भारत का संविधान- परिशिष्ट 2

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भारत का संविधान- परिशिष्ट 1

संविधान के, उन अपवादों और उपांतरणों के जिनके अधीन संविधान जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू होता है, वर्तमान पाठ के प्रति निर्देश से, पुनर्कथन

[टिप्पणी - वे अपवाद और उपांतरण जिनके अधीन संविधान जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू होता है या तो वे हैं जिनका उपबंध संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 में किया गया है या वे हैं जो संविधान के कुछ संशोधनों के जम्मू-कश्मीर राज्य को न लागू होने के परिणामस्वरूप हैं। ऐसे सभी अपवाद और उपांतरण जिनका व्यावहारिक महत्व है, उस पुनर्कथन में सम्मिलित हैं जो शीघ्र निर्देश को मात्र सुकर बनाने के लिए हैं । सही स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 को और उक्त आदेश के खंड 2 में वर्णित संविधान के पश्चात्वर्ती संशोधनों द्वारा यथा संशोधित संविधान के 20 जून, 1964 के पाठ के प्रति निर्देश करना होगा ।]

(1) उद्देशिका

(क) पहले पैरा में “समाजवादी पंथ निरपेक्ष” का लोप करें ।
(ख) पूर्वान्तिम पैरा में “और अखंडता” का लोप करें ।

(2) भाग 1

अनुच्छेद 3--
(क) निम्नलिखित और परन्तुक जोड़ें, अर्थात् :--
 “परन्तु यह और कि जम्मू-कश्मीर राज्य के क्षेत्र को बढ़ाने या घटाने या उस राज्य के नाम या उसकी सीमा में परिवर्तन करने का उपबंध करने वाला कोई विधेयक उस राज्य के विधान-मंडल की सहमति के बिना संसद में पुर:स्थापित नहीं किया जाएगा ।“ ;
(ख) स्पष्टीकरण 1 और स्पष्टीकरण 2 का लोप करें ।

(3) भाग 2

(क) यह भाग जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में 26 जनवरी, 1950 से लागू समझा जाएगा ;
(ख) अनुच्छेद 7 --निम्नलिखित और परन्तुक जोड़ें, अर्थात् :-
“परन्तु यह और कि इस अनुच्छेद की कोई बात जम्मू-कश्मीर राज्य के ऐसे स्थायी निवासी को लागू नहीं होगी जो ऐसे राज्यक्षेत्र को जो इस समय पाकिस्तान के अंतर्गत है, प्रव्रजन करने के पश्चात् उस राज्य के क्षेत्र को ऐसी अनुज्ञा के अधीन लौट आया है जो उस राज्य में पुनर्वास के लिए या स्थायी रूप से लौटने के लिए उस राज्य के विधान-मंडल द्वारा या उसके अधीन दी गई है, तथा ऐसा प्रत्येक व्यिक्त भारत का नागरिक समझा जाएगा ।“।

(4) भाग 3

(क) अनुच्छेद 13--संविधान के प्रारंभ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 (सं. आ. 48) के प्रारंभ, अर्थात् 14 मई, 1954 के प्रति निर्देश हैं,

  • * * * *

(ग) अनुच्छेद 16--खंड (3) में, राज्य के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश नहीं हैं ।
(घ) अनुच्छेद 19 -
(अ) खंड (1) में--
(i) उपखंड (ङ) के अंत में, “और” का लोप करें ;
(ii) उपखंड (ङ) के पश्चात् निम्नलिखित खंड अंत:स्थापित करें, अर्थात् :--
 “(च) संपत्ति के अर्जन, धारण और व्ययन का ; और”;
(आ) खंड (5) में, “उपखंड (घ) और उपखंड (ङ)” के स्थान पर “उपखंड (घ), उपखंड (ङ) और उपखंड (च)” रखें ।
(ङ) अऩुच्छेद 22--खंड (4) में “संसद्” शब्द के स्थान पर “राज्य विधान-मंडल” शब्द रखे जाएंगे और खंड (7) में “संसद्” विधि द्वारा विहित कर सकेगी” शब्दों के स्थान पर “राज्य विधान-मंडल विधि द्वारा विहित कर सकेगा” शब्द रखे जाएंगे ।
(च) अनुच्छेद 30 --खंड (1क) का लोप करें ।
(छ) अनुच्छेद 30 के पश्चात् निम्नलिखित अंत:स्थापित करें, अर्थात् :--

संपत्ति का अधिकार

31. संपत्ति का अनिवार्य अर्जन--(1) कोई व्यक्ति विधि के प्राधिकार के बिना अपनी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा ।
(2) कोई संपत्ति, सार्वजनिक प्रयोजन के लिए ही और केवल ऐसी विधि के प्राधिकार से अनिवार्यत: अर्जित या अधिगृहीत की जाएगी, अन्यथा नहीं, जो संपत्ति के अर्जन या अधिग्रहण का, ऐसी राशि के बदले जो उस विधि द्वारा नियत की जाए या जो ऐसे सिद्धांतों के अनुसार अवधारित की जाए और ऐसी रीति से दी जाए जो उस विधि में विनिर्दिष्ट हों, उपबंध करती है; और ऐसी किसी विधि किसी न्यायालय में इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि इस प्रकार नियत या अवधारित राशि पर्याप्त नहीं है अथवा ऐसी पूरी राशि या उसका कोई भाग नकद न दिया जा कर अन्यथा दिया जाना है :
परन्तु अऩुच्छेद 30 के खंड (1) में निर्दिष्ट किसी अल्पसंख्यक-वर्ग द्वारा स्थापित और प्रशासित किसी शिक्षा-संस्था की संपत्ति के अनिवार्य अर्जन के लिए उपबंध करने से संबद्ध विधि बनाते समय, राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि ऐसी संपत्ति के अर्जन के लिए ऐसी विधि के अधीन जो राशि नियत या अवधारित की जाए वह ऐसी हो जो उस खंड के अधीन प्रत्याभूत अधिकार को निर्बन्धित या निराकृत न करे ।
(2क) जहां विधि किसी संपत्ति के स्वामित्व का या क़ब्ज़ा रखने के अधिकार का अंतरण राज्य या किसी ऐसे निगम को, जो कि राज्य के स्वामित्व या नियंत्रण के अधीन है, करने के लिए उपबंध नहीं करती है वहां, इस बात के होते हुए भी कि वह किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित करती है, उसकी बाबत यह नहीं समझा जाएगा कि वह संपत्ति के अनिवार्य अर्जन या अधिग्रहण के लिए उपबंध करती है ।
(2ख) अनुच्छेद 19 के खंड (1) के उपखंड (च) की कोई बात किसी ऐसी विधि पर प्रभाव नहीं डालेगी जो खंड (2) में निर्दिष्ट है ।
(5) खंड (2) की कोई बात --
(क) किसी वर्तमान विधि के उपबंधों पर, अथवा
(ख) किसी ऐसी विधि के उपबंधों पर, जिसे राज्य इसके पश्चात्----
(i) किसी कर या शास्ति के अधिरोपण या उद्ग्रहण के प्रयोजन के लिए, अथवा
(ii) लोक स्वास्थ्य की अभिवृद्धि या प्राण या संपत्ति के संकट-निवारण के लिए, अथवा
(iii) ऐसी संपत्ति की बाबत, जो विधि द्वारा निष्क्रांत संपत्ति घोषित की गई है,
बनाए, कोई प्रभाव नहीं डालेगी ।“।
(ज) अनुच्छेद 31 के पश्चात् निम्नलिखित उपशीर्ष का लोप करें, अर्थात् :--

