"गुप्तकालीन साहित्य" के अवतरणों में अंतर
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | |||
[[गुप्त साम्राज्य|गुप्त काल]] को [[संस्कृत]] साहित्य का '''स्वर्ण युग''' माना जाता है। '''बार्नेट'''(Barnett) के अनुसार ‘प्राचीन भारत के इतिहास में गुप्त काल का वह महत्व है जो [[यूनान]] के इतिहास में पेरिक्लीयन(Periclean) युग का है।‘ '''स्मिथ''' ने गुप्त काल की तुलना ब्रिटिश इतिहास के 'एजिलाबेथन' तथा 'स्टुअर्ट' के कालों से की है। गुप्त काल को श्रेष्ठ कवियों का काल माना जाता है। इस काल के कवि को दो भागों में बांटा गया है,- | [[गुप्त साम्राज्य|गुप्त काल]] को [[संस्कृत]] साहित्य का '''स्वर्ण युग''' माना जाता है। '''बार्नेट'''(Barnett) के अनुसार ‘प्राचीन भारत के इतिहास में गुप्त काल का वह महत्व है जो [[यूनान]] के इतिहास में पेरिक्लीयन(Periclean) युग का है।‘ '''स्मिथ''' ने गुप्त काल की तुलना ब्रिटिश इतिहास के 'एजिलाबेथन' तथा 'स्टुअर्ट' के कालों से की है। गुप्त काल को श्रेष्ठ कवियों का काल माना जाता है। इस काल के कवि को दो भागों में बांटा गया है,- | ||
*प्रथम भाग में वे कवि आते है जिनके विषय में हमें अभिलेखों से जानकारी मिलती है हालांकि इनकी किसी भी कृति के विषय में जानकारी नहीं है। इस श्रेणी में हरिषेण, शाव(वीरसेन), वत्सभट्टि और वासुल आते हें। | *प्रथम भाग में वे कवि आते है जिनके विषय में हमें अभिलेखों से जानकारी मिलती है हालांकि इनकी किसी भी कृति के विषय में जानकारी नहीं है। इस श्रेणी में हरिषेण, शाव(वीरसेन), वत्सभट्टि और वासुल आते हें। | ||
*द्वितीय श्रेणी में वे कवि आते हैं जिनकी रचनाओं के बारे में हमें ज्ञान हैं, जैसे - [[कालिदास]], भारवि, भट्टि, मातृगुप्त, भर्तृश्रेष्ठ तथा विष्णु शर्मा आदि। | *द्वितीय श्रेणी में वे कवि आते हैं जिनकी रचनाओं के बारे में हमें ज्ञान हैं, जैसे - [[कालिदास]], भारवि, भट्टि, मातृगुप्त, भर्तृश्रेष्ठ तथा विष्णु शर्मा आदि। | ||
− | ====<u>हरिषेण</u>==== | + | ====<u>हरिषेण</u>==== |
+ | {{tocright}} | ||
महादयडनायक धु्रवभूति का पुत्र हरिषेण समुद्रगुप्त के समय में सान्धिविग्रहिक कुमारामात्य एवं महादण्डनायक के पद पर कार्यरत था। हरिषण की शैली के विषय में जानकारी प्रयाग स्तम्भ लेख से मिलती है। हरिषण द्वारा स्तम्भ लेख में प्रयुक्त छन्द कालिदास की शैली की याद दिलाते हैं।हरिषेणका पूरा लेख चंपू (गद्यपद्य-मिश्रित) शैल्ी का एक अनोखा उदाहरण है। | महादयडनायक धु्रवभूति का पुत्र हरिषेण समुद्रगुप्त के समय में सान्धिविग्रहिक कुमारामात्य एवं महादण्डनायक के पद पर कार्यरत था। हरिषण की शैली के विषय में जानकारी प्रयाग स्तम्भ लेख से मिलती है। हरिषण द्वारा स्तम्भ लेख में प्रयुक्त छन्द कालिदास की शैली की याद दिलाते हैं।हरिषेणका पूरा लेख चंपू (गद्यपद्य-मिश्रित) शैल्ी का एक अनोखा उदाहरण है। | ||
