"वाराणसी की विभूतियाँ": अवतरणों में अंतर
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वाराणसी में प्राचीन काल से समय-समय पर अनेक | '''[[वाराणसी]]''' में प्राचीन काल से समय-समय पर अनेक महान् विभूतियों का प्रादुर्भाव या वास होता रहा हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं- | ||
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| पंडित रविशंकर (जन्म- [[7 अप्रॅल]], [[1920]] [[बनारस]]) विश्व में भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्कृष्टता के सबसे बड़े उदघोषक हैं। एक सितार वादक के रूप में उन्होंने ख्याति अर्जित की है। रवि शंकर और सितार मानों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। वह इस सदी के सबसे | | पंडित रविशंकर (जन्म- [[7 अप्रॅल]], [[1920]] [[बनारस]]) विश्व में भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्कृष्टता के सबसे बड़े उदघोषक हैं। एक सितार वादक के रूप में उन्होंने ख्याति अर्जित की है। रवि शंकर और सितार मानों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। वह इस [[सदी]] के सबसे महान् संगीतज्ञों में गिने जाते हैं। [[रवि शंकर|.... और पढ़ें]] | ||
| [[चित्र:Pandit-Ravi-Shankar.jpg|center|70px|पंडित रविशंकर]] | | [[चित्र:Pandit-Ravi-Shankar.jpg|center|70px|पंडित रविशंकर]] | ||
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| <center>[[मदनमोहन मालवीय|पंडित मदनमोहन मालवीय]]</center> | | <center>[[मदनमोहन मालवीय|पंडित मदनमोहन मालवीय]]</center> | ||
| पंडित मदन मोहन मालवीय (जन्म- [[25 दिसम्बर]], | | पंडित मदन मोहन मालवीय (जन्म- [[25 दिसम्बर]], 1861, [[इलाहाबाद]]; मृत्यु- [[12 नवम्बर]], [[1946]]) महान् स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और शिक्षाविद ही नहीं, बल्कि एक बड़े समाज सुधारक भी थे। इतिहासकार वीसी साहू के अनुसार हिन्दू राष्ट्रवाद के समर्थक मदन मोहन मालवीय देश से जातिगत बेड़ियों को तोड़ना चाहते थे। उन्होंने दलितों के मन्दिरों में प्रवेश निषेध की बुराई के ख़िलाफ़ देशभर में आंदोलन चलाया। [[मदनमोहन मालवीय|.... और पढ़ें]] | ||
| [[चित्र:Pandit-Madan-Mohan-Malaviya.jpg|center|70px|पंडित मदनमोहन मालवीय]] | | [[चित्र:Pandit-Madan-Mohan-Malaviya.jpg|center|70px|पंडित मदनमोहन मालवीय]] | ||
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| <center>[[हज़ारी प्रसाद द्विवेदी]]</center> | | <center>[[हज़ारी प्रसाद द्विवेदी]]</center> | ||
| '''डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी''' (जन्म- [[19 अगस्त]], [[1907]] ई., गाँव 'आरत दुबे का छपरा', बलिया ज़िला, [[भारत]]; मृत्यु- | | '''डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी''' (जन्म- [[19 अगस्त]], [[1907]] ई., गाँव 'आरत दुबे का छपरा', बलिया ज़िला, [[भारत]]; मृत्यु- सन् [[1978]] ई.) [[हिन्दी]] के शीर्षस्थानीय साहित्यकारों में से हैं। वे उच्चकोटि के निबन्धकार, उपन्यास लेखक, आलोचक, चिन्तक तथा शोधकर्ता हैं। साहित्य के इन सभी क्षेत्रों में द्विवेदी जी अपनी प्रतिभा और विशिष्ट कर्तव्य के कारण विशेष यश के भागी हुए हैं। द्विवेदी जी का व्यक्तित्व गरिमामय, चित्तवृत्ति उदार और दृष्टिकोण व्यापक है। द्विवेदी जी की प्रत्येक रचना पर उनके इस व्यक्तित्व की छाप देखी जा सकती है। [[हज़ारी प्रसाद द्विवेदी|.... और पढ़ें]] | ||
