"मीराबाई की रेती": अवतरणों में अंतर
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*[[गंगा मंदिर]] से कुछ ही आगे कुछ वर्षों पूर्व तक वहां रेतीला क्षेत्र था, जो 'मीरा की रेती' के नाम से प्रसिद्ध है। | *[[गंगा मंदिर]] से कुछ ही आगे कुछ वर्षों पूर्व तक वहां रेतीला क्षेत्र था, जो 'मीरा की रेती' के नाम से प्रसिद्ध है। | ||
*वहां कभी भगवान [[श्रीकृष्ण]] की प्रेम की दीवानी और [[उदयपुर]] राजघराने की पुत्रवधू [[मीरां|मीराबाई]] | *वहां कभी भगवान [[श्रीकृष्ण]] की प्रेम की दीवानी और [[उदयपुर]] राजघराने की पुत्रवधू [[मीरां|मीराबाई]] घरबार छोड़ने से पूर्व [[कार्तिक]] [[मास]] में लगने वाले मेले में [[गंगा स्नान]] करने आती थीं और हर [[वर्ष]] अपने डेरे इसी रेतीले भाग में लगाती थीं| | ||
*भगवान की भक्त मीराबाई इस पावन [[तीर्थ]] [[गढ़मुक्तेश्वर]] की पावनता से इतनी प्रभावित थीं कि कुछ दिनों तक यहीं ठहर कर भक्ति भाव से पतितपावनी [[गंगा]] में स्नान कर पाठ-पूजा और दान करती थीं| | *भगवान की भक्त मीराबाई इस पावन [[तीर्थ]] [[गढ़मुक्तेश्वर]] की पावनता से इतनी प्रभावित थीं कि कुछ दिनों तक यहीं ठहर कर भक्ति भाव से पतितपावनी [[गंगा]] में स्नान कर पाठ-पूजा और दान करती थीं| | ||
*एक बार उन्होंने एक | *एक बार उन्होंने एक बाग़ ख़रीद कर गढ़मुक्तेश्वर के पंडाओं को दान में दिया था, जो 'शुक्लों के बाग़' के नाम से जाना जाता था। | ||
*अब उस बाग़ का कोई मालिक न होने के कारण नगरपालिका के अधिकार में है। | *अब उस बाग़ का कोई मालिक न होने के कारण नगरपालिका के अधिकार में है। | ||
*भगवान श्रीकृष्ण की परम भक्त मीराबाई ने गंगा की इस रेती में एक मंदिर भी बनवाया था, जिसे [[मुग़ल]] शासन काल के दुर्दांत शासक [[औरंगजेब]] ने धराशायी कर दिया था और वह स्थान [[मुस्लिम]] | *भगवान श्रीकृष्ण की परम भक्त मीराबाई ने गंगा की इस रेती में एक मंदिर भी बनवाया था, जिसे [[मुग़ल]] शासन काल के दुर्दांत शासक [[औरंगजेब]] ने धराशायी कर दिया था और वह स्थान [[मुस्लिम]] फ़कीर के हवाले कर दिया था। | ||
*[[कार्तिक]] [[मास]] की [[पूर्णिमा]] पर [[गंगा]] किनारे लगने वाला 'विशाल मेला' वहां से उखड़ने के बाद 'मीरा की रेती' में लगता है, जो लगभग एक माह तक चलता है। | *[[कार्तिक]] [[मास]] की [[पूर्णिमा]] पर [[गंगा]] किनारे लगने वाला 'विशाल मेला' वहां से उखड़ने के बाद 'मीरा की रेती' में लगता है, जो लगभग एक माह तक चलता है। | ||
*मीरा की रेती में लगने वाला मेला [[गुदडी़ मेला|गुदडी़]] के नाम से जाना जाता है | *मीरा की रेती में लगने वाला मेला [[गुदडी़ मेला|गुदडी़]] के नाम से जाना जाता है |
13:56, 2 जनवरी 2012 के समय का अवतरण
- गढ़मुक्तेश्वर के उत्तरी छोर पर मुक्तीश्वरनाथ का मंदिर है।
- उस मंदिर के मुख्य द्वार से पूर्व की ओर लगभग आधा किलोमीटर लम्बी सड़्क जाती है।
- गंगा मंदिर से कुछ ही आगे कुछ वर्षों पूर्व तक वहां रेतीला क्षेत्र था, जो 'मीरा की रेती' के नाम से प्रसिद्ध है।
- वहां कभी भगवान श्रीकृष्ण की प्रेम की दीवानी और उदयपुर राजघराने की पुत्रवधू मीराबाई घरबार छोड़ने से पूर्व कार्तिक मास में लगने वाले मेले में गंगा स्नान करने आती थीं और हर वर्ष अपने डेरे इसी रेतीले भाग में लगाती थीं|
- भगवान की भक्त मीराबाई इस पावन तीर्थ गढ़मुक्तेश्वर की पावनता से इतनी प्रभावित थीं कि कुछ दिनों तक यहीं ठहर कर भक्ति भाव से पतितपावनी गंगा में स्नान कर पाठ-पूजा और दान करती थीं|
- एक बार उन्होंने एक बाग़ ख़रीद कर गढ़मुक्तेश्वर के पंडाओं को दान में दिया था, जो 'शुक्लों के बाग़' के नाम से जाना जाता था।
- अब उस बाग़ का कोई मालिक न होने के कारण नगरपालिका के अधिकार में है।
- भगवान श्रीकृष्ण की परम भक्त मीराबाई ने गंगा की इस रेती में एक मंदिर भी बनवाया था, जिसे मुग़ल शासन काल के दुर्दांत शासक औरंगजेब ने धराशायी कर दिया था और वह स्थान मुस्लिम फ़कीर के हवाले कर दिया था।
- कार्तिक मास की पूर्णिमा पर गंगा किनारे लगने वाला 'विशाल मेला' वहां से उखड़ने के बाद 'मीरा की रेती' में लगता है, जो लगभग एक माह तक चलता है।
- मीरा की रेती में लगने वाला मेला गुदडी़ के नाम से जाना जाता है
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