झाँसी का युद्ध

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
रानी लक्ष्मीबाई विषय सूची
झाँसी का युद्ध
रानी लक्ष्मीबाई
पूरा नाम झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
अन्य नाम मनु, मणिकर्णिका
जन्म 19 नवंबर, 1835
जन्म भूमि वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 17 जून, 1858[1]
मृत्यु स्थान ग्वालियर, मध्य प्रदेश
अभिभावक मोरोपंत तांबे और भागीरथी बाई
पति/पत्नी गंगाधर राव निवालकर
संतान दामोदर राव[2]
प्रसिद्धि रानी लक्ष्मीबाई मराठा शासित झांसी की रानी और भारत की स्वतंत्रता संग्राम की प्रथम वनिता थीं।
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी रानी लक्ष्मीबाई का बचपन में 'मणिकर्णिका' नाम रखा गया परन्तु प्यार से मणिकर्णिका को 'मनु' पुकारा जाता था। विवाह के बाद इनका नाम 'लक्ष्मीबाई' हुआ।

झाँसी के युद्ध के समय भारत के बड़े भू-भाग पर अंग्रेज़ों का शासन था। वे झाँसी को अपने अधीन करना चाहते थे। उन्हें यह एक उपयुक्त अवसर लगा। उन्हें लगा रानी लक्ष्मीबाई स्त्री है और हमारा प्रतिरोध नहीं करेगी। उन्होंने रानी के दत्तक-पुत्र को राज्य का उत्तराधिकारी मानने से इंकार कर दिया और रानी को पत्र लिख भेजा कि चूँकि राजा का कोई पुत्र नहीं है, इसीलिए झाँसी पर अब अंग्रेज़ों का अधिकार होगा। रानी यह सुनकर क्रोध से भर उठीं एवं घोषणा की कि मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगीअंग्रेज़ तिलमिला उठे। परिणाम स्वरूप अंग्रेज़ों ने झाँसी पर आक्रमण कर दिया। रानी ने भी युद्ध की पूरी तैयारी की। क़िले की प्राचीर पर तोपें रखवायीं। रानी ने अपने महल के सोने एवं चाँदी के सामान तोप के गोले बनाने के लिए दे दिया।

रानी के क़िले की प्राचीर पर जो तोपें थीं उनमें कड़क बिजली, भवानी शंकर, घनगर्जन एवं नालदार तोपें प्रमुख थीं। रानी के कुशल एवं विश्वसनीय तोपची थे गौस खाँ तथा ख़ुदा बक्श। रानी ने क़िले की मज़बूत क़िलाबन्दी की। रानी के कौशल को देखकर अंग्रेज़ सेनापति सर ह्यूरोज भी चकित रह गया। अंग्रेज़ों ने क़िले को घेर कर चारों ओर से आक्रमण किया।

अंग्रेज़ों की कूटनीति

रानी लक्ष्मीबाई की प्रतिमा

अंग्रेज़ आठ दिनों तक क़िले पर गोले बरसाते रहे परन्तु क़िला न जीत सके। रानी एवं उनकी प्रजा ने प्रतिज्ञा कर ली थी कि अन्तिम सांस तक क़िले की रक्षा करेंगे। अंग्रेज़ सेनापति ह्यूराज ने अनुभव किया कि सैन्य-बल से क़िला जीतना सम्भव नहीं है। अत: उसने कूटनीति का प्रयोग किया और झाँसी के ही एक विश्वासघाती सरदार दूल्हा सिंह को मिला लिया जिसने क़िले का दक्षिणी द्वार खोल दिया। फिरंगी सेना क़िले में घुस गई और लूटपाट तथा हिंसा का पैशाचिक दृश्य उपस्थित कर दिया। घोड़े पर सवार, दाहिने हाथ में नंगी तलवार लिए, पीठ पर पुत्र को बाँधे हुए रानी ने रणचण्डी का रूप धारण कर लिया और शत्रु दल संहार करने लगीं। झाँसी के वीर सैनिक भी शत्रुओं पर टूट पड़े। जय भवानी और हर-हर महादेव के उद्घोष से रणभूमि गूँज उठी। किन्तु झाँसी की सेना अंग्रेज़ों की तुलना में छोटी थी। रानी अंग्रेज़ों से घिर गयीं। कुछ विश्वासपात्रों की सलाह पर रानी कालपी की ओर बढ़ चलीं। दुर्भाग्य से एक गोली रानी के पैर में लगी और उनकी गति कुछ धीमी हुई। अंग्रेज़ सैनिक उनके समीप आ गए।



पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका-टिप्पणी और संदर्भ

  1. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 28 अप्रैल, 2013।
  2. 'दामोदर राव' दत्तक पुत्र था।

संबंधित लेख