भारत का संविधान- कुछ वर्गों के संबंध में विशेष उपबंध

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330. लोक सभा में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण

(1) लोक सभा में-- (क) अनुसूचित जातियों के लिए,
(ख)[1] असम के स्वशासी ज़िलों की अनुसूचित जनजातियों को छोड़कर अन्य अनुसूचित जनजातियों के लिए, और
(ग) असम के स्वशासी ज़िलों की अनुसूचित जनजातियों के लिए, स्थान आरक्षित रहेंगे।
(2) खंड (1) के अधीन किसी राज्य [2][या संघ राज्यक्षेत्र] में अनुसूचित जातियों या अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या का अनुपात, लोक सभा में उस राज्य [3][या संघ राज्यक्षेत्र] को आबंटित स्थानों की कुल संख्या से यथाशक्य वही होगा जो, यथास्थिति, से राज्य [4][या संघ राज्यक्षेत्र] की अनुसूचित जातियों की अथवा उस राज्य [5][या संघ राज्यक्षेत्रट की या उस राज्य [6][या संघ राज्यक्षेत्र] के भाग की अनुसूचित जनजातियों की, जिनके संबंध में स्थान इस प्रकार आरक्षित हैं, जनसंख्‍या का अनुपात उस राज्य [7][या संघ राज्यक्षेत्र ट की कुल जनसंख्‍या से है।
(3)[8] खंड (2) में किसी बात के होते हुए भी, लोक सभा में असम के स्वशासी ज़िलों की अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित स्थानों की संख्या का अनुपात, उस राज्य को आबंटित स्थानों की कुल संख्या के उस अनुपात से कम नहीं होगा जो उक्त स्वशासी ज़िलों की अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्‍या का अनुपात उस राज्य की कुल जनसंख्‍या से है।

स्पष्टीकरण[9]

इस अनुच्छेद में और अनुच्छेद 332 में, जनसंख्‍या पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्‍या अभिप्रेत है जिसके सुसंगत आँकड़े प्रकाशित हो गए हैं:
परन्तु इस स्पष्टीकरण में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति, जिसके सुसंगत आँकड़े प्रकाशित हो गए हैं, निर्देश का, जब तक सन्‌ [10][2026] के पश्चात्‌ की गई पहली जनगणना के सुसंगत आँकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं, यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह [11][[12][2001] की जनगणना के प्रति निर्देश है।]

331. लोक सभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व

अनुच्छेद 81 में किसी बात के होते हुए भी, यदि राष्ट्रपति की यह राय है कि लोक सभा में आंग्ल-भारतीय समुदाय का प्रतिनिधित्व पर्याप्त नहीं है तो वह लोक सभा में उस समुदाय के दो से अनधिक सदस्य नामनिर्देशित कर सकेगा।

332. राज्यों की विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों का आरक्षण

(1)[13] प्रत्येक राज्य की विधान सभा में अनुसूचित जातियों के लिए और [14](असम के स्वशासी ज़िलों की अनुसूचित जनजातियों को छोड़कर) अन्य अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित रहेंगे। (2) असम राज्य की विधान सभा में स्वशासी ज़िलों के लिए भी स्थान आरक्षित रहेंगे।

334. स्थानों के आरक्षण और विशेष प्रतिनिधित्व का [15][साठ वर्ष] के पश्चात्‌ न रहना--

इस भाग के पूर्वगामी उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी,
(क) लोक सभा में और राज्यों की विधान सभाओं में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए स्थानों के आरक्षण संबंधी, और
(ख) लोक सभा में और राज्यों की विधान सभाओं में नामनिर्देशन द्वारा आंषल-भारतीय समुदाय के प्रतिनिधित्व संबंधी,
इस संविधान के उपबंध इस संविधान के प्रारंभ से [16][साठ वर्ष] की अवधि की समाप्ति पर प्रभावी नहीं रहेंगे : परन्तु इस अनुच्छेद की किसी बात से लोक सभा में या किसी राज्य की विधान सभा में किसी प्रतिनिधित्व पर तब तक कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक, यथास्थिति, उस समय विद्यमान लोक सभा या विधान सभा का विघटन नहीं हो जाता है।