“कुछ विधियों की व्यावृत्ति”

(झ) अनुच्छेद 31क--
(अ) खंड (1) में--
(i) “अनुच्छेद 14 या अनुच्छेद 19” के स्थान पर “अनुच्छेद 14, अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 31” रखें ;
(ii) खंड (1) के पहले परन्तुक का लोप करें ;
(iii) दूसरे परन्तुक में “यह और कि” के स्थान पर “यह कि” रखें ।
(आ) खंड (2) में उपखंड (क) के स्थान पर निम्नलिखित उपखंड रखें, अर्थात्:--
(क) “संपदा” से ऐसी भूमि अभिप्रेत होगी जो कृषि के प्रयोजनों के लिए या कृषि के सहायक प्रयोजनों के लिए या चरागाह के लिए अधिभोग में है य़ा पट्टे पर दी गई है और इसके अंतर्गत निम्नलिखित भी हैं, अर्थात्:--
(i) ऐसी भूमि पर भवनों के स्थल और अन्य संरचनाएं ;
(ii) ऐसी भूमि पर खड़े वृक्ष ;
(iii) वन भूमि और वन्य बंजर भूमि ;
(iv) जल से ढके क्षेत्र और जल पर तैरते हुए खेत ;
(v) जंदर और घराट स्थल ;
(vi) कोई जागीर, इनाम, मुआफी या मुकर्ररी या इसी प्रकार का अन्य अनुदान,
किन्तु इसके अंतर्गत निम्नलिखित नहीं है :-
(i) किसी नगर, या नगरक्षेत्र या ग्राम आबादी में कोई भवन-स्थल या किसी ऐसे भवन या स्थल से अनुलग्न कोई भूमि ;
(ii) कोई भूमि जो किसी नगर या ग्राम के स्थल के रूप में है, या
(iii) किसी नगरपालिका या अधिसूचित क्षेत्र या छावनी या नगरक्षेत्र में या किसी क्षेत्र में, जिसके लिए कोई नगर योजना स्कीम मंजूर की गई है, भवन निर्माण के प्रयोजनों के लिए आरक्षित कोई भूमि ।‘।
(ञ) अनुच्छेद 31ग--यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं है ।
(ट) अनुच्छेद 32--खंड (3) का लोप करें ।
(ठ) अनुच्छेद 35---
(अ) संविधान के प्रारंभ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 (सं.आ. 48) के प्रारंभ अर्थात् 14 मई, 1954 के प्रति निर्देश हैं ;
(आ) खंड (क) (i) में, “अनुच्छेद 16 के खंड (3), अनुच्छेद 32 के खंड (3) का लोप करें; और
(इ) खंड (ख) के पश्चात् निम्नलिखित खंड जोड़ें, अर्थात् :--
 “(ग) संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 के प्रारंभ के पूर्व या पश्चात्, निवारक निरोध की बाबत जम्मू-कश्मीर राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई कोई विधि इस आधार पर शून्य नहीं होगी कि वह इस भाग के उपबंधों में से किसी से असंगत हैं, किन्तु ऐसी कोई विधि उक्त आदेश के प्रारंभ से पच्चीस वर्ष के अवसान पर, ऐसी असंगति की मात्रा तक, उन बातों के सिवाय प्रभावहीन हो जाएगी जिन्हें उनके अवसान के पूर्व किया गया या करने का लोप किया गया है ।“।
(ड) अनुच्छेद 35 के पश्चात् निम्नलिखित अनुच्छेद जोड़ें, अर्थात् :--

“35क. स्थायी निवासियों और उनके अधिकारों की बाबत विधियों की व्यावृत्ति--

इस संविधान में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, जम्मू-कश्मीर राज्य में प्रवृत्त ऐसी कोई विद्यमान विधि और इसके पश्चात् राज्य के विधान-मंडल द्वारा अधिनियमित ऐसी कोई विधि----
(क) जो उन व्यक्तियों के वर्गों को परिभाषित करती है जो जम्मू-कश्मीर राज्य के स्थायी निवासी हैं या होंगे, या
(ख) जो--
(i) राज्य सरकार के अधीन नियोजन ;
(ii) राज्य में स्थावर संपत्ति के अर्जन ;
(iii) राज्य में बस जाने ; या
(iv) छात्रवृत्तियों के या ऐसी अन्य प्रकार की सहायता के जो राज्य सरकार प्रदान करे, अधिकार,
की बाबत ऐसे स्थायी निवासियों को कोई विशेषा अधिकार और विशेषाधिकार प्रदत्त करती है या अन्य व्यक्तियों पर कोई निर्बन्धन अधिरोपित करती है, इस आधार पर शून्य नहीं होगी कि वह इस भाग के किसी उपबंध द्वारा भारत के अन्य नागरिकों को प्रदत्त किन्हीं अधिकारों से असंगत है या उनको छीनती या न्यून करती है ।“।