====<u>'''शाव(वीरसेन)'''</u>==== | ====<u>'''शाव(वीरसेन)'''</u>==== | ||
पंक्ति 13: | पंक्ति 13: | ||
इनके द्वारा रचित महाकाव्य - ‘ किरातार्जुनीयम्‘ महाभारत के वनपर्व पर आधारित है इसमे कुल 18 सर्ग है। | इनके द्वारा रचित महाकाव्य - ‘ किरातार्जुनीयम्‘ महाभारत के वनपर्व पर आधारित है इसमे कुल 18 सर्ग है। | ||
====<u>भट्टि</u>==== | ====<u>भट्टि</u>==== | ||
− | इनके द्वारा रचित ‘भट्टिकाव्य‘ को ‘रावणवध‘ भी कहा जाता है। रामायण की कथा पर आधारित इस काव्य | + | इनके द्वारा रचित ‘भट्टिकाव्य‘ को ‘रावणवध‘ भी कहा जाता है। रामायण की कथा पर आधारित इस काव्य में कुल 22 सर्ग तथा 1624 श्लोक हैं। |
− | में कुल 22 सर्ग तथा 1624 श्लोक हैं। | + | ==गुप्तकालीन नाटक एवं नाटककार== |
− | गुप्तकालीन नाटक एवं नाटककार | + | {| class="bharattable" border="1" |
− | नाटक | + | |- |
− | मालविकाग्निमित्रम् | + | ! नाटक |
− | विक्रमोर्वशीयम् | + | ! नाटककार |
− | अभिज्ञानशाकुन्तलम् कालिदास दुष्यंत तथा शकुन्तला की प्रणय कथा पर आधारित | + | ! नाटक का विषय |
− | मुद्राराक्षसम् | + | |- |
− | + | | [[मालविकाग्निमित्रम्]] | |
− | देवीचन्द्रगुप्तम विशाखदत्त इस ऐतिहासिक नाटक में चन्द्रगुप्त द्वारा शाकराज का वध पर | + | | [[कालिदास]] |
− | मृच्छकटिकम् | + | | अग्निमित्र एवं मालविका की प्रणय कथा पर आधारित है। |
− | + | |- | |
− | + | | विक्रमोर्वशीयम् | |
− | स्वप्नवासदत्तम् | + | | कालिदास |
− | + | | सम्राट पुरुरवा एवं उर्वशी अप्सरा की प्रणय कथा पर आधारित है। | |
− | + | |- | |
− | + | | अभिज्ञानशाकुन्तलम् | |
− | + | | कालिदास | |
− | + | | दुष्यंत तथा शकुन्तला की प्रणय कथा पर आधारित | |
− | मातृगुप्त | + | |- |
− | भर्तृभेण्ठ | + | | मुद्राराक्षसम् |
− | विष्णु शर्मा | + | | विशाखादत्त |
− | गुप्तकाल के धार्मिक ग्रंथ | + | | इस ऐतिहासिक नाटक में चन्द्रगुप्त मौर्य के मगध के सिंहासन पर बैठने की कथा वर्णन है। |
− | पुराण | + | |- |
− | स्मृतियां | + | | देवीचन्द्रगुप्तम |
− | गुप्तकालीन तकनीक | + | | विशाखदत्त |
− | रचनाकार | + | | इस ऐतिहासिक नाटक में चन्द्रगुप्त द्वारा शाकराज का वध पर ध्रव-स्वामिनी से विवाह का वर्णन है। |
− | चन्द्रगोमिन चन्द्र व्याकरण | + | |- |
− | अमर सिंह अमरकोष (संस्कृत का प्रमाणित कोष) | + | | मृच्छकटिकम् |
− | कामन्दक | + | | शूद्रक |
− | वात्स्यायन | + | | इसमें नायक चारुदत्त, नायिका वसंतसेना, राजा, ब्राह्मण, जुआरी, व्यापारी, वेश्या, चोर, धूर्तदास का वर्णन है। |