| [[चित्र:Hazari Prasad Dwivedi.JPG|center|70px|हज़ारी प्रसाद द्विवेदी]] | | [[चित्र:Hazari Prasad Dwivedi.JPG|center|70px|हज़ारी प्रसाद द्विवेदी]] | ||
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| <center>[[तुलसीदास]]</center> | | <center>[[तुलसीदास]]</center> | ||
| गोस्वामी तुलसीदास 1497(1532?) - 1623 एक | | गोस्वामी तुलसीदास 1497(1532?) - 1623 एक महान् कवि थे। उनका जन्म राजापुर, (वर्तमान बाँदा ज़िला) [[उत्तर प्रदेश]] में हुआ था। तुलसी का बचपन बड़े कष्टों में बीता। माता-पिता दोनों चल बसे और इन्हें भीख मांगकर अपना पेट पालना पड़ा था। इसी बीच इनका परिचय राम-भक्त साधुओं से हुआ और इन्हें ज्ञानार्जन का अनुपम अवसर मिल गया। [[तुलसीदास|.... और पढ़ें]] | ||
| [[चित्र:Tulsidas.jpg|center|70px|गोस्वामी तुलसीदास]] | | [[चित्र:Tulsidas.jpg|center|70px|गोस्वामी तुलसीदास]] | ||
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| <center>[[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]]</center> | | <center>[[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]]</center> | ||
| भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म [[काशी]] नगरी के प्रसिद्ध 'सेठ अमीचंद' के वंश में [[9 सितम्बर]] | | भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म [[काशी]] नगरी के प्रसिद्ध 'सेठ अमीचंद' के वंश में [[9 सितम्बर]] सन् 1850 को हुआ। इनके पिता 'बाबू गोपाल चन्द्र' भी एक कवि थे। इनके घराने में वैभव एवं प्रतिष्ठा थी। जब इनकी अवस्था मात्र 5 वर्ष की थी, इनकी माता चल बसी और दस वर्ष की आयु में पिता जी भी चल बसे। भारतेन्दु जी विलक्षण प्रतिभा के व्यक्ति थे। इन्होंने अपने परिस्थितियों से गम्भीर प्रेरणा ली। इनके मित्र मण्डली में बड़े-बड़े लेखक, कवि एवं विचारक थे, जिनकी बातों से ये प्रभावित थे। इनके पास विपुल धनराशि थी, जिसे इन्होंने साहित्यकारों की सहायता हेतु मुक्त हस्त से दान किया। [[भारतेन्दु हरिश्चन्द्र|.... और पढ़ें]] | ||
| [[चित्र:Bhartendu-Harishchandra-3.jpg|center|70px|भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]] | | [[चित्र:Bhartendu-Harishchandra-3.jpg|center|70px|भारतेन्दु हरिश्चन्द्र]] | ||
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| <center>[[जयशंकर प्रसाद]]</center> | | <center>[[जयशंकर प्रसाद]]</center> | ||
| महाकवि जयशंकर प्रसाद (जन्म- [[30 जनवरी]], [[1889]] ई.,[[वाराणसी]], [[उत्तर प्रदेश]], मृत्यु- [[15 नवम्बर]], | | महाकवि जयशंकर प्रसाद (जन्म- [[30 जनवरी]], [[1889]] ई.,[[वाराणसी]], [[उत्तर प्रदेश]], मृत्यु- [[15 नवम्बर]], सन् [[1937]]) हिन्दी नाट्य जगत और कथा साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। कथा साहित्य के क्षेत्र में भी उनकी देन महत्त्वपूर्ण है। '''भावना-प्रधान कहानी लिखने वालों में जयशंकर प्रसाद अनुपम थे।''' [[जयशंकर प्रसाद|.... और पढ़ें]] | ||
| [[चित्र:Jaishankar-Prasad.jpg|center|70px|जयशंकर प्रसाद]] | | [[चित्र:Jaishankar-Prasad.jpg|center|70px|जयशंकर प्रसाद]] | ||
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| <center>[[प्रेमचंद]]</center> | | <center>[[प्रेमचंद]]</center> | ||
| [[भारत]] के उपन्यास सम्राट '''मुंशी प्रेमचंद''' (जन्म- [[31 जुलाई]], [[1880]] - मृत्यु- [[8 अक्टूबर]], [[1936]]) के युग का विस्तार | | [[भारत]] के उपन्यास सम्राट '''मुंशी प्रेमचंद''' (जन्म- [[31 जुलाई]], [[1880]] - मृत्यु- [[8 अक्टूबर]], [[1936]]) के युग का विस्तार सन् 1880 से 1936 तक है। यह कालखण्ड भारत के इतिहास में बहुत महत्त्व का है। इस युग में भारत का स्वतंत्रता-संग्राम नई मंज़िलों से गुज़रा। [[प्रेमचंद|.... और पढ़ें]] | ||