(5) भाग 4 --

यह भाग जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं है ।

(6) भाग 4क --

यह भाग जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं है ।

(7) भाग 5--

(क) अनुच्छेद 55--
(अ) इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए जम्मू-कश्मीर राज्य की जनसंख्या तिरसठ लाख समझी जाएगी ;
(आ) स्पष्टीकरण में परन्तुक का लोप करें ।
(ख) अनुच्छेद 81--खंड (2) और (3) के स्थान पर निम्नलिखित खंड रखें, अर्थात् :-
“(2) खंड (1) के उपखंड (क) के प्रयोजनों के लिए,--
(क) लोक सभा में राज्य को छह स्थान आबंटित किए जाएंगे ;
(ख) परिसीमन अधिनियम, 1972 के अधीन गठित परिसीमन आयोग द्वारा राज्य को ऐसी प्रक्रिया के अनुसार, जो आयोग उचित समझे, एक सदस्यीय प्रादेशिक निर्वाचन-क्षेत्रों में विभाजित किया जाएगा;
(ग) निर्वाचन-क्षेत्र, यथासाध्य, भौगोलिक रूप से संहृत क्षेत्र होंगे और उनका परिसीमन करते समय प्राकृतिक विशेषताओं, प्रशासनिक इकाइयों की विद्यमान सीमाओं, संचार की सुविधाओं और लोक सुविधा को ध्यान में रखा जाएगा ;
(घ) उन निर्वाचन-क्षेत्रों में, जिनमें राज्य विभाजित किया जाए, पाकिस्तान अधिकृत क्षेत्र समाविष्ट नहीं होगा ।
(3) खंड (2) की कोई बात लोक सभा में राज्य के प्रतिनिधित्व पर तब तक प्रभाव नहीं डालेगी जब तक परिसीमन अधिनियम, 1972 के अधीन संसदीय निर्वाचन-क्षेत्र के परिसीमन से संबंधित परिसीमन आयोग के अंतिम आदेश या आदेशों के भारत के राजपत्र में प्रकाशन की तारीख को विद्यमान सदन का विघटन न हो जाए ।
(4) (क) परिसीमन आयोग राज्य की बाबत अपने कर्तव्यों में अपनी सहायता करने के प्रयोजन के लिए अपने साथ पांच व्यक्तियों को सहयोजित करेगा जो राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाले, लोक सभा के सदस्य होंगे ।
(ख) राज्य से इस प्रकार सहयोजित किए जाने वाले व्यक्ति सदन की संरचना का सम्यक् ध्यान रखते हुए लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा नामनिर्दिष किए जाएंगे ।
(ग) उपखंड (ख) के अधीन किए जाने वाले प्रथम नामनिर्देशन लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) दूसरा संशोधन आदेश, 1974 के प्रारंभ से दो मास के भीतर किए जाएंगे ।
(घ) किसी भी सहयोजित सदस्य को परिसीमन आयोग के किसी विनिश्चय पर मत देने या हस्ताक्षर करने का अधिकार नहीं होगा ।
(ङ) यदि मृत्यु या पदत्याग के कारण किसी सहयोजित सदस्य का पद रिक्त हो जाता है तो उसे लोक सभा के अध्यक्ष द्वारा और उपखंड (क) और (ख) के उपबंधों के अनुसार यथाशक्यशीघ्र भरा जाएगा ।“।
(ग) अनुच्छेद 82--दूसरे और तीसरे परन्तुक का लोप करें ।
(घ) अनुच्छेद 105--खंड (3) में “वही होंगी जो संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 15 के प्रवृत्त होने के ठीक पहले उस सदन की और उसके सदस्यों और समितियों की थीं” के स्थान पर “वही होंगी जो इस संविधान के प्रारंभ पर यूनाइटेड किंगडेम की पार्लियामेंट के हाउस ऑफ कामन्स की और उसके सदस्यों और समितियों की थी” रखें ।“।
(ङ) अनुच्छेद 132 के स्थान पर निम्नलिखित अनुच्छेद रखें, अर्थात् :----

‘132. कुछ मामलों में उच्च न्यायालयों से अपीलों में उच्चतम न्यायालय की अपीली अधिकारिता --

(1) भारत के राज्यक्षेत्र में किसी उच्च न्यायालय की सिविल, दांडिक या अन्य कार्रवाई में दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील उच्चतम न्यायालय में होगी यदि वह उच्च न्यायालय प्रमाणित कर देता है कि उस मामले में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि का कोई सारवान् प्रश्न अंतर्वलित है ।
2) जहां उच्च न्यायालय ने ऐसे प्रमाणपत्र देने से इंकार कर दिया है वहां, यदि उच्चतम न्यायालय का समाधान हो जाता है कि उस मामले में इस संविधान के निर्वचन के बारे में विधि का कोई सारवान् प्रश्न अंतर्वलित है तो, वह ऐसे निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील के लिए विशेष इजाजत दे सकेगा ।
(3) जहां ऐसा प्रमाणपत्र या ऐसी इजाजत दे दी गई है वहां उस मामले में कोई पक्षकार इस आधार पर कि पूर्वोक्त किसी प्रश्न का विनिश्चय गलत किया गया है तथा उच्चतम न्यायालय की इजाजत से अन्य किसी आधार पर, उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकेगा ।

स्पष्टीकरण--

इस अनुच्छेद के प्रयोजनों के लिए “अंतिम आदेश” पद के अतंर्गत ऐसे विवाद्यक का विनिश्चय करने वाला आदेश है जो, यदि अपीलार्थी के पद में विनिश्चित किया जाता है तो, उस मामले के अंतिम निपटारे के लिए पर्याप्त होगा ।‘।
(च) अनुच्छेद 133--
(अ) खंड (1) में “अनुच्छेद 134क के अधीन” का लोप करें ।
(आ) खंड (1) के पश्चात् निम्नलिखित खंड अंत:स्थापित करें, अर्थात् :----
‘(1क) संविधान (तीसवां संशोधन) अधिनियम, 1972 की धारा 3 के उपबंध जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में इस उपांतरण के अधीन लागू होंगे कि उसमें “इस अधिनियम”, “इस अधिनियम के प्रारंभ”, “यह अधिनियम पारित नहीं किया गया हो” और “इस अधिनियम द्वारा यथासंशोधित उस खंड के उपबंधों को” के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे क्रमश: “संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) दूसरा संशोधन आदेश, 1974”, “उक्त आदेश के प्रारंभ”, “उक्त आदेश पारित नहीं किया गया हो” और “उक्त उपबंधों, जैसे कि वे उक्त आदेश के प्रारंभ के पश्चात् हो” प्रति निर्देश है ।‘।
(छ) अनुच्छेद 134--
(अ) खंड (1) के उपखंड (ग) में “अनुच्छेद 134क के अधीन” का लोप करें ;
(आ) खंड (2) में “संसद” के पश्चात् “राज्य के विधान-मंडल के अनुरोध पर” अंत:स्थापित करें ।
(ज) अनुच्छेद 134क, 135, 139 और 139क --ये अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं हैं ।
(झ) अऩुच्छेद 145--खंड (1) में उपखंड (गग) का लोप करें ।
(ञ) अनुच्छेद 150—“जो राष्ट्रपति, भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक की सलाह पर, विहित करे” के स्थान पर “जो भारत का नियंत्रक-महालेखापरीक्षक राष्ट्रपति के अनुमोदन से, विहित करे” रखें ।

(8) भाग 6

(क) अनुच्छेद 153 से 217 तक, अनुच्छेद 219, अनुच्छेद 221, अनुच्छेद 223, 224, 224क और 225 तथा अनुच्छेद 227 से 233, अनुच्छेद 233क और अनुच्छेद 234 से 237 तक का लोप करें ।
(ख) अनुच्छेद 220--संविधान के प्रारंभ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1960 के प्रारंभ, अर्थात् 26 जनवरी, 1960 के प्रति निर्देश हैं ।
(ग) अनुच्छेद 222--खंड (1) के पश्चात् निम्नलिखित खंड अंत:स्थापित करें, अर्थात् :-
“(1क) प्रत्येक ऐसा अंतरण जो जम्मू-कश्मीर के उच्च न्यायालय से या उस उच्च न्यायालय को हो, राज्यपाल के परामर्श के पश्चात् किया जाएगा ।“।
(घ) अनुच्छेद 226--
(अ) खंड (2) को खंड (1क) के रूप में पुन:संख्यांकित करें ;
(आ) खंड (3) का लोप करें ;
(इ) खंड (4) को खंड (2) के रूप में पुन:संख्यांकित करें और इस प्रकार पुन:संख्यांकित खंड (2) में “इस अनुच्छेद” के स्थान पर “खंड (1) या खंड (1क)” रखें ।

