के. पी. एस. गिल

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के. पी. एस. गिल
के. पी. एस. गिल
पूरा नाम कंवर पाल सिंह गिल
जन्म 1934/35
जन्म भूमि लुधियाना, पंजाब
मृत्यु 26 मई, 2017
मृत्यु स्थान नई दिल्ली
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र भारतीय पुलिस सेवा
पुरस्कार-उपाधि 'पद्मश्री' (1989)
प्रसिद्धि पुलिस महानिदेशक
विशेष योगदान पंजाब के आतंकवादी एवं उग्रवादी विद्रोह को नियंत्रित करना।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी गिल को सुरक्षा मामलों में बेहद अनुभवी माना जाता था। यहां तक कि उनकी सेवानिवृत्ति के बाद भी छत्तीसगढ़ और गुजरात सरकारों ने उनकी सेवा ली। वे असम के भी पुलिस महानिदेशक रहे।
अद्यतन‎

कंवर पाल सिंह गिल (अंग्रेज़ी: Kanwar Pal Singh Gill, जन्म- 1934/35, लुधियाना; मृत्यु- 26 मई, 2017, नई दिल्ली) पंजाब के दो बार पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) रहे थे। उन्हें पंजाब के आतंकवादी एवं उग्रवादी विद्रोह को नियंत्रित करने का श्रेय दिया जाता है। के. पी. एस. गिल को आतंकवाद की कमर तोड़ने वाला 'सुपरकॉप' कहा जाता है। वे भारतीय पुलिस सेवा से साल 1995 में सेवानिवृत्त हो चुके थे। गिल 'इंस्टीट्यूट फ़ॉर कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट' और 'इंडियन हॉकी फ़ेडरेशन' के अध्यक्ष रहे थे। भारतीय प्रशासनिक सेवा में उनके बेहतरीन काम को ध्यान में रखते हुए 1989 में 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया था।

परिचय

के. पी. एस. गिल का जन्म सन 1934/35 में ब्रिटिशकालीन भारत के लुधियाना, पंजाब में हुआ था। वे 1957 आईपीएस बैंच असम पुलिस के अफ़सर थे और पंजाब में प्रतिनियुक्ति पर भेजे गए थे। जहाँ उनको पंजाब में चरमपंथ को खत्म करने का श्रेय मिला, वहीं मानवाधिकार संगठनों ने पुलिस के तौर-तरीकों पर गंभीर सवाल भी उठाए और फर्जी मुठभेड़ों के अनेक मामले न्यायालय में भी पहुँचे। के. पी. एस. गिल ने पंजाब में खालिस्तानी आंदोलन पर सख़्त कार्रवाई की थी। 1988 में उन्होंने खालिस्तानी चरमपंथियों के ख़िलाफ़ 'ऑपरेशन ब्लैक थंडर' की कमान संभाली थी। यह ऑपरेशन काफ़ी कामयाब रहा था। बाद में के. पी. एस. गिल 'इंडियन हॉकी फ़ेडरेशन' के अध्यक्ष बन गये थे।[1]

गिल सिद्धांत

आतंकवाद मिटाने के लिए के. पी. एस. गिल ने संकल्पनात्मक रूपरेखा प्रस्तुत की। 'गिल सिद्धांत' के मुख्य भाग में यह धारणा थी कि आतंकवाद केवल राजनीतिक विद्रोह की रणनीति है, जैसा कि 1970 के दशक में था। 20वीं शताब्दी के समापन दशक और 21वीं शताब्दी के शुरुआती दशकों में आतंकवाद का विरोध सिर्फ 'कानून और व्यवस्था' के मुद्दे के रूप में नहीं किया जा सकता। इसके बजाए, यह व्यक्तिगत राष्ट्र-राज्यों की सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती थी, क्योंकि यह अभी भी लोकप्रिय विद्रोह के एक अपेंड के रूप में गलत माना जा रहा है। के. पी. एस. गिल का तर्क था कि दुष्ट राज्यों द्वारा आतंकवाद के व्यापक विदेशी प्रायोजन ने नाटकीय रूप से आतंकवादी समूहों की विघटनकारी शक्ति को बढ़ा दिया था। नतीजतन, बल के कम से कम उपयोग का परंपरागत पुलिस सिद्धांत अब अंधाधुंध रूप से लागू नहीं हो सकता। इसके बजाय प्रत्येक विशेष आतंकवादी आंदोलन द्वारा लगाए गए खतरे के लिए बल का उपयोग आनुपातिक होना चाहिए।

पुलिस महानिदेशक

पंजाब में जब उग्रवाद अपने चरम पर था, उस दौरान के. पी. एस. गिल दो बार प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रहे। गिल को सुरक्षा मामलों में बेहद अनुभवी माना जाता था। यहां तक कि उनकी सेवानिवृत्ति के बाद भी छत्तीसगढ़ और गुजरात सरकारों ने उनकी सेवा ली। वे असम के भी पुलिस महानिदेशक रहे। पुलिस सेवा से अवकाश ग्रहण करने के बाद श्रीलंका ने वर्ष 2000 में लिट्टे के खिलाफ जंग के दौरान उनके अनुभवों का लाभ लिया था।[2] के. पी. एस. गिल 1957 आईपीएस बैच में असम पुलिस के अफ़सर थे। उनको असम-मेघालय कॉडर मिला था। इस बारे में उनका कहना था कि- "उन्होंने स्वतंत्र रूप से काम करने के लिए असम-मेघालय कॉडर चुना। अगर वह अपने गृह राज्य पंजाब को चुनते तो राजनीतिक हस्तक्षेप की वजह से स्वतंत्र रूप से काम करना संभव नहीं हो पाता।