335. सेवाओं और पदों के लिए अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावे

संघ या किसी राज्य के कार्यकलाप से संबंधित सेवाओं और पदों के लिए नियुक्तियाँ करने में, अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के दावों का प्रशासन की दक्षता बनाए रखने की संगति के अनुसार ध्यान रखा जाएगा:[17]परन्तु इस अनुच्छेद की कोई बात अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों के पक्ष में, संघ या किसी राज्य के कार्यकलाप से संबंधित सेवाओं के किसी वर्ग या वर्गों में या पदों पर प्रोन्नति के मामलों में आरक्षण के लिए, किसी परीक्षा में अर्हक अंकों में छूट देने या मूल्यांकन के मानकों को घटाने के लिए उपबंध करने से निवारित नहीं करेगी।

336. कुछ सेवाओं में आंग्ल-भारतीय समुदाय के लिए विशेष उपबंध

(1) इस संविधान के प्रारंभ के पश्चात्‌, प्रथम दो वर्ष के दौरान, संघ की रेल, सीमाशुल्क, डाक और तार संबंधी सेवाओं में पदों के लिए आंग्ल-भारतीय समुदाय के सदस्यों की नियुक्तियाँ उसी आधार पर की जाएँगी जिस आधार पर 15 अगस्त, 1947 से ठीक पहले की जाती थीं। प्रत्येक उत्तरवर्ती दो वर्षकी अवधि के दौरान उक्त समुदाय के सदस्यों के लिए, उक्त सेवाओं में आरक्षित पदों की संख्या ठीक पूर्ववर्ती दो वर्षकी अवधि के दौरान इस प्रकार आरक्षित संख्या से यथासंभव निकटतम दस प्रतिशत कम होगी :परन्तु इस संविधान के प्रारंभ से दस वर्षके अंत में ऐसे सभी आरक्षण समाप्त हो जाएँगे।

(2) यदि आंग्ल-भारतीय समुदाय के सदस्य अन्य समुदायों के सदस्यों की तुलना में गुणागुण के आधार पर नियुक्ति के लिए अर्हत पाए जाएँ तो खंड (1) के अधीन उस समुदाय के लिए आरक्षित पदों से भिन्न या उनके अतिरिक्त पदों पर आंग्ल-भारतीय समुदाय के सदस्यों की नियुक्ति को उस खंड की कोई बात वर्जित नहीं करेगी।

आंग्ल-भारतीय समुदाय के फायदे के लिए शैक्षिक अनुदान के लिए विशेष उपबंध--

इस संविधान के प्रारंभ के पश्चात्‌‌, प्रथम तीन वित्तीय वर्षों के दौरान आंग्ल-भारतीय समुदाय के फायदे के लिए शिक्षा के संबंध में संघ और [18] प्रत्येक राज्य द्वारा वही अनुदान, यदि कोई हों, दिए जाएँगे जो 31 मार्च, 1948 को समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष में दिए गए थे।
प्रत्येक उत्तरवर्ती तीन वर्ष की अवधि के दौरान अनुदान ठीक पूर्ववर्ती तीन वर्ष की अवधि की अपेक्षा दस प्रतिशत कम हो सकेंगे : परन्तु इस संविधान के प्रारंभ से दस वर्ष के अंत में ऐसे अनुदान, जिस मात्रा तक वे आंग्ल-भारतीय समुदाय के लिए विशेष रियायत है उस मात्रा तक, समाप्त हो जाएँगे : परन्तु यह और कि कोई शिक्षा संस्था इस अनुच्छेद के अधीन अनुदान प्राप्त करने की तब तक हकदार नहीं होगी जब तक उसके वार्षिक प्रवेशों में कम से कम चालीस प्रतिशत प्रवेश आंग्ल-भारतीय समुदाय से भिन्न समुदायों के सदस्यों के लिए उपलब्ध नहीं किए जाते हैं।

338.राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग[19]