(9) भाग 8--

यह भाग जम्मू-कश्मीर को लागू नहीं है ।

(10) भाग 10--

यह भाग जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं है ।

(11) भाग 11--

(क) अनुच्छेद 246--
(अ) खंड (1) में, “खंड (2) और खंड (3)” के स्थान पर “खंड (2)” रखें ।
(आ) खंड (2) में, “खंड (3) में किसी बात के होते हुए भी” का लोप करें ।
(इ) खंड (3) और खंड (4) का लोप करें ।
(ख) अनुच्छेद 248 के स्थान पर निम्नलिखित अनुच्छेद रखें, अर्थात्:--

“248. अवशिष्ट विधायी शक्तियां--

संसद को--
(क) विधि द्वारा स्थापित सरकार को आतंकित करने या लोगों या लोगों के किसी अनुभाग में आतंक उत्पन्न करने या लोगों के किसी अनुभाग को पृथक् करने या लोगों के विभिन्न अनुभागों के बीच समरसता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले आतंकवादी कार्यों को अंतर्वलित करने वाले क्रियाकलापों को रोकने के संबंध में ;
(कक) भारत की प्रभुता तथा प्रादेशिक अखंडता को अनअंगीकृत, प्रश्नगत या विछिन्न करने अथवा भारत राज्यक्षेत्र के किसी भाग का अध्यर्पण कराने अथवा भारत राज्यक्षेत्र के किसी भाग को संघ से विलग कराने अथवा भारत के राष्ट्री ध्वज, भारतीय राष्ट्रगान और इस संविधान का अपमान करने वाले अन्य क्रियाकलाप को रोकने के संबंध में, और
(ख) (i) समुद्र या वायु द्वारा विदेश यात्रा पर ;
(ii) अंतर्देशीय विमान यात्रा पर ;
(iii) मनीआर्डर, फोनतार, और तार को सम्मिलित करते हुए, डाक वस्तुओं पर,
कर लगाने के संबंध में विधि बनाने की अनन्य शक्ति है ।

स्पष्टीकरण—

इस अनुच्छेद में, “आतंकवादी कार्य” से बमों, डायनामाइट या अन्य विस्फोटक पदार्थों या ज्वलनशील पदार्थों या अग्न्यायुधों या अन्य प्राणहर आयुधों या विषों या अपयाकर गैसों या अन्य रसायनों या परिसंकटमय प्रकृति के किन्हीं अन्य पदार्थों का (चाहे वे जैव हों या अन्य) उपयोग करके किया गया कोई कार्य या बात अभिप्रेत हैं ।“।
(खख) अनुच्छेद 249, खंड (1) में, “राज्य-सूची में प्रगणित ऐसे विषय के संबंध में, जो उस संकल्प में विनिर्दिष है” के स्थान पर “उस संकल्प में विनिर्दिष ऐसे विषय के संबंध में, जो संघ-सूची या समवर्ती सूची में प्रगणित विषय नहीं हैं,” रखें ।
(ग) अनुच्छेद 250 “राज्य-सूची में प्रगणित किसी भी विषय के संबंध में” के स्थान पर “संघ सूची में प्रगणित न किए गए विषयों के संबंध में भी” रखें ।
(घ) खंड (घ) का लोप करें ।
(ङ) अनुच्छेद 253 में निम्नलिखित परन्तुक जोड़ें, अर्थात् :--
 “परन्तु संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 के प्रारंभ के पश्चात्, जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में व्यवस्था को प्रभावित करने वाला कोई विनिश्चय भारत सरकार द्वारा उस राज्य की सरकार की सहमति से ही किया जाएगा ।“।
(च) अनुच्छेद 255 का लोप करें ।
(छ) अनुच्छेद 256 को उसके खंड (1) के रूप में पुन:संख्यांकित करें और उसमें निम्नलिखित नया खंड जोडें, अर्थात् :--
 “(2) जम्मू-कश्मीर राज्य अपनी कार्यपालिका शक्ति का इस प्रकार प्रयोग करेगा जिससे उस राज्य के संबंध में संविधान के अधीन संघ के कर्तव्यों और उत्तरदायित्वों का संघ द्वारा निर्वहन सुगम हो; और विशिष्टतया उक्त राज्य, यदि संघ वैसी अपेक्षा करे, संघ की ओर से और उसके व्यय पर संपत्ति का अर्जन या अधिग्रहण करेगा अथवा यदि संपत्ति उस राज्य की हो तो ऐसे निबंधनों पर, जो करार पाए जाएं या करार के अभाव में जो भारत के मुख्य न्यायमूर्ति द्वारा नियुक्त मध्यस्थ द्वारा अवधारित किए जाएं, उसे संघ को अंतरित करेगा ।“।
(ज) अनुच्छेद 261--खंड (2) में “संसद द्वारा बनाई गई” का लोप करें ।

(12) भाग 12

(क) अनुच्छेद 266, 282, 284, 298 और 300--इन अनुच्छेदों में राज्य या राज्यों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश नहीं है ।
(ख) अनुच्छेद 267 के खंड (2), अनुच्छेद 273, अनुच्छेद 283 के खंड (2) और अनुच्छेद 290 का लोप करें ।
(ग) अनुच्छेद 277 और 295--इन अनुच्छेदों में संविधान के प्रारंभ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 के प्रारंभ, अर्थात् 14 मई, 1954 के प्रति निर्देश हैं ।
(घ) उपशीर्ष “अध्याय 4--संपत्ति का अधिकार” और अनुच्छेद 300क का लोप करें ।

(13) भाग 13--

अनुच्छेद 303 के खंड (1) में, “सातवीं अनुसूची की सूचियों में से किसी में व्यापार और वाणिज्य संबंधी किसी प्रविष्टि के आधार पर” का लोप करें ।

(14) भाग 14--

अनुच्छेद 312 के सिवाय इस भाग में, “राज्य” के प्रति निर्देश के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य नहीं है ।

(15) भाग 14क--

यह भाग जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं होता है ।

(16) भाग 15--

अनुच्छेद 324--
(क) खंड (1) में, जम्मू-कश्मीर के विधान-मंडल के दोनों सदनों में से किसी सदन के लिए निर्वाचनों के बारे में संविधान के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह जम्मू-कश्मीर के संविधान के प्रति निर्देश है ।
(ख) अनुच्छेद 325, 326 और 327--इन अनुच्छेदों में राज्य के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश नहीं है ।
(ग) अनुच्छेद 328 का लोप करें ।
(घ) अनुच्छेद 329--
(अ) राज्य के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश नहीं है ;
(आ) “या अनुच्छेद 328” का लोप करें ।

