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*दार्व के निवासियों ने [[युधिष्ठिर]] के [[राजसूय यज्ञ]] में उन्हें उपहार भेंट किए थे- | *दार्व के निवासियों ने [[युधिष्ठिर]] के [[राजसूय यज्ञ]] में उन्हें उपहार भेंट किए थे- | ||
'कैराता दरदा: दार्वा: शूरावैयमकास्तथा औदुंबरादुर्वभागा: पारदा बाह्लिकै: सह'<ref>महाभारत, सभापर्व 52, 13.</ref> | 'कैराता दरदा: दार्वा: शूरावैयमकास्तथा औदुंबरादुर्वभागा: पारदा बाह्लिकै: सह'<ref>महाभारत, सभापर्व 52, 13.</ref> | ||
*दार्व देश का अभिज्ञान [[जम्मू]] ([[कश्मीर]]) के 'डुग्गर' के इलाके से किया गया है। | *दार्व देश का अभिज्ञान [[जम्मू]] ([[कश्मीर]]) के '[[डुग्गर]]' के इलाके से किया गया है। | ||
*डुग्गर प्राचीन काल से ही डोगरा [[राजपूत|राजपूतों]] का मूल स्थान रहा है। | *डुग्गर प्राचीन काल से ही डोगरा [[राजपूत|राजपूतों]] का मूल स्थान रहा है। | ||
*सम्भवत: डुग्गर, दार्व का अपभ्रंश हो सकता है। | *सम्भवत: डुग्गर, दार्व का अपभ्रंश हो सकता है। |
08:43, 14 सितम्बर 2012 के समय का अवतरण
दार्व देश को पाण्डव अर्जुन ने अपनी दिग्विजय यात्रा के प्रसंग में जीता था-
'ततस्त्रिगर्ता: कौंतेयं दार्वा: कोकनदास्तथा, क्षत्रिया बहवो राजन्नुपावर्तन्त सर्वश:'[1]
- दार्व के निवासियों ने युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में उन्हें उपहार भेंट किए थे-
'कैराता दरदा: दार्वा: शूरावैयमकास्तथा औदुंबरादुर्वभागा: पारदा बाह्लिकै: सह'[2]
- दार्व देश का अभिज्ञान जम्मू (कश्मीर) के 'डुग्गर' के इलाके से किया गया है।
- डुग्गर प्राचीन काल से ही डोगरा राजपूतों का मूल स्थान रहा है।
- सम्भवत: डुग्गर, दार्व का अपभ्रंश हो सकता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
ऐतिहासिक स्थानावली |लेखक: विजयेन्द्र कुमार माथुर |प्रकाशक: राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर |पृष्ठ संख्या: 432 |
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