(1)[20] अनुसूचित जातियों के लिए एक आयोग होगा जो राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के नाम से ज्ञात होगा। संसद द्वारा इस निमित्त बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, आयोग एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और तीन अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा और इस प्रकार नियुक्त किए गए अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों की सेवा की शर्तें और पदावधि ऐसी होंगी जो राष्ट्रपति, नियम द्वारा, अवधारित करे। (2) राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा आयोग के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और अन्य सदस्यों को नियुक्त करेगा। (3) आयोग को अपनी प्रक्रिया स्वयं विनियमित करने की शक्ति होगी। (4) आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह,-- (क) अनुसूचित जातियों [21] के लिए इस संविधान या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि या सरकार के किसी आदेश के अधीन उपबंधित रक्षोपायों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण करे और उन पर निगरानी रखे तथा ऐसे रक्षोपायों के कार्यकरण का मूल्यांकन करे;
(ख) अनुसूचित जातियों [22] को उनके अधिकारों और रक्षोपायों से वंचित करने की बाबत विनिर्दिष्ट शिकायतों की जाँच करे;
(ग) अनुसूचित जातियों[23] के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग ले और उन पर सलाह दे तथा संघ और किसी राज्य के अधीन उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करे;
(घ) उन रक्षोपायों के कार्यकरण के बारे में प्रतिवर्ष, और ऐसे अन्य समयों पर, जो आयोग ठीक समझे, राष्ट्रपति को प्रतिवेदन दे;
(ङ) ऐसे प्रतिवेदनों में उन उपायों के बारे में जो उन रक्षोपायों के प्रभावपूर्ण कार्यान्वयन के लिए संघ या किसी राज्य द्वारा किए जाने चाहिए, तथा अनुसूचित जातियों [24] के संरक्षण, कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अन्य उपायों के बारे में सिफारिश करे;
(5) आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह,-- (क) अनुसूचित जनजातियों के लिए इस संविधान या तत्समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि या सरकार के किसी आदेश के अधीन उपबंधित रक्षोपायों से संबंधित सभी विषयों का अन्वेषण करे और उन पर निगरानी रखे तथा ऐसे रक्षोपायों के कार्यकरण का मूल्यांकन करे;
(ख) अनुसूचित जनजातियों को उनके अधिकारों और रक्षोपायों से वंचित करने के सम्बन्ध में विनिर्दिष्ट शिकायतों की जाँच करे;
(ग) अनुसूचित जनजातियों के सामाजिक-आर्थिक विकास की योजना प्रक्रिया में भाग ले और उन पर सलाह दे तथा संघ और किसी राज्य के अधीन उनके विकास की प्रगति का मूल्यांकन करे;
(घ) उन रक्षोपायों के कार्यकरण के बारे में प्रतिवर्ष और ऐसे अन्य समयों पर, जो आयोग ठीक समझे, राष्ट्रपति को रिपोर्ट प्रस्तुत करे;
(ङ) ऐसी रिपोर्टो में उन उपायों के बारे में, जो उन रक्षोपायों के प्रभावपूर्ण कार्यान्वयन के लिए संघ या किसी राज्य द्वारा किए जाने चाहिए, तथा अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए अन्य उपायों के बारे में सिफारिश करे; और
(च) अनुसूचित जनजातियों के संरक्षण, कल्याण और विकास तथा उन्नयन के संबंध में ऐसे अन्य कृत्यों का निर्वहन करे जो राष्ट्रपति, संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि के उपबंधों के अधीन रहते हुए, नियम द्वारा विनिर्दिष्ट करे।
(6) राष्ट्रपति ऐसी सभी रिपोर्टों को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा और उनके साथ संघ से संबंधित सिफारिशों पर की गई या किए जाने के लिए प्रस्थापित कार्रवाई तथा यदि कोई ऐसी सिफारिश अस्वीकृत की गई है तो अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा। (7) जहाँ कोई ऐसी रिपोर्ट या उसका कोई भाग, किसी ऐसे विषय से संबंधित है जिसका किसी राज्य सरकार से संबंध है तो ऐसी रिपोर्ट की एक प्रति उस राज्य के राज्यपाल को भेजी जाएगी जो उसे राज्य के विधान-मंडल के समक्ष रखवाएगा और उसके साथ राज्य से संबंधित सिफारिशों पर की गई या किए जाने के लिए प्रस्थापित कार्रवाई तथा यदि कोई ऐसी सिफारिश अस्वीकृत की गई है तो अस्वीकृति के कारणों को स्पष्ट करने वाला ज्ञापन भी होगा। (8) आयोग को, खंड (5) के उपखंड (क) में निर्दिष्ट किसी विषय का अन्वेषण करते समय या उपखंड (ख) में निर्दिष्ट किसी परिवाद के बारे में जाँच करते समय, विशिष्टतया निम्नलिखित विषयों के संबंध में, वे सभी शक्तियाँ होंगी, जो वाद का विचारण करते समय सिविल न्यायालय को हैं, अर्थात्‌