(17) भाग 16

मूल खंड (क) का लोप किया गया और खंड (ख) और खंड (ग) को, खंड (क) और खंड(ख) के रूप में पुन:अक्षरांकित किया गया ।
(क) अनुच्छेद 331, 332, 333, 336 और 337 का लोप करें ।
(ख) अनुच्छेद 334 और 335--राज्य या राज्यों के प्रति निर्देशों का यह लगाया जाएगा कि उनके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश नहीं है ।
(ग) अनुच्छेद 339 खंड (1) में “राज्यों के अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन और अनुसूचित जनजातियों” शब्दों के स्थान पर “राज्यों की अनुसूचित जनजातियों” शब्द रखें ।

(18) भाग 17

इस भाग के उपबंध जम्मू-कश्मीर राज्य को केवल वहीं तक लागू होंगे जहां तक वे--
(i) संघ की राजभाषा,
(ii) एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच, अथवा किसी राज्य और संघ के बीज पत्रादि की राजभाषा, और
(iii) उच्चतम न्यायालय में कार्यवाहियों की भाषा से संबंधित हैं ।

(19) भाग 18

(क) अनुच्छेद 352 के स्थान पर निम्नलिखित अनुच्छेद रखें, अर्थात् :----

“352. आपात की उद्घोषणा--

(1) यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि गंभीर आपात विद्यमान है जिससे युद्ध या बाह्य आक्रमण या आंतरिक अशांति के कारण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में है, तो वह उद्घोषणा द्वारा उस आशय की घोषणा कर सकेगा।
(2) खंड (1) के अधीन की गई उद्घोषणा--
(क) पश्चात्वर्ती उद्घोषणा द्वारा वापस ली जा सकेगी ;
(ख) संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखी जाएगी ;
(ग) दो मास की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगी यदि उस अवधि की समाप्ति से पहले संसद के दोनों सदनों के संकल्पों द्वारा उसका अनुमोदन नहीं कर दिया जाता है :
परन्तु यदि ऐसी कोई उद्घोणा उस समय की जाती है जब लोक सभा का विघटन हो गया है या लोक सभा का विघटन उपखंड (ग) में निर्दिष्ट दो मास की अवधि के दौरान हो जाता है, और यदि उद्घोणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प राज्य सभा द्वारा पारित कर दिया गया है किन्तु ऐसी उद्घोणा के संबंध में कोई संकल्प लोक सभा द्वारा उस अवधि की समाप्ति से पहले पारित नहीं किया गया है तो उद्घोणा उस तारीख से, जिसको लोक सभा अपने पुनर्गठन के पश्चात् प्रथम बार बैठती है, तीस दिन की समाप्ति पर प्रवर्तन में नहीं रहेगा यदि उक्त तीस दिन की अवधि की समाप्ति से पहले उद्घोणा का अनुमोदन करने वाला संकल्प लोक सभा द्वारा भी पारित नहीं कर दिया जाता है ।
(3) यदि राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि युद्ध या बाह्य आक्रमण या आंतरिक अशांति का संकट सन्निकट है तो यह घोषित करने वाली आपात की उद्घोणा कि युद्ध या बाह्य आक्रमण अशांति के कारण भारत या उसके राज्यक्षेत्र के किसी भाग की सुरक्षा संकट में है, युद्ध या ऐसा कोई आक्रमण या अशांति के वास्तव में होने से पहले भी की जा सकेगी ।
(4) इस अनुच्छेद द्वारा राष्ट्रपति को प्रदत्त शक्ति के अंतर्गत युद्ध या बाह्य आक्रमण या आंतरिक अशांति अथवा युद्ध, बाह्य आक्रमण या आंतरिक अशांति के सन्निकट संकट के भिन्न-भिन्न आधारों पर भिन्न-भिन्न घोषणाएं करने की शक्ति होगी चाहे खंड (1) के अधीन राष्ट्रपती द्वारा पहले से की गई उद्घोणा हो या न हो और ऐसी उद्घोणा प्रवर्तन में हो या नहीं ।
(5) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी,--
(क) खंड (1) और खंड (3) में वर्णित राष्ट्रपति का समाधान अंतिम और निश्चायक होगा और उसे किसी भी आधार पर किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जाएगा ;
(ख) उपखंड (2) के उपबंधों के अधीन रहते हुए न तो उच्चतम न्यायालय को न किसी अन्य न्यायालय को--
(i) राष्ट्रपति द्वारा की गई उद्घोणा द्वारा खंड (1) में वर्णित आशय की घोषणा ; या
(ii) ऐसी उद्घोणा के प्रवृत्त बने रहने,
की विधिमान्यता के बारे में किसी भी आधार पर कोई प्रश्न ग्रहण करने की अधिकारिता होगी ।
(6) केवल आंतरिक अशांति या उसका संकट सन्निकट होने के आधार पर की गई आपात की उद्घोणा (अनुच्छेद 354 की बाबत के सिवाय) जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में तभी लागू होगी जब वह--
(क) उस राज्य की सरकार के अनुरोध पर या उसकी सहमति से की गई है ; या
(ख) जहां वह इस प्रकार नहीं की गई है वहां वह उस राज्य की सरकार के अनुरोध पर या उसकी सहमति से राष्ट्रपति द्वारा बाद में लागू की गई है ।“।
(ख) अनुच्छेद 353--परन्तुक का लोप करें ।
(ग) अनुच्छेद 356--
(अ) खंड (1) में, इस संविधान के उपबंधों या उपबंध के प्रति निर्देशों का जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अतंर्गत जम्मू-कश्मीर के संविधान के उपबंधों या उपबंध के प्रति निर्देश है ;
(आ) खंड (4) में :--
(i) प्रारंभिक भाग के स्थान पर निम्नलिखित रखें, अर्थात्:--
“इस प्रकार अनुमोदित उद्घोणा, यदि वापस नहीं ली जाती है तो, खंड (3) के अधीन उद्घोणा का अनुमोदन करने वाले संकल्पों में से दूसरे संकल्प के पारित किए जाने की तारीख से छह मास की अवधि के अवसान पर प्रवृत्त नहीं रहेगी ।;
(ii) दूसरे परन्तुक के पश्चात् निम्नलिखित परन्तुक अंत:स्थापित किया जाएगा, अर्थात् :----
‘परन्तु यह भी कि जम्मू-कश्मीर राज्य के बारे में 18 जुलाई, 1990 को खंड (1) के अधीन जारी की गई उद्घोणा के मामले में इस खंड के पहले परन्तुक में “तीन वर्ष” के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह “छह वर्ष” के प्रति निर्देश है ।‘।
(इ) खंड (5) के स्थान पर निम्नलिखित खंड रखें, अर्थात् :--
“(5) इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, खंड (1) में वर्णित राष्ट्रपति का समाधान अंतिम और निश्चायक होगा और किसी भी आधार पर किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जाएगा।“।
(घ) अनुच्छेद 357--खंड (2) के स्थान पर निम्नलिखित खंड रखें, अर्थात् :--
“(2) राज्य के विधान-मंडल की शक्ति का प्रयोग करते हुए संसद द्वारा अथवा राष्ट्रपति या खंड (1) के उपखंड (क) में निर्दिष अन्य प्राधिकारी द्वारा बनाई गई ऐसी विधि जिसे संसद अथवा राष्ट्रपति या ऐसा अन्य प्राधिकारी अनुच्छेद 356 के अधीन की गई उद्घोणा के अभाव में बनाने के लिए सक्षम नहीं होता, उद्घोणा के प्रवर्तन में न रहने के पश्चात् एक वर्ष की अवधि के अवसान पर, अक्षमता की मात्रा तक, उन बातों के सिवाय जिन्हें उक्त अवधि के अवसान के पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है प्रभावहीन हो जाएगी यदि वे उपबंध जो प्रभावहीन हो जाएंगे, सक्षम विधान-मंडल के अधिनियम द्वारा पहले ही निरसित या उपांतरणों के सहित या उनके बिना पुन: अधिनियमित नहीं कर दिए जाते हैं ।“ ।
(ङ) अनुच्छेद 358 के स्थान पर निम्नलिखित अनुच्छेद रखें, अर्थात्:--

