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[[लखनऊ]] | [[लखनऊ]] ग्लोब वाले पार्क के दक्षिण में उपेक्षित सा पड़ा हुआ एक केसरिया फाटक है जिस पर '''शेरों का एक जोड़ा''' बैठा हुआ है। इसी वजह से इस डेढ़ सौ साल पुराने द्वार को 'शेर दरवाज़ा' कहा जाता है। [[1857 का स्वतंत्रता संग्राम|गदर]] से पहले इस दरवाज़े के साथ ख़ास बाज़ार की मशहूर बस्ती थी, जहां बारह इमामों की एक दरगाह भी हुआ करती थी, जिसे बादशाह ने '''नसीरूद्दीन हैदर''' के अहद में बनवाया था, लेकिन अब उस दरगाह और बाज़ार का नामोनिशान भी नहीं रह गया है। | ||
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शेर | '''शेर दरवाज़ा''' [[1857 का स्वतंत्रता संग्राम|सन् 1857 की जनक्रांति]] का केंद्र बिंदु रहा है। ब्रिटिश सेनाधिकारी 'ब्रिगेडियर जनरल नील' को उसी द्वार के पीछे क्रांतिकारियों ने मार डाला था। शेर दरवाज़े से 15 गज की दूरी पर कभी पत्थर का एक स्मारक बना हुआ करता था जो जनरल नील के जख्मी होकर गिरने का स्थान था। अंग्रेजी शासन काल में जनरल नील की शहादत का कर्ज अदा करने के लिए ब्रिटिश पदाधिकारियों ने इस द्वार को 'नील गेट' कहना शुरू कर दिया था। हजरतगंज से आकर [[छतर मंज़िल |छतर मंजिलों]] के बीच से जाने वाली सड़क को '''नील रोड''' का नाम दिया गया था। | ||
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शेर दरवाज़ा आज भी शेर दरवाज़ा है क्योंकि सिंहद्वार पर बने ये शेर हिंदुस्तानी सपूतों की दास्तान से जुड़े हैं जिन्होंने गदर में अपनी बहादुरी के कमाल दिखाए। [[26 सितंबर]] सन् 1[[1857|857]] को मद्रास रेजीमेंट का जनरल नील जब [[मोती महल लखनऊ|मोती महल]] से [[रेज़ीडेंसी संग्रहालय लखनऊ|रेज़ीडेंसी]] की तरफ जा रहा था, एक हिंदुस्तानी ने उस पर बंदूक से वार कर दिया। जनरल नील उसी जगह गिर गया। मरने के बाद उसे बेली गारद के अहाते में दफना दिया गया था। | |||
11:01, 3 मार्च 2014 का अवतरण

लखनऊ ग्लोब वाले पार्क के दक्षिण में उपेक्षित सा पड़ा हुआ एक केसरिया फाटक है जिस पर शेरों का एक जोड़ा बैठा हुआ है। इसी वजह से इस डेढ़ सौ साल पुराने द्वार को 'शेर दरवाज़ा' कहा जाता है। गदर से पहले इस दरवाज़े के साथ ख़ास बाज़ार की मशहूर बस्ती थी, जहां बारह इमामों की एक दरगाह भी हुआ करती थी, जिसे बादशाह ने नसीरूद्दीन हैदर के अहद में बनवाया था, लेकिन अब उस दरगाह और बाज़ार का नामोनिशान भी नहीं रह गया है।
इतिहास
शेर दरवाज़ा सन् 1857 की जनक्रांति का केंद्र बिंदु रहा है। ब्रिटिश सेनाधिकारी 'ब्रिगेडियर जनरल नील' को उसी द्वार के पीछे क्रांतिकारियों ने मार डाला था। शेर दरवाज़े से 15 गज की दूरी पर कभी पत्थर का एक स्मारक बना हुआ करता था जो जनरल नील के जख्मी होकर गिरने का स्थान था। अंग्रेजी शासन काल में जनरल नील की शहादत का कर्ज अदा करने के लिए ब्रिटिश पदाधिकारियों ने इस द्वार को 'नील गेट' कहना शुरू कर दिया था। हजरतगंज से आकर छतर मंजिलों के बीच से जाने वाली सड़क को नील रोड का नाम दिया गया था।
वर्तमान में
शेर दरवाज़ा आज भी शेर दरवाज़ा है क्योंकि सिंहद्वार पर बने ये शेर हिंदुस्तानी सपूतों की दास्तान से जुड़े हैं जिन्होंने गदर में अपनी बहादुरी के कमाल दिखाए। 26 सितंबर सन् 1857 को मद्रास रेजीमेंट का जनरल नील जब मोती महल से रेज़ीडेंसी की तरफ जा रहा था, एक हिंदुस्तानी ने उस पर बंदूक से वार कर दिया। जनरल नील उसी जगह गिर गया। मरने के बाद उसे बेली गारद के अहाते में दफना दिया गया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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