सुपरकॉप

के. पी. एस. गिल की पंजाब में तैनाती उनके पुलिस कॅरियर का सबसे चुनौतीपूर्ण समय था। वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या और उसके बाद देश भर में सिखों के खिलाफ दंगों ने पंजाब के हालात को बेहद संवेदनशील बना दिया था। पूरा राज्य खालिस्तान समर्थक चरमपंथ की आग में जल रहा था। पंजाब में चरमपंथी 'ऑपरेशन ब्लू स्टार' का बदला लेने के लिए नेताओं के साथ-साथ सुरक्षा बलों को भी निशाना बन रहे थे। ये 1988 के मई माह की बात है। चरमपंथियों ने एक बार फिर 'हरमिंदर साहिब' गुरुद्वारे को अपना ठिकाना बनाया। पुलिस, प्रशासन और सेना ने इस पवित्र स्थान को चरमपंथियों से मुक्त कराने के लिए 'ऑपरेशन ब्लैक थंडर 2' शुरू किया। इस आॅपरेशन में 67 खालिस्तान समर्थकों ने सरंडर किया और 43 मुठभेड़ में मारे गए। इस ऑपरेशन की कमान के. पी. एस गिल ने संभाली थी। इस आॅपरेशन के बारे में गिल ने एक इंटरव्यू में बताया था कि- "आॅपरेशन ब्लू स्टार के कारण उस वक्त एक आम धारणा बन चुकी थी कि बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) और सीआरपीएफ (केंद्रीय रिजर्ब पुलिस बल) ने इस आॅपरेशन से अपने हाथ खींच लिए हैं। इसकी वजह यह थी कि इन बलों को इस तरह के आॅपरेशन को लेकर कोई प्रशिक्षण नहीं मिल पाया था।" उन्होंने कहा कि- "इस बात को और मेरे पूर्वोत्तर के अनुभवों को ध्यान में रखते हुए मैंने इस आॅपरेशन की कमांड संभालने का निणर्य लिया।"

गिल ने कहा था कि- "मुझे याद है कि इस दौरान हमारी पंजाब के तत्कालीन राज्यपाल सुरिंदरनाथ के घर पर एक मीटिंग हुई थी। इसमें मैंने सुझाव रखा था कि हम इस वक्त 'युद्धक्षेत्र' में हैं। इसलिए ऐसी रणनीति बनाई जाए, जिसमें पुलिस कुछ असुविधाजनक काम करे और सेना जनता के मन बहलाने वाले कामों को अंजाम दे। इसीलिए जब हमने अभियान शुरू किया तो सेना कभी किसी गांव में तलाशी के लिए नहीं गई। हमने घरों की तलाशी ली। इस तरह हमने सारे आरोप अपने सिर ले लिए। इसीलिए जून, 1984 में सेना की कमान में किए गए ऑपरेशन ब्लू स्टार के मुकाबले ऑपरेशन ब्लैक थंडर में कम नुकसान हुआ था।" यही कारण है कि के. पी. एस. गिल को पंजाब में चरमपंथ के ख़ात्मे का हीरो समझा जाता था। इसी दौरान मीडिया में वह 'सुपरकॉप' के रूप में चर्चित हुए।[3]

विवाद

उनकी 28 बरस तक तैनाती पूर्वोतर राज्यों में रही। इसके बाद वह पंजाब में प्रतिनियुक्ति पर भेजे गए थे। पूर्वोतर राज्यों में तैनाती के दौरान के. पी. एस. गिल किसी न किसी विवाद में जुड़े रहे। असम में जब वह पुलिस महानिदेशक थे, तब एक प्रदर्शन के दौरान उन पर प्रदर्शनकारी को प्रताड़ित करने का आरोप लगा। प्रदर्शनकारी की मृत्यु हो गई और गिल पर केस चला। हालांकि इस मामले में उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय ने बरी कर दिया था। असम के कामरूप ज़िले में उनकी कठोर नीतियों की वजह से के. पी. एस. गिल को 'कामरूप पुलिस सुपरिटेंडेंट गिल' कहा जाता था।

मृत्यु

सुरक्षा मामलों में महारत रखने वाले के. पी. एस. गिल का निधन 26 मई, 2017 को नई दिल्ली में हुआ। सर गंगा राम अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली। गुर्दा संबंधी परेशानी के कारण वह 18 मई से अस्पताल में भर्ती थे। उनके गुर्दे ने लगभग काम करना बंद कर दिया था और हृदय तक रक्तापूर्ति में दिक्कत आ रही थी। गिल की हालत में कुछ सुधार हो रहा था, लेकिन हृदयगति में असमानता के कारण अचानक दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गयी।


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