− | + | |- | |
− | विज्ञान | + | | स्वप्नवासदत्तम् |
− | वराहमिहिर | + | | भास |
− | आर्यभट्ट | + | | इसमें महाराज उदयन एवं वासवदत्ता की प्रेमकथा का वर्णन किया गया है। |
+ | |- | ||
+ | | प्रतिज्ञायौगंधरायणकम् | ||
+ | | भास | ||
+ | | महाराज उदयन के यौगंधरायण की सहायता से वासवदत्ता को उज्जयिनी से लेकर भागने का वर्णन है। | ||
+ | |- | ||
+ | | चारुदत्तम् | ||
+ | | भास | ||
+ | | इस नाटक का नायक चारुदत्त मूलतः भास की कल्पना है। | ||
+ | |- | ||
+ | |} | ||
+ | |||
+ | ====<u>मातृगुप्त</u>==== | ||
+ | इनके विषयमें जानकारी कल्हण के राजतरिंगिणी से मिलती है। संभवतः मातृगुप्त ने भरत के नाट्य-शास्त्र पर कोई टीका लिखी थी। | ||
+ | ====<u>भर्तृभेण्ठ</u>==== | ||
+ | ‘हस्तिपक‘ नाम से भी जाने वाले इस कवि ने ‘हयग्रीववध‘ काव्य की रचना की। | ||
+ | ====<u>विष्णु शर्मा</u>==== | ||
+ | इनके द्वारा रचित काव्य ‘पंचतंत्र‘ के विश्व की लगभग 50 भाषाओं मे 250 भिन्न भिन्न् संस्करण निकल चुके हैं पंचतंत्र की गणना संसार के सर्वाधिक प्रचलित ग्रंथ ‘बाइबल‘ के बाद दूसरे स्थान पर की जाती है। 16वी शती के अंत तक इस ग्रंथ का अनुवाद यूनान, लैटिन, स्पेनिश, जर्मन एवं अंग्रेजी भाषाओं में किया जा चुका था। पंचतत्र 5 भागों में बंटा है- 1. मित्रभेद, 2. मित्रलाभ. 3. सन्धि-विग्रह, 4. लब्ध-प्रणाश, और 5. अपरीक्षाकारित्व। | ||
+ | ==गुप्तकाल के धार्मिक ग्रंथ== | ||
+ | ====<u>पुराण</u>==== | ||
+ | पुराणों के वर्तमान रूप की रचना गुप्त काल में ही हुई, इनमें ऐतिहासिक परम्पराओं का उल्लेख मिलता है। पुराणों का अंतिम रूप से संकलन भी गुप्त काल में हुआ है। दो महान् गाथा काव्य रामायण और महाभारत ईसा की चैथी सदी (गुप्तकाल) में पूरे हो चुके थे। अतः इनका संकलन गुप्त युग में ही हुआ। ‘रामायण‘ में परिवार रूपी संस्था का आदर्श रूप वर्णित है। ‘महाभारत‘ में दुष्ट शक्ति पर इष्ट शक्ति की विजय दिखाई गई है। ‘भगवत्गीता‘ प्रतिफल की कामना के बिना कर्तव्य पालन के निर्देश देती हैं। | ||
+ | ====<u>स्मृतियां</u>==== | ||
+ | |||
+ | गुप्त काल में याज्ञवल्क्य, नारद, कात्यापन, एवं बृहस्पति की स्मृतियां लिखी गई। इनमें याज्ञवल्क्य स्मृति सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस स्मृति में आचार, व्यवहार, प्रायश्चित आदि का उल्लेख है। हीनयान (बौद्ध धर्म) शाखा के बुद्ध घोष ने त्रिपिटकों पर भाष्य लिखा, इनका प्रसिद्ध गंथ ‘विसुद्दिभम्य‘ है। जैन दार्शिनिक आचार्य सिद्धसेन ने न्याय दर्शन पर न्यायवताम् ग्रंथ लिखा है। | ||
+ | ==गुप्तकालीन तकनीक ग्रंथ== | ||
+ | {| class="bharattable" border="1" | ||
+ | |- | ||
