मारवाड़ रियासत के सिक्के

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राजस्थान में स्वतंत्रता से पूर्व कई रियासतें थीं। इन रियासतों द्वारा अपने-अपने सिक्के प्रचलित किए गए थे, जिनकी अपनी कुछ विशेषताएं रही हैं जो अपने आप में एक अलग पहचान रखते थे। इन सिक्कों के माध्यम से राजस्थान की प्राचीन रियासतों की स्थितियों की जानकारी प्राप्त होती है। इन सिक्कों के द्वारा राजस्थान की रियासतों की आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक स्थिति का पता चलता है। सिक्कों के माध्यम से रियासत काल के इतिहास की जानकारी प्राप्त होती है।

मारवाड़ रियासत के सिक्के

मारवाड़ रियासत के प्राचीन सिक्कों को 'पंचमार्कड' कहा जाता था। मारवाड़ रियासत में भी सेलेनियन सिक्के प्रचलन में आए जो कालांतर में गधिया मुद्रा कहलायी थी। प्रतिहार राजा भोजदेव (आदिवराह) के द्वारा चलाए गए सिक्कों पर श्री महादिवराह उत्कीर्ण मिलता है। राठौरों के कन्नोज से मारवाड़ आने पर उन्होंने गढ़वालों की शैली के सिक्के चलाए।

मारवाड़ में गढवालों की शैली के सिक्कों का प्रचलन भी रहा, जिन्हें गजशाही सिक्के कहा गया है। कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार लगभग 1720 ई. में महाराजा अजीतसिंह ने अपने नाम के सिक्के चलाए थे। मारवाड़ में 18वीं और 19वीं शताब्दी में महाराजा विजयसिंह द्वारा चलाए गए विजय शाही सिक्कों का प्रचलन रहा जिन पर मुग़ल बादशाहों के नाम रहते थे। महाराजा विजयसिंह के द्वारा चलाए गए सिक्के सोने, चांदी और तांबे के होते थे। 1858 के पश्चात इन पर महारानी विक्टोरिया का नाम अंकित होने लगा।

मारवाड़ राज्य के सिक्कों के लिए जोधपुर, नागौर, पाली और सोजत में टकसाले थीं। इन टकसालों के अपने विशेष चिन्ह भी होते थे। जोधपुर टकसाल में बनने वाले सोने के सिक्के को 'मोहर' कहते थे। सोजत की टकसाल से बनने वाले सिक्कों पर श्री माता जी और श्री महादेव शब्द भी उत्कीर्ण होने लगा था। मारवाड़ में लिल्लूलिया, लल्लू शाही, रूररिया, रूपया, ढब्बू शाही और भीमशाही प्रकार के सिक्के भी प्रचलित रहे। ढब्बू शाही और भीम शाही तांबे के सिक्के थे।

सोने के सिक्कों को मोहर कहा जाता था, जो 1781 ई.से जोधपुर की टकसाल में बननी शुरू हुई थी। अजित सिह ने अपने नाम का सिक्का चलाया था। जोधपुर में प्रथम नरेशों के सिक्के चलते थे। जोधपुर रियासत के चांदी के सिक्कों पर 7 या 9 पत्तियों वाले झाड और तलवार राज्य के चिन्ह के रूप में मिलती है। जोधपुर शहर की देशी टकसाल में निर्मित चांदी के सिक्के पूरे विश्व में प्रसिद्ध थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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