माधवानल कामकंदला
माधवानल कामकंदला की कथा मध्यकालीन प्रेमाख्यानों की परम्परा में बहुत लोकप्रिय रही है। यही कारण है कि इसे अनेक कवियों ने अपना वर्ण्य-विषय बनाया।
विभिन्न रचनाएँ
राजस्थानी साहित्य की प्रेमाख्यानक परम्परा में गणपति कृत 'माधवानल प्रबन्ध दोग्धक', कुशलाभ कृत 'माधवानल कामकंदला चरित्र' और किसी अन्य कवि की 'माधवानल कामकंदला चौपाई' प्रसिद्ध हैं। इनके अतिरिक्त अवधी में रचित आलम कृत 'माधवानल भाषा' अधिक प्रसिद्ध हुई है। आलम के पश्चात् बोधा कवि ने भी 'सुभान' नामक वेश्या को सम्बोधित करके खेतसिंह के मनोरंजनार्थ एक अन्य 'माधवानल कामकंदला' की रचना की थी। सन 1812 ई. में हरनारायण नामक कवि द्वारा भी 'माधवानल कामकंदला' के प्रणयन का उल्लेख मिलता है। इन समस्त रचनाओं में आलम कृत 'माधवानल भाषा' सर्वोत्तम कही जा सकती है।[1]
माधवानल भाषा
'माधवानल भाषा' के कवि आलम उन आलम से अभिन्न ज्ञात होते हैं, जिनकी प्रसिद्धि उनकी प्रेयसी शेख के साथ हिन्दी साहित्य में अमर हो गयी है। 'माधवानल भाषा' में आलम ने बादशाह जलालुद्दीन अकबर का उल्लेख किया है, जिससे ज्ञात होता है कि यह अकबर के समकालीन कवि थे। कुछ लोग उन्हें अकबर का राज्याश्रित कवि मानते हैं। 'माधवानल भाषा' का रचना काल संवत 1640 वि. (सन 1583 ई.) है। यद्यपि लौकिक प्रेमाख्यानों का काव्य के रूप में प्रयोग सूफ़ी कवियों ने अधिक किया है, परंतु ऐसी काव्य-कृतियों की भी संख्या कम नहीं है, जिनमें एकांतत: लौकिक प्रेम का ही रसमय वर्णन हुआ है और जो सूफ़ी प्रेमवाद के धार्मिक और दार्शनिक तत्त्वों से सर्वथा रहित है।
आलम की 'माधवानल भाषा' इसी प्रकार की एक रचना है। 'माधवानल भाषा' की भाषा, शैली और छन्द वही हैं, जो प्रेमाख्यानकों में सामान्यत: प्रयुक्त हुए हैं। दोहा-चौपाई छन्दों तथा वर्णनात्मक शैली में कही गयी इस प्रेम कथा की भाषा में अवधी का अत्यंत ललित और हृदयग्राही रूप उभरा है। शैली का माधुर्य तथा कथा की सरसता सहज ही पाठकों के हृदय को तल्लीन कर लेती है।
संक्षिप्त कथा
'माधवानल कामकंदला' के आख्यान का मूल आधार 'सिंहासन बत्तीसी', 'बैताल पच्चीसी' आदि नहीं है, जैसा कि इस आख्यान-काव्य के लेखकों ने भ्रमवश संकेत किया है। वस्तुत: यह कथा मध्य काल की उन अनेकानेक काल्पनिक प्रेम-कथाओं में से एक है, जो लोक प्रचलित थीं। उन्हें कवियों ने इसी कारण काव्य का विषय बनाया था। माधवानल की कथा पूर्णत: स्वच्छन्द प्रेम की एक रोमांचित कथा है। इसमें 'माधवानल' नामक ब्राह्मण और 'कामकंदला' नामक वेश्या के अद्वितीय प्रेम की कहानी एक अत्यंत अनुरंजित वातावरण में कही गयी है। जहाँ एक ओर इससें विलासपूर्ण जीवन के रंगीन चित्र हैं, वहीं दूसरी ओर इसमें 'इश्क हकीकी' (ईश्वरीय प्रेम) के संकेत भी हैं।
"कामकंदला कामावती नदी के राजा कामसेन की वेश्या है। वहीं वीणा के वादन में प्रवीण माधवानल अपनी विविध चमत्कारपूर्ण वादन कलाओं से कामकंदला को मुग्ध कर लेता है, किंतु राजा के द्वारा निष्कासित कर दिये जाने के कारण उसे कामकंदला का वियोग सहना पड़ता है। अंत में उज्जैन नगरी के सम्राट विक्रमादित्य की सहायता से माधवानल कामकंदला को पुन: प्राप्त करने में सफल होता है। इसके उपरांत वह अपनी पूर्व प्रेयसी लीलावती को भी प्राप्त कर लेता है और अपना शेष जीवन आनन्दपूर्वक व्यतीत करता है।"[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- [सहायक ग्रंथ- आलमकेलि: सं. लाला भगवानदीन; माधवानल भाषा: आलम; माधवानल कामकंदला: बोधा]