+ | ! रचनाकार | ||
+ | ! रचना | ||
+ | |- | ||
+ | | चन्द्रगोमिन | ||
+ | | चन्द्र व्याकरण | ||
+ | |- | ||
+ | | अमर सिंह | ||
+ | | अमरकोष (संस्कृत का प्रमाणित कोष) | ||
+ | |- | ||
+ | | कामन्दक | ||
+ | | नीतिसार (कौटिल्य के अर्थशास्त्र से प्रभावित) | ||
+ | |- | ||
+ | | वात्स्यायन | ||
+ | | कामसूत्र | ||
+ | |- | ||
+ | |} | ||
+ | ==विज्ञान== | ||
+ | गुप्त काल में खगोल शास्त्र, गणित तथा चिकित्सा शास्त्र का विकास भी अपने उत्कर्ष पर था। | ||
+ | ====<u>वराहमिहिर</u>==== | ||
+ | गुप्त काल के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री वराहमिहिर है। इनके प्रसिद्ध ग्रंथ वृहत्ससंहिता तथा पञ्चसिद्धन्तिका है। वृहत्संहिता में नक्षत्र-विद्या, वनस्पतिशास्त्रम्, प्राकृतिक इतिहास, भौतिक भूगोल जैसे विषयों पर वर्णन है। | ||
+ | ====<u>आर्यभट्ट</u>==== | ||
+ | ‘आर्यभट्टीय‘नामक ग्रंथ की रचना करने वाले आर्यभट्ट अपने समय के सबसे बड़े गणितज्ञ थे। इन्होने दशमलव प्रणाली का विकास किया। इनके प्रयासों के द्वारा ही खगोल विज्ञान को गणित से अलग किया जा सका। आर्यभट््ट ऐसे प्रथम नक्षत्र वैज्ञानिक थे, जिन्होने यह बताया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती हुई सूर्य के चक्कर लगाती है। इन्होने सूर्यग्रहण एवं चन्द्रग्रहण होने वास्तविक कारण पर प्रकाश डाला। आर्यभट्ट ने सूर्य सिद्धान्त लिखा। | ||
+ | |||
आर्यभट्ट के सिद्धान्त पर भास्कर प्रथम ने टीका लिखी। भास्कर के तीन अन्य महत्वपूर्ण गं्रंथ है- ‘महाभास्कर्य‘, ‘लघुभास्कर्य‘ एवं ‘भाष्य‘। ब्राह्मगुप्त ने ‘ब्रह्म-सिद्धान्त‘ की रचना कर बताया कि ‘प्रकृति के नियम के अनुसार समस्त वस्तुएं पृथ्वी पर गिरती हैं, क्योंकि पृथ्वी अपने स्वभाव से ही सभी वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह न्यूटन के सिद्वान्त के पूर्व की गयी कल्पना है। आर्यभट्ट, वराहमिहिर एवं ब्रह्मगुप्त को संसार के सर्वप्रथम नक्षत्र-वैज्ञानिक और गणितज्ञ कहा गया है। | आर्यभट्ट के सिद्धान्त पर भास्कर प्रथम ने टीका लिखी। भास्कर के तीन अन्य महत्वपूर्ण गं्रंथ है- ‘महाभास्कर्य‘, ‘लघुभास्कर्य‘ एवं ‘भाष्य‘। ब्राह्मगुप्त ने ‘ब्रह्म-सिद्धान्त‘ की रचना कर बताया कि ‘प्रकृति के नियम के अनुसार समस्त वस्तुएं पृथ्वी पर गिरती हैं, क्योंकि पृथ्वी अपने स्वभाव से ही सभी वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह न्यूटन के सिद्वान्त के पूर्व की गयी कल्पना है। आर्यभट्ट, वराहमिहिर एवं ब्रह्मगुप्त को संसार के सर्वप्रथम नक्षत्र-वैज्ञानिक और गणितज्ञ कहा गया है। | ||
− | चिकित्सा ग्रंथ | + | ==चिकित्सा ग्रंथ== |
− | चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के दरबार का प्रसिद्ध आयुवेदाचार्य एवं चिकित्सक धन्वंतरि था। गुप्तकालीन चिकित्सकों को ‘शल्य शास्त्र‘ के विषय में जानकारी थी। गुप्त काल में अणु सिद्धान्त का भी प्रतिपादन हुआ। | + | *चिकित्सा के क्षेत्र में वाग्भट्ट ने आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘अष्टांग हदय‘ की रचना की। आयुर्वेद के एक और ग्रंथ ‘नवीनतकम्‘ की रचना भी गुप्त काल में हुई |
− | गुप्त काल स्वर्ण काल के रूप में | + | *चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के दरबार का प्रसिद्ध आयुवेदाचार्य एवं चिकित्सक धन्वंतरि था। गुप्तकालीन चिकित्सकों को ‘शल्य शास्त्र‘ के विषय में जानकारी थी। गुप्त काल में अणु सिद्धान्त का भी प्रतिपादन हुआ। |
+ | ==गुप्त काल स्वर्ण काल के रूप में== | ||
+ | गुप्त काल को स्वर्ण युग क्लासिकल युग एवं पैरीक्लीन युग कहा जाता है। अपनीजिन विशेषताओं के कारण गुप्तकाल को ‘स्वर्णकाल‘ कहा जाता है, वे इस प्रकार हैं- साहित्य, विज्ञान, एवं कला के उत्कर्ष का काल, भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार का काल, धार्मिक सहिष्णुता एवं आर्थिक समृद्धि का काल, श्रेष्ठ शासन व्यवस्था एवं महान्सम्राटों के उदय का काल एवं राजनैतिक एकता का काल, इन समस्त विशेषताओं के साथ ही हम गुप्त को स्वर्ण,काल क्लासिकल युग एवं पैरीक्लीन युग कहते हैं। कुछ विद्वानों जैसे आर.एस.शर्मा, डी.डी. कौशम्बी एवं डाॅ. रोमिला थापर गुप्त के ‘स्वर्ण युग‘ की संकल्पना कांे निराधार सिद्ध करते हैं क्योंकि उनके अनुसार यह काल सामन्तवाद की उन्नति, नगरों के पतन, व्यापार एवं वाणिज्य के पतन तथा आर्थिक अवनति का काल था। | ||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
− | |आधार= | + | |आधार= |
|प्रारम्भिक= | |प्रारम्भिक= | ||
− | |माध्यमिक= | + | |माध्यमिक=माध्यमिक2 |
|पूर्णता= | |पूर्णता= | ||
|शोध= | |शोध= | ||
पंक्ति 63: | पंक्ति 114: | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
− | [[Category: | + | ==संबंधित लेख== |
+ | {{गुप्त साम्राज्य}} | ||
+ | {{गुप्त राजवंश}} | ||
+ | |||
+ | {{भारत के राजवंश}} | ||
+ | [[Category:गुप्त_काल]] | ||
+ | [[Category:इतिहास कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
14:35, 27 अक्टूबर 2010 का अवतरण
गुप्त काल को संस्कृत साहित्य का स्वर्ण युग माना जाता है। बार्नेट(Barnett) के अनुसार ‘प्राचीन भारत के इतिहास में गुप्त काल का वह महत्व है जो यूनान के इतिहास में पेरिक्लीयन(Periclean) युग का है।‘ स्मिथ ने गुप्त काल की तुलना ब्रिटिश इतिहास के 'एजिलाबेथन' तथा 'स्टुअर्ट' के कालों से की है। गुप्त काल को श्रेष्ठ कवियों का काल माना जाता है। इस काल के कवि को दो भागों में बांटा गया है,-
