जयेन्द्र सरस्वती

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जयेन्द्र सरस्वती
जयेन्द्र सरस्वती
पूरा नाम जगद्गुरु श्री जयेन्द्र सरस्वती शंकराचार्य
अन्य नाम सुब्रमण्यम महादेव अय्यर (मूल नाम)
जन्म 18 जुलाई, 1935
जन्म भूमि तंजावुर, तमिलनाडु
मृत्यु 28 फ़रवरी, 2018
मृत्यु स्थान कांचीपुरम, तमिलनाडु
कर्म भूमि भारत
प्रसिद्धि शंकराचार्य, कामकोटि पीठ, कांचीपुरम
नागरिकता भारतीय
मठपति 8 जनवरी, 1994 से 28 फ़रवरी, 2018 तक
धर्म हिन्दू
अन्य जानकारी जयेन्द्र सरस्वती 19 साल की उम्र में शंकराचार्य बने थे। उन्होंने 65 साल तक कांची कामकोटि की गद्दी संभाली।

जगद्गुरु श्री जयेन्द्र सरस्वती शंकराचार्य (अंग्रेज़ी: Jagadguru Sri Jayendra Saraswathi Shankaracharya, जन्म- 18 जुलाई, 1935; मृत्यु- 28 फ़रवरी, 2018) कामकोटि पीठ, कांचीपुरम, तमिलनाडु के शंकराचार्य थे। स्वामी जी ने रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ा और मठ की गतिवधियों का विस्तार समाज कल्याण, ख़ासकर दलितों के शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे कार्यों तक किया। उन्हें 22 मार्च, 1954 को चंद्रशेखरानंद सरस्वती स्वामीगल ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था, जिसके बाद वह 69वें मठ प्रमुख बने थे। जयेन्द्र सरस्वती ने अयोध्या विवाद के हल के लिए भी पहल की थी। इसके लिए अटल बिहारी वाजपेयी ने उनकी काफी प्रशंसा की थी।


जयेन्द्र सरस्वती ने हिंदुओं के प्रमुख केंद्र कामकोटि मठ को और ताकतवर बनाया। उनके समय में यहाँ एनआरआई और राजनीतिक शख्सियतों की गतिविधियां बढ़ीं। कांची मठ कई स्कूल और अस्पताल भी चलाता है। इसके साथ ही प्रसिद्ध शंकर नेत्रालय मठ की तरफ से चलाया जाता है।

परिचय

जयेन्द्र सरवस्ती का जन्म 18 जुलाई, 1935 को तंजावुर, तमिलनाडु में हुआ था। उन्हें पहले 'सुब्रमण्यम महादेव अय्यर' के नाम से जाना जाता था, क्योंकि उनके पिता का नाम महादेव अय्यर था। पिता ने उन्हें नौ वर्ष की अवस्था में वेदों के अध्ययन के लिए कांची कामकोटि मठ में भेज दिया। वहाँ उन्होंने छह वर्ष तक ऋग्वेद व अन्य ग्रन्थों का गहन अध्ययन किया। मठ के 68वें आचार्य चंद्रशेखरानंद सरस्वती ने उनकी प्रतिभा देखकर उन्हें उपनिषद पढ़ने को कहा। सम्भवतः वे सुब्रह्मण्यम में अपने भावी उत्तराधिकारी को देख रहे थे, जो बाद में आगे चलकर सही भी साबित हुआ।

संन्यास

आगे चलकर जयेन्द्र सरवस्ती ने अपने पिता के साथ अनेक तीर्थों की यात्रा की। वे भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन के लिए तिरुमला गये और वहाँ उन्होंने सिर मुण्डवा लिया। 22 मार्च, 1954 उनके जीवन का महत्वपूर्ण दिन था, जब उन्होंने संन्यास ग्रहण किया। सर्वतीर्थ तालाब में कमर तक जल में खड़े होकर उन्होंने प्रश्नोच्चारण मन्त्र का जाप किया और यज्ञोपवीत उतार कर स्वयं को सांसारिक जीवन से अलग कर लिया। इसके बाद वे अपने गुरु स्वामी चन्द्रशेखरानंद सरस्वती द्वारा प्रदत्त भगवा वस्त्र पहन कर तालाब से बाहर आये। इस देशाटन से वह भारत में धर्म पर वार कर रही कुसंस्कृतियों को भी जान और पहिचान चुके थे। इसके बाद 15 वर्ष तक उन्होंने वेद, व्याकरण मीमांसा तथा न्यायशास्त्र का गहन अध्ययन किया। उनकी प्रखर साधना देखकर कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य स्वामी चन्द्रशेखरानंद सरस्वती ने उन्हें अपना उत्तराधिकारी घोषित कर उनका नाम जयेन्द्र सरस्वती रखा। अब उनका अधिकांश समय पूजा-पाठ में बीतने लगा।