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| रामचन्द्र शुक्ल जी का जन्म बस्ती ज़िले के अगोना नामक गाँव में | | रामचन्द्र शुक्ल जी का जन्म बस्ती ज़िले के अगोना नामक गाँव में सन् 1884 ई. में हुआ था। सन् [[1888]] ई. में वे अपने पिता के साथ राठ हमीरपुर गये तथा वहीं पर विद्याध्ययन प्रारम्भ किया। सन् [[1892]] ई. में उनके पिता की नियुक्ति [[मिर्ज़ापुर]] में सदर क़ानूनगो के रूप में हो गई और वे पिता के साथ मिर्ज़ापुर आ गये। [[रामचन्द्र शुक्ल|.... और पढ़ें]] | ||
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11:28, 1 अगस्त 2017 के समय का अवतरण
वाराणसी में प्राचीन काल से समय-समय पर अनेक महान् विभूतियों का प्रादुर्भाव या वास होता रहा हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
नाम | विवरण | चित्र |
---|---|---|
भारत रत्न सम्मानित बिस्मिल्ला ख़ाँ (जन्म- 21 मार्च 1916 - मृत्यु- 21 अगस्त, 2006 ) एक प्रख्यात शहनाई वादक थे। 1969 में एशियाई संगीत सम्मेलन के रोस्टम पुरस्कार तथा अनेक अन्य पुरस्कारों से सम्मानित बिस्मिल्ला खाँ ने शहनाई को भारत के बाहर एक पहचान प्रदान किया है। .... और पढ़ें | ![]() | |
पंडित रविशंकर (जन्म- 7 अप्रॅल, 1920 बनारस) विश्व में भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्कृष्टता के सबसे बड़े उदघोषक हैं। एक सितार वादक के रूप में उन्होंने ख्याति अर्जित की है। रवि शंकर और सितार मानों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं। वह इस सदी के सबसे महान् संगीतज्ञों में गिने जाते हैं। .... और पढ़ें | ![]() | |
पंडित मदन मोहन मालवीय (जन्म- 25 दिसम्बर, 1861, इलाहाबाद; मृत्यु- 12 नवम्बर, 1946) महान् स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और शिक्षाविद ही नहीं, बल्कि एक बड़े समाज सुधारक भी थे। इतिहासकार वीसी साहू के अनुसार हिन्दू राष्ट्रवाद के समर्थक मदन मोहन मालवीय देश से जातिगत बेड़ियों को तोड़ना चाहते थे। उन्होंने दलितों के मन्दिरों में प्रवेश निषेध की बुराई के ख़िलाफ़ देशभर में आंदोलन चलाया। .... और पढ़ें | ![]() | |
डॉ. हज़ारी प्रसाद द्विवेदी (जन्म- 19 अगस्त, 1907 ई., गाँव 'आरत दुबे का छपरा', बलिया ज़िला, भारत; मृत्यु- सन् 1978 ई.) हिन्दी के शीर्षस्थानीय साहित्यकारों में से हैं। वे उच्चकोटि के निबन्धकार, उपन्यास लेखक, आलोचक, चिन्तक तथा शोधकर्ता हैं। साहित्य के इन सभी क्षेत्रों में द्विवेदी जी अपनी प्रतिभा और विशिष्ट कर्तव्य के कारण विशेष यश के भागी हुए हैं। द्विवेदी जी का व्यक्तित्व गरिमामय, चित्तवृत्ति उदार और दृष्टिकोण व्यापक है। द्विवेदी जी की प्रत्येक रचना पर उनके इस व्यक्तित्व की छाप देखी जा सकती है। .... और पढ़ें | ||
महात्मा कबीरदास के जन्म के समय में भारत की राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक दशा शोचनीय थी। एक तरफ मुसलमान शासकों की धर्मांन्धता से जनता परेशान थी और दूसरी तरफ हिन्दू धर्म के कर्मकांड, विधान और पाखंड से धर्म का ह्रास हो रहा था। जनता में भक्ति- भावनाओं का सर्वथा अभाव था। पंडितों के पाखंडपूर्ण वचन समाज में फैले थे। ऐसे संघर्ष के समय में, कबीरदास का प्रार्दुभाव हुआ। .... और पढ़ें | ![]() | |
