शंकर जयकिशन

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शंकर जयकिशन
शंकर (बाएँ) और जयकिशन (दाएँ)
पूरा नाम शंकर सिंह रघुवंशी और जयकिशन दयाभाई पांचाल
प्रसिद्ध नाम शंकर जयकिशन
जन्म शंकर- 15 अक्तूबर, 1922, हैदराबाद; जयकिशन- 4 नवम्बर 1932, गुजरात
मृत्यु शंकर- 26 अप्रॅल 1987 (आयु 64 वर्ष); जयकिशन- 12 सितम्बर 1971 (आयु 41 वर्ष)
मृत्यु स्थान मुम्बई
कर्म-क्षेत्र संगीतकार
मुख्य रचनाएँ मेरी आंखों में बस गया कोई रे, जिया बेकरार है छाई बहार है, मुझे किसी से प्यार हो गया, हवा में उडता जाए मेरा लाल दुपट्टा मलमल का, अब मेरा कौन सहारा, बरसात में हमसे मिले तुम सजन, तुमसे मिले हम, बिछड गई मैं घायल हिरनी आदि
पुरस्कार-उपाधि नौ बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्मफेयर पुरस्कार
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी जयकिशन और शंकर की जोड़ी ने लगभग 170 से भी ज्यादा फ़िल्मों में संगीत दिया।

शंकर जयकिशन (अंग्रेज़ी:Shankar Jaikishan) हिन्दी फ़िल्मों की एक प्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी है। भारतीय फ़िल्मों में जब भी सुकून और ताजगी का अहसास देने वाले मधुर संगीत की चर्चा होती है। संगीतकार जयकिशन और उनके साथी शंकर की बरबस ही याद आ जाती है। वह पहली संगीतकार जोड़ी थी, जिसने लगभग दो दशक तक संगीत जगत पर बादशाह की हैसियत से राज किया और हिन्दी फ़िल्म संगीत को पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता दिलाने का काम किया।

परिचय

स्वर साम्रागी लता मंगेशकर आज जिस मुकाम पर हैं। वहां तक उनके पहुंचने में इस जोड़ी के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। लता मंगेशकर के कैरियर को बुलंदी पर पहुंचाने में दो फ़िल्मों, महल और बरसात की अहम भूमिका रही। दोनों ही फ़िल्में 1949 में प्रदर्शित हुई थीं। पहली फ़िल्म का संगीत मशहूर संगीतकार खेमचंद प्रकाश ने दिया था और दूसरी फ़िल्म के संगीतकार जयकिशन और शंकर थे। यही वह फ़िल्म थी, जिससे उनके साथ गीतकार शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी तथा अभिनेत्री निम्मी ने भी अपने कैरियर का आग़ाज किया था। इस फ़िल्म में शंकर जयकिशन ने गीतों की एक से बढकर एक ऐसी सरस और कर्णप्रिय धुनें बनाई थीं कि यह फ़िल्म गीत और संगीत की दृष्टि से बालीवुड के इतिहास में "मील का पत्थर" मानी जाती है। मेरी आंखों में बस गया कोई रे, जिया बेकरार है छाई बहार है, मुझे किसी से प्यार हो गया, हवा में उडता जाए मेरा लाल दुपट्टा मलमल का, अब मेरा कौन सहारा, बरसात में हमसे मिले तुम सजन, तुमसे मिले हम, बिछड गई मैं घायल हिरनी, बन बन ढूंढूं, ( जैसे गीतों की ताजगी आज भी कम नहीं हुई है। लता मंगेशकर बड़ी विनम्रता से अपने कैरियर में मौलिक प्रतिभा की धनी इस संगीतकार जोड़ी के योगदान को स्वीकार करती हैं। जब भी शंकर जयकिशन का उनके सामने ज़िक्र होता है। वह कहना नहीं भूलतीं। उन्होंने शास्त्रीय, कैबरे, नृत्य, प्रेम तथा दु:ख और खुशी के नगमों के लिए स्वर रचनाएं की। उनके संगीत ने कई फ़िल्मों को जिन्दगी दी। अन्यथा वे भुला दी जातीं।[1]

