छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था

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छत्तीसगढ़ भारत के खनिज समृद्ध राज्यों में से एक है। यहाँ पर चूना- पत्थर, लौह अयस्क, तांबा, फ़ॉस्फेट, मैंगनीज़, बॉक्साइट, कोयला, एसबेस्टॅस और अभ्रक के उल्लेखनीय भंडार हैं। छत्तीसगढ़ में लगभग 52.5 करोड़ टन का डोलोमाइट का भंडार है, जो पूरे देश के कुल भंडार का 24 प्रतिशत है। यहाँ बॉक्साइट का अनुमानित 7.3 करोड़ टन का समृद्ध भंडार है और टिन अयस्क का 2,700 करोड़ से भी ज़्यादा का उल्लेखनीय भंडार है। छत्तीसगढ़ में ही कोयले का 2,690.8 करोड़ टन का भंडार है। स्वर्ण भंडार लगभग 38,05,000 किलो क्षमता का है। यहाँ भारत का सर्वोत्तम लौह अयस्क मिलता है, जिसका 19.7 करोड़ टन का भंडार है। बैलाडीला, बस्तर, दुर्ग और जगदलपुर में लोहा मिलता है। भिलाई में भारत के बड़े इस्पात संयंत्रों में से एक स्थित है। राज्य में 75 से भी ज़्यादा बड़े और मध्यम इस्पात उद्योग हैं, जो गर्म धातु, कच्चा लोहा, भुरभुरा लोहा (स्पंज आयरन), रेल-पटरियों, लोहे की सिल्लियों और पट्टीयों का उत्पादन करते हैं।

खनिज संपदा से ही छत्तीसगढ़ को सालाना 600 करोड़ रुपये से ज़्यादा का राजस्व प्राप्त होगा। रायपुर ज़िले के देवभोग में हीरे के भंडार हैं। यहाँ हीरों की तलाश शुरू हो गई है और लगभग दो वर्षों में इसका खनन आरंभ हो जाने पर राज्य को 2,000 करोड़ रुपये सालाना का अतिरिक्त राजस्व मिलने की उम्मीद है।

ऊर्जा

छत्तीसगढ़ अपनी आवश्यकता से अधिक ऊर्जा का उत्पादन करता है। यहाँ कोयला समृद्ध कोरबा में तीन तापविद्युत संयंत्र हैं और अन्य कई संयंत्र लगाने की योजना है साउथ ईस्टर्न कोलफ़ील्डस लिमिटेड कोयले के विशाल भंडार वाले क्षेत्रों में खोज कर रहा है। छत्तीसगढ़ में तेंदू पत्ते का भारत के कुल उत्पादन का 70 प्रतिशत होता है।

औद्योगिक क्षेत्र

एक औद्योगिक क्षेत्र और कई विकासशील औद्योगिक नगर वाले छत्तीसगढ़ का आर्थिक परिवेश आधुनिक है। भिलाई, बिलासपुर, रायपुर, रायगढ़ और दुर्ग राज्य के मुख्य शहर हैं। भिलाई की रेलवे लाइन के पूर्व और पश्चिम में शहरी विस्तार हुआ है। कोरबा, राजनांदगांव और रायगढ़ अन्य विकासशील शहरी केंद्र हैं। सीधे नहरों से सिंचित क्षेत्र भी हैं। इस क्षेत्र का ग्रामीण आधार कमज़ोर है और यहाँ के भीतर इलाके अभी तक घोर ग्रामीण तथा अविकसित हैं। शहरी केंद्रों का क्षेत्रीय जनजातीय अर्थव्यवस्था पर बहुत कम प्रभाव पड़ा है।

उद्योग

छत्तीसगढ़ अभी तक अपने संसाधनों का संपूर्ण लाभ नहीं उठा पाया है। औद्योगिकीकरण हो रहा है, लेकिन उसकी गति धीमी है। बड़े और मध्यम पैमाने के उद्योग केंद्र सामने आ रहे हैं। सुनियोजित विकास के अंग के रूप में रायपुर और भिलाईनगर को औद्योगिक क्षेत्र के रूप में स्थापित किया गया है। सूक्ष्म इलेक्ट्रॉनिस उपकरण और उच्च प्रौद्योगिक ऑप्टिकल फ़ाइबर के निर्माण जैसे अन्य आधुनिक उद्योगों को भी स्थापित किया गया है। निजी उद्योगों में सीमेंट कारख़ाने, काग़ज़, चीनी और कपड़ा (सूती, ऊनी, रेशम और जूट) मिलों के साथ- साथ आटा, तेल और आरा मिलें भी हैं। यहाँ पर सामान्य इंजीनियरिंग वस्तुओं के साथ- साथ रासायनिक खाद, कृत्रिम रेशे और रसायन उत्पादन की भी कुछ इकाइयाँ हैं। राज्य की लधु उद्योग इकाइयों का राष्ट्रीय परिदृश्य पर प्रभाव छोड़ना बाक़ी है। लेकिन हथकरघा उद्योग यहाँ फल- फूल रहा है और साड़ी बुनने, ग़लीचे व बर्तन बनाने तथा सोने रसायन उत्पादन की भी कुछ इकाइयाँ हैं।

कृषि

एक विस्तृत और लहरदार प्रदेश छत्तीसगढ़ में चावल और अनाज की खेती होती है। निम्नभूमि में चावल बहुतायत में होता है, जबकि उच्चभूमि में मक्का और मोटे अनाज की खेती होती है। क्षेत्र की महत्त्वपर्ण नक़दी फ़सलों में कपास और तिलहन शामिल हैं। बेसिन में आधुनिक कृषि तकनीकों का प्रचलन धीमी गति से हो रहा है। कृषि की दृष्टि से यह एक बेहद उपजाऊ क्षेत्र है। यह देश का 'धान का कटोरा' कहलाता है और 600 से ज़्यादा चावल मिलों को अनाज की आपूर्ति करता है। कुल क्षेत्र का आधे से कम क्षेत्र कृषि योग्य है, हालांकि स्थलाकृति, वर्षा और मिट्टी में विविधता के कारण इसका वितरण असमान है। यहाँ की कृषि की विशेषता कम उत्पादन और खेती की पारंपरिक विधियों का प्रयोग है।

पशुपालन

मवेशी और पशुपालन महत्त्वपूर्ण हैं, मवेशीयों में गाय, भैंस, बकरी, भेड़, और सूअर शामिल हैं। यहाँ बिलासपुर स्थित बकरी व गाय के कृत्रिम प्रजनन और संकरण केंद्र इन जानवरों की संख्या और गुणवत्ता बढ़ाने में लगे हैं।

परिवहन

छत्तीसगढ़ देश के अन्य भागों से सड़क, रेल और वायुमार्ग से भलीभांति जुड़ा है। यहाँ रायपुर और बिलासपुर में हवाई अड्डे हैं। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 6 और 200 इससे होकर गुज़रते हैं। कुछ प्रमुख रेलमार्ग राज्य से होकर गुज़रते हैं और बिलासपुर, दुर्ग, रायपुर, मनेंद्रगढ़ तथा चांपा महत्त्वपूर्ण रेल जंक्शन हैं।


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