- प्रथम भाग में वे कवि आते है जिनके विषय में हमें अभिलेखों से जानकारी मिलती है हालांकि इनकी किसी भी कृति के विषय में जानकारी नहीं है। इस श्रेणी में हरिषेण, शाव(वीरसेन), वत्सभट्टि और वासुल आते हें।
- द्वितीय श्रेणी में वे कवि आते हैं जिनकी रचनाओं के बारे में हमें ज्ञान हैं, जैसे - कालिदास, भारवि, भट्टि, मातृगुप्त, भर्तृश्रेष्ठ तथा विष्णु शर्मा आदि।
हरिषेण
महादयडनायक धु्रवभूति का पुत्र हरिषेण समुद्रगुप्त के समय में सान्धिविग्रहिक कुमारामात्य एवं महादण्डनायक के पद पर कार्यरत था। हरिषण की शैली के विषय में जानकारी प्रयाग स्तम्भ लेख से मिलती है। हरिषण द्वारा स्तम्भ लेख में प्रयुक्त छन्द कालिदास की शैली की याद दिलाते हैं।हरिषेणका पूरा लेख चंपू (गद्यपद्य-मिश्रित) शैल्ी का एक अनोखा उदाहरण है।
शाव(वीरसेन)
चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समय में सान्धिविग्रहिक अमात्य पद पर कार्यरत शाव की काव्य शैली के विषय में जानकारी एकमात्र स्रोत उदयगिरि के स्तम्भ लेख से मिलती है। इस लेख में कुल 44 श्लोंक है, जिनमें पहले तीन श्लोकों में सूर्य स्तुति की गई है। वासुल ने मंदसौर प्रशस्ति रचना यशोधर्मन के समय में की। कुल 9 श्लोकों वाला यह लेख श्रेष्ठ काव्य का अनोखा उदाहरण है।
कालिदास
संस्कृत साहित्य के इस महान कवि की महत्वपूर्ण कृतियां हैं- ऋतुसंहार, मेघदूत, कुमारसंभव एवं रघवंश महाकाव्रू। कालिदास की सर्वोत्कृष्ट कृति उनका नाटक ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्‘ है। इसके अतिरिक्त उन्होने मालविकाग्निमित्रम्, विक्रर्मोशीयम् नाटक की भी रचना की है।
भारवि
इनके द्वारा रचित महाकाव्य - ‘ किरातार्जुनीयम्‘ महाभारत के वनपर्व पर आधारित है इसमे कुल 18 सर्ग है।
भट्टि
इनके द्वारा रचित ‘भट्टिकाव्य‘ को ‘रावणवध‘ भी कहा जाता है। रामायण की कथा पर आधारित इस काव्य में कुल 22 सर्ग तथा 1624 श्लोक हैं।
गुप्तकालीन नाटक एवं नाटककार
नाटक | नाटककार | नाटक का विषय |
---|---|---|
मालविकाग्निमित्रम् | कालिदास | अग्निमित्र एवं मालविका की प्रणय कथा पर आधारित है। |
विक्रमोर्वशीयम् | कालिदास | सम्राट पुरुरवा एवं उर्वशी अप्सरा की प्रणय कथा पर आधारित है। |
अभिज्ञानशाकुन्तलम् | कालिदास | दुष्यंत तथा शकुन्तला की प्रणय कथा पर आधारित |
मुद्राराक्षसम् | विशाखादत्त | इस ऐतिहासिक नाटक में चन्द्रगुप्त मौर्य के मगध के सिंहासन पर बैठने की कथा वर्णन है। |
देवीचन्द्रगुप्तम | विशाखदत्त | इस ऐतिहासिक नाटक में चन्द्रगुप्त द्वारा शाकराज का वध पर ध्रव-स्वामिनी से विवाह का वर्णन है। |