शंकर

15 अक्टूबर 1922 को जन्मे शंकर के पिता रामसिंह रघुवंशी मूलत: मध्य प्रदेश के थे और काम के सिलसिले में हैदराबाद में बस गये थे। शंकर को शुरु से ही कुश्ती का शौक़ था और उनका कसरती बदन बचपन के इसी शौक़ का परिणाम था। घर के पास के एक शिव मंदिर में पूजा अर्चना के दौरान तबला वादक का वादन भी बचपन में बहुत आकर्षित करता था। तबला बजाने की लगन दिनों दिन बढ़ती गयी। महफ़िलों में तबला बजाते हुए उस्ताद नसीर खान की निगाह उन पर पड़ी और शंकर उनके चेले हो गये। माली हालात ऐसे थे कि ट्यूशन भी करनी पड़ी। कहते हैं कि हैदराबाद में ही एक बार किसी गली से गुजरते हुए तबला सुनकर शंकर एक तवायफ़ के कोठे पर पहुँच गये और तबलावादक को ग़लत बजाने पर टोक दिया। बात बढ़ी तो शंकर ने इस सफ़ाई से बजाकर अपनी क़ाबिलियत का परिचय दिया कि वाह-वाही हो गयी। शंकर अपनी कला को और निखारने के लिए एक नाट्य मंडली में शामिल हो गये, जिसके संचालक मास्टर सत्यनारायण थे और हेमावती ने बम्बई जा कर पृथ्वी थियेटर्स में नौकरी कर ली, तो शंकर भी 75 रुपये प्रतिमाह पर पृथ्वी थियेटर्स में तबलावादक बन गये। पृथ्वी थियेटर्स के नाटकों में कुछ छोटी-मोटी भूमिकाएँ मिलने लगीं और वहीं शंकर ने सितार बजाना भी सीख लिया।[1]

जयकिशन

4 नवम्बर 1932 को जन्मे जयकिशन मूलत: गुजरात के वलसाड़ ज़िले के बासंदा गाँव के लकड़ी का सामान बनाने वाले परिवार से थे। परिवार ग़रीब था और जयकिशन के बड़े भाई बलवंत भजन मंडली में गा-बजाकर कुछ योगदान करते थे। प्रारम्भिक संगीत की शिक्षा बाड़ीलाल और प्रेमशंकर नायक से मिली। बासंदा की ही प्रताप सिल्वर जुबली गायनशाला में उस वक़्त के मंदिरों के त्यौहार-संगीत और गुजराती आदिवासियों के नृत्य संगीत के तत्त्व उन्हीं दिनों जयकिशन के मन में घर कर गये जिसके कई रंग बाद में उनके संगीत में भी समय समय पर झलके। भाई बलवंत की नशे की लत से मौत के बाद जयकिशन अपनी बहन रुक्मिणी के पास वलसाड़ आ गये और अपने बहनोई दलपत के साथ कारखाने में कुछ दिन काम किया, फिर दलपत के साढू के पास बम्बई में ग्रांट रोड के पास रहते हुए एक कपड़े के कारखाने में काम करने के साथ साथ ऑपेरा हाउस के स्थित विनायक राव तांबे की संगीतशाला में हारमोनियम का रियाज़ जारी रखा।[1]