शंकराचार्य

जयेन्द्र सरस्वती 19 साल की उम्र में शंकराचार्य बने थे। उन्होंने 65 साल तक कांची कामकोटि की गद्दी संभाली। 22 मार्च 1954 को चंद्रशेखरानंद सरस्वती के बाद उन्हें 69वां शंकराचार्य बनाया गया था। कांची पीठ हिंदू धर्म का अनुसरण करने वालों के लिए काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह तमिलनाडु राज्य में कांचीपुरम नगर में स्थित है। स्वामी जी ने रूढ़िवादी परंपराओं को तोड़ा और मठ की गतिवधियों का विस्तार समाज कल्याण, ख़ासकर दलितों के शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे कार्यों तक किया। उन्हें 22 मार्च 1954 को चंद्रशेखरानंद सरस्वती स्वामीगल ने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था, जिसके बाद वह 69वें मठप्रमुख बने थे।

उन्होंने मठ को एक नई दिशा दी। पहले मठ सिर्फ आध्यात्मिक कार्यों तक सीमित होता था। उन्होंने धार्मिक संस्थानों को सामाजिक कार्यों से जोड़ा। यही कारण है कि वह देशभर में लोकप्रिय हुए। जयेन्द्र सरस्वती का आंदोलन समाज के सबसे निचले स्तर पर खड़े लोगों को मदद पहुंचाने के लिए था। पहले मठ कांचीपुरम और राज्य के भीतर तक सीमित था। वह इसे उत्तर-पूर्वी राज्यों तक ले गए। वहां उन्होंने स्कूल और अस्पताल शुरू किए। उन्होंने मठ को समाज से जोड़ा, सार्वजनिक मामलों में रुचि ली और दूसरे धर्मों के नेताओं से भी अच्छे संबंध स्थापित किए।[1]

अयोध्या विवाद हल हेतु प्रयासरत

स्वामी जयेन्द्र सरस्वती अयोध्या विवाद को सुलझाने की कोशिश कर रहे थे। एक समय वह अयोध्या विवाद के हल के लिए काफी सक्रिय थे। भूतपूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी अयोध्या मसले के समाधान के लिए शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती की सराहना की थी। जयेन्द्र सरस्वती ने 2010 में ये दावा किया था कि वाजपेयी सरकार अयोध्या विवाद के समाधान के करीब पहुंच गई थी। वह संसद में कानून बनाना चाहती थी।

मठ स्थापना

आदि शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में मठ स्थापित किए थे[2]-

शृंगेरी मठ

शृंगेरी शारदा पीठ कर्नाटक के चिकमंगलुर में है। यहां दीक्षा लेने वाले संयासियों के नाम के बाद 'सरस्वती', 'भारती', 'पुरी' लगाया जाता है।

गोवर्धन मठ

गोवर्धन मठ ओडिशा के पुरी में है। इसका संबंध भगवान जगन्नाथ मंदिर से है। इसमें बिहार से ओडिशा व अरुणाचल प्रदेश तक का भाग आता है।

शारदा मठ

द्वारका मठ को शारदा मठ कहा जाता है। यह गुजरात में द्वारकाधाम में है। यहां दीक्षा लेने वाले के नाम के बाद 'तीर्थ' और 'आश्रम' लिखा जाता है।

ज्योतिर्मठ

ज्योतिर्मठ उत्तराखण्ड के बद्रीनाथ में है। यहां दीक्षा लेने वाले के नाम के बाद 'गिरि', 'पर्वत' और 'सागर' का विशेषण लगाया जाता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती (हिंदी) navbharattimes.indiatimes.com। अभिगमन तिथि: 12 अप्रॅल, 2020।
  2. जयेन्द्र सरस्वती 19 साल की उम्र में शंकराचार्य बने थे (हिंदी) bhaskar.com। अभिगमन तिथि: 12 अप्रॅल, 2020।

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