“358. आपात के दौरान अनुच्छेद 19 के उपबंधों का निलंबन--

जब आपात की उद्घोणा प्रवर्तन में है तब अनुच्छेद 19 की कोई बात भाग 3 में यथापरिभाषित राज्य की कोई ऐसी विधि बनाने की या कोई ऐसी कार्यपालिका कार्रवाई करने की शक्ति को, जिसे वह राज्य उस भाग में अंतर्विष्ट उपबंधों के अभाव में बनाने या करने के लिए सक्षम होता, निर्बन्धित नहीं करेगी किन्तु इस प्रकार बनाई गई कोई विधि उद्घोणा के प्रवर्तन में न रहने पर अक्षमता की मात्रा तक उन बातों के सिवाय तुरंत प्रभावहीन हो जाएगी, जिन्हें विधि के इस प्रकार प्रभावहीन होने के पहले किया गया है या करने का लोप किया गया है।
(च) अनुच्छेद 359--
(अ) खंड (1) में “( अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 को छोड़कर)” का लोप करें ;
(आ) खंड (1क) में,--
(i) “(अनुच्छेद 20 और अनुच्छेद 21 को छोड़कर)” का लोप करें ;
(ii) परन्तुक का लोप करें ;
(इ) खंड (1ख) का लोप करें ;
(ई) खंड (2) में परन्तुक का लोप करें ।
(छ) अनुच्छेद 360 का लोप करें ।

(20) भाग 19

(क) अनुच्छेद 361क--यह अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं है ।
(ख) अनुच्छेद 365 का लोप करें ।
(ग) अनुच्छेद 367--खंड (3) के पश्चात् निम्नलिखित खंड जोड़ें, अर्थात्:--
“(4) इस संविधान के, जैसा कि वह जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में लागू होता है, प्रयोजनों के लिए --
(क) इस संविधान या उसके उपबंधों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे उक्त राज्य के संबंध में लागू संविधान के या उसके उपबंधों के प्रति निर्देश भी हैं ;
(कक) राज्य की विधान-सभा की सिफारिश पर राष्ट्रपति द्वारा, जम्मू-कश्मीर के सदरे-रियासत के रूप में तत्समय मान्यताप्राप्त तथा तत्समय पदस्थ राज्य मंत्रि-परिषद् की सलाह पर कार्य करने वाले व्यक्ति के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के प्रति निर्देश हैं :
(ख) उक्त राज्य की सरकार के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अंतर्गत अपनी मंत्रि-परिषद् की सलाह पर कार्य कर रहे जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के प्रति निर्देश हैं :
परन्तु 10 अप्रैल, 1965 से पहले की किसी अवधि की बाबत, ऐसे निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनके अंतर्गत अपनी मंत्रि-परिषद् की सलाह से कार्य कर रहे सदरे-रियासत के प्रति निर्देश है ;
(ग) उच्च न्यायालय के प्रति निर्देशों के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के उच्च न्यायालय के प्रति निर्देश हैं ;
(घ) उक्त राज्य के स्थायी निवासियों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उनसे ऐसे व्यक्ति अभिप्रेत हैं जिन्हें राज्य में प्रवृत्त विधियों के अधीन राज्य की प्रजा के रूप में, संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 के प्रारंभ से पूर्व, मान्यताप्राप्त थी या जिन्हें राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा राज्य के स्थायी निवासियों के रूप में मान्यताप्राप्त हैं ; और
(ङ) राज्यपाल के प्रति निर्देशों के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल के प्रति निर्देश हैं :
परन्तु 10 अप्रैल, 1965 से पहले की किसी अवधि की बाबत, ऐसे निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे राष्ट्रपति द्वारा जम्मू-कश्मीर के सदरे-रियासत के रूप में मान्यताप्राप्त व्यक्ति के प्रति निर्देश हैं और उनके अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा सदरे-रियासत की शक्तियों का प्रयोग करने के लिए सक्षम व्यक्ति के रूप में मान्यताप्राप्त किसी व्यक्ति के प्रति निर्देश भी है ।“ ।

(21) भाग 20

अनुच्छेद 368--
(क) खंड (3) में निम्नलिखित और परन्तुक जोड़ें, अर्थात्:--
 “परन्तु यह और कि कोई संशोधन जम्मू-कश्मीर राज्य के संबंध में तभी प्रभावी होगा जब वह अनुच्छेद 370 के खंड (1) के अधीन राष्ट्रपति के आदेश द्वारा लागू किया गया हो ।“।
(ख) खंड (4) और खंड (5) का लोप करें, और खंड (3) के पश्चात् निम्नलिखित खंड जोड़ें, अर्थात्:--
 “(4) जम्मू-कश्मीर के संविधान के--
(क) राज्यपाल की नियुक्ति, शक्तियों, कृत्यों, कर्तव्यों, उपलब्धियों, भत्तों, विशेषाधिकारों या उन्मुक्तियों, या
(ख) भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा निर्वाचनों के अधीक्षण, निदेशन और नियंत्रण, विभेद के बिना निर्वाचन नामावली में सम्मिलित किए जाने की पात्रता, वयस्क मताधिकार और विधान परिषद् के गठन, जो जम्मू-कश्मीर संविधान की धारा 138, 139, 140 और 150 में विनिर्दिष्ट विषय हैं,
से संबंधित किसी उपबंध में या उसके प्रभाव में कोई परिवर्तन करने के लिए जम्मू-कश्मीर राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई किसी विधि का कोई प्रभाव तभी होगा जब ऐसी विधि राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित रखने के पश्चात्, उसकी अनुमति प्राप्त कर लेती है ।“।