मृच्छकटिकम् | शूद्रक | इसमें नायक चारुदत्त, नायिका वसंतसेना, राजा, ब्राह्मण, जुआरी, व्यापारी, वेश्या, चोर, धूर्तदास का वर्णन है। |
स्वप्नवासदत्तम् | भास | इसमें महाराज उदयन एवं वासवदत्ता की प्रेमकथा का वर्णन किया गया है। |
प्रतिज्ञायौगंधरायणकम् | भास | महाराज उदयन के यौगंधरायण की सहायता से वासवदत्ता को उज्जयिनी से लेकर भागने का वर्णन है। |
चारुदत्तम् | भास | इस नाटक का नायक चारुदत्त मूलतः भास की कल्पना है। |
मातृगुप्त
इनके विषयमें जानकारी कल्हण के राजतरिंगिणी से मिलती है। संभवतः मातृगुप्त ने भरत के नाट्य-शास्त्र पर कोई टीका लिखी थी।
भर्तृभेण्ठ
‘हस्तिपक‘ नाम से भी जाने वाले इस कवि ने ‘हयग्रीववध‘ काव्य की रचना की।
विष्णु शर्मा
इनके द्वारा रचित काव्य ‘पंचतंत्र‘ के विश्व की लगभग 50 भाषाओं मे 250 भिन्न भिन्न् संस्करण निकल चुके हैं पंचतंत्र की गणना संसार के सर्वाधिक प्रचलित ग्रंथ ‘बाइबल‘ के बाद दूसरे स्थान पर की जाती है। 16वी शती के अंत तक इस ग्रंथ का अनुवाद यूनान, लैटिन, स्पेनिश, जर्मन एवं अंग्रेजी भाषाओं में किया जा चुका था। पंचतत्र 5 भागों में बंटा है- 1. मित्रभेद, 2. मित्रलाभ. 3. सन्धि-विग्रह, 4. लब्ध-प्रणाश, और 5. अपरीक्षाकारित्व।
गुप्तकाल के धार्मिक ग्रंथ
पुराण
पुराणों के वर्तमान रूप की रचना गुप्त काल में ही हुई, इनमें ऐतिहासिक परम्पराओं का उल्लेख मिलता है। पुराणों का अंतिम रूप से संकलन भी गुप्त काल में हुआ है। दो महान् गाथा काव्य रामायण और महाभारत ईसा की चैथी सदी (गुप्तकाल) में पूरे हो चुके थे। अतः इनका संकलन गुप्त युग में ही हुआ। ‘रामायण‘ में परिवार रूपी संस्था का आदर्श रूप वर्णित है। ‘महाभारत‘ में दुष्ट शक्ति पर इष्ट शक्ति की विजय दिखाई गई है। ‘भगवत्गीता‘ प्रतिफल की कामना के बिना कर्तव्य पालन के निर्देश देती हैं।
स्मृतियां
गुप्त काल में याज्ञवल्क्य, नारद, कात्यापन, एवं बृहस्पति की स्मृतियां लिखी गई। इनमें याज्ञवल्क्य स्मृति सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस स्मृति में आचार, व्यवहार, प्रायश्चित आदि का उल्लेख है। हीनयान (बौद्ध धर्म) शाखा के बुद्ध घोष ने त्रिपिटकों पर भाष्य लिखा, इनका प्रसिद्ध गंथ ‘विसुद्दिभम्य‘ है। जैन दार्शिनिक आचार्य सिद्धसेन ने न्याय दर्शन पर न्यायवताम् ग्रंथ लिखा है।
गुप्तकालीन तकनीक ग्रंथ
रचनाकार | रचना |
---|---|
चन्द्रगोमिन | चन्द्र व्याकरण |
अमर सिंह | अमरकोष (संस्कृत का प्रमाणित कोष) |
कामन्दक | नीतिसार (कौटिल्य के अर्थशास्त्र से प्रभावित) |
वात्स्यायन | कामसूत्र |
विज्ञान
गुप्त काल में खगोल शास्त्र, गणित तथा चिकित्सा शास्त्र का विकास भी अपने उत्कर्ष पर था।
वराहमिहिर
गुप्त काल के प्रसिद्ध खगोलशास्त्री वराहमिहिर है। इनके प्रसिद्ध ग्रंथ वृहत्ससंहिता तथा पञ्चसिद्धन्तिका है। वृहत्संहिता में नक्षत्र-विद्या, वनस्पतिशास्त्रम्, प्राकृतिक इतिहास, भौतिक भूगोल जैसे विषयों पर वर्णन है।