शंकर जयकिशन की मुलाक़ात

शंकर जयकिशन की मुलाक़ात भी अजीब ढंग से हुई। ऑपेरा हाउस थियेटर के पास की व्यायामशाला में कसरत के लिए शंकर जाया करते थे और वहीं दत्ताराम से उनकी मुलाक़ात हुई। दत्ताराम शंकर से तबले और ढोलक की बारीकियाँ सीखने लगे, और एक दिन उन्हें फ़िल्मों में संगीत का काम दिलाने के लिए दादर में गुजराती फ़िल्मकार चंद्रवदन भट्ट के पास ले गये। वहीं जयकिशन भी फ़िल्मों में काम की तलाश में आये हुए थे। इंतज़ार के क्षणों में ही बातों में शंकर को पता चला कि जयकिशन हारमोनियम बजाते थे। उस समय सौभाग्य से पृथ्वी थियेटर में हारमोनियम मास्टर की जगह ख़ाली थी। शंकर ने प्रस्ताव रखा तो जयकिशन झट से मान गये और इस तरह पृथ्वी थियेटर्स के परचम तले शंकर और जयकिशन साथ-साथ काम करने लगे। 'पठान' में दोनों ने साथ-साथ अभिनय भी किया। काम के साथ-साथ दोस्ती भी प्रगाढ़ होती गयी। शंकर साथ-साथ हुस्नलाल भगतराम के लिए भी तबला बजाने का काम करते थे और दोनों भाइयों से भी संगीत की कई बारीकियाँ उन्होंने सीखीं। पृथ्वी थियेटर्स में ही काम करते करते शंकर और जयकिशन राजकपूर के भी क़रीबी हो गए। हालाँकि राज कपूर की पहली फ़िल्म के संगीतकार थे पृथ्वी थियेटर्स के वरिष्ठ संगीतकार राम गाँगुली और शंकर जयकिशन उनके सहायक थे, लेकिन बरसात के लिए संगीत की रिकार्डिंग के शुरुआती दौर में जब राजकपूर को पता चला कि बरसात के लिए बनायी एक धुन राम गाँगुली उसी समय बन रही एक दूसरी फ़िल्म के लिए प्रयुक्त कर रहे हैं तो वे आपा खो बैठे। शंकर जयकिशन की प्रतिभा के तो वो कायल थे ही और जब उन्होंने शंकर के द्वारा उनकी लिखी कम्पोज़िशन 'अम्बुआ का पेड़ है, वही मुडेर है, मेरे बालमा, अब काहे की देर है' की बनायी धुन सुनी तो उन्होंने राम गाँगुली की जगह शंकर जयकिशन को ही बरसात का संगीत सौंप दिया। यही धुन बाद में 'जिया बेकरार है, छायी बहार है' के रूप में 'बरसात' में आयी। फ़िल्म बरसात में उनकी जोड़ी ने जिया बेकरार है और बरसात में हमसे मिले तुम सजन जैसा सुपरहिट संगीत दिया। फ़िल्म की कामयाबी के बाद शंकर जयकिशन बतौर संगीतकार अपनी पहचान बनाने मे सफल हो गये। इसे महज एक संयोग ही कहा जायेगा कि फ़िल्म बरसात से ही गीतकार शैलेन्द्र और हसरत जयपुरी ने भी अपने सिने कैरियर की शुरूआत की थी। फ़िल्म बरसात की सफलता के बाद शंकर जयकिशन राजकपूर के चहेते संगीतकार बन गये। इसके बाद राजकपूर की फ़िल्मों के लिये शंकर जयकिशन ने बेमिसाल संगीत देकर उनकी फ़िल्मों को सफल बनाने मे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।[1]

कार्य

जयकिशन और शंकर की जोडी ने लगभग 170 से भी ज्यादा फ़िल्मों में संगीत दिया। उनकी कुछ उल्लेखनीय फ़िल्में हैं-

  • बादल (1951)
  • नगीना (1951)
  • पूनम (1952)
  • शिकस्त (1953)
  • सीमा (1955)
  • बसंत बहार (1956)
  • चोरी-चोरी (1956)
  • नई दिल्ली (1956)
  • राजहठ (1956)
  • कठपुतली (1957)
  • यहूदी (1958)
  • अनाडी (1959)
  • छोटी बहन (1959)
  • कन्हैया (1959)
  • लव मैरिज (1959)
  • दिल अपना और प्रीत पराई (1960)
  • जिस देश में गंगा बहती है (1960)
  • जब प्यार किसी से होता है (1961)
  • जंगली (1961)
  • ससुराल (1961)
  • असली नकली (1962)
  • प्रोफसर (1962)
  • दिल एक मंदिर (1963)
  • हमराही (1963)
  • राजकुमार (1964)
  • आम्रपाली (1966)
  • सूरज (1966)
  • तीसरी कसम (1966)
  • ब्रह्मचारी (1968)
  • कन्यादान (1968)
  • शिकार (1968)
  • मेरा नाम जोकर (1970)
  • अंदाज़(1971)
  • लाल पत्थर (1971)
  • संन्यासी (1973)

सम्मान और पुरस्कार

जयकिशन और शंकर को चोरी चोरी (1956), अनाडी (1959), दिल अपना और प्रीत पराई (1960), प्रोफेसर (1963), सूरज (1966), ब्रह्मचारी (1966), मेरा नाम जोकर (1970), पहचान (1971) और बेईमान (1972) के लिए नौ बार सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला। अंतिम तीन पुरस्कार तो उन्हें लगातार तीन वर्ष तक मिले।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 1.3 शंकर जयकिशन के संगीत का आज भी नहीं है मुकाबला (हिंदी) लाइव हिंदुस्तान। अभिगमन तिथि: 19 जुलाई, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

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