भारत का संविधान- संविधान के संशोधन

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भाग 20: संविधान के संशोधन

368. संविधान का संशोधन करने की संसद की शक्ति और उसके लिए प्रक्रिया[1]

(1)[2] इस संविधान में किसी बात के होते हुए भी, संसद अपनी संविधायी शक्ति का प्रयोग करते हुए इस संविधान के किसी उपबंध का परिवर्धन, परिवर्तन या निरसन के रूप में संशोधन इस अनुच्छेद में अधिकथित प्रक्रिया के अनुसार कर सकेगी।
(2)[3] इस संविधान के संशोधन का आरंभ संसद के किसी सदन में इस प्रयोजन के लिए विधेयक पुरःस्थापित करके ही किया जा सकेगा और जब वह विधेयक प्रत्येक सदन में उस सदन की कुल सदस्य संख्‍या के बहुमत द्वारा तथा उस सदन के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया जाता है तब [4][वह राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा, जो विधेयक को अपनी अनुमति देगा और तब] संविधान उस विधेयक के निबंधनों के अनुसार संशोधित हो जाएगा :
परंतु यदि ऐसा संशोधन--
(क) अनुच्छेद 54, अनुच्छेद 55, अनुच्छेद 73, अनुच्छेद 162 या अनुच्छेद 241 में, या
(ख) भाग 5 के अध्याय 4, भाग 6 के अध्याय 5 या भाग 11 के अध्याय 1 में, या
(ग) सातवीं अनुसूची की किसी सूची में, या
(घ) संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व में, या
(ङ) इस अनुच्छेद के उपबंधों में,
कोई परिवर्तन करने के लिए है तो ऐसे संशोधन के लिए उपबंध करने वाला विधेयक राष्ट्रपति के समक्ष अनुमति के लिए प्रस्तुत किए जाने से पहले उस संशोधन के लिए [5] कम से कम आधे राज्यों के विधान-मंडलों द्वारा पारित इस आशय के संकल्पों द्वारा उन विधान-मंडलों का अनुसमर्थन भी अपेक्षित होगा।
(3)[6] अनुच्छेद 13 की कोई बात इस अनुच्छेद के अधीन किए गए किसी संशोधन को लागू नहीं होगी।]
(4)[7] इस संविधान का (जिसके अंतर्गत भाग 3 के उपबंध हैं) इस अनुच्छेद के अधीन [संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 55 के प्रारंभ से पहले या उसके पश्चात्‌] किया गया या किया गया तात्पर्यित कोई संशोधन किसी न्यायालय में किसी भी आधार पर प्रश्नगत नहीं किया जाएगा।
(5) शंकाओं को दूर करने के लिए यह घोषित किया जाता है कि इस अनुच्छेद के अधीन इस संविधान के उपबंधों का परिवर्धन, परिवर्तन या निरसन के रूप में संशोधन करने के लिए संसद की संविधायी शक्ति पर किसी प्रकार का निर्बन्धन नहीं होगा।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. संविधान (चौबीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 3 द्वारा द्रसंविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  2. संविधान (चौबीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 3 द्वारा अंतःस्थापित।
  3. संविधान (चौबीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 3 द्वारा अनुच्छेद 368 को खंड (2) के रूप में पुनर्संख्‍यांकित किया गया।
  4. संविधान (चौबीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 3 द्वारा तब वह राष्ट्रपति के समक्ष उसकी अनुमति के लिए रखा जाएगा तथा विधेयक को ऐसी अनुमति दी जाने के पश्चात्‌ के स्थान पर प्रतिस्थापित।
  5. संविधान (सातवाँ संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा पहली अनुसूची के भाग क और ख में विनिर्दिष्ट शब्दों और अक्षरों का लोप किया गया।
  6. संविधान (चौबीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 3 द्वारा अंतःस्थापित।
  7. अनुच्छेद 368 में खंड (4) और खंड (5) संविधान (बयालीसवाँ संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 55 द्वारा अंतःस्थापित किए गए थे। उच्चतम न्यायालय ने मिनर्वा मिल्स लिमिटेड और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य (1980) 2 एस.सी.सी. 591 के मामले में इस धारा को अधिमान्य घोषित किया है।

बाहरी कड़ियाँ

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