(22) भाग 21

(क) अनुच्छेद 369, 371, 371क, 372क, 373 और अनुच्छेद 376 से 378क तक का और अनुच्छेद 392 का लोप करें ।
(ख) अनुच्छेद 372 में,----
(अ) खंड (2) और (3) का लोप करें ;
(आ) भारत के राज्यक्षेत्र में प्रवृत्त विधि के प्रति निर्देशों के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के राज्यक्षेत्र में विधि का बल रखने वाली हिदायतों, ऐलानों, इश्तिहारों, परिपत्रों, रोबकारों, इरशादों, याददाश्तों, राज्य परिषद् के संकल्पों, संविधान सभा में संकल्पों और अन्य लिखतों के प्रति निर्देश होंगे ;
(इ) संविधान के प्रारंभ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 (सं0आ048) के प्रारंभ, अर्थात् 14 मई, 1954 के प्रति निर्देश हैं ।
(ग) अनुच्छेद 374--
(अ) खंड (1), (2), (3) और (5) का लोप करें ;
(आ) खंड (4) में, राज्य में प्रिवी कौंसिल के रूप में कार्य करने वाले प्राधिकारी के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह जम्मू-कश्मीर संविधान अधिनियम संवत्, 1996 के अधीन गठित सलाहकार बोर्ड के प्रति निर्देश हैं ; और संविधान के प्रारंभ के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वे संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) आदेश, 1954 के प्रारंभ, अर्थात् 14 मई, 1954 के प्रति निर्देश हैं ।

(23) भाग 22--

अनुच्छेद 394 तथा 395 का लोप करें ।

(24) तीसरी अनुसूची--

प्ररूप 5, 6, 7 और 8 का लोप करें ।

(25) पांचवीं अनुसूची--

यह अनुसूची जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं है ।

(26) छठी अनुसूची--

यह अनुसूची जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं है ।

(27) सातवीं अनुसूची--

(क) सूची 1--संघ सूची--
(अ) प्रविष्टि 2क का लोप करें ;
(आ) प्रविष्टि 3 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखें, अर्थात् :----

“3. छावनियों का प्रशासन ।“;

(इ) प्रविष्टि 8, 9, 34 और 79 का लोप करें ;
(ई) प्रविष्टि 72 में,--
(i) किसी ऐसी निर्वाचन याचिका में जिसके द्वारा उस राज्य के विधान-मंडल के दोनों सदनों में से किसी सदन के लिए निर्वाचन प्रश्नगत है, जम्मू-कश्मीर राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा किए गए किसी विनिश्चय या आदेश के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय को अपीलों के संबंध में राज्यों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत जम्मू-कश्मीर राज्य के प्रति निर्देश है ;
(ii) अन्य मामलों के संबंध में राज्यों के प्रति निर्देशों का यह अर्थ लगाया जाएगा कि उसके अंतर्गत उस राज्य के प्रति निर्देश नहीं है ;
(उ) प्रविष्टि 81 में “अंतरराज्यिक प्रव्रजन” का लोप करें ;
(ऊ) प्रविष्टि 97 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखें, अर्थात् :----
‘97.(क) विधि द्वारा स्थापित सरकार को आतंकित करने या लोगों या लोगों के किसी अनुभाग में आतंक उत्पन्न करने या लोगों के किसी अनुभाग को पृथक् करने या लोगों के विभिन्न अनुभागों के बीच समरसता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाले आंतकवादी कार्यों को अंतर्वलित करने वाले ;
(ख) भारत की प्रभुता तथा प्रादेशिक अखंडता को अनअंगीकृत, प्रश्नगत या विछिन्न करने, अथवा भारत राज्यक्षेत्र के किसी भाग का अध्यर्पण कराने अथवा भारत राज्यक्षेत्र के भाग को संघ से विलग कराने अथवा भारत के राष्ट्रीय ध्वज, भारतीय राष्ट्रगान और इस संविधान का अपमान करने वाले, क्रियाकलाप को रोकना, समुद्र या वायु द्वारा विदेश यात्रा, अंतरदेशीय विमान यात्रा और डाक वस्तुओं पर, जिनके अंतर्गत मनीआर्डर, फोनतार और तार हैं, कर ।

स्पष्टीकरण--

इस प्रविष्टि में, “आतंकवादी कार्य” का वही अर्थ है जो अनुच्छेद 248 के स्पष्टीकरण में है ।‘।
(ख) सूची 2--राज्य सूची का लोप करें ।
(ग) सूची 3--समवर्ती सूची--
(अ) प्रविष्टि 1 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखें, अर्थात्:--
“1. दंड विधि (जिसके अंतर्गत सूची 1 के विनिर्दिष्ट विषयों में से किसी विषय से संबंधित विधियों के विरुंद्ध अपराध और सिविल शक्ति की सहायता के लिए नौ-सेना, वायुसेना या संघ के किन्हीं अन्य सशस्त्र बलों के प्रयोग नहीं हैं,) जहां तक ऐसी दंड विधि इस अनुसूची में विनिर्दिष्ट विषयों में से किसी विषय से संबंधित विधि के विरुद्ध अपराधों से संबंधित है ।
(आ) प्रविष्ट 2 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखें, अर्थात्:--
“2. दंड प्रक्रिया, (जिसके अंतर्गत अपराधों को रोकना तथा दंड न्यायालयों का, जिनके अतंर्गत उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय नहीं है, गठन और संगठन है ) जहां तक उसका संबंध--
(i) किन्हीं ऐसे विषयों से, जो ऐसे विषय हैं, जिनके संबंध में संसद को विधियां बनाने की शक्ति है, संबंधित विधियों के विरुद्ध अपराधों से है, और
(ii) किसी विदेश में राजनयिक और कौंसलीय अधिकारियों द्वारा शपथ दिलाए जाने तथा शपथ-पत्र लिए जाने से है”;
(इ) प्रविष्टि 3, प्रविष्टि 5 से 10 तक, (जिसमें ये दोनों सम्मिलित हैं,) प्रविष्टि 14, 15, 17, 20, 21, 27, 28, 29, 31, 32, 37, 38, 41 तथा 44 का लोप करें ;
(ई) प्रविष्टि 11क, 17क,17ख, 20क और 33क जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं हैं ;
(उ) प्रविष्टि 12 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखें, अर्थात्:--
“12. साक्ष्य तथा शपथ, जहां तक उनका संबंध--
(i) किसी विदेश में राजनयिक और कौंसलीय अधिकारियों द्वारा शपथ दिलाए जाने तथा शपथ-पत्र लिए जाने से हैं ; और
(ii) किन्हीं ऐसे अन्य विषयों से हैं, जो ऐसे विषय हैं, जिनके संबंध में संसद को विधियां बनाने की शक्ति है ।“।
(ऊ) प्रविष्टि 13 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखें, अर्थात् :--
“13. सिविल प्रक्रिया, जहां तक उसका संबंध किसी विदेश में राजनयिक तथा कौंसलीय अधिकारियों द्वारा शपथ दिलाए जाने से तथा शपथ-पत्र लिए जाने से है ।“;
(ए) प्रविष्टि 25 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखें, अर्थात् :--
“25. श्रमिकों को व्यावसायिक और तकनीकी प्रशिक्षण ”;
(ऐ) प्रविष्टि 30 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखें, अर्थात्:--

