्रों में 'भुलेर शेषे', 'लाख टाका' एवं 'भोला मास्टर' हैं। आर. सी. बोराल को कार्टून फ़िल्म बनाने की प्रेरणा मशहूर हास्य कलाकार चार्ली चैपलिन की फ़िल्म 'ए सिटी लाइट्स' से मिली थी, जिसे उन्होंने 40 बार देखा था। सुप्रसिद्ध गायक कुंदनलाल सहगल की प्रतिभा को तराशने, निखारने एवं उसे भारत की जनता से रू-ब-रू करवाने का श्रेय भी आर. सी. बोराल को ही जाता है। हिन्दी फ़िल्मों में दिये हुए विशिष्ट योगदान के लिए आर. सी. बोराल को वर्ष 1978 में 'संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार' और 1979 में 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया था।

जन्म तथा शिक्षा

आर. सी. बोराल  का जन्म 19 अक्टूबर, 1903 को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के एक मशहूर संगीत परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम लालचन्द बोराल था, जो शास्त्रीय संगीतकार थे। उन्हें संगीत वाद्य पखावज में प्रसिद्धि प्राप्त थी। घर का माहौल संगीतमय था, इसीलिए बोराल को बचपन से ही सांगीतिक वातावरण मिला था। उन्होंने पंडित विश्वनाथ राव से धमार एवं ग्वालियर घराने के मशहूर सरोद के उस्ताद हाफ़िज़ अली ख़ाँ की सलाह पर उस्ताद माजिद ख़ाँ से तबला बजाने की शिक्षा प्राप्त की।

कैरियर की शुरुआत

आर. सी. बोराल के कैरियर के प्रारंभ से ही संगीतकार पंकज मलिक उनके नजदीकी मित्र बन गये थे। इन दोनों ने सन 1928 से ही फ़िल्मों में प्रवेश किया और उस समय की बनने वाली मूक फ़िल्मों के लिए संगीत देने का कार्य किया। बाद में जब हिन्दुस्तान का सवाक सिनेमा 1931 से प्रारंभ हुआ, तो उन्होंने धुनें बनाना भी प्रारंभ कर दिया और गायन के लिए पार्श्वगायन के अवसर उपलब्ध कराए। बतौर संगीतकार बोराल साहब कितने सम्मानित व्यक्ति थे, इसका अंदाज़ा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि एस. के. पाल, खेमचंद्र प्रकाश एवं पन्नालाल घोष जैसे संगीतकार उनसे संगीत की शिक्षा ग्रहण करते थे।

नये प्रयोग

कोलकाता के 'न्यू थियेटर्स' में काम करते हुए आर. सी. बोराल ने वहाँ के साउंड इंजीनियर मुकुल बोस, जो कि नितिन बोस के भाई थे, के साथ एम्पलीफ़्लायर का प्रयोग भी संगीत में प्रारंभ किया। इसी श्रंखला में उन्होंने एक और उपलब्धि हासिल की, वह थी- संगीत वाद्य यंत्रों के साथ ध्वनि प्रभाव देना। वर्ष 1932 में आयी फ़िल्म 'मोहब्बत के आँसू' आर. सी. बोराल की संगीतबद्ध पहली फ़िल्म तो थी ही, इसके साथ ही यह मशहूर कुंदनलाल सहगल के अभिनय से भी सजी थी। सहगल द्वारा ही अभिनीत फ़िल्म 'चंडीदास' (1934) बोराल जी की सबसे कामयाब फ़िल्मों में गिनी जाती है। फ़िल्म 'प्रेसीडेंट' (1937) में कुंदनलाल सहगल द्वारा गाया गया गीत "एक बंगला बने न्यारा" आज तक आर. सी. बोराल और सहगल की सर्वश्रेष्ठ रचनाओं में गिना जाता है।

पार्श्वगायन की शुरुआत

संगीतकार आर. सी. बोराल, पंकज मलिक और नितिन बोस को भारतीय सिनेमा में पार्श्वगायन की शुरुआत करने का श्रेय दिया जाता है। हिन्दी फ़िल्मों में पार्श्वगायन की शुरुआत से सम्बन्धित एक रोचक घटना है-

