स्वामी प्राणनाथ

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स्वामी प्राणनाथ महाराज छत्रसाल के गुरु थे। विक्रम संवत 1744 में 'महामति श्री प्राणनाथ'[1] के निर्देशन में ही छत्रसाल का राज्याभिषेक किया गया था। प्राणनाथ जी छत्रसाल के मार्गदर्शक, अध्यात्मिक गुरु और विचारक थे। जिस प्रकार समर्थ गुरु रामदास के कुशल निर्देशन में छत्रपति शिवाजी ने अपने पौरुष, पराक्रम और चातुर्य से मुग़लों के छक्के छुड़ा दिए थे, ठीक उसी प्रकार गुरु प्राणनाथ के मार्गदर्शन में छत्रसाल ने अपनी वीरता, चातुर्यपूर्ण रणनीति और कौशल से विदेशियों को परास्त किया था।

  • महामति श्री प्राणनाथ जी प्रणीत 'श्री कुलजम स्वरूप' में क्षर और अक्षर से परे अक्षरातीत पुरुषोतम परब्रह्म की उपासना बताई गई है, जिन्हें "श्री श्याम श्यामा" और "श्री राज श्यामा" के नाम से लिखा गया है-

अब सुनियो ब्रह्मसृष्टि विचार, जो कोई निज वतनी सिरदार ।
अपने धनी श्री श्यामा श्याम, अपना वासा है निजधाम ।।[2]

  • श्री निजानंद सम्प्रदाय के प्रमाणिक ग्रन्थ 'माहेश्वर तन्त्र' के मूल श्लोकों में भी श्यामा और कृष्ण करके लिखा है, अतः परमधाम की वास्तविक लीला में श्याम श्यामा और राजश्यामा नाम श्री कुलजम स्वरूप के सभी ग्रन्थों से सिद्ध होता है। जबकि राधा और कृष्ण तो श्री मद्भागवत पुराण से सिद्ध होते हैं। इसमें भी महामति श्री प्राणनाथ प्रणीत पवित्र 'श्री कुलजम स्वरूप' ही प्रमाण है।
  • यह सम्प्रदाय निजानंद सतगुरु धनी श्रीदेवचन्द्र जी द्वारा चलाये जाने से "निजानंद सम्प्रदाय" है तथा हाथ जोड़कर प्रणाम किये जाने से "प्रणामी सम्प्रदाय" हुआ।
  • श्रीदेवचन्द्र जी को परब्रह्म अक्षरातीत श्री राजजी ने साक्षात् दर्शन दिए और उन्हें परमधाम के आनन्द का अनुभव कराया, जिससे यह "निजानंद सम्प्रदाय" कहलाया। यह इसकी विशेषता है।
  • पवित्र श्री कुलजम स्वरूप में 18 हज़ार, 7 सौ, 58 चौपाईयाँ हैं, जो परब्रह्म श्री राजजी के आवेश से प्रबोधपुरी (बन्दीगृह) में अवतरित होनी प्रारम्भ हुई। इस पवित्र वाणी को कवि की कृति की दृष्टि से नहीं देखा जाये, ऐसा आदेश स्वयं परब्रह्म का ही है। इसमें कुलजम स्वरूप के प्रकाश ग्रन्थ की चौपाई प्रमाणिक है-

ए वाणी चित दे सुनियो साथ, कृपा कर कहे प्राणनाथ ।
ए किव कर जिन जानो मन, धनीजी ल्याए धाम से वचन ।।[3]

  • पवित्र कुलजम स्वरूप में श्री प्राणनाथ जी को "महामति" की उपाधि स्वयं परब्रह्म श्री राज जी ने ही प्रदान की है। इसमें चौपाई प्रमाण है-

धनीजी का जोस आत्म दुल्हिन, नूर हुकम बुध मूल वतन ।
ए पांचों मिल भई महामत, वेद कतेब पहुंची सरत ।।[4]

  • महामति श्री प्राणनाथ जी ने अपने अनुयाइयों (सुन्दरसाथ) को क्षर (वैराट पुरुष), अक्षर (योगमाया), से परे अखंड परमधाम में विराजमान अक्षरातीत किशोर स्वरूप "श्री राजश्यामा जी " की उपासना अनन्य प्रेम लक्षणा भक्ति के द्वारा करना बताया है। न की गौलोकि श्रीकृष्ण की सखी भाव की उपासना।[5]
  • बीतक ग्रन्थ के अनुसार- मिहिरराज ठाकुर का विक्रम संवत 1675 में अश्विनी कृष्ण चतुर्दशी को रविवार को सुबह 9 बजे जामनगर में श्री धनबाई जी के गर्भ से पिता केशव ठाकुर के यहां जन्म हुआ। विक्रम संवत 1735 में हरिद्वार महाकुम्भ मेले में श्री प्राणनाथ जी का शास्त्रार्थ मेले में उपस्थित आचार्यों से हुआ, जिसमें आध्यात्म के गढ़ प्रश्नों पर चर्चा हुई तो महामति श्री प्राणनाथ जी विजयी हुए। उपस्थित समस्त संत समाज द्वारा "विज्याभिनन्दन बुद्ध निष्कलंक अवतार" की उपाधि प्रदान की गई और ज्योतिष की गणना के अनुसार यही समय कल्कि अवतार के प्रगटन का है। सभी ग्रन्थों में लिखित समय और तारिख का मिलान करने पर ही यह शुभ मुहूर्त स्पष्ट होता है। अतः भागवत पुराण और कल्कि पुराण से कल्कि अवतार और बुद्ध गीता, बुध स्त्रोत व पद्मपुराण के अनुसार "विजयाभिनन्द बुद्ध निष्कलंक अवतार सिद्ध होता है। तभी विज्याभिनन्दन बुद्ध जी की शाका भी प्रारम्भ किया। वर्तमान में विज्याभिनन्दन की शाका 339 चल रही है।
  • भारत में प्राणनाथ जी के अनुयायी बड़ी संख्या में पाये जाते हैं।
  • दक्षिण भारत में जो स्थान समर्थ गुरु रामदास का है, वही स्थान बुन्देलखंड में प्राणनाथ जी का रहा है।
  • पन्ना में प्राणनाथ जी का समाधि स्थल है, जो उनके अनुयायियों का तीर्थ स्थल है। प्राणनाथ ने इस अंचल को 'रत्नगर्भा' होने का वरदान दिया था।
  • मुस्लिमों से प्राणनाथ जी ने कई शास्त्रार्थ तथा वाद-विवाद भी किये थे। 'सर्वधर्मसमन्वय' की भावना को जागृत करना ही इनका प्रमुख लक्ष्य था।
  • प्राणनाथ ने अपने जीवन में अनेक रचनाएँ भी कीं। भारत में इनकी शिष्य परम्परा का भी एक अच्छा साहित्य है। इनके अनुयायी वैष्णव हैं और गुजरात, राजस्थान, बुंदेलखण्ड में अधिक पाये जाते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 'श्री कुलजम स्वरूप' के प्रकाश हिंदुस्तानी से ये नाम और उपाधि प्रमाणित होती है।
  2. कुलजम स्वरूप , प्रकाश हिन्दुस्तानी से प्रमाणित है।
  3. किव कर = कवि की कृति = कविता।
  4. प्रकाश हिंदुस्तानी ग्रन्थ
  5. इस विषय में श्रीकृष्ण के तन से हुई श्रीकृष्ण त्रिधा लीला को अवश्य समझना चाहिए। यह लीला भी 'कुलजम स्वरूप' के प्रकाश हिंदुस्तानी ग्रन्थ में वर्णित है।

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