“30. जन्म-मरण सांख्यिकी, जहां तक उसका संबंध जन्म तथा मृत्यु से है, जिसके अंतर्गत जन्म और मृत्यु रजिस्ट्रीकरण है ।“;

(ओ) प्रविष्टि 42 के स्थान पर निम्नलिखित प्रविष्टि रखें, अर्थात्:--
 “42. संपत्ति का अर्जन और अधिग्रहण, जहां तक उसका संबंध सूची 1 की प्रविष्टि 67 या सूची 3 की प्रविष्टि 40 के अंतर्गत आने वाली संपत्ति के या किसी ऐसी मानवीय कलाकृति के, जिसका कलात्मक या सौंदर्यात्मक मूल्य है, अर्जन से है ।“;
(औ) प्रविष्टि 45 में, “सूची 2 या सूची 3” के स्थान पर “इस सूची” शब्द रखें ।

(28) नौवीं अनुसूची----

(क) प्रविष्टि 64 के पश्चात्, निम्नलिखित प्रविष्टियां जोड़ें, अर्थात्:--
“64क. जम्मू-कश्मीर राज्य कुठ अधिनियम (संवत् 1978 का सं0 1) ।
64ख. जम्मू-कश्मीर अभिधृति अधिनियम (संवत् 1980 का सं0 2) ।
64ग. जम्मू-कश्मीर भूमि अन्यसंक्रामण अधिनियम (संवत् 1995 का सं0 5) ।
64घ. जम्मू-कश्मीर बृहद् भू-संपदा उत्सादन अधिनियम (संवत् 2007 का सं0 17)।
64ङ. जागीरों और भू-राजस्व के अन्य समनुदेशनों आदि के पुनर्ग्रहण के बारे में 1951 का आदेश सं0 6-एच, तारीख 10 मार्च, 1951 ।
64च. जम्मू-कश्मीर बंधक संपत्ति की वापसी अधिनियम, 1976 (1976 का अधिनियम 14) ।
64छ. जम्मू-कश्मीर ऋणी राहत अधिनियम, 1976 (1976 का अधिनियम 15)”;,
(ख) प्रविष्टि 65 से 86 तक जम्मू-कश्मीर राज्य को लागू नहीं होती हैं ;
(ग) प्रविष्टि 86 के पश्चात् निम्नलिखित प्रविष्टि अंत:स्थापित करें, अर्थात्:--
“87. लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (1951 का केन्द्रीय अधिनियम 43), लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन) अधिनियम, 1974 (1974 का केन्द्रीय अधिनियम 58), निर्वाचन विधि (संशोधन) अधिनियम, 1975 (1975 का केन्द्रीय अधिनियम 40) ।“;
(घ) प्रविष्टि 91 के पश्चात् निम्नलिखित प्रविष्टि अंत:स्थापित करें, अर्थात् :--
“92. आंतरिक सुरक्षा अधिनियम, 1971 (1971 का केन्द्रीय अधिनियम 26) ।“;
(ङ) प्रविष्टि 129 के पश्चात् निम्नलिखित प्रविष्टि अंत:स्थापित करें, अर्थात्:--
“130. आक्षेपणीय सामग्री प्रकाशन निवारण अधिनियम, 1976 (1976 का केन्द्रीय अधिनियम 27) ।“;
(च) ऊपर उपदर्शित रूप में, प्रविष्टि 87, प्रविष्टि 92 और प्रविष्टि 130 के अंत:स्थापन के पश्चात् प्रविष्टि 87 से प्रविष्टि 188 तक को क्रमश: प्रविष्टि 65 से प्रविष्टि 166 के रूप में पुन:संख्यांकित करें ।

29. दसवीं अनुसूची

(क) “[अनुच्छेद 102(2) और अनुच्छेद 191(2)]” शब्दों, कोष्ठकों और अंकों के स्थान पर, “[अनुच्छेद 102(2)]” कोष्ठक, शब्द और अंक रखे जाएंगे;
(ख) पैरा 1 के खंड (क) में,” या किसी राज्य की, यथास्थिति, विधान सभा या विधान-मंडल का कोई सदन” शब्दों का लोप किया जाएगा ;
(ग) पैरा 2 में,--
(i) उपपैरा 1 में, स्पष्टीकरण के खंड (ख) के उपखंड (ii) में, “यथास्थिति, अनुच्छेद 99 या अनुच्छेद 188” शब्दों और अंकों के स्थान पर, “अऩुच्छेद 99” शब्द और अंक रखे जाएंगे ;
(ii) उपपैरा (3) में, “यथास्थिति, अनुच्छेद 99 या अनुच्छेद 188” शब्दों और अंकों के स्थान पर, “अऩुच्छेद 99” शब्द और अंक रखे जाएंगे ;
(iii) उपपैरा (4) में, संविधान (बावनवां संशोधन) अधिनियम, 1985 के प्रारंभ के प्रति निर्देश का यह अर्थ लगाया जाएगा कि वह संविधान (जम्मू-कश्मीर को लागू होना) संशोधन आदेश, 1989 के प्रारंभ के प्रति निर्देश है ;
(घ) पैरा 5 में, “अथवा किसी राज्य की विधान परिषद् के सभापति या उप सभापति अथवा किसी राज्य की विधान सभा के अध्यक्ष या उपाध्यक्ष” शब्दों का लोप किया जाएगा ;
(ङ) पैरा 6 के उपपैरा (2) में, “यथास्थिति, अनुच्छेद 122 के अर्थ में संसद की कार्यवाहियां हैं या अनुच्छेद 212 के अर्थ में राज्य के विधान-मंडल की कार्यवाहियां हैं” शब्दों और अंकों के स्थान पर अनुच्छेद 122 के अर्थ में संसद की कार्यवाहियां है” शब्द और अंक रखे जाएंगे ;
(च) पैरा 8 के उपपैरा (3) में, “यथास्थिति, अनुच्छेद 105 या अनुच्छेद 194” शब्दों और अंकों के स्थान पर, “अनुच्छेद 105” शब्द और अंक रखे जाएंगे ।

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