आर्यभट्ट
‘आर्यभट्टीय‘नामक ग्रंथ की रचना करने वाले आर्यभट्ट अपने समय के सबसे बड़े गणितज्ञ थे। इन्होने दशमलव प्रणाली का विकास किया। इनके प्रयासों के द्वारा ही खगोल विज्ञान को गणित से अलग किया जा सका। आर्यभट््ट ऐसे प्रथम नक्षत्र वैज्ञानिक थे, जिन्होने यह बताया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती हुई सूर्य के चक्कर लगाती है। इन्होने सूर्यग्रहण एवं चन्द्रग्रहण होने वास्तविक कारण पर प्रकाश डाला। आर्यभट्ट ने सूर्य सिद्धान्त लिखा।
आर्यभट्ट के सिद्धान्त पर भास्कर प्रथम ने टीका लिखी। भास्कर के तीन अन्य महत्वपूर्ण गं्रंथ है- ‘महाभास्कर्य‘, ‘लघुभास्कर्य‘ एवं ‘भाष्य‘। ब्राह्मगुप्त ने ‘ब्रह्म-सिद्धान्त‘ की रचना कर बताया कि ‘प्रकृति के नियम के अनुसार समस्त वस्तुएं पृथ्वी पर गिरती हैं, क्योंकि पृथ्वी अपने स्वभाव से ही सभी वस्तुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। यह न्यूटन के सिद्वान्त के पूर्व की गयी कल्पना है। आर्यभट्ट, वराहमिहिर एवं ब्रह्मगुप्त को संसार के सर्वप्रथम नक्षत्र-वैज्ञानिक और गणितज्ञ कहा गया है।
चिकित्सा ग्रंथ
- चिकित्सा के क्षेत्र में वाग्भट्ट ने आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘अष्टांग हदय‘ की रचना की। आयुर्वेद के एक और ग्रंथ ‘नवीनतकम्‘ की रचना भी गुप्त काल में हुई
- चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के दरबार का प्रसिद्ध आयुवेदाचार्य एवं चिकित्सक धन्वंतरि था। गुप्तकालीन चिकित्सकों को ‘शल्य शास्त्र‘ के विषय में जानकारी थी। गुप्त काल में अणु सिद्धान्त का भी प्रतिपादन हुआ।
गुप्त काल स्वर्ण काल के रूप में
गुप्त काल को स्वर्ण युग क्लासिकल युग एवं पैरीक्लीन युग कहा जाता है। अपनीजिन विशेषताओं के कारण गुप्तकाल को ‘स्वर्णकाल‘ कहा जाता है, वे इस प्रकार हैं- साहित्य, विज्ञान, एवं कला के उत्कर्ष का काल, भारतीय संस्कृति के प्रचार प्रसार का काल, धार्मिक सहिष्णुता एवं आर्थिक समृद्धि का काल, श्रेष्ठ शासन व्यवस्था एवं महान्सम्राटों के उदय का काल एवं राजनैतिक एकता का काल, इन समस्त विशेषताओं के साथ ही हम गुप्त को स्वर्ण,काल क्लासिकल युग एवं पैरीक्लीन युग कहते हैं। कुछ विद्वानों जैसे आर.एस.शर्मा, डी.डी. कौशम्बी एवं डाॅ. रोमिला थापर गुप्त के ‘स्वर्ण युग‘ की संकल्पना कांे निराधार सिद्ध करते हैं क्योंकि उनके अनुसार यह काल सामन्तवाद की उन्नति, नगरों के पतन, व्यापार एवं वाणिज्य के पतन तथा आर्थिक अवनति का काल था।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
साँचा:गुप्त साम्राज्य साँचा:गुप्त राजवंश