"जिस रास्ते से नितिन बोस प्रतिदिन अपने घर से 'न्यू थियेटर्स' जाते थे, उसी रास्ते में संगीतकार पंकज मलिक का घर पड़ता था। इसीलिए नितिन बोस प्रतिदिन पंकज मलिक को उनके घर के पास से उन्हें अपनी कार में बैठाकर स्टूडियो ले जाते और छोड़ जाते। यह सिलसिला चलता रहता था। रोज़ की ही भाँति नितिन बोस पंकज मलिक के दरवाज़े पर अपनी कार का हॉर्न बजा कर उन्हें बुला रहे थे, परन्तु पंकज मलिक पर इसका कोई असर नहीं हो रहा था। नितिन बोस को लगा कि शायद घर में कोई नहीं है। तभी लगातार कार के हॉर्न की आवाज सुन कर पंकज मलिक के पिता ने उनको कमरे में जा कर बताया की गेट पर नितिन बोस बहुत देर से तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं। इतना सुनते ही पंकज मलिक दौड़ते हुए नितिन बोस के पास पहुँचे और कहा- "माफ़ी चाहूँगा, मैं ज़रा अपने पसंदीदा अंग्रेज़ी गानों का रिकॉर्ड सुनते हुये उसके साथ गाने में मशगूल हो गया था। इसीलिए आपके कार के हॉर्न को नहीं सुन सका।

नितिन बोस ने इस घटना की चर्चा 'न्यू थियेटर्स' में आर. सी. बोराल से की और उनसे चर्चा करते हुये उन्हें अपना एक सुझाव दिया- "कि क्यूँ ना हम कुछ नया प्रयोग करें। जैसे पंकज उस गाने के साथ गाये जा रहे थे, उसी तरह गाने को भी पहले रिकॉर्ड किया जा सकता है। इससे हमें अभिनेताओं और अभिनेत्रियों की आवाज़ों के साथ समझौता नहीं करना पड़ेगा। हमारे पास विकल्प यह होगा की हम किसी सुरीले प्रशिक्षित गायक, गायिकायों की आवाज़ में गाने रिकॉर्ड कर सकते हैं और बाद में शूटिंग के समय फ़िल्म में अभिनय कर रहे चरित्र पर चित्रांकन कर सिनेमा को और रोचक बना सकते हैं। आर. सी. बोराल इस विचार से पूरी तरह सहमत हुये। फलस्वरूप उस समय नितिन बोस के ही निर्देशन में बन रही फ़िल्म 'धूप छावँ' (1935) के लिये उन्होंने पहला गाना "मैं खुश होना चाहूँ, खुश हो न सकूँ" रिकॉर्ड किया, जिसमें मुख्य स्वर के. सी. डे का था तथा कोरस में पारुल घोष, सुप्रवा सरकार एवं हरिमति के स्वर थे। इसके रिकोर्डिस्ट मुकुल बोस थे, जो नितिन बोस के ही भाई थे। मुकुल बोस भी 'न्यू थियेटर्स' में बतौर ध्वनि मुद्रक कार्यरत थे। इस प्रकार संगीतकार के तौर पर हिन्दी सिनेमा में पार्श्वगायन की परम्परा का श्रीगणेश करने का श्रेय आर. सी. बोराल को जाता है, जबकि प्रथम पार्श्वगायक होने का श्रेय के. सी. डे दिया गया।[1]

प्रमुख फ़िल्में

आर. सी. बोराल द्वारा संगीत निर्देशित प्रमुख फ़िल्में
वर्ष फ़िल्म वर्ष फ़िल्म
1932 मोहब्बत के आँसू 1932 जिन्दा लाश
1933 सुबह का सितारा 1933 पूरन भगत
1933 मीराबाई 1934 चंडीदास
1934 डाकू मंसूर 1934 मोहब्बत की कसौटी
1935 कारवाँ-ए-हयात 1935 धूप छाँव
1935 इंकलाब 1936 मंजिल
1937 अनाथ आश्रम 1937 विद्यापति
1937 प्रेसिडेंट 1938 अभागिन
1938 स्ट्रीट सिंगर 1939 सपेरा
1940 हार जीत 1941 लगन
1942 नारी 1942 सौगन्ध
1943 वापस 1945 हमरीही
1945 वसीयतनामा 1948 अंजानगढ़
1950 पहला आदमी 1950 स्वामी विवेकानन्द
1953 दर्द-ए-दिल 1953 श्री चैतन्य महाप्रभु

