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मध्य प्रदेश की अर्थव्यवस्था

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मध्य प्रदेश की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है लेकिन आधे से कम क्षेत्र कृषि योग्य है और भू- आकृति, वर्षा व मिट्टी में विविधता होने के कारण इसका वितरण काफ़ी असमान है। कृषि योग्य प्रमुख क्षेत्र चंबल, मालवा के पठार और रेवा के पठार में मिलते हैं। नदी द्वारा बहाकर लाई गई जलोढ़ मिट्टी से ढकी नर्मदा घाटी एक अन्य उपजाऊ इलाका है।

कृषि

मध्य प्रदेश की कृषि की विशेषता कम उत्पादन और कृषि की परंपरागत पद्धति का उपयोग है। चूंकि कृषि योग्य भूमि का केवल 15 प्रतिशत भाग ही सिंचित है, राज्य की कृषि वर्षा पर निर्भर करती है और अक्सर इसे सूखे व लाल- पीली मिट्टी में नमी की बहुत कम मात्रा का सामना करना पड़ता है। मध्य प्रदेश में होने वाली सिंचाई, जो मुख्यत: नहरों, कुओं, गांवों के तालाबों और झीलों से होती है, उसकी अधिकांश योजनाएँ केंद्रीय सरकार की एक के बाद एक पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान मझोले आकार की या छोटी परियोजनाओं द्वारा विकसित हुई हैं।

फ़सल

सबसे प्रमुख फ़सलें चावल, गेहूं, ज्वार, मक्का, दलहन (मटर, सेम और मसूर जैसी फलियां) और मूगंफली हैं। पूर्व में, जहाँ अधिक वर्षा होती है, मुख्यत: चावल उगाया जाता है, जबकि पश्चिमी मध्य प्रदेश में गेहूं और ज्वार सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण हैं। अन्य फ़सलों में असली, तिल, गन्ना और पहाड़ी क्षेत्रों में उगाया जाने वाला निम्न कोटि का ज्वार- बाजरा प्रमुख है। राज्य अफ़ीम (राजस्थान के निकट मंदसौर ज़िले में) और मारिजुआना (दक्षिण- पश्चिमी खांडवा ज़िले {पूर्वी निमाड़} में) का एक बड़ा उत्पादक है।

पशुधन

मध्य प्रदेश में पशु पालन और कुक्कुट पालन महत्त्वपूर्ण हैं। देश के कुल पशुधन (गाय, भैंस, बकरी, भेड़ और सूअर) का लगभग सातवाँ भाग इस राज्य में है। यहाँ पशुओं की नस्ल और गुणवत्ता सुधारने वाले कई केंद्र हैं। उदाहरण के लिए भोपाल में बैलों और धार में बकरियों के कृत्रिम वीर्य सचेन तथा संकरण के केंद्र हैं।


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