गोस्वामी तुलसीदास 1497(1532?) - 1623 एक महान् कवि थे। उनका जन्म राजापुर, (वर्तमान बाँदा ज़िला) उत्तर प्रदेश में हुआ था। तुलसी का बचपन बड़े कष्टों में बीता। माता-पिता दोनों चल बसे और इन्हें भीख मांगकर अपना पेट पालना पड़ा था। इसी बीच इनका परिचय राम-भक्त साधुओं से हुआ और इन्हें ज्ञानार्जन का अनुपम अवसर मिल गया। .... और पढ़ें | ![]() | |
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म काशी नगरी के प्रसिद्ध 'सेठ अमीचंद' के वंश में 9 सितम्बर सन् 1850 को हुआ। इनके पिता 'बाबू गोपाल चन्द्र' भी एक कवि थे। इनके घराने में वैभव एवं प्रतिष्ठा थी। जब इनकी अवस्था मात्र 5 वर्ष की थी, इनकी माता चल बसी और दस वर्ष की आयु में पिता जी भी चल बसे। भारतेन्दु जी विलक्षण प्रतिभा के व्यक्ति थे। इन्होंने अपने परिस्थितियों से गम्भीर प्रेरणा ली। इनके मित्र मण्डली में बड़े-बड़े लेखक, कवि एवं विचारक थे, जिनकी बातों से ये प्रभावित थे। इनके पास विपुल धनराशि थी, जिसे इन्होंने साहित्यकारों की सहायता हेतु मुक्त हस्त से दान किया। .... और पढ़ें | ![]() | |
महाकवि जयशंकर प्रसाद (जन्म- 30 जनवरी, 1889 ई.,वाराणसी, उत्तर प्रदेश, मृत्यु- 15 नवम्बर, सन् 1937) हिन्दी नाट्य जगत और कथा साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। कथा साहित्य के क्षेत्र में भी उनकी देन महत्त्वपूर्ण है। भावना-प्रधान कहानी लिखने वालों में जयशंकर प्रसाद अनुपम थे। .... और पढ़ें | ![]() | |
भारत के उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद (जन्म- 31 जुलाई, 1880 - मृत्यु- 8 अक्टूबर, 1936) के युग का विस्तार सन् 1880 से 1936 तक है। यह कालखण्ड भारत के इतिहास में बहुत महत्त्व का है। इस युग में भारत का स्वतंत्रता-संग्राम नई मंज़िलों से गुज़रा। .... और पढ़ें | ![]() | |
खड़ी बोली को काव्य भाषा के पद पर प्रतिष्ठित करने वाले कवियों में अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (जन्म- 15 अप्रैल, 1865, मृत्यु- 16 मार्च, 1947) का नाम बहुत आदर से लिया जाता है। उन्नीसवीं शताब्दी के अन्तिम दशक में 1890 ई. के आस-पास अयोध्यासिंह उपाध्याय ने साहित्य सेवा के क्षेत्र में पदार्पण किया। .... और पढ़ें | ![]() | |
रामचन्द्र शुक्ल जी का जन्म बस्ती ज़िले के अगोना नामक गाँव में सन् 1884 ई. में हुआ था। सन् 1888 ई. में वे अपने पिता के साथ राठ हमीरपुर गये तथा वहीं पर विद्याध्ययन प्रारम्भ किया। सन् 1892 ई. में उनके पिता की नियुक्ति मिर्ज़ापुर में सदर क़ानूनगो के रूप में हो गई और वे पिता के साथ मिर्ज़ापुर आ गये। .... और पढ़ें | ![]() | |
झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर, 1828 को काशी के पुण्य व पवित्र क्षेत्र असीघाट, वाराणसी में हुआ था। इनके पिता का नाम 'मोरोपंत तांबे' और माता का नाम 'भागीरथी बाई' था। इनका बचपन का नाम 'मणिकर्णिका' रखा गया परन्तु प्यार से मणिकर्णिका को 'मनु' पुकारा जाता था। मनु की अवस्था अभी चार-पाँच वर्ष ही थी कि उसकी माँ का देहान्त हो गया। .... और पढ़ें | ![]() | |
ईसा की सातवी शताब्दी में शंकर के रूप में स्वयं भगवान शिव का अवतार हुआ था। आदि शंकराचार्य जिन्हें 'शंकर भगवद्पादाचार्य' के नाम से भी जाना जाता है, वेदांत के अद्वैत मत के प्रणेता थे। अवतारवाद के अनुसार, ईश्वर तब अवतार लेता है, जब धर्म की हानि होती है। धर्म और समाज को व्यवस्थित करने के लिए ही आशुतोष शिव का आगमन दक्षिण-भारत के केरल राज्य के कालडी़ ग्राम में हुआ था । .... और पढ़ें | ![]() |
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