संगीत के भीष्म पितामह

संगीतकार अनिल विश्वास ने आर. सी. बोराल को भारतीय फ़िल्म जगत् में संगीत के भीष्म पितामह की संज्ञा दी थी। बोराल जी 'न्यू थियेटर्स' के साथ-साथ 'ऑल इंडिया रेडिओ कंपनी' (आकाशवाणी) में भी संगीत के विभागाध्यक्ष नियुक्त थे। उन्होंने मूक सिनेमा के अंतर्गत 'चोशेर मेय' तथा 'चोर काँटें' फ़िल्मों में भी स्टेज आर्केष्ट्रा का संचालन किया था। इन आर्केष्ट्रा में हारमोनियम और वायलिन के साथ-साथ चेलो, बाँसुरी, तथा ऑर्गन का प्रयोग कर उन्होंने स्टेज आर्केष्ट्रा को भी एक नया और आकर्षक रूप प्रदान कर दिया था।[1]

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • शायद बहुत कम लोग ही यह जानते हैं कि सन 1935 में बनी फ़िल्म 'आफ़्टर द अर्थक्वेक' जो 1934 ई. में बिहार में आये भयानक भूकम्प पर आधारित फ़िल्म थी, इसके संगीतकार आर. सी. बोराल ही थे। इस फ़िल्म के एक गीत को बोराल जी ने केदार शर्मा से गवाया था, जो उन्हीं के लिखे हुये थे। गीत के बोल थे- "आओ री चमेली एक बात बतायें..."। तत्कालीन समय में इस गीत को बहुत प्रसिद्धि मिली थी। यह गीत बिहार की लोक शैली को स्पर्श करता महसूस किया गया था। इस फ़िल्म में एक और ख़ास बात यह थी, की इसमें प्रसिद्ध अभिनेता राजकपूर ने बाल कलाकार की एक रोचक भूमिका अदा की थी।
  • इसी प्रकार वर्ष 1937 में 'न्यू थियेटर्स' के बैनर तले निर्मित फ़िल्म 'विद्यापति' का संगीत भी आर. सी. बोराल ने तैयार किया था, जो बिहार के मिथिला प्रक्षेत्र के राजा शिवसिंह, उनकी पत्नी रानी लक्ष्मी एवं कविवर विद्यापति के बीच प्रेम त्रिकोण पर आधारित थी। इस फ़िल्म के सभी गीत केदार शर्मा ने लिखे थे, जिसे आर. सी. बोराल ने अपने संगीत रस से सजाया था। फ़िल्म 'विद्यापति' के गीत उस समय के सबसे सफल संगीत की श्रेणी में रखे गए थे। यह वही फ़िल्म थी, जिसने कानन देवी को अभिनेत्री से साथ-साथ एक सफल गायिका के रूप में भी स्थापित किया था।[1]

पुरस्कार व सम्मान

भारतीय सिनेमा में आर. सी. बोराल के अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें सन 1930 में लखनऊ में हुए संगीत सम्मलेन में 'सारस्वत महामंडल' की उपाधि दी गई थी। वर्ष 1978 में उन्हें 'संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार' तथा 1979 भारतीय सिने संसार के सर्वोच्च सम्मान 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार' से भी नवाजा गया था।

निधन

भारतीय सिनेमा में बहुमूल्य योगदान देने वाले और एक संगीतकार के रूप में प्रसिद्धि पाने वाले आर. सी. बोराल का निधन कोलकाता में ही 25 नवम्बर, 1981 को हुआ।


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