(क) भारत के किसी भी भाग से किसी व्यक्ति को समन करना और हाजिर कराना तथा शपथ पर उसकी परीक्षा करना;
(ख) किसी दस्तावेज को प्रकट और पेश करने की अपेक्षा करना;
(ग) शपथपत्रों पर साक्ष्य ग्रहण करना;
(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति की अपयपेक्षा करना;
(ङ) साक्षियों और दस्तावेजों की परीक्षा के लिए कमीशन निकालना;
(च) कोई अन्य विषय, जो राष्ट्रपति, नियम द्वारा अवधारित करे।
(9) संघ और प्रत्येक राज्य सरकार, अनुसूचित जनजातियों को प्रभावित करने वाले सभी महत्त्वपूर्ण नीतिगत विषयों पर आयोग से परामर्श करेगी।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संविधान (इक्यावनवाँ संशोधन) अधिनियम, 1984 की धारा 2 द्वारा (16-6-1986 से) उपखंड (ख) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  2. संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा अंतःस्थापित।
  3. संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा अंतःस्थापित।
  4. संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा अंतःस्थापित।
  5. संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा अंतःस्थापित।
  6. संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा अंतःस्थापित।
  7. संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा अंतःस्थापित।
  8. संविधान (इकतीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1973 की धारा 3 द्वारा अंतःस्थापित।
  9. संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 47 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित।
  10. संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 6 द्वारा प्रतिस्थापित।
  11. संविधान (सतासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 5 द्वारा प्रतिस्थापित।
  12. संविधान (चौरासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 6 द्वारा प्रतिस्थापित।
  13. संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा पहली अनुसूची के भाग क या भाग ख में विनिर्दिष्ट शब्दों का लोप किया गया।
  14. संविधान (इक्यावनवाँ संशोधन) अधिनियम, 1984 की धारा 3 द्वारा (16-6-1986 से) प्रतिस्थापित।
  15. संविधान (उनासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 1999 की धारा 2 द्वारा (25-1-2000 से) पचास वर्ष के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  16. संविधान (बयासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2000 की धारा 2 द्वारा अंतःस्थापित।
  17. संविधान (पैंसठवाँ संशोधन) अधिनियम,1990 की धारा 2 और तत्पश्चात्‌ संविधान (नवासीवाँ संशोधन) अधिनियमए 2003 की धारा 2 द्वारा खंड (1) और (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  18. संविधान (नवासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) और अनुसूचित जनजातियों शब्दों का लोप किया गया।
  19. संविधान (नवासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) पार्श्व शीर्ष के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  20. संविधान (पैंसठवाँ संशोधन) अधिनियम,1990 की धारा 2 और तत्पश्चात्‌ संविधान (नवासीवाँ संशोधन) अधिनियम 2003 की धारा 2 द्वारा खंड (1) और (2) के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  21. संविधान (नवासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) और अनुसूचित जनजातियों शब्दों का लोप किया गया।
  22. संविधान (नवासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) और अनुसूचित जनजातियों शब्दों का लोप किया गया।
  23. संविधान (नवासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) और अनुसूचित जनजातियों शब्दों का लोप किया गया।
  24. संविधान (नवासीवाँ संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 2 द्वारा (19-2-2004 से) और अनुसूचित जनजातियों शब्दों का लोप किया गया।

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