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* [[मुसलमान]] पहलवान आज भी 'या अली' कहकर कुश्ती लड़ते हैं।<ref>पुस्तक- हिन्दी साहित्य कोश भाग-2 | सम्पादक- धीरेंद्र वर्मा (प्रधान) | प्रकाशन- ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी</ref> | * [[मुसलमान]] पहलवान आज भी 'या अली' कहकर कुश्ती लड़ते हैं।<ref>पुस्तक- हिन्दी साहित्य कोश भाग-2 | सम्पादक- धीरेंद्र वर्मा (प्रधान) | प्रकाशन- ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी | पृष्ठ संख्या- 27</ref> | ||
11:36, 4 मई 2015 के समय का अवतरण
अली मोहम्मद साहब के मित्र (सोहाबी) थे।
- अली रिश्ते में मोहम्मद के चाचा और दामाद भी थे। उन्हें 'खलीफ़ा' का भी पद प्राप्त हुआ था।
- अली के व्यक्तित्व में वीरता और दानशीलता के गुणों का समावेश था।
- अली की वीरता की अनेक कहानियाँ प्रचलित है।
- उदाहरणार्थ खैबर के क़िले के फाटक को इन्होंने उखाड़कर फेंक दिया था।
- मुसलमान पहलवान आज भी 'या अली' कहकर कुश्ती लड़ते हैं।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ पुस्तक- हिन्दी साहित्य कोश भाग-2 | सम्पादक- धीरेंद्र वर्मा (प्रधान) | प्रकाशन- ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी | पृष्ठ संख्या- 27
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