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'''प्रतापगढ़''' [[राजस्थान]] के चित्तौड़गढ़ ज़िले में अवस्थित है। महाराणा कुम्भा के भाई क्षेमकर्ण के पुत्र सूरजमल ने देवलिया राज्य की स्थापना की थी। इस राज्य का अधीनस्थ क्षेत्र [[माही नदी]] के तट पर बसा होने से इसे कांठल प्रदेश के नाम से भी जाना जाता है। | [[चित्र:Surajpole-Pratapgarh.jpg|thumb|250px|सूरज पोल, प्रतापगढ़]] | ||
*महाराणा प्रतापसिंह ने घोघरिया खेड़ा के स्थान पर विक्रम संवत् 1755 (1698 ई.) में प्रतापसिंह को बसाकर इसे देवलिया राज्य की राजधानी बनाया। अतः इस नगर को देवलिया प्रतापगढ़ नाम से पुकारा जाता था। | '''प्रतापगढ़''' [[राजस्थान]] के चित्तौड़गढ़ ज़िले में अवस्थित है। [[महाराणा कुम्भा]] के भाई क्षेमकर्ण के पुत्र सूरजमल ने देवलिया राज्य की स्थापना की थी। इस राज्य का अधीनस्थ क्षेत्र [[माही नदी]] के तट पर बसा होने से इसे कांठल प्रदेश के नाम से भी जाना जाता है। | ||
*देवलिया प्रतापगढ़ राज्य के शासक सूर्यवंशी क्षत्रिय थे। उनका इतिहास लम्बे समय तक [[मेवाड़]] राज्य के सिसोदिया वंश से जुड़ा रहा। | *महाराणा प्रतापसिंह ने घोघरिया खेड़ा के स्थान पर [[विक्रम संवत्]] 1755 (1698 ई.) में प्रतापसिंह को बसाकर इसे देवलिया राज्य की राजधानी बनाया। अतः इस नगर को देवलिया प्रतापगढ़ नाम से पुकारा जाता था। | ||
*देवलिया प्रतापगढ़ राज्य के शासक [[सूर्य वंश|सूर्यवंशी]] क्षत्रिय थे। उनका इतिहास लम्बे समय तक [[मेवाड़]] राज्य के सिसोदिया वंश से जुड़ा रहा। | |||
*प्रतापगढ़ के महारावल सालिमसिंह ने विक्रम संवत् 1815 में शहर के चारों ओर कोट बनवाया था, जिससे छः दरवाज़े थे। | *प्रतापगढ़ के महारावल सालिमसिंह ने विक्रम संवत् 1815 में शहर के चारों ओर कोट बनवाया था, जिससे छः दरवाज़े थे। | ||
*इस नगर के दक्षिण में पार्श्वनाथ का [[जैन मंदिर]], दीपेश्वर तथा गुप्तेश्वर के शिव मंदिर हैं। | *इस नगर के दक्षिण में पार्श्वनाथ का [[जैन मंदिर]], दीपेश्वर तथा गुप्तेश्वर के शिव मंदिर हैं। | ||
*दीपेश्वर मंदिर का निर्माण महारावल सामंतसिंह के पुत्र दीपसिंह ने करवाया था। दीपेश्वर मन्दिर के सम्मुख ही महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित दीप स्तम्भ है। | *दीपेश्वर मंदिर का निर्माण महारावल सामंतसिंह के पुत्र दीपसिंह ने करवाया था। दीपेश्वर मन्दिर के सम्मुख ही [[अहिल्याबाई होल्कर|महारानी अहिल्याबाई होल्कर]] द्वारा निर्मित दीप स्तम्भ है। | ||
*यहाँ जैन व वैष्णव मन्दिर पर्याप्त संख्या में विद्यमान हैं, इसलिए इसे धर्मनगरी कहा जाता है। प्रतापगढ़ थेंवा कला के लिए प्रसिद्ध है। | *यहाँ जैन व वैष्णव मन्दिर पर्याप्त संख्या में विद्यमान हैं, इसलिए इसे धर्मनगरी कहा जाता है। प्रतापगढ़ थेंवा कला के लिए प्रसिद्ध है। | ||
*प्रतापगढ़ के नजदीक ही धरियावद का क़िला है। इस क़िले को महाराणा विजयसिंह ने 1738 ई. में निर्मित करवाया था। | *प्रतापगढ़ के नजदीक ही धरियावद का क़िला है। इस क़िले को महाराणा विजयसिंह ने 1738 ई. में निर्मित करवाया था। | ||
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प्रतापगढ़ राजस्थान के चित्तौड़गढ़ ज़िले में अवस्थित है। महाराणा कुम्भा के भाई क्षेमकर्ण के पुत्र सूरजमल ने देवलिया राज्य की स्थापना की थी। इस राज्य का अधीनस्थ क्षेत्र माही नदी के तट पर बसा होने से इसे कांठल प्रदेश के नाम से भी जाना जाता है।
- महाराणा प्रतापसिंह ने घोघरिया खेड़ा के स्थान पर विक्रम संवत् 1755 (1698 ई.) में प्रतापसिंह को बसाकर इसे देवलिया राज्य की राजधानी बनाया। अतः इस नगर को देवलिया प्रतापगढ़ नाम से पुकारा जाता था।
- देवलिया प्रतापगढ़ राज्य के शासक सूर्यवंशी क्षत्रिय थे। उनका इतिहास लम्बे समय तक मेवाड़ राज्य के सिसोदिया वंश से जुड़ा रहा।
- प्रतापगढ़ के महारावल सालिमसिंह ने विक्रम संवत् 1815 में शहर के चारों ओर कोट बनवाया था, जिससे छः दरवाज़े थे।
- इस नगर के दक्षिण में पार्श्वनाथ का जैन मंदिर, दीपेश्वर तथा गुप्तेश्वर के शिव मंदिर हैं।
- दीपेश्वर मंदिर का निर्माण महारावल सामंतसिंह के पुत्र दीपसिंह ने करवाया था। दीपेश्वर मन्दिर के सम्मुख ही महारानी अहिल्याबाई होल्कर द्वारा निर्मित दीप स्तम्भ है।
- यहाँ जैन व वैष्णव मन्दिर पर्याप्त संख्या में विद्यमान हैं, इसलिए इसे धर्मनगरी कहा जाता है। प्रतापगढ़ थेंवा कला के लिए प्रसिद्ध है।
- प्रतापगढ़ के नजदीक ही धरियावद का क़िला है। इस क़िले को महाराणा विजयसिंह ने 1738 ई. में निर्मित करवाया था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख